कुछ विशिष्ट पत्रों के अन्तर्गत हम आपको ऐसे पत्रों से रूबरू करा रहे हैं, जो किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा लिखे गए हैं। इनमें महात्मा गाँधी, पण्डित मोतीलाल नेहरू, शहीद भगतसिंह, हरिवंश राय बच्चन आदि के पत्र शामिल किए गए हैं। यहाँ ऐसे पत्रों के कुछ उदाहरण दिया जा रहा हैं-
(1) राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा श्री जमनालाल बजाज को लिखा गया पत्र।
23 अगस्त, 1924
चि. जमनालाल,
मैं इस वक्त ट्रेन में हूँ। दिल्ली से वापस आश्रम जा रहा हूँ। दिल्ली में समझौते की बातें चल रही हैं। मोतीलाल का पत्र नहीं आया। तुम्हारे प्रान्त में शुद्ध रीति से जो हो, वह होने दो। हम तटस्थ रहकर अपना काम करते रहें, इतना ही जरूरी है।
घनश्याम दास दिल्ली में नहीं थे, उनकी ओर से रुपये मिल गए थे। वे रुपये बिना खर्च की किसी प्रकार तुम्हें भेजे जाएँ, यह लिखकर पूछने के लिए छगनलाल को कहा है। साथ में महादेव, देवदास और प्यारेलाल हैं।
(2) प्रसिद्ध कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन द्वारा अपने मित्र मोहन, जो कि पाकिस्तान जेल में बन्द थे, की माँ को लिखा गया पत्र।
बी-191
ग्रेटर कैलाश-।,
नई दिल्ली-48
दिनांक 28-11-74
पूज्य माँ जी,
प्रणाम।
परसों आपका पत्र मिला। परसों ही मैंने प्रधानमन्त्री के निजी सचिव श्री बी.एन. टण्डन को फोन किया। उन्होंने विदेश मन्त्रालय के श्री रामन से सूचना माँगी।
जो सूचना उनके पास आई, उन्होंने मेरे पास भेज दी। मैं वही कागज आपके पास भेज रहा हूँ। किसी से पढ़वा लें।
जैसे इतने दिन कष्ट-धैर्य से काट दिए, कुछ दिन और काट लें। मुझे जैसे ही कोई सूचना मिलेगी आपको दूँगा; आपको मिले तो मुझे दें।
मैं भी मोहन जी के शीघ्र घर आने के लिए चिन्तित हूँ और भगवान से प्रार्थना करता हूँ।(3) भाई कुलबीर के नाम भगत सिंह द्वारा लिखा गया अन्तिम पत्र।
सैण्ट्रल जेल,
लाहौर।
दिनांक 3 मार्च, 1931
प्रिय कुलबीर सिंह,
तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। तुमने खत के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा। मैं कुछ अल्फाज (शब्द) लिख रहा हूँ-
मैंने किसी के लिए कुछ नहीं किया, तुम्हारे लिए भी कुछ नहीं। अब तुम्हें मुसीबत में छोड़कर जा रहा हूँ। तुम्हारी जिन्दगी का क्या होगा?
तुम गुजारा कैसे करोगे? यह सब सोचकर ही काँप जाता हूँ, मगर भाई हौंसला रखना, मुसीबत से कभी मत घबराना। मेहनत से बढ़ते जाना।
अगर कोई काम सीख सको तो बेहतर होगा लेकिन सब कुछ पिताजी की सलाह से ही करना। मेरे अजीज, प्यारे भाई जिन्दगी बहुत कठिन है।
सभी लोग बेरहम है। सिर्फ मुहब्बत और हौंसले से ही गुजारा हो सकता है। अच्छा भाई अलविदा.....।
तुम्हारा अग्रज
भगत सिंह
(4) पं. मोतीलाल नेहरू द्वारा अपने पुत्र जवाहरलाल नेहरू को लिखा गया पत्र।
बनारस,
कांग्रेस कैम्प,
दिनांक 28 दिसम्बर, 1905
प्रिय जवाहर,
नमस्कार।
मैं कांग्रेस के कार्यक्रम में भाग ले रहा हूँ, यह उपर्युक्त पते से ही आपको ज्ञात हो गया होगा। मैं यहाँ खासतौर से गोखले जी का भाषण सुनने आया था, जो मैं गत वर्ष नहीं सुन सका। उनका भाषण सुनियोजित तथा प्रशंसनीय था, फिर भी मुझे उसमें कोई असाधारण बात दिखाई नहीं पड़ी। 'इण्डियन पीपुल' की प्रति मैं भेज रहा हूँ, उसमें तुम्हें पूरा भाषण पढ़ने को मिल जाएगा। आज मैंने सुरेन्द्रनाथ जी का भाषण सुना तथा कल मैं इलाहाबाद वापस चला जाऊँगा। अब देखने-सुनने लायक कोई नई बात नहीं रह गई है। मुझे पता चला है कि लगाई गई प्रदर्शनी में कोई खास बात नहीं है। मैंने अभी तक यद्यपि देखी नहीं है, किन्तु यह पत्र लिख चुकने के बाद मैं उसे देखने जाऊँगा।
मैं बड़ी उत्सुकता से यह जानने की प्रतीक्षा में था कि पैर में मोच आ जाने के कारण तुम्हें फुटबॉल नहीं खेलना पड़ेगा। हैरो का डॉक्टर कभी तुम्हें नहीं छोड़ता, यदि चोट मालूम होती। तुम्हारा अगला पत्र मिलने पर पूरी जानकारी प्राप्त कर प्रसन्नता होगी।
इलाहाबाद से यहाँ आते समय तुम्हारी माँ की तबीयत बिलकुल ठीक थी। लखनऊ मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास प्रिंस ऑफ वेल्स द्वारा किया गया। समारोह भव्य था। मुझे वेल्स के राजकुमार तथा राजकुमारी को काफी निकट से देखने का मौका मिला था।