Patra-lekhan(Letter-writing)-(पत्र-लेखन)


नीचे कुछ विशिष्ठ पत्र लेखन दिया जा रहा है-

अपने पिता को एक पत्र लिखिए जिसमें पूरे परिवार के व्यवहार के लिए एक टीवी खरीदने के लिए अनुरोध कीजिए

स्टेशन रोड,
भागलपुर
15 फरवरी, 1988

पूज्यवर पिताजी,

मुझे आपका पत्र अभी-अभी मिला। मुझे यह जानकर ख़ुशी है कि आप अगले महीने में घर आ रहे हैं। मैं आपको कुछ कष्ट देना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि हमारे घर में एक टीवी रहे। गत वर्ष मैंने आपसे टीवी खरीदने के लिए अनुरोध किया था, लेकिन आपने उसे स्वीकार नहीं किया। आप मुझसे सहमत होंगे कि टीवी एक बहुत उपयोगी चीज है। यदि हमारे घर में टीवी हो तो हम समाचार, फ़िल्म, क्रिकेट और कई प्रकार के मनोरंजन कर सकते हैं।

टीवी मनोरंजन का एक अच्छा साधन है। इससे हमारा बहुत मनोरंजन होगा। इसका शिक्षाणात्मक महत्त्व भी है। विभित्र कार्यक्रमों को देखकर मैं बहुत बातें सीख सकता हूँ। यदि हमारे पास टीवी हो तो वह पुरे परिवार के लिए उपयोगी होगा। माताजी औरतों के कार्यक्रम को पसंद करेंगी। वे भागवत देखना चाहेंगी। मैं टीवी देखकर बहुत-कुछ सीखूँगा। मनोज बच्चों के कार्यक्रम देखकर खुश होगा।

आप देख सकते है कि टीवी हमारे परिवार के लिए आवश्यक है। क्या आप जब घर आएँगे तब कृपा करके एक टीवी खरीद देंगे ?अब टीवी की कीमत अधिक नहीं रही। सस्ते टीवी से भी काम चल जाएगा। मुझे विश्र्वास है कि आप परिवार के व्यवहार के लिए एक टीवी खरीद देंगे।
अत्यंत आदर के साथ,

आपका स्त्रेही
प्रकाश
पता-श्री देवेंद्र प्रसाद सिंह,
15 पार्क स्ट्रीट,
कलकत्ता-8

आप एक साइकिल खरीदना चाहते हैं। अपने पिता को एक पत्र लिखिए जिसमें साइकिल खरीदने के लिए कुछ रुपए भेजने के लिए उनसे अनुरोध कीजिए।

महात्मा गाँधी रोड,
जमालपुर
27 फरवरी, 1988

पूज्यवर पिताजी,

करीब एक महीने से मुझे आपका कोई पत्र नहीं मिला है। मुझे डर है कि आप मुझ पर रंज हैं।

आप जानते है कि मुझे पैदल स्कूल जाना पड़ता है। मुझे प्रतिदिन चार मील पैदल चलना पड़ता है। मुझे प्रातः काल 9 बजकर 15 मिनट पर स्कूल के लिए रवाना होना पड़ता है। मुझे सुबह में अध्ययन के लिए अधिक समय नहीं मिलता। जब मैं स्कूल से लौटता हूँ तब मैं बहुत थका हुआ रहता हूँ। इसलिए मैं शाम में मन लगाकर नहीं पढ़ सकता।

यदि मेरे पास एक साइकिल रहे तो मैं काफी समय और शक्ति बचा सकता हूँ। मैं साइकिल चलाना अच्छी तरह जानता हूँ। मैं भीड़वाली सड़कों पर भी साइकिल चला सकता हूँ। क्या आप कृपा करके मुझे एक साइकिल खरीद देंगे ? आप मुझसे सहमत होंगे कि मेरे लिए साइकिल आवश्यक है। मैं कीमती साइकिल लेना नहीं चाहता। सस्ती साइकिल से भी काम चल जाएगा।

कृपा करके मुझे पाँच सौ रुपए भेज दें जिससे मैं एक साइकिल खरीद सकूँ।
माँ को मेरा प्यार। अत्यंत आदर के साथ,

आपका स्त्रेही,
मोहन
पता- श्री महेंद्र प्रसाद,
जलकद्यरबाग,
पटना-8

एक पत्र में अपने पिता को टेस्ट परीक्षा में अपनी सफलता और बोर्ड परीक्षा के लिए अपनी तैयारी के बारे में लिखिए।

गोविंद मित्र रोड
पटना-4
5 दिसंबर, 1987

पूज्यवर पिताजी,

आपके लिए एक खुशखबरी है। आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि मैं टेस्ट परीक्षा में अपने वर्ग में प्रथम हुआ।

मेरी बोर्ड परीक्षा 9 मार्च 1998 से प्रारंभ होगी। बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने के लिए मेरे पास काफी समय है। मैं अपने समय का अच्छी तरह उपयोग करना चाहता हूँ। मैंने अपनी पाठ्यपुस्तकों को अच्छी तरह पढ़ लिया है। अब मैं प्रत्येक विषय में कुछ संभावित प्रश्र तैयार कर रहा हूँ। मैंने अपने अध्ययन के लिए एक कार्यक्रम बना लिया है। मैं प्रत्येक विषय को अच्छी तरह तैयार कर रहा हूँ। मैं लिखने के काम में काफी समय लगाता हूँ। मैं उम्मीद करता हूँ कि जनवरी के अंत तक मैं अपनी तैयारी खत्म कर लूँगा। तब मैं अपनी पाठ्यपुस्तकों को दुहराऊँगा।

मेरे शिक्षक को उम्मीद है कि मैं बोर्ड परीक्षा में अच्छा स्थान प्राप्त करूँगा। मैं आशा करता हूँ कि मेरा परीक्षाफल उनकी उम्मीद के अनुसार होगा।

कृपया माताजी को मेरा प्रणाम कह देंगे।

आपका स्त्रेही,
अशोक
पता- श्री विनोद कुमार शर्मा
स्टेशन रोड,
दरभंगा

आप परीक्षा समाप्त होने के बाद एक मित्र के घर जाना चाहते हैं। इसके लिए अनुमति माँगने के लिए अपने पिता को एक पत्र लिखिए।

गर्दनीबाग,
पटना-1
22 फरवरी, 1998

पूज्यवर पिताजी,

मुझे आपका पत्र अभी मिला है। आपने मुझे परीक्षा के बाद घर आने को कहा है। मुझे आपको यह कहने में दुःख है कि मैं तुरन्त ही घर जाना नहीं चाहता।

मेरे एक मित्र ने मुझे परीक्षा के बाद अपने घर जाने को कहा है। उनके पिता बरौनी में रहते है। मैं अपने मित्र के घर जाना चाहता हूँ। मैं कभी भी बरौनी नहीं गया हूँ। मैं तेलशोधक कारखाना देखना चाहता हूँ। मेरे मित्र ने मुझे विश्र्वास दिलाया है कि वह मुझे तेलशोधक कारखाना दिखलाएगा।

परीक्षा समाप्त होने के बाद मैं बहुत थका रहूँगा। मैं सोचता हूँ कि अपने मित्र के घर जाने से मेरा मनोरंजन होगा। मैं अपने मित्र के घर पर तीन या चार दिनों तक रहूँगा। तब मैं घर जाऊँगा।

कृपया परीक्षा समाप्त होने के बाद मुझे अपने मित्र के घर जाने की अनुमति अवश्य दें। यदि आप मुझे अपनी अनुमति नहीं देंगे तो मेरा मित्र निराश हो जाएगा।

आपका प्रिय पुत्र,
योगेंद्र
पता- श्री महेंद्र शर्मा
15 सिविल लाइंस
गया

एक पत्र में अपने पिता को बताइए कि आप माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहते हैं।

राजेंद्रनगर,
पटना- 16
2 मार्च, 1998

पूज्यवर पिताजी,

मुझे आपका पत्र अभी मिला है। आपने मुझे यह बतलाने को कहा है कि मैं माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहता हूँ।

अब बोर्ड परीक्षा होने में आधा महीना ही बाकी है। मैं परीक्षा के लिए कठिन परिश्रम कर रहा हूँ। आप चाहते है कि मैं बोर्ड परीक्षा में अच्छा करूँ और मैं सोचता हूँ कि मेरा परीक्षाफल आपकी उम्मीद के अनुकूल होगा। मैं जानता हूँ कि इस परीक्षा में मेरी सफलता पर ही मेरा भविष्य निर्भर करता है। इसलिए मैं लगातार परिश्रम कर रहा हूँ।

मैं माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद पटना विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश करना चाहता हूँ। आप जानते है कि यह हमारे राज्य में सबसे अच्छा महाविद्यालय है। मैंने अपने एक मित्र से सुना है कि इसमें अच्छी प्रयोगशालाएँ हैं। इस महाविद्यालय में अनेक विख्यात प्राध्यापक हैं। मैं जानता हूँ कि इस महाविद्यालय में केवल तेज छात्रों का ही नाम लिखा जाता है। मुझे उम्मीद है कि इस महाविद्यालय में मेरा नाम लिखा जाएगा।

आप जानते है कि मैंने माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में जीवविज्ञान लिया है। मैं डॉक्टर बनना चाहता हूँ, लेकिन मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करने के पहले मुझे आई० एस० सी० की परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ेगा। मैं सोचता हूँ कि माध्यमिक विद्यालय परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद पटना विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश करना मेरे लिए अच्छा होगा।

क्या आप मेरे विचार को पसंद करते हैं ? यदि आप इसे पसंद नहीं करते तो कृपया लिखें।

आपका स्त्रेही,
अजय
पता- श्री अजय कुमार बोस,
तातारपुर,
भागलपुर-2

आपकी परीक्षा कुछ ही दिनों में होनेवाली है, लेकिन आपकी तैयारी अच्छी नहीं है। अपने पिता को एक पत्र लिखिए जिसमे अगले वर्ष परीक्षा में शरीक होने की अनुमति के लिए उनसे अनुरोध कीजिए।

मीठापुर,
पटना-1
5 मार्च, 1988

पूज्यवर पिताजी,

मेरी बोर्ड परीक्षा 9 मार्च से शुरू होगी। आपको यह जानकर अत्यंत दुःख होगा कि परीक्षा के लिए मेरी तैयारी अच्छी नहीं है।

यद्यपि परीक्षा के लिए मैं कठिन परिश्रम करता रहा हूँ, फिर भी मैंने सभी विषयों को अच्छी तरह तैयार नहीं किया है। मैं अँगरेजी और भौतिक विज्ञान में बहुत कमजोर हूँ। मुझे भय है कि यदि परीक्षा में शरीक होऊँगा तो इन विषयों में अवश्य असफल हो जाऊँगा। यदि मैं इस वर्ष परीक्षा में नहीं बैठूँगा तो अच्छा होगा।

इस दुःखद समाचार से आप तथा माँ अवश्य चिंतित होंगे, लेकिन मैं बिलकुल मजबूर हूँ। आपको यह कहने में मुझे अत्यंत दुःख हो रहा है कि मैं परीक्षा में सफल नहीं हो सकता। कृपया मुझे अगले वर्ष परीक्षा में शरीक होने की अनुमति दें। मैं आपको विश्र्वास दिलाता हूँ कि मैं कठिन परिश्रम करूँगा और कमजोरी को पूरा कर लूँगा। मुझे सभी विषयों को अच्छी तरह तैयार करने के लिए काफी समय मिलेगा।

अत्यंत आदर के साथ,
आपका स्त्रेही,
गिरींद्र
पता- श्री सुरेंद्र प्रसाद,
न्यू एरिया
आरा

अपने बड़े भाई को एक पत्र लिखिए जो अब कॉलेज में हैं। उनसे पूछिए कि आपको इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहिए।

जिला स्कूल छात्रावास,
भागलपुर
9 फरवरी, 1988

पूज्यवर भैया,

मुझे एक महीने से आपका कोई पत्र नहीं मिला है। मुझे लगता है कि आप अपने अध्ययन में इतने व्यस्त हैं कि आप मुझे पत्र नहीं लिख पाते। मेरी बोर्ड परीक्षा 9 मार्च से शुरू होगी। आप चाहते हैं कि मैं परीक्षा में अच्छा करूँ और मुझे उम्मीद है कि मेरा परीक्षाफल आपकी आशा के अनुकूल होगा। मैंने सभी विषयों को अच्छी तरह तैयार कर लिया है। अब मैं उनमें से अधिकतर विषयों को दुहरा रहा हूँ। मुझे बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक अवश्य आएँगे।

मैंने निश्र्चय नहीं किया है कि मुझे बोर्ड परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहिए। आप जानते है कि मैंने विज्ञान लिया है। मुझे जीवविज्ञान में बहुत रूचि है। मैं डॉक्टर बनना पसंद करूँगा।

कृपया मुझे बतलाइए कि मुझे बोर्ड परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद क्या करना चाहिए।

आपका स्त्रेहभाजन,
सुशील
पता- श्री मोहन बनर्जी,
कमरा न० 5,
न्यूटन छात्रावास,
पटना-5

अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखिए जिसमें अध्ययन की उपेक्षा करने के लिए उसे डाँटिए।

जिला स्कूल छात्रावास,
राँची
7 जनवरी, 1988

प्रिय अजय,

मुझे अभी पिताजी का एक पत्र मिला है। उनके पत्र से यह जानकर कि तुम गत वार्षिक परीक्षा में असफल हो गए हो मुझे बहुत दुःख है। मैंने तुम्हें दुर्गापूजा की छुट्टी में कहा था कि तुम्हें कठिन परिश्रम करना चाहिए। तुमने मेरी राय पर ध्यान नहीं दिया। तुमने अध्ययन की उपेक्षा की है। इसलिए तुम परीक्षा में असफल हो गए हो।

तुम्हें स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया है। अब तुम बच्चे नहीं हो। तुम्हें यह जानना चाहिए कि तुम्हें क्या करना है। यदि तुम इस प्रकार अध्ययन की उपेक्षा करोगे तो बाद में तुम्हें दुखी होना पड़ेगा, जब तुम कुछ नहीं कर सकोगे। अपना समय बरबाद नहीं करो। तुम एक वर्ष खो चुके हो, क्योंकि तुमने अध्ययन की उपेक्षा की है। परीक्षा में असफल होना तुम्हारे लिए लज्जाजनक हैं। यदि तुम पढ़ाई पर ध्यान नहीं दोगे तो तुम्हें भविष्य में पछताना पड़ेगा।

तुम्हारी असफलता से पिताजी और माताजी दोनों को अत्यंत दुःख है। तुम्हें अपना सुधार अवश्य करना चाहिए। अच्छा लड़का बनो और पढ़ने में लग जाओ। आशा है, तुम अपनी गलती महसूस करोगे।

शुभकामनाओं के साथ-
तुम्हारा प्रिय भाई,
उमेश
पता- श्री अजय कुमार,
नवम वर्ग,
एस० एच० ई० स्कूल, सुरसंड,
पो० ऑ०- सुरसंड,
जिला- सीतामढ़ी

एक पत्र में अपने चचेरे भाई से अनुरोध कीजिए कि वे छुट्टी में आपको अपना कैमरा दें।

कदमकुआँ,
पटना -3
15 दिसंबर, 1988

पूज्यवर भ्राताजी,

बहुत दिनों से आपका कोई पत्र मुझे नहीं मिला है। मेरी वार्षिक परीक्षा खत्म हो गई है और मैं बड़े दिन की छुट्टी का इंतजार कर रहा हूँ। मैंने छुट्टी में दिल्ली और आगरा जाने का निश्र्चय किया है।

मैं आपको कुछ कष्ट देना चाहता हूँ। मैं छुट्टी में आपका कैमरा लेना चाहूँगा। यदि मुझे आपका कैमरा मिल जाए तो मैं दिल्ली और आगरे की अपनी यात्रा में कुछ मनोरंजक फोटो खीचूँगा। आप जानते है कि मैं आपके कैमरे का प्रयोग अच्छी तरह कर सकता हूँ।

कृपया अपना कैमरा मुझे एक सप्ताह के लिए दें। मुझे उम्मीद है कि आप मुझे निराश नहीं करेंगे। मैं आपको विश्र्वास दिला सकता हूँ कि आपके कैमरे को अच्छी तरह रखूँगा। ज्योंही मैं यहाँ लौटकर आऊँगा, त्योंही मैं आपको यह लौटा दूँगा।
कृपया मेरा प्रणाम चाचाजी और चाचाजी को कह देंगे।

आपका स्त्रेह भाजन
उदय
पता- श्री श्याम कुमार,
कोर्ट रोड, बाढ़
जिला-पटना

अपने मित्र को एक पत्र लिखिए जिसमें मेला देखने का वर्णन कीजिए।

बाँकीपुर,
पटना-4
15 नवंबर, 1987

प्रिय शेखर,

पिछले कई दिनों से मैं तुम्हें पत्र लिखने के लिए सोच रहा था। पर, मुझे सोनपुर मेला देखने की इच्छा थी। इसलिए मैंने जान-बूझकर पत्र लिखने में देर की। मैंने सोचा कि सोनपुर मेले से लौटकर पत्र देना अच्छा होगा ताकि मैं वहाँ के अनुभव का वर्णन कर सकूँ।

सोनपुर का मेला एक बहुत बड़े क्षेत्र में लगता है। मैं समझता हूँ कि यह दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। यहाँ सभी तरह के पशु और पक्षी- सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़े तक- बेचे जाते है। यहाँ पर अनगिनत दूकानें रहती है और चीजों की अत्यधिक खरीद-बिक्री होती है। सबसे बड़ा बाजार जानवरों का है जहाँ गाय, भैंस, घोड़ा, ऊँट, हाथी इत्यादि बिकते हैं। मेले में बहुत-से होटल, नाटक-मंडली, सर्कस-मंडली इत्यादि रहते है। मेले में बहुत अधिक भीड़ रहती है और हरिहरनाथ के मंदिर में सबसे अधिक भीड़ रहती है।

मेले में संध्या का समय बड़ा दुःखदायी रहता है। बहुत-से लोग एक साथ भोजन बनाते है, इसलिए धुआँ बहुत उठता है। खासकर मैंने पक्षियों के बाजार का अधिक आनंद उठाया; क्योंकि एक ही जगह मैंने हजारों तरह के पक्षियों को देखा। उनमें से बहुतों का मिलना दुर्लभ था और वे बहुत दूर से लाए गए थे।

मेला जाने से मुझे बहुत आनंद हुआ, लेकिन तुम्हारी अनुपस्थिति से दुःख हुआ।

तुम्हारा शुभचिंतक,
रामानुज
पता- श्री शेखर प्रसाद,
मारफत: बाबू नंदकिशोर लाल, वकील
महाजनटोली, आरा।