छक्के छूटना (बुरी तरह पराजित होना)- महाराजकुमार विजयनगरम की विकेट-कीपरी में अच्छे-अच्छे बॉलर के छक्के छूट चुके है।
छप्पर फाडकर देना (बिना मेहनत का अधिक धन पाना)- ईश्वर जिसे देता है, उसे छप्पर फाड़कर देता है।
छाती पर पत्थर रखना (कठोर ह्रदय)- उसने छाती पर पत्थर रखकर अपने पुत्र को विदेश भेजा था।
छाती पर सवार होना (आ जाना)- अभी वह बात कर रही थी कि बच्चे उसके छाती पर सवार हो गए।
छक्के छुड़ाना (हौसला पस्त करना या हराना)- शिवाजी ने युद्ध में मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे।
छाती पर मूँग या कोदो दलना (किसी को कष्ट देना)- राजन के घर रानी दिन-रात उसकी विधवा माँ की छाती पर मूँग दल रही है।
छाती पर साँप लोटना (ईर्ष्या से हृदय जलना)- जब पड़ोसी ने नई कार ली तो शेखर की छाती पर साँप लोट गया।
छठी का दूध याद आना (बहुत कष्ट आ पड़ना)- मैंने जब अपना मकान बनवाया तो मुझे छठी का दूध याद आ गया।
छठे छमासे (कभी-कभार)- चुनाव जीतने के बाद नेता लोग छठे-छमासे ही नजर आते हैं।
छत्तीस का आँकड़ा (घोर विरोध)- मुझमें और मेरे मित्र में आजकल छत्तीस का आँकड़ा है।
छाती पीटना (मातम मनाना)- अपने किसी संबंधी की मृत्यु पर मेरे पड़ोसी छाती पीट रहे थे।
छाती जलना (ईर्ष्या होना)- जब भवेश दसवीं में फर्स्ट क्लास आया तो उसके विरोधियों की छाती जल गई।
छाती दहलना (डरना, भयभीत होना)- अंधेरे हॉल में कंकाल देखकर मोहन की छाती दहल गई।
छाती दूनी होना (अत्यधिक उत्साहित होना)- जब रोहन बारहवीं कक्षा में प्रथम आया तो कक्षा अध्यापक की छाती दूनी हो गई।
छाती फूलना (गर्व होना)- जब मैंने एम.ए. कर लिया तो मेरे अध्यापक की छाती फूल गई।
छाती सुलगना (ईर्ष्या होना)- किसी को सुखी देखकर मेहता जी की तो छाती सुलग उठती है।
छिपा रुस्तम (अप्रसिद्ध गुणी)- वरुण तो छिपा रुस्तम निकला। सब देखते रह गए और परीक्षा में उसी ने पहला स्थान प्राप्त कर लिया।
छींका टूटना (अनायास लाभ होना)- अरे, उसकी तो लॉटरी निकल गई। इसे कहते हैं- छींका टूटना।
छुट्टी पाना (झंझट या अपने कर्तव्य से मुक्ति पाना)- रामपाल जी अपनी इकलौती बेटी का विवाह करके छुट्टी पा गए।
छू हो जाना या छूमंतर हो जाना (चले जाना या गायब हो जाना)- अरे, विकास अभी तो यही था, अभी कहाँ छूमंतर हो गया।
छोटा मुँह बड़ी बात (हैसियत से अधिक बात करना)- अध्यापक ने विद्यार्थियों को समझाया कि हमें कभी छोटे मुँह बड़ी बात नहीं करनी चाहिए, वरना पछताना पड़ेगा।
छलनी कर डालना (शोक-विह्वल कर देना)- तुम्हारी जली-कटी बातों ने मेरा कलेजा छलनी कर डाला है, अब मुझसे बात मत करो।
छाप पड़ना (प्रभाव पड़ना)- प्रोफेसर शर्मा का व्यक्तित्व ही ऐसा है। उनकी छाप सब पर जरूर पड़ती है।
छी छी करना (घृणा प्रकट करना)- तुम्हारे काले कारनामों के कारण सब लोग तुम्हारे लिए छी छी कर रहे हैं।
छेड़छाड़ करना (तंग करना)- छोटे बच्चों के साथ छेड़छाड़ करने में मुझे बहुत मजा आता है।
छः पाँच करना- (आनाकानी करना)
जलती आग में घी डालना (क्रोध बढ़ाना)- बहन ने भाई की शिकायत करके जलती आग में भी डाल दिया।
जमीन आसमान एक करना (बहुत प्रयास करना)- मै शहर में अच्छा मकान लेने के लिए जमीन आसमान एक कर दे रहा हूँ परन्तु सफलता नहीं मिल रही है।
जान पर खेलना (साहसिक कार्य)- हम जान पर खेलकर भी अपने देश की रक्षा करेंगे।
जूती चाटना (खुशामद करना, चापलूसी करना)- संजीव ने अफसरों की जूतियाँ चाटकर ही अपने बेटे की नौकरी लगवाई है।
जड़ उखाड़ना (पूर्ण नाश करना)- श्रीकृष्ण ने अपने काल में सभी दुष्टों को जड़ से उखाड़कर फ़ेंक दिया था।
जहर उगलना (कड़वी बातें कहना या भला-बुरा कहना)- पता नहीं क्या बात हुई, आज राजू अपने मित्र के खिलाफ जहर उगल रहा था।
जान खाना (तंग करना)- अरे भाई! क्यों जान खा रहे हो? तुम्हें देने के लिए मेरे पास एक भी पैसा नहीं है।
जख्म पर नमक छिड़कना (दुःखी या परेशान को और परेशान करना)- जब सोहन भिखारी को बुरा-भला कहने लगा तो मैंने कहा कि हमें किसी के जख्म पर नमक नहीं छिड़कना चाहिए।
जख्म हरा हो जाना (पुराने दुःख या कष्ट भरे दिन याद आना)- जब भी मैं गंगा स्नान के लिए जाता हूँ तो मेरा जख्म हरा हो जाता है, क्योंकि गंगा नदी में मेरा मित्र डूबकर मर गया था।
जबान चलाना (अनुचित शब्द कहना)- सीमा बहुत जबान चलाती है, उससे कौन बात करेगा?
जबान देना (वायदा करना)- अध्यापक ने विद्यार्थियों से कहा कि अच्छा आदमी वही होता है जो जबान देकर निभाता है।
जबान बन्द करना (तर्क-वितर्क में पराजित करना)- रामधारी वकील ने अदालत में विपक्षी पार्टी के वकील की जबान बन्द कर दी।
जबान में ताला लगाना (चुप रहने पर विवश करना)- सरकार जब भी चाहे पत्रकारों की जबान में ताला लगा सकती है।
जबानी जमा-खर्च करना (मौखिक कार्यवाही करना)- मित्र, अब जबानी जमा-खर्च करने से कुछ नहीं होगा। कुछ ठोस कार्यवाही करो।
जमाना देखना (बहुत अनुभव होना)- दादाजी बात-बात पर यही कहते हैं कि हमने जमाना देखा है, तुम हमारी बराबरी नहीं कर सकते।
जमीन पर पाँव न पड़ना (अत्यधिक खुश होना)- रानी दसवीं में उत्तीर्ण हो गई है तो आज उसके जमीन पर पाँव नहीं पड़ रहे हैं।
जमीन में समा जाना (बहुत लज्जित होना)- जब उधार के पैसे ने देने पर सबके सामने रामू का अपमान हुआ तो वह जमीन में ही समा गया।
जरा-सा मुँह निकल आना (लज्जित होना)- सबके सामने पोल खुलने पर शशि का जरा-सा मुँह निकल आया।
जल-भुन कर राख होना (बहुत क्रोधित होना)- सुरेश जरा-सी बात पर जल-भुन कर राख हो जाता है।
जल में रहकर मगर से बैर करना (अपने आश्रयदाता से शत्रुता करना)- मैंने रामू से कहा कि जल में रहकर मगर से बैर मत करो, वरना नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।
जली-कटी सुनाना (बुरा-भला कहना)- मैं जरा देर से ऑफिस पहुँचा तो मालिक ने मुझे जली-कटी सुना दी।
जले पर नमक छिड़कना (दुःखी व्यक्ति को और दुःखी करना)- अध्यापक ने छात्रों से कहा कि हमें किसी के जले पर नमक नहीं छिड़कना चाहिए।
जवाब देना (नौकरी से निकालना)- आज राजू जब देर से दफ्तर गया तो उसके मालिक ने उसे जवाब दे दिया।
जहन्नुम में जाना/भाड़ में जाना (बद्दुआ देने से संबंधित है।)- पिताजी ने रामू से कहा कि यदि मेरा कहना नहीं मानो तो जहन्नुम में जाओ।
जहर का घूँट पीना (कड़वी बात सुनकर चुप रह जाना)- सबके सामने अपमानित होकर रानी जहर का घूँट पीकर रह गई।
जहर की गाँठ (बुरा या दुष्ट व्यक्ति)- अखिल जहर की गाँठ है, उससे मित्रता करना बेकार है।
जादू चढ़ना (प्रभाव पड़ना)- राम के सिर पर लता मंगेशकर का ऐसा जादू चढ़ा है कि वह हर समय उसी के गाने गाता रहता है।
जादू डालना (प्रभाव जमाना)- आज नेताजी ने आकर ऐसा जादू डाला है कि सभी उनके गुण गा रहे हैं
जान न्योछावर करना (बलिदान करना)- हमारे सैनिक देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर देते हैं।
जान हथेली पर लेना (जान की परवाह न करना)- सीमा पर सैनिक जान हथेली पर लेकर चलते हैं और देश की रक्षा करते हैं।
जान हलकान करना (अत्यधिक परेशान करना)- आजकल नए मैनेजर ने मेरी जान हलकान कर दी है।
जाल फेंकना (किसी को फँसाना)- उस अजनबी ने मुझ पर ऐसा जाल फेंका कि मेरे 500 रुपये ठग लिए।
जाल में फँसना (षड्यंत्र या चंगुल में फँसना)- राजू कल उस ठग के जाल में फँस गया तो मैंने ही उसे बचाया था।
जी खट्टा होना (मन में वैराग पैदा होना)- मेरे दादाजी का तो शहर से जी खट्टा हो गया है। वे अब गाँव में ही रहते हैं।
जी छोटा करना (हतोत्साहित करना)- अरे मित्र, जी छोटा मत करो, जो लेना है, ले लो। पैसे मैं दे दूँगा।
जी हल्का होना (चिन्ता कम होना)- मदद की सांत्वना मिलने पर ही रामू का जी हल्का हुआ।
जी हाँ, जी हाँ करना (खुशामद करना)- रमन, जी हाँ, जी हाँ करके ही चपरासी से बाबू बन गया।
जी उकताना (मन न लगना)- पिछले आठ महीनों से यहाँ रहते-रहते पिताजी का जी उकता गया था, इसलिए कल ही छोटे भाई के यहाँ चले गए।
जी उड़ना (आशंका/भय से व्यग्र रहना)- जबसे राम प्यारी को यह खबर मिली है कि इन दिनों उसका बेटा लड़ाई पर गया है तबसे उसका जी उड़ता रहता है।
जी खोलकर (पूरे मन से)- हँसने की बात पर जी खोलकर हँसना चाहिए।
जी जलना (संताप का अनुभव करना)- 'अपनी बहुओं की आदतों को देख-देखकर तुम क्यों अपना जी जलाती हो?' पिताजी ने माँ को समझाते हुए कहा।
जी जान से (बहुत परिश्रम से)- यदि जी जान से काम करोगे तो जल्दी तरक्की मिलेगी।
जी तोड़ (पूरी शक्ति से)- मेरे भाई ने जी तोड़ मेहनत की थी तब जाकर मेडिकल में एडमीशन मिला।
जी भर के (जितना जी चाहे)- इस बार गर्मियों में हमने जी भर के आम खाए।
जी मिचलाना (वमन/कै की इच्छा होना)- 'डॉक्टर साहब, आज सुबह से पेट में दर्द है और जी मिचला रहा है', वह बोली।
जी में आना (इच्छा होना)- कभी-कभी मेरे जी में आता है कि मैं भी व्यापार करके देखूँ।
जीते जी मर जाना (जीवन काल में मृत्यु से बढ़कर कष्ट भोगना)- बेटे के काले कारनामों के कारण रामप्रसाद तो बेचारा जीते जी मर गया।
जी चुराना (काम में मन न लगाना)- जो लोग काम से जी चुराते हैं कभी सफल नहीं हो पाते।
जीती मक्खी निगलना (जान-बूझकर गलत काम करना)- अरे मित्र! तुम तो मुझे जीती मक्खी निगलने को कह रहे हो! मैं जान-बूझकर किसी का अहित नहीं कर सकता।
जीवट का आदमी (साहसी आदमी)- शेरसिंह जीवट का आदमी है। उसने अकेले ही आतंकवादियों का सामना किया है।
जुल देना (धोखा देना)- आज एक अनजान आदमी सीताराम को जुल देकर चला गया।
जूतियाँ चटकाना (बेकार में, बेरोजगार घूमना)- एम.ए. करने के बाद भी शंकर जूतियाँ चटका रहा है।
जेब गर्म करना (रिश्वत देना)- लालू जेब गर्म करके ही किसी को अपने साहब से मिलने देता है।
जेब भरना (रिश्वत लेना)- आजकल अधिकांश अधिकारी अपनी जेब भरने में लगे हुए हैं।
जोड़-तोड़ करना (उपाय करना)- लालू जोड़-तोड़ करना खूब जानता है।
जौहर दिखाना (वीरता दिखाना)- भारतीय जवान सीमा पर अपना खूब जौहर दिखाते हैं।
जौहर करना (स्त्रियों का चिता में जलकर भस्म होना)- अंग्रेजी शासनकाल में भारतीय नारियों ने खूब जौहर किया था।
ज्वाला फूँकना (क्रोध दिलाना)- रामू की जरा-सी करतूत ने उसके पिता के अन्दर ज्वाला फूँक दी है।
जान का प्यासा होना (मार डालने के लिए तत्पर)- सारे मुहल्ले वाले तुम्हारी जान के प्यासे हो रहे हैं। भलाई इसी में है कितुम चुपचाप यहाँ से खिसक जाओ।
जान के लाले पड़ना (प्राण बचाना कठिन लगना)- रात के अँधेरे में मुसाफिरों को डाकुओं ने घेर लिया। बेचारे मुसाफिरों की जान के लाले पड़ गए। सब कुछ छीन लिया तब बड़ी मुश्किल से छोड़ा।
जान में जान आना (घबराहट दूर होना)- लग रहा था आज विमान नहीं मिल पाएगा। हमलोग ट्रैफिक में फँसे हुए थे, पर जब मोबाइल पर संदेश आया कि विमान एक घंटा लेट हो गया है तब जाकर जान में जान आई।
जिंदगी के दिन पूरे करना (जैसे-तैसे जीवन के शेष दिन पूरे करना)- कहीं से कोई इनकम का साधन नहीं है। बेचारा रामगोपाल जैसे-तैसे जिंदगी के दिन पूरे कर रहा है।
जिक्र छेड़ना (चर्चा करना)- अपनी बहन के रिश्ते के लिए शर्मा जी से जिक्र तो छेड़ों, शायद बात बन जाए।
जिरह करना (बहस करना)- मेरे वकील ने आज जिस तरह से कोर्ट में जिरह की, मजा आ गया।
जुट जाना (किसी काम में तन्मयता से लगना)- परीक्षा की तिथियों की सूचना मिलते ही सारे बच्चे परीक्षा की तैयारी में जुट गए हैं।
जुल्म ढाना (अत्याचार करना)- जो लोग असहायों पर जुल्म ढाते हैं, ईश्वर उन्हें कभी-न-कभी सजा देता ही हैं।
जूते पड़ना (बहुत निंदा होना)- अभी आपको मेरी बात समझ में नहीं आ रही। जब जूते पड़ेंगे तब समझ में आएगी।
जूते के बराबर न समझना (बहुत तुच्छ समझना)- घमंड के कारण वह हमलोगों को जूते के बराबर भी नहीं समझता।
जैसे-तैसे करके (बड़ी कठिनाई से)- जैसे-तैसे करके तो नौकरी मिली थी वह भी बीमारी के कारण छूट गई।
जोर चलना (वश चलना)- अपनी पत्नी पर तुम्हारा जोर नहीं चलता। उसके आगे तो भीगी बिल्ली बने रहते हो।
जोश ठंडा पड़ना (उत्साह कम होना)- वह कई बार आई० ए० एस० की परीक्षा में बैठा, पर सफल न हो सका। अब तो बेचारे का जोश ही ठंडा पड़ गया है।
जंगल में मंगल करना- (शून्य स्थान को भी आनन्दमय कर देना)
जबान में लगाम न होना- (बिना सोचे-समझे बोलना)
जी का जंजाल होना- (अच्छा न लगना)
जमीन का पैरों तले से निकल जाना- (सन्नाटे में आना)
जमीन चूमने लगा- (धराशायी होना)
जी टूटना- (दिल टूटना)
जी लगना- (मन लगना)
झक मारना (विवश होना)- दूसरा कोई साधन नहीं हैै। झक मारकर तुम्हे साइकिल से जाना पड़ेगा।
झण्डा गाड़ना/झण्डा फहराना (अपना आधिपत्य स्थापित करना)- अंग्रेजों ने झाँसी की रानी को परास्त करने के पश्चात् भारत में अपना झण्डा गाड़ दिया था।
झण्डी दिखाना (स्वीकृति देना)- साहब के झण्डी दिखाने के बाद ही क्लर्क बाबू ने लालू का काम किया।
झख मारना (बेकार का काम करना)- आजकल बेरोजगारी में राजू झख मार रहा है।
झाँसा देना (धोखा देना)- विपिन को उसके सगे भाई ने ही झाँसा दे दिया।
झाँसे में आना (धोखे में आना)- वह बहुत होशियार है, फिर भी झाँसे में आ गया।
झाड़ू फेरना (बर्बाद करना)- प्रेम ने अपने पिताजी की सारी दौलत पर झाड़ू फेर दी।
झाड़ू मारना (निरादर करना)- अध्यापक कहते हैं कि आगंतुक पर झाड़ू मारना ठीक नहीं है, चाहे वह भिखारी ही क्यों न हो।
झूठ का पुतला (बहुत झूठा व्यक्ति)- वीरू तो झूठ का पुतला है तभी कोई उसकी बात का विश्वास नहीं करता।
झूठ के पुल बाँधना (झूठ पर झूठ बोलना)- अपनी नौकरी बचाने के लिए रामू ने झूठ के पुल बाँध दिए।
झटक लेना (चालाकी से ले लेना)- बड़ी-बड़ी बातें सुनाकर उसने मुझसे पाँच सौ रुपये झटक लिए।
झटका लगना (आघात लगना)- किसी पर इतना विश्वास मत करो कि कभी झटका लगने पर सँभल भी न पाओ।
झपट्टा मारना (झपटकर छीन लेना)- झपट्टा मारकर चील अपने शिकार को उठा ले गई।
झाड़ू फिरना (सब बर्बाद हो जाना)- मेरी सारी मेहनत पर तुम्हारे कारण झाड़ू फिर गया। अब मैं फिर से यह काम नहीं कर सकता।
झापड़ रसीद करना (थप्पड़ मारना)- अध्यापक ने जब सुरेश के गाल पर एक झापड़ रसीद किया तो वह सारी हेकड़ी भूल गया।
झोली भरना (भरपूर प्राप्त होना)- ईश्वर बड़ा दयालु है। अपने भक्तों को वह हमेशा झोली भरकर ही देता है।
झाड़ मारना- (घृणा करना)
टाँग अड़ाना (अड़चन डालना)- हर बात में टाँग ही अड़ाते हो या कुछ आता भी है तुम्हे ?
टका सा जबाब देना ( साफ़ इनकार करना)- मै नौकरी के लिए मैनेज़र से मिला लेकिन उन्होंने टका सा जबाब दे दिया।
टस से मस न होना ( कुछ भी प्रभाव न पड़ना)- दवा लाने के लिए मै घंटों से कह रहा हूँ, परन्तु आप आप टस से मस नहीं हो रहे हैं।
टोपी उछालना (निरादर करना)- जब पुत्री के विवाह में दहेज नहीं दिया तो लड़के वालों ने रमेश की टोपी उछाल दी।
टंटा खड़ा करना (झगड़ा करना)- जरा-सी बात पर सरिता ने टंटा खड़ा कर दिया।
टके के तीन (बहुत सस्ता)- गाँव में तो मूली-गाजर टके के तीन मिल रहे हैं।
टके को भी न पूछना (कोई महत्व न देना)- कोई टके को भी नहीं पूछता, फिर भी राजू मामाजी के पीछे लगा रहता है।
टके सेर मिलना (बहुत सस्ता मिलना)- आजकल आलू टके सेर मिल रहे हैं।
टर-टर करना (बकवास करना/व्यर्थ में बोलते रहना)- सुनील तो हर वक्त टर-टर करता रहता है। कौन सुनेगा उसकी बात?
टाँग खींचना (किसी के बनते हुए काम में बाधा डालना)- रमेश ने मेरी टाँग खींच दी, वरना मैं मैनेजर बन जाता।
टाँग तोड़ना (सजा देना या सजा देने की धमकी देना)- अगर सौरव ने दुबारा मेरा काम बिगाड़ा तो मैं उसकी टाँग तोड़ दूँगा।
टुकड़ों पर पलना (दूसरे की कमाई पर गुजारा करना)- सुमन अपने मामा के टुकड़ों पर पल रहा है।
टें बोलना (मर जाना)- दादाजी जरा-सी बीमारी में टें बोल गए।
टेढ़ी खीर (अत्यन्त कठिन कार्य)- आई.ए.एस. पास करना टेढ़ी खीर है।
टक्कर खाना (बराबरी करना)- जो धूर्त हैं उनसे टक्कर लेने से क्या लाभ ?
टपक पड़ना (सहसा आ जाना)- हमलोग फ़िल्म जाने का कार्यक्रम बना रहे थे कि न जाने कहाँ से अध्यापक टपक पड़े और कार्यक्रम रद्द हो गया।
टाँय-टाँय फिस (तैयारी अधिक परिणाम तुच्छ)- इतनी मेहनत की पर परिणाम टाँय-टाँय फिस।
टालमटोल करना (बहाना बनाना)- मैंने उनसे पूछा, 'टालमटोल मत कीजिए। साफ बताइए, आप मेरी मदद करेंगे या नहीं?'
टीस मारना/उठना (कसक/दर्द होना)- कल रात से घाव टीस मार रहा है।
टुकुर-टुकुर देखना (टकटकी लगाकर देखना)- भिखारी भीख माँग रहा था और उसका छोटा-सा बच्चा सबको टुकुर-टुकुर देखे जा रहा था।
टूट पड़ना (आक्रमण करना)- सब लोगों को इतनी तेज भूख लगी थी कि खाना देखते ही वे टूट पड़े।
टोह लेना (पता लगाना)- वह अचानक कहाँ भाग गई, किसी को नहीं मालूम अब उसकी टोह लेना आसान नहीं है।
टका-सा मुँह लेकर रह जाना- (लज्जित हो जाना)
टट्टी की आड़ में शिकार खेलना- (छिपकर बुरा काम करना)
टाट उलटना- (व्यापारी का अपने को दिवालिया घोषित कर देना)
टें-टें-पों-पों - (व्यर्थ हल्ला करना)
ठन-ठन गोपाल (खाली जेब अथवा अत्यन्त गरीब)- सुमेर तो ठन-ठन गोपाल है, वह चंदा कहाँ से देगा?
ठंडा करना (क्रोध शान्त करना)- महेश ने समझा-बुझाकर दादाजी को ठंडा कर दिया।
ठंडा पड़ना (मर जाना)- वह साईकिल से गिरते ही ठंडा पड़ गया।
ठकुरसोहाती/ठकुरसुहाती करना (चापलूसी या खुशामद करना)- ठकुरसोहाती करने पर भी मालिक ने सुरेश का वेतन नहीं बढ़ाया।
ठठरी हो जाना (बहुत कमजोर या दुबला-पतला हो जाना)- बीमारी के कारण मोहन ठठरी हो गया है।
ठिकाने लगाना (मार डालना)- अपहरणकर्ताओं ने भवन के बेटे को ठिकाने लगा ही दिया।
ठेंगा दिखाना (इनकार करना)- वक्त आने पर मेरे मित्र ने मुझे ठेंगा दिखा दिया।
ठेंगे पर मारना (परवाह न करना)- कृपाशंकर अमीर है इसलिए वह सबको ठेंगे पर मारता है।
ठोकरें खाना (कष्ट या दुःख सहना)- दुनियाभर की ठोकरें खाकर गोपाल ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है।
ठोड़ी पकड़ना (खुशामद करना)- मैंने सेठजी की बहुत ठोड़ी पकड़ी, परंतु उन्होंने मुझे पैसे उधार नहीं दिए।
ठंडी आहें भरना (दुखभरी साँस लेना)- दूसरों की शोहरत को देखकर ठंडी आहें नहीं भरनी चाहिए।
ठट्टा मारना (हँसी-मजाक करना)- माता जी ने लड़कियों को डाँटते हुए कहा कि ठट्टा मारना बंद करो और रसोई में जाकर काम करो।
ठन जाना (लड़ाई/झगड़ा हो जाना या परस्पर विरोध होना)- जब दो पार्टियों में आपस में ठन जाती है तो परिणाम अच्छा नहीं होता।
ठहाका मारना (जोर से हँसना)- वह छोटी-छोटी बातों पर भी ठहाका मारती है।
ठाट-बाट से रहना (शानौशौकत से रहना)- वे जिस ठाट-बाट से रहते हैं, उसकी बराबरी शायद ही कोई कर सके।
ठिकाने की बात कहना (समझदारी की बात कहना)- जो लोग ठिकाने की बात कहते हैं, लोग उन पर अवश्य यकीन करते हैं।
ठिकाने लगना (i) (काम में आना)- खाना बच गया था तो सबने नाश्ता करके ठिकाने लगा दिया।
(ii) (मर जाना)- युद्ध में कई सैनिक ठिकाने लग गए।
ठीकरा फोड़ना (दोष लगाना)- गलती आपकी है और ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ रहे हैं?
ठीहा होना (रहने का स्थान होना)- जिनका कोई ठीहा नहीं होता वे इधर-उधर भटकते रहते हैं।
ठेस पहुँचना/लगना (चोट पहुँचना)- तुम्हारी बातों से मुझे बहुत ठेस पहुँची है।
ठोंक बजाकर देखना (अच्छी तरह से जाँच-परख करना)- घर-परिवार सब कुछ ठोंक बजाकर देख लेना तब शादी के लिए हाँ करना।
ठगा-सा- (भौंचक्का-सा)
ठठेरे-ठठेरे बदला- (समान बुद्धिवाले से काम पड़ना)
डकार जाना ( हड़प जाना)- सियाराम अपने भाई की सारी संपत्ति डकार गया।
डींग मारना या हाँकना (शेखी मारना)- जब देखो, शेखू डींग मारता रहता है- 'मैंने ये किया, मैंने वो किया'।
डेढ़/ढाई चावल की खिचड़ी पकाना (सबसे अलग काम करना)-सुधीर अपनी डेढ़ चावल बनी खिचड़ी अलग पकाता है।
डोरी ढीली करना (नियंत्रण कम करना)- पिताजी ने जरा-सी डोरी ढीली छोड़ दी तो पिंटू ने पढ़ना ही छोड़ दिया।
डंका पीटना (प्रचार करना)- अनिल ने झूठा डंका पीट दिया कि उसकी लॉटरी खुल गई है।
डंके की चोट पर (खुल्लमखुल्ला)- शेरसिंह जो भी काम करता है, डंके की चोट पर करता है।
डोंड़ी पीटना (मुनादी या ऐलान करना)- बीरबल की विद्वता को देखकर अकबर ने डोंड़ी पीट दी थी कि वह राज दरबार के नवरत्नों में से एक है।
डंका बजाना (प्रभाव जमाना)- आस्ट्रेलिया ने सब देशों की टीमों को हरा कर अपना डंका बजा दिया।
डंडी मारना (कम तोलना)- यह दुकानदार बड़ा बेईमान है। तौलते समय हमेशा डंडी मार लेता है।
डकार तक न लेना (किसी का माल हड़प कर जाना)- इससे बचकर रहो। सारा माला हड़प लेगा और डकार तक न लेगा।
डुबकी मारना (गायब हो जाना)- 'इतने दिनों से कहाँ डुबकी मार गए थे', सुरेश ने मदन से पूछा।
डूब मरना (बहुत लज्जित होना)- इस तरह की बातें मेरे लिए डूब मरने के समान हैं।
डूबती नैया को पार लगाना (संकट से छुड़ाना)- ईश्वर की कृपा होगी तभी तुम्हारी डूबती नैया पार लगेगी।
डेरा डालना (निवास करना)- साधु ने मंदिर में जाकर अपना डेरा डाल दिया।
डेरा उठाना (चल देना)- स्वामी जी एक जगह नहीं रुकते। कुछ दिनों बाद ही डेरा उठाकर दूसरी जगह के लिए चल देते हैं।
डोरे डालना (किसी को अपने प्रेम-पाश में फँसाने की कोशिश करना)- उस पर डोरे डालने की कोशिश मत करो। वह तुम्हारे चक्कर में आने वाली नहीं।
डूबते को तिनके का सहारा- (संकट में पड़े को थोड़ी मदद)
ढील देना (छूट देना)- दादी माँ कहती हैं कि बच्चों को अधिक ढील नहीं देनी चाहिए।
ढेर हो जाना (गिरकर मर जाना)- कल पुलिस की मुठभेड़ में दो बदमाश ढेर हो गए।
ढोल पीटना (सबसे बताना)- अरे, कोई इस रानी को कुछ मत बताना, वरना ये ढोल पीट देगी।
ढपोरशंख होना (केवल बड़ी-बड़ी बातें करना, काम न करना)- राहुल तो ढपोरशंख है, बस बातें ही करता है, काम कुछ नहीं करता।
ढर्रे पर आना (सुधरना)- अब तो शराबी कालू ढर्रे पर आ गया है।
ढलती-फिरती छाया (भाग्य का खेल या फेर)- कल वह गरीब था, आज अमीर है- सब ढलती-फिरती छाया है।
ढाई ईंट की मस्जिद (सबसे अलग कार्य करना)- राजेश घर में कुआँ खुदवाकर ढाई ईंट की मस्जिद बना रहा है।
ढाई दिन की बादशाहत होना या मिलना (थोड़े दिनों की शान-शौकत या हुकूमत होना)- मैनेजर के बाहर जाने पर मोहन को ढाई दिन की बादशाहत मिल गई है।
ढेर करना (मार गिराना)- पुलिस ने कल दो लुटेरों को सरेआम ढेर कर दिया।
ढोल की पोल (खोखलापन; बाहर से देखने में अच्छा, किन्तु अन्दर से खराब होना)- श्यामा तो ढोल की पोल है- बाहर से सुन्दर और अन्दर से चालाक।
ढल जाना (कमजोर हो जाना, वृद्धावस्था की ओर जाना)- बीमारी के कारण उसका सारा शरीर ढल गया है।
ढिंढोरा पीटना (घोषणा करना)- केवल ढिंढोरा पीटने से काम नहीं बनता। काम बनाने के लिए लोगों का विश्वास जीतना जरूरी है।
ढोंग रचना (पाखंड करना)- ढोंग रचने वाले साधुओं से मुझे सख्त नफ़रत है।