ऐसे वाक्यांश, जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर किसी विलक्षण अर्थ की प्रतीति कराये, मुहावरा कहलाता है।
दूसरे शब्दों में- मुहावरा भाषा विशेष में प्रचलित उस अभिव्यक्तिक इकाई को कहते हैं, जिसका प्रयोग प्रत्यक्षार्थ से अलग रूढ़
लक्ष्यार्थ के लिए किया जाता है।
इसी परिभाषा से मुहावरे के विषय में निम्नलिखित बातें सामने आती हैं-
(1) मुहावरों का संबंध भाषा विशेष से होता है अर्थात हर भाषा की प्रकृति, उसकी संरचना तथा सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भो के अनुसार
उस भाषा के मुहावरे अपनी संरचना तथा अर्थ ग्रहण करते हैं।
(2) मुहावरों का अर्थ उनके प्रत्यक्षार्थ से भिन्न होता है अर्थात मुहावरों के अर्थ सामान्य उक्तियों से भिन्न होते हैं। इसका तात्पर्य यही है कि
सामान्य उक्तियों या कथनों की तुलना में मुहावरों के अर्थ विशिष्ट होते हैं।
(3) मुहावरों के अर्थ अभिधापरक न होकर लक्षणापरक होते हैं अर्थात उनके अर्थ लक्षणा शक्ति से निकलते हैं तथा अपने विशिष्ट अर्थ (लक्ष्यार्थ)
में रूढ़ हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए-
(1) कक्षा में प्रथम आने की सूचना पाकर मैं ख़ुशी से फूला न समाया अर्थात बहुत खुश हो जाना।
(2) केवल हवाई किले बनाने से काम नहीं चलता, मेहनत भी करनी पड़ती है अर्थात कल्पना में खोए रहना।
इन वाक्यों में ख़ुशी से फूला न समाया और हवाई किले बनाने वाक्यांश विशेष अर्थ दे रहे हैं। यहाँ इनके शाब्दिक अर्थ नहीं
लिए जाएँगे। ये विशेष
अर्थ ही 'मुहावरे' कहलाते हैं।
'मुहावरा' शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- अभ्यास। हिंदी भाषा में मुहावरों का प्रयोग भाषा को सुंदर, प्रभावशाली, संक्षिप्त तथा सरल बनाने के लिए किया जाता है। ये वाक्यांश होते हैं। इनका प्रयोग करते समय इनका शाब्दिक अर्थ न लेकर विशेष अर्थ लिया जाता है। इनके विशेष अर्थ कभी नहीं बदलते। ये सदैव एक-से रहते हैं। ये लिंग, वचन और क्रिया के अनुसार वाक्यों में प्रयुक्त होते हैं।
अरबी भाषा का 'मुहावर:' शब्द हिन्दी में 'मुहावरा' हो गया है। उर्दूवाले 'मुहाविरा' बोलते हैं। इसका अर्थ 'अभ्यास' या 'बातचीत'
से है।
हिन्दी में 'मुहावरा' एक पारिभाषिक शब्द बन गया है। कुछ लोग मुहावरा को रोजमर्रा या 'वाग्धारा' कहते है।
मुहावरा का प्रयोग करना और ठीक-ठीक अर्थ समझना बड़ा ही कठिन है, यह अभ्यास और बातचीत से ही सीखा जा सकता है।
इसलिए इसका नाम मुहावरा पड़ गया।
मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता, सरसता, चमत्कार और प्रवाह उत्पत्र होते है। इसका काम है बात इस खूबसूरती से कहना की सुननेवाला उसे समझ भी जाय और उससे प्रभावित भी हो।
(1) मुहावरे का प्रयोग वाक्य के प्रसंग में होता है, अलग नही। जैसे, कोई कहे कि 'पेट काटना' तो इससे कोई विलक्षण अर्थ प्रकट नही होता है। इसके विपरीत, कोई कहे कि 'मैने पेट काटकर' अपने लड़के को पढ़ाया, तो वाक्य के अर्थ में लाक्षणिकता, लालित्य और प्रवाह उत्पत्र होगा।
(2) मुहावरा अपना असली रूप कभी नही बदलता अर्थात उसे पर्यायवाची शब्दों में अनूदित नही किया जा सकता। जैसे- कमर टूटना एक मुहावरा है, लेकिन स्थान पर कटिभंग जैसे शब्द का प्रयोग गलत होगा।
(3) मुहावरे का शब्दार्थ नहीं, उसका अवबोधक अर्थ ही ग्रहण किया जाता है; जैसे- 'खिचड़ी पकाना'। ये दोनों शब्द जब मुहावरे के रूप में प्रयुक्त होंगे, तब इनका शब्दार्थ कोई काम न देगा। लेकिन, वाक्य में जब इन शब्दों का प्रयोग होगा, तब अवबोधक अर्थ होगा- 'गुप्तरूप से सलाह करना'।
(4) मुहावरे का अर्थ प्रसंग के अनुसार होता है। जैसे- 'लड़ाई में खेत आना' । इसका अर्थ 'युद्ध में शहीद हो जाना' है, न कि लड़ाई के स्थान पर किसी 'खेत' का चला आना।
(5) मुहावरे भाषा की समृद्धि और सभ्यता के विकास के मापक है। इनकी अधिकता अथवा न्यूनता से भाषा के बोलनेवालों के श्रम, सामाजिक सम्बन्ध, औद्योगिक स्थिति, भाषा-निर्माण की शक्ति, सांस्कृतिक योग्यता, अध्ययन, मनन और आमोदक भाव, सबका एक साथ पता चलता है। जो समाज जितना अधिक व्यवहारिक और कर्मठ होगा, उसकी भाषा में इनका प्रयोग उतना ही अधिक होगा।
(6) समाज और देश की तरह मुहावरे भी बनते-बिगड़ते हैं। नये समाज के साथ नये मुहावरे बनते है। प्रचलित मुहावरों का वैज्ञानिक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जायेगा कि हमारे सामाजिक जीवन का विकास कितना हुआ। मशीन युग के मुहावरों और सामन्तवादी युग के मुहावरों तथा उनके प्रयोग में बड़ा अन्तर है।
(7) हिन्दी के अधिकतर मुहावरों का सीधा सम्बन्ध शरीर के भित्र-भित्र अंगों से है। यह बात दूसरी भाषाओं के मुहावरों में भी पायी जाती है; जैसे- मुँह, कान, हाथ, पाँव इत्यादि पर अनेक मुहावरे प्रचलित हैं। हमारे अधिकतर कार्य इन्हीं के सहारे चलते हैं।
(1) मुहावरे वाक्यों में ही शोभते हैं, अलग नहीं। जैसे- यदि कहें 'कान काटना' तो इसका कोई अर्थ व्यंजित नहीं होता; किन्तु यदि ऐसा कहा जाय- 'वह छोटा बच्चा तो बड़ों-बड़ों के कान काटता है' तो वाक्य में अदभुत लाक्षणिकता, लालित्य और प्रवाह स्वतः आ जाता है।
(2) मुहावरों का प्रयोग उनके असली रूपों में ही करना चाहिए। उनके शब्द बदले नहीं जाते हैं। उनके पद-समूहों में रूप-भेद करने से उसकी लाक्षणिकता और विलक्षणता नष्ट हो जाती है। जैसे- 'नौ-दो ग्यारह होना' की जगह 'आठ तीन ग्यारह होना' । सर्वथा अनुचित है।
(3) मुहावरे का एक विलक्षण अर्थ होता है। इसमें वाच्यार्थ का कोई स्थान नहीं होता। जैसे- 'उलटी गंगा बहाना' का जब वाक्य-प्रयोग होगा, तब इसका अर्थ होगा- 'रीति-रिवाज के खिलाफ काम करना'।
(4) मुहावरे का प्रयोग प्रसंग के अनुसार होता है और उसके अर्थ की प्रतीति भी प्रसंगानुसार ही होती है। जैसे- अमरीका
की निति को सभी विकासशील राष्ट्र धोखे और अविश्वास की मानते हैं। यदि ऐसा कहा जाय- 'पाकिस्तान अपना उल्लू
सीधा करने के लिए अमीरीका की आरती उतारता है'- तो यहाँ न तो टेढ़े उल्लू को सीधा करने की बात है, न ही, दीप
जलाकर किसी की आरती उतारने की। यहाँ दोनों की प्रकृति से अर्थ निकलता है- 'मतलब निकालना और 'खुशामद करना'।
अतएव, मुहावरे का प्रयोग करते समय इस बात का सदैव ख्याल रखना चाहिए कि समुचित परिस्थिति, पात्र, घटना और
प्रसंग का वाक्य में उल्लेख अवश्य हो। केवल वाक्य-प्रयोग कर देने पर संदर्भ के अभाव में मुहावरे अपने अर्थ को अभिव्यक्ति
नहीं कर सकते हैं।
मुहावरों को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है-
(1) सादृश्य पर आधारित
(2) शारीरिक अंगों पर आधारित
(3) असंभव स्थितियों पर आधारित
(4) कथाओं पर आधारित
(5) प्रतीकों पर आधारित
(6) घटनाओं पर आधारित
(1) सादृश्य पर आधारित मुहावरे- बहुत से मुहावरे सादृश्य या समानता पर आधारित होते हैं।
जैसे- चूड़ियाँ पहनना, दाल न गलना,
सोने पर सुहागा, कुंदन-सा चमकना, पापड़ बेलना आदि।
(2) शारीरिक अंगों पर आधारित मुहावरे- हिंदी भाषा के अंतर्गत इस वर्ग में बहुत मुहावरे मिलते हैं।
जैसे- अंग-अंग ढीला होना, आँखें चुराना,
अँगूठा दिखाना, आँखों से गिरना, सिर हिलाना, उँगली उठाना, कमर टूटना, कलेजा मुँह को आना, गरदन पर सवार होना,
छाती पर साँप लोटना, तलवे चाटना, दाँत खट्टे करना, नाक रगड़ना, पीठ दिखाना, बगलें झाँकन, मुँह काला करना आदि।
(3) असंभव स्थितियों पर आधारित मुहावरे- इस तरह के मुहावरों में वाच्यार्थ के स्तर पर इस तरह की स्थितियाँ दिखाई देती हैं जो
असंभव प्रतीत होती हैं।
जैसे- पानी में आग लगाना, पत्थर का कलेजा होना, जमीन आसमान एक करना, सिर पर पाँव रखकर भागना,
हथेली पर सरसों जमाना, हवाई किले बनाना, दिन में तारे दिखाई देना आदि।
(4) कथाओं पर आधारित मुहावरे- कुछ मुहावरों का जन्म लोक में प्रचलित कुछ कथा-कहानियों से होता हैं।
जैसे-टेढ़ी खीर होना,
एक और एक ग्यारह होना, हाथों-हाथ बिक जाना, साँप को दूध पिलाना, रँगा सियार होना, दुम दबाकर भागना,
काठ में पाँव देना आदि।
(5) प्रतीकों पर आधारित मुहावरे- कुछ मुहावरे प्रतीकों पर आधारित होते हैं।
जैसे- एक आँख से देखना, एक ही लकड़ी से हाँकना, एक ही थैले के चट्टे-बट्टे होना, तीनों मुहावरों में प्रयुक्त 'एक'
शब्द 'समानता' का प्रतीक है।
इसी तरह से डेढ़ पसली का होना, ढाई चावल की खीर पकाना, ढाई दिन की बादशाहत होना, में डेढ़ तथा ढाई शब्द 'नगण्यता' के प्रतीक है।
(6) घटनाओं पर आधारित मुहावरे- कुछ मुहावरों के मूल में कोई घटना भी रहती है।
जैसे- काँटा निकालना, काँव-काँव करना,
ऊपर की आमदनी, गड़े मुर्दे उखाड़ना आदि।
उपर्युक्त भेदों के अलावा मुहावरों का वर्गीकरण स्रोत के आधार पर भी किया जा सकता है। हिंदी में कुछ मुहावरे संस्कृत से आए हैं तो कुछ अरबी-फारसी से आए हैं। इसके अतिरिक्त मुहावरों की विषयवस्तु क्या है, इस आधार पर भी उनका वर्गीकरण किया जा सकता है। जैसे- स्वास्थ्य विषयक, युद्ध विषयक आदि। कुछ मुहावरों का वर्गीकरण किसी क्षेत्र विशेष के आधार पर भी किया जा सकता है। जैसे- क्रीडाक्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले मुहावरे, सेना के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले मुहावरे आदि।
यहाँ पर कुछ प्रसिद्ध मुहावरे और उनके अर्थ वाक्य में प्रयोग सहित दिए जा रहे है।
अक्ल पर पत्थर पड़ना (बुद्धि भष्ट होना)- विद्वान और वीर होकर भी रावण की अक्ल पर पत्थर ही पड़ गया था कि उसने राम की पत्नी का अपहरण किया।
अंक भरना (स्नेह से लिपटा लेना)- माँ ने देखते ही बेटी को अंक भर लिया।
अंग टूटना (थकान का दर्द)- इतना काम करना पड़ा कि आज अंग टूट रहे है।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना (स्वयं अपनी प्रशंसा करना)- अच्छे आदमियों को अपने मुहँ मियाँ मिट्ठू बनना शोभा नहीं देता।
अक्ल का चरने जाना (समझ का अभाव होना)- इतना भी समझ नहीं सके ,क्या अक्ल चरने गए है ?
अपने पैरों पर खड़ा होना (स्वालंबी होना)- युवकों को अपने पैरों पर खड़े होने पर ही विवाह करना चाहिए।
अक्ल का दुश्मन (मूर्ख)- राम तुम मेरी बात क्यों नहीं मानते, लगता है आजकल तुम अक्ल के दुश्मन हो गए हो।
अपना उल्लू सीधा करना (मतलब निकालना)- आजकल के नेता अपना उल्लू सीधा करने के लिए ही लोगों को भड़काते है।
अंगारों पर लेटना (डाह होना, दुःख सहना) वह उसकी तरक्की देखते ही अंगारों पर लोटने लगा। मैं जीवन भर अंगारों पर लोटता रहा हूँ।
अँगूठा दिखाना (समय पर धोखा देना)- अपना काम तो निकाल लिया, पर जब मुझे जरूरत पड़ी, तब अँगूठा दिखा दिया। भला, यह भी कोई मित्र का लक्षण है।
अँचरा पसारना (माँगना, याचना करना)- हे देवी मैया, अपने बीमार बेटे के लिए आपके आगे अँचरा पसारती हूँ। उसे भला-चंगा कर दो, माँ।
अण्टी मारना (चाल चलना)- ऐसी अण्टीमारो कि बच्चू चारों खाने चित गिरें।
अण्ड-बण्ड कहना (भला-बुरा या अण्ट- सण्ट कहना)- क्या अण्ड-बण्ड कहे जा रहे हो। वह सुन लेगा, तो कचूमर ही निकाल छोड़ेगा।
अन्धाधुन्ध लुटाना (बिना विचारे व्यय)- अपनी कमाई भी कोई अन्धाधुन्ध लुटाता है ?
अन्धा बनना (आगे-पीछे कुछ न देखना)- धर्म से प्रेम करो, पर उसके पीछे अन्धा बनने से तो दुनिया नहीं चलती।
अन्धा बनाना (धोखा देना)- मायामृग ने रामजी तक को अन्धा बनाया था। इस माया के पीछे मौजीलाल अन्धे बने तो क्या।
अन्धा होना (विवेकभ्रष्ट होना)- अन्धे हो गये हो क्या, जवान बेटे के सामने यह क्या जो-सो बके जा रहे हो ?
अन्धे की लकड़ी (एक ही सहारा)- भाई, अब तो यही एक बेटा बचा, जो मुझे अन्धे की लकड़ी है। इसे परदेश न जाने दूँगा।
अन्धेरखाता (अन्याय)- मुँहमाँगा दो, फिर भी चीज खराब। यह कैसा अन्धेरखाता है।
अन्धेर नगरी (जहाँ धांधली का बोलबाला हो)- इकत्री का सिक्का था, तो चाय इकत्री में मिलती थी, दस पैसे का निकला, तो दस पैसे में मिलने लगी। यह बाजार नहीं, अन्धेरनगरी ही है।
अकेला दम (अकेला)- मेरा क्या ! अकेला दम हूँ; जिधर सींग समायेगा, चल दूँगा।
अक्ल की दुम (अपने को बड़ा होशियार लगानेवाला)- दस तक का पहाड़ा भी तो आता नहीं, मगर अक्ल की दुम साइन्स का पण्डित बनता है।
अगले जमाने का आदमी (सीधा-सादा, ईमानदार)- आज की दुनिया ऐसी हो गई कि अगले जमाने का आदमी बुद्धू समझा जाता है।
अढाई दिन की हुकूमत (कुछ दिनों की शानोशौकत)- जनाब, जरा होशियारी से काम लें। यह अढाई दिन की हुकूमत जाती रहेगी।
अत्र-जल उठना (रहने का संयोग न होना, मरना)- मालूम होता है कि तुम्हारा यहाँ से अत्र-जल उठ गया है, जो सबसे बिगाड़ किये रहते हो।
अत्र-जल करना (जलपान, नाराजगी आदि के कारण निराहार के बाद आहार-ग्रहण)- भाई, बहुत दिनों पर आये हो। अत्र-जल तो करते जाओ।
अत्र लगना (स्वस्थ रहना)- उसे ससुराल का ही अत्र लगता है। इसलिए तो वह वहीं का हो गया।
अपना किया पाना (कर्म का फल भोगना)- बेहूदों को जब मुँह लगाया है, तो अपना किया पाओ। झखते क्या हो ?
अपना-सा मुँह लेकर रह जाना (शर्मिन्दा होना)- आज मैंने ऐसी चुभती बात कही कि वे अपना-सा मुँह लिए रह गये।
अपनी खिचड़ी अलग पकाना (स्वार्थी होना, अलग रहना)-यदि सभी अपनी खिचड़ी अलग पकाने लगें, तो देश और समाज की उत्रति होने से रही।
अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मारना (संकट मोल लेना)- उससे तकरार कर तुमने अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मारी है।
अब-तब करना (बहाना करना)- कोई भी चीज माँगो, वह अब-तब करना शुरू कर देगा।
अब-तब होना (परेशान करना या मरने के करीब होना)- दवा देने से क्या ! वह तो अब-तब हो रहा है।
अंग-अंग ढीला होना (अत्यधिक थक जाना)-विवाह के अवसर पर दिन भर मेहमानों के स्वागत में लगे रहने से मेरा अंग-अंग ढीला हो रहा हैं।
अंगारे उगलना (कठोर और कड़वी बातें कहना)- मित्र! अवश्य कोई बात होगी, बिना बात कोई क्यों अंगारे उगलेगा।
अंगारों पर लोटना (ईर्ष्या से व्याकुल होना)- मेरे सुख को देखकर रामू अंगारों पर लोटता हैं।
अँगुली उठाना (किसी के चरित्र या ईमानदारी पर संदेह व्यक्त करना)- मित्र! हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे कोई हम पर अँगुली उठाए।
अँगुली पकड़कर पहुँचा पकड़ना (थोड़ा पाकर अधिक पाने की कोशिश करना)- जब भिखारी एक रुपया देने के बाद और रुपए मांगने लगा तो मैंने उससे कहा- अँगुली पकड़कर पहुँचा पकड़ते हो, जाओ यहाँ से।
अँगूठा छाप (अनपढ़)- रामेश्वर अँगूठा छाप हैं, परंतु अब वह पढ़ना चाहता हैं।
अंगूर खट्टे होना (कोई वस्तु न मिलने पर उससे विरक्त होना)- जब लोमड़ी को अंगूर नहीं मिले तो वह कहने लगी कि अंगूर खट्टे हैं।
अंजर-पंजर ढीला होना (शरीर शिथिल होना या बहुत थक जाना)- दिन-भर भागते-भागते आज तो मेरा अंजर-पंजर ढीलाहो गया।
अंडे सेना (घर से बाहर न निकलना; घर में ही बैठे रहना)- रामू की पत्नी ने कहा कि कुछ काम करो, अंडे सेने से काम नहीं चलेगा।
अंतड़ियों के बल खोलना (बहुत दिनों के बाद भरपेट भोजन करना)- आज पंडित जी का न्योता हैं, आज वे अपनी अंतड़ियों के बल खोल देंगे।
अंतड़ियों में बल पड़ना (पेट में दर्द होना)- दावत में खाना अधिक खाकर मेरी तो अंतड़ियों में बल पड़ गए।
अंतिम घड़ी आना (मौत निकट आना)- शायद रामू की दादी की अंतिम घड़ी आ गई हैं। वह पंद्रह दिन से बिस्तर पर पड़ी हैं।
अंधा बनना (ध्यान न देना)- अरे मित्र! तुम तो जान-बुझकर अंधे बन रहे हो- सब जानते हैं कि रामू पैसे वापस नहीं करता, फिर भी तुमने उसे पैसे उधार दे दिए।
अंधे के हाथ बटेर लगना (अनाड़ी आदमी को सफलता प्राप्त होना)- रामू मात्र आठवीं पास हैं, फिर भी उसकी सरकारी नौकरी लग गई। इसी को कहते हैं- अंधे के हाथ बटेर लगना।
अंधे को दो आँखें मिलना (मनोरथ सिद्ध होना)- एम.ए., बी.एड. करते ही प्रेम की नौकरी लग गई। उसे और क्या चाहिए- अंधे को दो आँखें मिल गई।
अंधेर मचना (अत्याचार करना)- औरंगजेब ने अपने शासनकाल में बहुत अंधेर मचाया था।
अक्ल का अंधा (मूर्ख व्यक्ति)- वह अक्ल का अंधा नहीं, जैसा कि आप समझते हैं।
अक्ल के पीछे लट्ठ लेकर फिरना (हर वक्त मूर्खता का काम करना)- रमेश तो हर वक्त अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरता हैं- चीनी लेने भेजा था, नमक लेकर आ गया।
अक्ल घास चरने जाना (वक्त पर बुद्धि का काम न करना)- अरे मित्र! लगता हैं, तुम्हारी अक्ल घास चरने गई हैं तभी तो तुमने सरकारी नौकरी छोड़ दी।
अक्ल ठिकाने लगना (गलती समझ में आना)- जब तक उस चोर को पुलिस के हवाले नहीं करोगे, उसकी अक्ल ठिकाने नहीं आएगी।
अगर-मगर करना (तर्क करना या टालमटोल करना)- ज्यादा अगर-मगर करो तो जाओ यहाँ से; हमें तुम्हारे जैसा नौकर नहीं चाहिए।
अपना रास्ता नापना (चले जाना)- मैंने रामू को उसकी कृपा का धन्यवाद देकर अपना रास्ता नापा।
अपना सिक्का जमाना (अपनी धाक या प्रभुत्व जमाना)- रामू ने कुछ ही दिनों में अपने मोहल्ले में अपना सिक्का जमा लिया हैं।
अपना सिर ओखली में देना (जान-बूझकर संकट मोल लेना)- खटारा स्कूटर खरीदकर मोहन ने अपना सिर ओखली में दे दिया हैं।
अपनी खाल में मस्त रहना (अपने आप में संतुष्ट रहना)- वह तो अपनी खाल में मस्त रहता हैं, उसे किसी से कोई मतलब नहीं हैं।
अढाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना- (सबसे अलग रहना)- मोहन आजकल अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाते है।
अंगारों पर पैर रखना (अपने को खतरे में डालना, इतराना)- भारतीय सेना अंगारों पर पैर रखकर देश की रक्षा करते है।
अक्ल का अजीर्ण होना (आवश्यकता से अधिक अक्ल होना)- सोहन किसी भी विषय में दूसरे को महत्व नही देता है, उसे अक्ल का अजीर्ण हो गया है।
अक्ल दंग होना (चकित होना)- मोहन को पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता लेकिन परीक्षा परिणाम आने पर सब का अक्ल दंग हो गया।
अक्ल का पुतला (बहुत बुद्धिमान)- विदुर जी अक्ल का पुतला थे।
अन्त पाना (भेद पाना)- उसका अन्त पाना कठिन है।
अन्तर के पट खोलना (विवेक से काम लेना)- हर हमेशा हमें अन्तर के पट खोलना चाहिए।
अक्ल के घोड़े दौड़ाना (कल्पनाएँ करना)- वह हमेशा अक्ल के घोड़े दौड़ाता रहता है।
अपने दिनों को रोना (अपनी स्वयं की दुर्दशा पर शोक प्रकट करना)- वह तो हर वक्त अपने ही दिनों को रोता रहता हैं, इसलिए कोई उससे बात नहीं करता।
अलाउद्दीन का चिराग (आश्चर्यजनक या अद्भुत वस्तु)- रामू कलम पाकर ऐसे चल पड़ा जैसे उसे अलाउद्दीन का चिराग मिल गया हो।
अल्लाह को प्यारा होना (मर जाना)- मुल्लाजी कम उम्र में ही अल्लाह को प्यारे हो गए।
अपनी डफली आप बजाना- (अपने मन की करना)- राधा दूसरे की बात नहीं सुनती, वह हमेशा अपनी डफली आप बजाती है।
अंग-अंग ढीला होना (थक जाना)- ऑफिस में इतना अधिक काम है कि शाम तक अंग-अंग ढीला हो जाता है।
अंग-अंग मुसकाना (अति प्रसन्न होना)- विवाह की बात पक्की होने की खबर को सुनते ही करीना का अंग-अंग मुसकाने लगा।
अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना (हर समय मूर्खतापूर्ण कार्य करना)- जो आदमी अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरता है उसे मैं इतनी बड़ी जिम्मेदरी कैसे सौंप सकता हूँ?
अगर मगर करना (टालमटोल करना)- मेरे एक दोस्त ने मुझसे वायदा किया था कि जब भी कोई जरूरत हो वह मेरी मदद करेगा। आज जब मैंने मदद माँगी तो अगर-मगर करने लगा।
अगवा करना (अपहरण करना)- मुरली बाबू के बेटे को डाकुओं ने अगवा कर लिया है और अब पाँच लाख की फिरौती माँग रहे हैं।
अति करना (मर्यादा का उल्लंघन करना)- भाई, आपने भी अति कर दी है, हमेशा अपने बच्चों को डाँटते ही रहते हो। कभी तो प्यार से बात किया करो।
अपना-अपना राग अलापना (किसी की न सुनना)- सभी छात्र एक साथ प्रधानाचार्य के कमरे में घुस गए और लगे अपना-अपना राग अलापने। बेचारे प्रधानाचार्य सर पकड़कर बैठ गए।
अपनी राम कहानी सुनाना (अपना हाल बताना)- यहाँ के अधिकारियों ने तो अपने कानों में तेल डाल रखा है। किसी की सुनना ही नहीं चाहते।
अरमान निकालना (इच्छा पूरी करना)- हो गई न तुम्हारे मन की। निकाल लो मन के सारे अरमान।
अन्धों में काना राजा- (अज्ञानियों में अल्पज्ञान वाले का सम्मान होना)
अंकुश देना- (दबाव डालना)
अंग में अंग चुराना- (शरमाना)
अंग-अंग फूले न समाना- (आनंदविभोर होना)
अंगार बनना- (लाल होना, क्रोध करना)
अंडे का शाहजादा- (अनुभवहीन)
अठखेलियाँ सूझना- (दिल्लगी करना)
अँधेरे मुँह- (प्रातः काल, तड़के)
अड़ियल टट्टू- (रूक-रूक कर काम करना)
अपना घर समझना- (बिना संकोच व्यवहार)
अड़चन डालना- (बाधा उपस्थित करना)
अरमान निकालना- (इच्छाएँ पूरी करना)
अरण्य-चन्द्रिका- (निष्प्रयोजन पदार्थ)
आँख भर आना (आँसू आना)- बेटी की विदाई पर माँ की आखें भर आयी।
आँखों में बसना (हृदय में समाना)- वह इतना सुंदर है की उसका रूप मेरी आखों में बस गया है।
आँखे खुलना (सचेत होना)- ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखे खुलती है।
आँख का तारा - (बहुत प्यारा)- आज्ञाकारी बच्चा माँ-बाप की आँखों का तारा होता है।
आँखे दिखाना (बहुत क्रोध करना)- राम से मैंने सच बातें कह दी, तो वह मुझे आँख दिखाने लगा।
आसमान से बातें करना (बहुत ऊँचा होना)- आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है, जो आसमान से बातें करती है।
आँच न आने देना (जरा भी कष्ट या दोष न आने देना)- तुम निश्र्चिन्त रहो। तुमपर आँच न आने दूँगा।
आठ-आठ आँसू रोना (बुरी तरह पछताना)- इस उमर में न पढ़ा, तो आठ-आठ आँसू न रोओ तो कहना।
आसन डोलना (लुब्ध या विचलित होना)- धन के आगे ईमान का भी आसन डोल जाया करता है।
आस्तीन का साँप (कपटी मित्र)- उससे सावधान रहो। आस्तीन का साँप है वह।
आसमान टूट पड़ना (गजब का संकट पड़ना)- पाँच लोगों को खिलाने-पिलाने में ऐसा क्या आसमान टूट पड़ा कि तुम सारा घर सिर पर उठाये हो ?
आकाश छूना (बहुत तरक्की करना)- राखी एक दिन अवश्य आकाश चूमेगी
आकाश-पाताल एक करना (अत्यधिक उद्योग/परिश्रम करना)- सूरज ने इंजीनियर पास करने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया।
आकाश-पाताल का अंतर होना (बहुत अधिक अंतर होना)- कहाँ मैं और कहाँ वह मूर्ख, हम दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है।
आँच आना (हानि या कष्ट पहुँचना)- जब माँ साथ हैं तो बच्चे को भला कैसे आँच आएगी।
आँचल पसारना (प्रार्थना करना या किसी से कुछ माँगना)- मैं ईश्वर से आँचल पसारकर यही माँगता हूँ कि तुम कक्षा में उत्तीर्ण हो जाओ।
आँतें बुलबुलाना (बहुत भूख लगना)- मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया, मेरी आँतें कुलबुला रही हैं।
आँतों में बल पड़ना (पेट में दर्द होना)- रात की पूड़ियाँ खाकर मेरी आँतों में बल पड़ गए।
आँधी के आम होना (बहुत सस्ता होना)- आजकल तो आलू आँधी के आम हो रहे हैं, जितने चाहो, ले लो।
आँसू पीना या पीकर रहना (दुःख या कष्ट में भी शांत रहना)- जब राकेश कक्षा में फेल हो गया तो वह आँसू पीकर रह गया।
आकाश का फूल होना (अप्राप्य वस्तु)- आजकल दिल्ली में घर खरीदना तो आकाश का फूल हो रहा हैं।
आकाश के तारे तोड़ लाना (असंभव कार्य करना)- श्याम हमेशा आकाश के तारे तोड़ने की बात करता हैं।
आग उगलना (कड़वी बातें कहना)-रमेश तो हमेशा आग उगलता रहता हैं।
आकाश से बातें करना (अत्यधिक ऊँचा होना)- मुंबई की इमारतें तो आकाश से बातें करती हैं।
आग बबूला होना (अति क्रुद्ध होना)- राधा जरा-सी बात पर आग बबूला हो गई।
आग पर लोटना (ईर्ष्या से जलना)- मेरी कार खरीदने की बात सुनकर रामू आग पर लोटने लगा।
आग में घी डालना (क्रोध को और भड़काना)- आपसी लड़ाई में अनुपम के आँसुओं ने आग में घी डाल दिया)
आग लगने पर कुआँ खोदना(विपत्ति आने पर/ऐन मौके पर प्रयास करना)- मित्र, पहले से कुछ करो। आग लगने पर कुआँ खोदना ठीक नहीं।
आग लगाकर तमाशा देखना (दूसरों में झगड़ा कराके अलग हो जाना)- वह तो आग लगाकर तमाशा देखने वाला हैं, वह तुम्हारी क्या मदद करेगा।
आटे-दाल का भाव मालूम होना (दुनियादारी का ज्ञान होना या कटु परिस्थिति का अनुभव होना)- जब पिता की मृत्यु हो गई तो राकेश को आटे-दाल का भाव मालूम हो गया।
आग से खेलना (खतरनाक काम करना)- मित्र, तस्करी करना बंद कर दो, तुम क्यों आग से खेल रहे हो?
आग हो जाना (अत्यन्त क्रोधित हो जाना)- सुनिल के स्वभाव से सब परिचित हैं, वह एक ही पल में आग हो जाता हैं।
आगा-पीछा न सोचना (कार्य करते समय हानि-लाभ के बारे में न सोचना)- कुणाल कुछ भी करने से पहले आगा-पीछा नहीं सोचता।
आज-कल करना (टालमटोल करना)- राजू कह रहा था- उसके दफ्तर में कोई काम नहीं करता, सब आज-कल करते हैं।
आटे के साथ घुन पिसना (अपराधी के साथ निर्दोष को भी सजा मिलना)- राघव तो जुआरियों के पास केवल खड़ा हुआ था, पुलिस उसे भी पकड़कर ले गई। इसे ही कहते हैं- आटे के साथ घुन पिसना।
आड़े हाथों लेना (झिड़कना, बुरा-भला कहना)- सुभम ने जब होमवर्क (गृह-कार्य) नहीं किया तो अध्यापक ने कक्षा में उसे आड़े हाथों लिया।
आधा तीतर, आधा बटेर (बेमेल वस्तुएँ)- राजू तो आधा तीतर, आधा बटेर हैं- हिंदुस्तानी धोती-कुर्ते के साथ सिर पर अंग्रेजी टोप पहनता हैं।
आसमान पर उड़ना (थोड़ा पैसा पाकर इतराना)- उसकी 10 हजार की लॉटरी क्या खुल गई, वह तो आसमान पर उड़ रहा हैं।
आसमान पर चढ़ना (बहुत अभिमान करना)- आजकल मदन का मिजाज आसमान पर चढ़ा हुआ दिखाई देता हैं।
आसमान पर थूकना (किसी महान् व्यक्ति को बुरा-भला कहना)- नेताजी सुभाषचंद्र बोस एक महान् देशभक्त थे उनके बारे में कुछ कहना-आसमान पर थूकने जैसा हैं।
आसमान पर मिजाज होना (अत्यधिक अभिमान होना)- सरकारी नौकरी लगने के बाद उसका आसमान पर मिजाज हो गया हैं।
आसमान सिर पर उठाना (अत्यधिक ऊधम मचाना)- इस बच्चे ने तो आसमान सिर पर उठा लिया हैं, इसे ले जाओ यहाँ से।
आसमान सिर पर टूटना (बहुत मुसीबत आना)- पिता के मरते ही राजू के सिर पर आसमान टूट पड़ा।
आसमान से गिरे, खजूर में अटके (एक परेशानी से निकलकर दूसरी परेशानी में आना)- अध्यापक की मदद से राजू गणित में तो पास हो गया, परंतु विज्ञान में उसकी कम्पार्टमेंट आ गई। इसी को कहते हैं- आसमान से गिरे, खजूर में अटके।
आस्तीन चढ़ाना (लड़ने को तैयार होना)- मुन्ना हर वक्त आस्तीन चढ़ाकर रखता हैं।
आह लेना (बद्दुआ लेना)- रमेश के दादा हमेशा कहते हैं- किसी की आह मत लो, सबकी दुआएँ लो।
आँधी के आम (बिना परिश्रम के मिली वस्तु)- आँधी के आमों की तरह से मिली दौलत बहुत दिनों तक नहीं रुकती।
आखिरी साँसें गिनना (मरणासन्न होना)- मदन की माँ आखिरी साँस ले रही है, सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है।
आग देना (मृतक का दाह-संस्कार करना)- भारतीय संस्कृति के अनुसार पिता की चिता को बड़ा बेटा ही आग देता है।
आफत का मारा (दुखी)- जब कोई नौकरी न मिली तो ट्यूशन पढ़ाने लगा। आफत का मारा बेचारा क्या करता ?
आफत मोल लेना (व्यर्थ का झगड़ा मोल लेना)- तुमसे बात करके तो मैंने आफत मोल ले ली। मुझे माफ करो, मैं तुमसे बात नहीं कर सकता।
आव देखा न ताव (बिना सोच-विचार के काम करना)- दोनों भाइयों में झगड़ा हो गया। गुस्से में आकर छोटे भाई ने आव देखा न ताव, डंडे से बड़े भाई का सर फोड़ दिया।
आहुति देना (जान न्योछावर करना)- वीरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना देश के लिए हमेशा अपनी आहुति दी है।
आग का पुतला- (क्रोधी)
आग पर आग डालना- (जले को जलाना)
आग पर पानी डालना- (क्रुद्ध को शांत करना, लड़नेवालों को समझाना-बुझाना)
आग पानी का बैर- (सहज वैर)
आग बोना- (झगड़ा लगाना)
आग लगाकर पानी को दौड़ाना- (पहले झगड़ा लगाकर फिर उसे शांत करने का यत्न करना)
आग से पानी होना- (क्रोध करने के बाद शांत हो जाना)
आग में कूद पड़ना- (खतरा मोल लेना)
आन की आन में- (फौरन ही)
आग रखना- (मान रखना)
आसमान दिखाना- (पराजित करना)
आड़े आना- (नुकसानदेह)
अगिया बैताल- (क्रोधी)