Patra-lekhan(Letter-writing)-(पत्र-लेखन)


पत्रों के प्रकार

मुख्य रूप से पत्रों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है :

(1) अनौपचारिक-पत्र (Informal Letter)
(2) औपचारिक-पत्र (Formal Letter)

(1)अनौपचारिक पत्र- वैयक्तिक अथवा व्यक्तिगत पत्र अनौपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं।

वैयक्तिक अथवा व्यक्तिगत पत्र- वैयक्तिक पत्र से तात्पर्य ऐसे पत्रों से हैं, जिन्हें व्यक्तिगत मामलों के सम्बन्ध में पारिवारिक सदस्यों, मित्रों एवं अन्य प्रियजनों को लिखा जाता हैं। हम कह सकते हैं कि वैयक्तिक पत्र का आधार व्यक्तिगत सम्बन्ध होता हैं। ये पत्र हृदय की वाणी का प्रतिरूप होते हैं।

अनौपचारिक पत्र अपने मित्रों, सगे-सम्बन्धियों एवं परिचितों को लिखे जाते है। इसके अतिरिक्त सुख-दुःख, शोक, विदाई तथा निमन्त्रण आदि के लिए पत्र लिखे जाते हैं, इसलिए इन पत्रों में मन की भावनाओं को प्रमुखता दी जाती है, औपचारिकता को नहीं। इसके अंतर्गत पारिवारिक या निजी-पत्र आते हैं।

पत्रलेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। मनुष्य चूँकि सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दूसरों के साथ अपना सम्बन्ध किसी-न-किसी माध्यम से बनाये रखना चाहता है। मिलते-जुलते रहने पर पत्रलेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास पत्र लिखता है।

सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है; क्योंकि इनमें मनुष्य के ह्रदय के सहज उद्गार व्यक्त होते है। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृति का परिचय आसानी से पा सकते है।

एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता और शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पड़ता है।
इसके कुछ औपचारिक नियमों का निर्वाह करना चाहिए।

(i) पहली बात यह कि पत्र के ऊपर दाहिनी ओर पत्रप्रेषक का पता और दिनांक होना चाहिए।

(ii) दूसरी बात यह कि पत्र जिस व्यक्ति को लिखा जा रहा हो- जिसे 'प्रेषिती' भी कहते हैं- उसके प्रति, सम्बन्ध के अनुसार ही समुचित अभिवादन या सम्बोधन के शब्द लिखने चाहिए।

(iii) यह पत्रप्रेषक और प्रेषिती के सम्बन्ध पर निर्भर है कि अभिवादन का प्रयोग कहाँ, किसके लिए, किस तरह किया जाय।

(iv) अँगरेजी में प्रायः छोटे-बड़े सबके लिए 'My dear' का प्रयोग होता है, किन्तु हिन्दी में ऐसा नहीं होता।

(v) पिता को पत्र लिखते समय हम प्रायः 'पूज्य पिताजी' लिखते हैं।

(vi) शिक्षक अथवा गुरुजन को पत्र लिखते समय उनके प्रति आदरभाव सूचित करने के लिए 'आदरणीय' या 'श्रद्धेय'-जैसे शब्दों का व्यवहार करते हैं।

(vii) यह अपने-अपने देश के शिष्टाचार और संस्कृति के अनुसार चलता है।

(viii) अपने से छोटे के लिए हम प्रायः 'प्रियवर', 'चिरंजीव'-जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं।

अनौपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें :

(i) भाषा सरल व स्पष्ट होनी चाहिए।

(ii) संबंध व आयु के अनुकूल संबोधन, अभिवादन व पत्र की भाषा होनी चाहिए।

(iii) पत्र में लिखी बात संक्षिप्त होनी चाहिए

(iv) पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।

(v) भाषा और वर्तनी-शुद्ध तथा लेख-स्वच्छ होना चाहिए।

(vi) पत्र प्रेषक व प्रापक वाले का पता साफ व स्पष्ट लिखा होना चाहिए।

(vii) कक्षा/परीक्षा भवन से पत्र लिखते समय अपने नाम के स्थान पर क० ख० ग० तथा पते के स्थान पर कक्षा/परीक्षा भवन लिखना चाहिए।

(viii) अपना पता और दिनांक लिखने के बाद एक पंक्ति छोड़कर आगे लिखना चाहिए।

अनौपचारिक-पत्र का प्रारूप

प्रेषक का पता
..................
...................
...................
दिनांक ...................

संबोधन ...................
अभिवादन ...................
पहला अनुच्छेद ................... (कुशलक्षेम)...................
दूसरा अनुच्छेद ...........(विषय-वस्तु-जिस बारे में पत्र लिखना है)............
तीसरा अनुच्छेद ................ (समाप्ति)................

प्रापक के साथ प्रेषक का संबंध
प्रेषक का नाम ................

अनौपचारिक-पत्र की प्रशस्ति, अभिवादन व समाप्ति

(1) अपने से बड़े आदरणीय संबंधियों के लिए :

प्रशस्ति - आदरणीय, पूजनीय, पूज्य, श्रद्धेय आदि।
अभिवादन - सादर प्रणाम, सादर चरणस्पर्श, सादर नमस्कार आदि।
समाप्ति - आपका बेटा, पोता, नाती, बेटी, पोती, नातिन, भतीजा आदि।

(2) अपने से छोटों या बराबर वालों के लिए :

प्रशस्ति - प्रिय, चिरंजीव, प्यारे, प्रिय मित्र आदि।
अभिवादन - मधुर स्मृतियाँ, सदा खुश रहो, सुखी रहो, आशीर्वाद आदि।
समाप्ति - तुम्हारा, तुम्हारा मित्र, तुम्हारा हितैषी, तुम्हारा शुभचिंतक आदि।

(2)औपचारिक पत्र- प्रधानाचार्य, पदाधिकारियों, व्यापारियों, ग्राहकों, पुस्तक विक्रेता, सम्पादक आदि को लिखे गए पत्र औपचारिक पत्र कहलाते हैं।

औपचारिक पत्रों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता हैं-

(1) प्रार्थना-पत्र/आवेदन पत्र (Request Letter)(अवकाश, सुधार, आवेदन के लिए लिखे गए पत्र आदि)।
(2) सम्पादकीय पत्र (Editorial Letter) (शिकायत, समस्या, सुझाव, अपील और निवेदन के लिए लिखे गए पत्र आदि)
(3) कार्यालयी-पत्र (Official Letter)(किसी सरकारी अधिकारी, विभाग को लिखे गए पत्र आदि)।
(4) व्यवसायिक-पत्र (Business Letter)(दुकानदार, प्रकाशक, व्यापारी, कंपनी आदि को लिखे गए पत्र आदि)।

(1) प्रार्थना-पत्र (Request Letter)- जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे 'प्रार्थना-पत्र' कहलाते हैं।
ये अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन के लिए लिखे जाते हैं।

(2) सम्पादकीय पत्र (Editorial Letter)-सम्पादक के नाम लिखे जाने वाले पत्र को संपादकीय पत्र कहा जाता हैं। इस प्रकार के पत्र सम्पादक को सम्बोधित होते हैं, जबकि मुख्य विषय-वस्तु 'जन सामान्य' को लक्षित कर लिखी जाती हैं।

(3) कार्यालयी-पत्र (Official Letter)- विभिन्न कार्यालयों के लिए प्रयोग किए जाने अथवा लिखे जाने वाले पत्रों को 'कार्यालयी-पत्र' कहा जाता हैं।
ये पत्र किसी देश की सरकार और अन्य देश की सरकार के बीच, सरकार और दूतावास, राज्य सरकार के कार्यालयों, संस्थानों आदि के बीच लिखे जाते हैं।

(4) व्यापारी अथवा व्यवसायिक पत्र (Business Letter)- व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, उन्हें 'व्व्यवसायिक पत्र' कहते हैं।

आज व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता का दौर हैं। प्रत्येक व्यापारी यही कोशिश करता हैं कि वह शीर्ष पर विद्यमान हो। व्यापार में बढ़ोतरी बनी रहे, साख भी मजबूत हो, इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जिन पत्रों को माध्यम बनाया जाता हैं, वे व्यापारिक पत्रों की श्रेणी में आते हैं। इन पत्रों की भाषा पूर्णतः औपचारिक होती हैं।

औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें :

(i)औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं।

(ii)इस प्रकार के पत्रों में नपी-तुली भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशलक्षेम आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।

(iii)पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।

(iv)पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।

(v)यदि आप कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र लिख रहे हैं, तो कक्षा अथवा परीक्षा भवन (अपने पता के स्थान पर) तथा क० ख० ग० (अपने नाम के स्थान पर) लिखना चाहिए।

(vi)पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए (Margin Line) के साथ मिलाकर लिखें।

(vii)पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए ताकि तारतम्यता बनी रहे।

(viii)प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।

औपचारिक-पत्र के निम्नलिखित सात अंग होते हैं :

(1) पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता।

(2) विषय- जिसके बारे में पत्र लिखा जा रहा है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों में लिखें।

(3) संबोधन- जिसे पत्र लिखा जा रहा है- महोदय, माननीय आदि।

(4) विषय-वस्तु-इसे दो अनुच्छेदों में लिखें :
पहला अनुच्छेद - अपनी समस्या के बारे में लिखें।
दूसरा अनुच्छेद - आप उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं, उसे लिखें तथा धन्यवाद के साथ समाप्त करें।

(5) हस्ताक्षर व नाम- भवदीय/भवदीया के नीचे अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें।

(6) प्रेषक का पता- शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, पिनकोड।

(7) दिनांक।

औपचारिक-पत्र का प्रारूप

प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र

प्रधानाचार्य,
विद्यालय का नाम व पता.............
विषय : (पत्र लिखने के कारण)।
माननीय महोदय,

पहला अनुच्छेद ......................
दूसरा अनुच्छेद ......................

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
क० ख० ग०
कक्षा......................
दिनांक ......................

व्यवसायिक-पत्र

प्रेषक का पता......................
दिनांक ......................
पत्र प्रापक का पदनाम,
पता......................
विषय : (पत्र लिखने का कारण)।
महोदय,

पहला अनुच्छेद ......................
दूसरा अनुच्छेद ......................

भवदीय,
अपना नाम

औपचारिक-पत्र की प्रशस्ति, अभिवादन व समाप्ति

प्रशस्ति - श्रीमान, श्रीयुत, मान्यवर, महोदय आदि।
अभिवादन - औपचारिक-पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता।
समाप्ति - आपका आज्ञाकारी शिष्य/आज्ञाकारिणी शिष्या, भवदीय/भवदीया, निवेदक/निवेदिका,
शुभचिंतक, प्रार्थी आदि।

(1) वैयक्तिक पत्र (अनौपचारिक पत्र)

वैयक्तिक पत्र, अनौपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं। व्यक्तिगत मामलों के सम्बन्ध में पारिवारिक सदस्यों, मित्रो, सगे-सम्बन्धियों को लिखे गए पत्र 'वैयक्तिक पत्र' कहलाते हैं। इन पत्रों का प्रयोग परिवार की कुशल-क्षेम पूछने, निमन्त्रण देने, सलाह अथवा खेद प्रकट करने के साथ-साथ मन की बातें अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता हैं।

वैयक्तिक पत्रों की भाषा-शैली सरल, सहज एवं घरेलू होती हैं। लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं हैं कि पत्र-लेखक जैसी चाहे वैसी भाषा लिख सकता हैं। पत्र लिखने से पहले पत्र के विषय पर ध्यानपूर्वक सोच लेना चाहिए। फिर अपनी बात को उचित ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए।

यदि आप अपने माता-पिता, चाचा, मामा तथा अन्य पूजनीय लोगों को पत्र लिखने जा रहे हैं, तो पत्र लिखते समय उनका सम्बोधन जरूरी हैं। यह सम्बोधनपूजनीय पिताजी प्रणाम, आदरणीय चाचा जी सादर चरण-स्पर्श, के रूप में हो सकता हैं।

वैयक्तिक पत्र के मुख्य भाग

वैयक्तिक पत्र को व्यवस्थित रूप से लिखने के लिए इसको निम्नलिखित भागों में बाँटा गया हैं-

(1) प्रेषक का पता- पत्र लिखते समय सर्वप्रथम प्रेषक का पता लिखा जाना चाहिए। यह पता पत्र के बायीं ओर लिखा जाता हैं।

(2) तिथि-दिनांक- पत्र के बायीं ओर लिखे प्रेषक के पते के ठीक नीचे तिथि लिखी जानी चाहिए। यह तिथि उसी दिवस की होनी चाहिए, जब पत्र लिखा जा रहा हैं। तिथि को निम्न उदाहरण की तरह लिखना चाहिए 14 मार्च, 20XX अथवा मार्च 14, 20XX

(3) सम्बोधन- पत्र पर प्रेषक का पता व दिनांक अंकित करने के बाद 'सम्बोधन' सूचक शब्दों को लिखना चाहिए। 'सम्बोधन' का अर्थ हैं, 'किसी व्यक्ति को पुकारने के लिए प्रयुक्त शब्द'।जैसे- आदरणीय, माननीय, स्नेहिल, मित्रवर आदि।

(4) अभिवादन- सम्बोधन के नीचे दायीं ओर अभिवादन लिखा जाता हैं। यह सादर चरण-स्पर्श, नमस्कार, नमस्ते, चिरंजीव रहो आदि रूपों में लिखा जाता हैं।

(5) मूल भाग (विषय वस्तु)- अभिवादन की औपचारिकता के बाद मूल विषय लिखने का क्रम आता हैं। यह मूल विषय ही पत्र की विषय-वस्तु कहलाती हैं। इसी भाग में पत्र-लेखक को अपनी पूरी बात रखनी होती हैं।

(6) मंगल कामनाएँ- विषय वस्तु की समाप्ति के बाद मंगल कामनाएँ व्यक्त की जाती हैं। सामान्यतः मंगल कामनाएँ 'शुभ कामनाओं सहित', 'सस्नेह', 'शुभचिन्तक' आदि के रूप में व्यक्त की जाती हैं।

(7) उपसंहार- पत्र की विषय वस्तु, मंगल कामना लिखने के बाद अन्त में प्रसंगानुसार 'आपका', 'भवदीय', 'शुभाकांक्षी' आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं। यह पत्र के दायीं ओर लिखा जाता हैं।

(8) हस्ताक्षर- पत्र के अन्त में पत्र-लेखक को अपने हस्ताक्षर करना चाहिए। यदि आपको लगता हैं कि पत्र पाने वाला आपको हस्ताक्षर से पहचान पाएगा, तब आप अपने हस्ताक्षर के नीचे अपना नाम भी लिख सकते हैं।

पत्र पूरा लिखने के बाद उसे एक बार पुनः पढ़ लेना चाहिए और यदि कोई बात बतानी रह गई हो तो उसे पुनश्च लिखकर बता देना चाहिए।

वैयक्तिक पत्र लिखते समय प्रयोग में आने वाली औपचारिकताएँ अर्थात सम्बोधन एवं अभिवादन

जिसे पत्र लिखना हो सम्बोधन अभिवादन अभिनिवेदन
अपने से बड़े आदरणीय, निकट सम्बन्धियों को, माता, पिता, गुरु, बड़े भाई, बड़ी बहन आदि को पूजनीय, पूज्य, पूजनीया, पूज्या, परम पूज्य, परम पूज्या, आदरणीय, आदरणीया, मान्यवर या श्रद्धेय। प्रणाम, नमस्कार, नमस्ते, चरण वन्दना या चरण-स्पर्श। आपका कृपाभिलाषी, स्नेह-पात्र या दयाभिलाषी।
बराबर वाले, सहेली, मित्र, सहपाठी आदि को प्रिय मित्र, प्रिय सखी, मित्रवर, बन्धुवर या प्रियवर। जयहिन्द, नमस्ते या जय भारत। आपका मित्र, तुम्हारा ही, तुम्हारा स्नेही, तुम्हारी सखी या तुम्हारी ही।
अपरिचित व्यक्तियों को माननीय, मान्यवर, आदरणीय, आदरणीया, मान्य या महोदय, श्रीमान/श्रीमती (नाम)। जयहिन्द, नमस्ते या नमस्कार। भवदीय, कृपाकांक्षी, आपका या भवदीया।
अपने से छोटों को प्रिय, परम प्रिय, प्रियवर या चिरंजीव। शुभाशीर्वाद, सुखी रहो, खुश रहो, शुभाशीष, आनन्दित रहो या प्रसन्न रहो। शुभचिन्तक, शुभाभिलाषी, हितैषी, हितेच्छु या हितचिन्तक।

वैयक्तिक पत्र का प्रारूप

हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे पुत्र को पिता की ओर से कुशल-क्षेम जानने सम्बन्धी पत्र लिखिए।

123 कश्मीरी गेट,............................... (1)पत्र भेजने वाले का पता
दिल्ली

दिनांक 14 मार्च, 20XX ....................... (2)दिनांक

प्रिय राजेश, ....................................... (3)सम्बोधन

सुखी रहो ........................................ (4)अभिवादन

हम सब यहाँ कुशलपूर्वक हैं और वहाँ पर तुम्हारी कुशलता की कामना करते हैं। तुम्हारा कॉलेज का यह पहला वर्ष हैं। खूब मन लगाकर पढ़ाई करना। किसी प्रकार की समस्या हो, तो हमें सूचित करना। तुमने अपने पिछले पत्र में हमें बताया था कि तुम्हारे कॉलेज में जल्दी ही 'वार्षिक-उत्सव' शुरू होने जा रहा हैं, ख़ुशी की सबसे बड़ी बात यह कि तुम भी कॉलेज के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग ले रहे हो।
हमारी भगवान से यही प्रार्थना हैं कि तुम्हें हर क्षेत्र में सफलता मिले। पढ़-लिखकर तुम एक बड़े अधिकारी बनो, हमारी यही कामना हैं। .............................(5)विषय वस्तु

हॉस्टल में यदि किसी प्रकार की दिक़्क़त अथवा परेशानी हो, तो हमें लिखना। समय-समय पर अपना हाल-चाल घर पर पत्र के माध्यम से देते रहा करो। तुम्हारी माँ हर समय तुम्हें याद करती रहती हैं। तुम्हारी छोटी बहन हर समय पूछती रहती हैं कि भैया कब आएँगे। मैंने उसे समझा दिया हैं कि तुम हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे हो, जल्दी ही घर आ जाओगे। राजेश, हम लोगों की तुमसे बहुत आशाएँ हैं। उम्मीद करते हैं कि तुम हमारे सपने अवश्य सच करोगे। अपना ख्याल रखना।

शुभकामनाओं सहित............................. (6)मंगल कामनाएँ

तुम्हारा पिता,
अजय कुमार........................................(7)अभिनिवेदन

कुशल-क्षेम सम्बन्धी पत्र

कुशल-क्षेम सम्बन्धी पत्रों से तात्पर्य ऐसे पत्रों से हैं, जिससे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का हाल-चाल जानता हैं। वह जानकारी प्राप्त करता हैं कि अमुक व्यक्ति राजी-ख़ुशी से रह रहा हैं अथवा नहीं। कुशल-क्षेम सम्बन्धी कुछ पत्रों के उदाहरण इस प्रकार हैं-

(1) अपने परिवार से दूर रहकर नौकरी कर रहे पिता का हाल-चाल जानने के लिए पत्र लिखिए।

20/3, रामनगर,
कानपुर।

दिनांक 15 मार्च, 20XX

पूज्य पिताजी,
सादर चरण-स्पर्श।

कई दिनों से आपका कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। हम सब यहाँ कुशलपूर्वक रहकर भगवान से आपकी कुशलता एवं स्वास्थ्य के लिए सदा प्रार्थना करते हैं। पिताजी, मैंने घर की सारी जिम्मेदारियाँ सम्भाल ली हैं। घर एवं बाहर के अधिकांश काम अब मैं ही करता हूँ।

सलोनी आपको बहुत याद करती हैं। वह हर समय पापा-पापा की रट लगाए रहती हैं। इस बार घर आते समय उसके लिए गुड़ियों का उपहार लेते आइएगा।

आप अपनी सेहत का ख्याल रखना। समय पर खाना, समय पर सोना। यदि आपको स्वास्थ्य से तनिक भी गड़बड़ी महसूस हो तो डॉक्टर से परामर्श कर तुरंत ही अपना उचित इलाज करवाना।

आपके पत्र के जवाब के इन्तजार में।

आपका पुत्र,
विजय मोहन

(2) आपका मित्र विदेश में रह रहा हैं। अपने मित्र का कुशल-क्षेम जानने के लिए उसे पत्र लिखिए।

454, मुखर्जी नगर,
दिल्ली।

दिनांक 13 मार्च, 20XX

प्रिय मित्र अवधेश,
नमस्कार।

आशा हैं, आप स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे। काफी समय बीत गया, आपका कोई पत्र नहीं आया। ऐसा लगता हैं जैसे फ्रांस में नौकरी मिलने के बाद से आप काफी व्यस्त हो गए हैं।

आप मेरा यह पत्र मिलते ही जवाब दें, एवं मुझे यह भी बताएँ कि देश से दूर रहकर चिकित्सा कार्य करने का आपका अनुभव कैसा रहा।

हो सकता हैं कि कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण आपको पत्र लिखने का समय न मिल पाता हो, परन्तु अपने इस मित्र के लिए कुछ समय तो निकाल ही लिया करें। इससे मुझे ख़ुशी मिलेगी।

आपकी भारत आने की योजना कब हैं, यह भी पत्र में लिखना। भाभी को मेरी तरफ से प्रणाम कहना, भांजी सृजना को प्यार देना।

आपके पत्र की प्रतीक्षा में

आपका मित्र,
राज कौशल

(3) अपनी छात्रावास की दिनचर्या एवं अपना कुशल-क्षेम बताते हुए अपने पिताजी को पत्र लिखिए।

सरोजिनी छात्रावास,
देहरादून।

दिनांक 12 मार्च, 20XX

पूज्य पिताजी,
सादर चरण-स्पर्श।

मुझे आज ही आपका पत्र प्राप्त हुआ। मेरे लिए यह ख़ुशी की बात हैं कि आपने मेरा हाल-चाल जानने के साथ-साथ मेरे छात्रावास की दिनचर्या के विषय में भी जानकारी चाही हैं। मैं यहाँ खुश हूँ, मुझे किसी तरह की कोई समस्या नहीं हैं। जहाँ तक बात मेरे छात्रावास की दिनचर्या की हैं, तो मैं इस पत्र में आपको उसकी जानकारी दे रहा हूँ।

हम प्रातः 5 : 30 बजे उठते हैं। 6 : 00 बजे तक शौच आदि से निवृत्त होकर प्रातः भ्रमण हेतु निकल जाते हैं। इन सब कार्यों पर हमारा लगभग एक घण्टा व्यतीत हो जाता हैं। इसके बाद सात बजे से साढ़े सात बजे के मध्य स्नान करते हैं। ठीक 8 बजे नाश्ते की घण्टी बजती हैं। प्रातः साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे तक पढ़ाई करता हूँ। दस बजे से चार बजे तक विद्यालय में रहता हूँ। सायं साढ़े पाँच से साढ़े छः बजे तक का समय खेलों के लिए निश्चित हैं। रात्रि भोजन की घण्टी आठ बजे बजती हैं। भोजन के पश्चात् दो घण्टे अध्ययन करता हूँ। रात्रि ग्यारह बजे सब विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से सो जाना पड़ता हैं। इस प्रकार हमारी दिनचर्या नियमबद्ध ढंग से एवं सुचारु रूप से चलती रहती हैं। छात्रावास के अधीक्षक हमारी हर सुविधा का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं। मैं अगले महीने ग्रीष्म अवकाश में घर आऊँगा।

माताजी को सादर-प्रणाम, सोनिया को प्यार।

आपका प्रिय पुत्र,
सोहन