Anuchchhed-Lekhan (Paragraph Writing) अनुच्छेद-लेखन


यहाँ महत्वपूर्ण अनुच्छेद दिया जा रहा है जो Class 10th CBSE और Bihar Board दोनों विद्यार्थियों के काम आयेंगे।

(19) कैसे बदलेगी फुटपाथ की दुनिया पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

संकेत बिंदु

  • फुटपाथ क्या है
  • फुटपाथ की समस्या
  • हमारी भूमिका
  • बदलाव के लिए सुझाव
  • (i)फुटपाथ क्या है- फुटपाथ सडक के किनारे पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए सुरक्षित रास्ता होता है। इन सुरक्षित पथ को पगडंडी भी कहा जाता है। फुटपाथ पैदल यात्रियों के चलने के साथ साथ गरीबों के निवास और अर्थ उपार्जन के काम भी आते हैं।

    (ii)फुटपाथ की समस्या- फुटपाथ की सबसे बड़ी समस्या इसका अतिक्रमण होना है।नगर पालिका के ध्यान नही देने के कारण कई तरह के गैर कानूनी दुकान फुटपाथ पर खुल जाने से अतिक्रमण की समस्या उत्पन होती है। गरीब सरकार के तरफ से समुचित रैनबसेरा नहीं होने के कारण रात में सोने हेतु इन फुटपाथों का अतिक्रमण कर लेते हैं। अतिक्रमण के कारण पैदल यात्रियों को असुरक्षित रोड पर चलने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

    (iii)हमारी भूमिका- फुटपाथ को अतिक्रमण मुक्त करवाने के लिए हमें संगठित प्रयास करने की जरूरत है। फुटपाथ पर दुकान चलाने वालों को नगर निगम दुकान बना कर वहाँ विस्थापित करें इसके लिए प्रयासरत रहने की जरूरत है। जरूरतमंद के सोने के लिए सरकारी रैनबसेरा का अधिक से अधिक निर्माण करने से अतिक्रमण हटाना संभव हो पाएगा।

    (iv)बदलाव के लिए सुझाव- जनसंख्या वृद्धि, देश में घुसपैठियों की समस्या और गरीबों के उत्थान हेतु सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने से फुटपाथ अपने वास्तविक कार्य को करने के लिए अतिक्रमण मुक्त हो जाएगा। इसके लिए हमें सामूहिक, संगठित और सतत प्रयास निरंतर करना पड़ेगा।

    (20) सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

    संकेत बिंदु

  • सूक्ति का अर्थ
  • कथन का स्पष्टीकरण
  • समाज के लोगों से संबंध
  • वैचारिक अभिव्यक्ति
  • (i)सूक्ति का अर्थ- साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाए।
    भावार्थ — कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जन लोगों का आचरण सूप के समान होता है। जिस तरह सूप अनाज में से बेकार कणों को उड़ा देता है तथा उपयोगी अनाज को अपने पास रखता है, उसी तरह सज्जन लोग भी व्यर्थ की बातों पर ध्यान नही देते और व्यर्थ की बातों को हवा में उड़ा देते हैं तथा जो बातें उनके लिए उपयोगी होती हैं, उसी बात को ग्रहण करते हैं। सज्जन का यही स्वभाव होता है कि वह वह किसी भी बात में से से उपयोगी ज्ञान को अपने पास रखते हैं, और बेकार की बातों को छोड़ देते है।

    (ii)कथन का स्पष्टीकरण- कथन के स्पष्टीकरण को हंस के द्वारा दूध और पानी को अलग करने के उदहारण से समझ जा सकता है। महात्मा बुद्ध ने डाकू अंगुलिमाल को सही रास्ते पर ले आयें और उसके दुर्गुणों का त्याग करवाते हुए। हमारे धार्मिक और पौराणिक कथाओं में उपरोक्त दोहे के समर्थन और स्पष्टीकरण के लिए अनेक उदाहरण मौजूद हैं।

    (iii)समाज के लोगों से संबंध- उपरोक्त दोहे का मूल उद्देश्य समाज में गलत करने वाले व्यक्तियों को सही राह पर लाना है।उनके अंदर ज्ञान का अलख जगाकर उनको सत्यमार्ग पर वापस लाना है।समाज से बुराई का नाश करने के लिए बुरे व्यक्ति को सही मार्ग पर लाना ही श्रेष्ठ उपाय है। इससे समाज में आपसी सहयोग और सुकर्म के प्रति लोगों का आस्था बढ़ेगा।

    (iv)वैचारिक अभिव्यक्ति- ऐसे विचारों की अभिव्यक्ति से मानव के अंदर मानवता का पुनः उदय होता है। मानवता का उदय प्राणियों के कल्याण का रास्ता प्रशस्त करता है। बुरे व्यक्ति के त्याग के बदले उसके बुराई का अंत करने से मानव जाति का सम्पूर्ण कल्याण संभव है।

    (18) विद्या सर्वोत्तम धन है। पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

    संकेत बिंदु

  • विद्या एवं धन की तुलना
  • विद्या की श्रेष्ठता
  • विद्या रूपी धन का प्रभाव
  • विद्या एवं धन की तुलना- सामान्य तौर पर समाज में दो तरह की सोच रखने वाले लोग दिखाई देते हैं। एक वे लोग हैं, जो किसी भी प्रकार से धन अर्जित करके धनी बनकर अपने को सफल एवं जीवन को सार्थक मानते हैं। दूसरे प्रकार के लोग वे हैं, जो विद्या एवं ज्ञान के अर्जन में अपना समय लगाते हैं। धन के कारण बना धनी व्यक्ति वास्तविक धनी नहीं है, अपितु विद्या रूपी धन को एकत्र करके उसे ज्ञान एवं विवेक के रूप में सहेजने वाला ही वास्तविक धनी है।

    विद्या की श्रेष्ठता- धन संग्रह करने वाले को चोर, डाकुओं एवं ठगों द्वारा धन के चुराए जाने का सदैव भय लगा रहता है। इसके विपरीत विद्या रूपी धन ऐसा धन है, जिसे न कोई चोर चुरा सकता हैं, न कोई दूसरा इसका उपयोग अपने संकीर्ण हितों की पूर्ति के लिए कर सकता है। संस्कृत साहित्य में विद्या की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है- 'स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वानं सर्वत्र पूज्यते' अर्थात राजा अपने देश में पूजा जाता है, लेकिन विद्वान की पूजा सभी जगहों पर होती हैं।
    हिंदी के कवि वृंद ने भी विद्या रूपी धन को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए कहा है कि
    ''सुरसति के भंडार की बड़ी अपूरब बात।
    ज्यौं खरचे त्यौं-त्यौं बढ़े, बिन खरचे घटि जात।''

    विद्या रूपी धन का प्रभाव- विद्या से धन प्राप्त हो सकता है, किंतु धन से विद्या नहीं प्राप्त की जा सकती। धन खर्च करने पर समाप्त होता है, किंतु विद्या बाँटने अर्थात व्यय करने पर बढ़ती है। अतः यह कहा जा सकता है विद्या ही सर्वोत्तम धन है।

    (19) मधुर वाणी का प्रभाव पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

    संकेत बिंदु

  • वाणी की मधुरता का अर्थ
  • मधुर वाणी का प्रभाव
  • मधुर वाणी की आवश्यकता
  • मधुर वचन सबसे बड़ी औषधि है। यह मनुष्य को ईश्वर द्वारा प्राप्त सबसे बड़ा वरदान है। मधुर वचनों का प्रभाव ऐसा होता है कि हमसे घृणा करने वाला भी हमारे मृदुवचनों से प्रभावित होकर स्नेह प्रदर्शित करने लगता है। कबीर का कथन है कि हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए, जिससे मन प्रसन्न हो जाए, जो दूसरों को भी प्रसन्न करे तथा जिसके बोलने से मनुष्य के मन में स्वयं भी शीतलता आए। वाणी के संदर्भ में कोयल और कौवे की उपमा अत्यंत प्रसिद्ध है।

    दोनों पक्षों काले रंग के होते है, फिर भी कोयल अपने स्वर की मिठास के कारण सभी को प्रिय तथा कौवा अपने स्वर की कर्कशता के कारण सभी को अप्रिय लगता है। यही नहीं, मीठे बोलों की महत्ता इतिहास प्रसिद्ध है। वाणी की कटुता का परिणाम महाभारत के रूप में मानव-सभ्यता को दिखाई पड़ा, तो मृदुवाणी के प्रभाव से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने परशुराम जैसे क्रोधी ऋषि को भी क्रोध छोड़ विनम्रता अपनाने पर मजबूर कर दिया।

    वाणी की मधुरता मनुष्य को और अधिक गुणवान बना देती है, दोषों को ढक देती है। मनुष्य को मीठी वाणी का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि यह बिगड़ी बात को भी बनाने वाली, मन के मैल को धो देने वाली तथा मनुष्य के व्यक्तित्व को सोने जैसा चमका देने वाली है।

    इसी कारण संत कवि कबीर ने कहा है-
    ''वाणी एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि।
    हिए तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।''

    (20) स्वतंत्रता का महत्त्व पर पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

    संकेत बिंदु

  • स्वतंत्रता का महत्त्व
  • स्वतंत्रता की आवश्यकता
  • स्वतंत्रता के लाभ
  • ऐसा कहा जाता है कि गुलामी के पकवानों से आजादी की सूखी रोटियाँ भली हैं। स्वाधीनता या स्वतंत्रता का मनुष्य के जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। यहाँ तक कि यह मनुष्य ही नहीं, बल्कि सृष्टि के प्रत्येक प्राणी का जन्मसिद्ध एवं प्राकृतिक अधिकार है।

    गुलामी या पराधीनता बहुत बड़ा अभिशाप है। पशु-पक्षी तक भी स्वतंत्र जीवन जीने के आकांक्षी होते हैं। हिंदी के प्रसिद्ध कवि डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविता में स्वतंत्रता की आकांक्षा को पक्षियों के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।
    पक्षी अपने लिए स्वतंत्रता की माँग करते हुए कहते हैं कि
    ''हम पक्षी उन्मुक्त गगन के पिंजर बद्ध न गा पाएँगे,
    कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएँगे।''

    स्वतंत्र रहकर पक्षी को नीम की 'कड़वी फलियाँ' खाना भी स्वीकार है, लेकिन पिंजरे में रहकर सोने की कटोरी में दिए गए मैदे से बना पकवान भी पसंद नहीं हैं। ज ब पशु-पक्षी इस प्रकार की इच्छा रखते हों, तो मनुष्य परतंत्र होकर किस प्रकार सुखी रह सकता है?
    स्वतंत्रता व्यक्ति की निर्णायक शक्ति और सर्जनात्मक क्षमता के विकास को बढ़ावा देती है। अंग्रेजी की गुलामी के काल में हमारे देश की जनता का मानसिक, शारीरिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास अत्यंत बाधित हो गया था।

    जब देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुए, तब से हमने व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति की है। स्वतंत्रता सभी सुखों की जननी है।
    गोस्वामी तुलसीदास ने भी परतंत्रता को दुखदायी बताते हुए कहा है कि 'पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं' अर्थात पराधीन व्यक्ति को स्वप्न में भी सुख नहीं मिलता। इस प्रकार व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की उन्नति के लिए स्वतंत्रता का महत्त्व सर्वाधिक है।

    (21) बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछिताय पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

    संकेत बिंदु

  • विचारपूर्वक कार्य करने का महत्त्व
  • बिना विचारे कार्य करने का प्रभाव
  • विचारपूर्वक कार्य करने की आवश्यकता
  • हमारे सभी महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में इस बात की शिक्षा दी गई है कि मनुष्य को कोई भी कार्य करने से पूर्व अपने बुद्धि-विवेक का उपयोग करके उसे करने के सही तरीके तथा उसके अच्छे-बुरे परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए। इस प्रकार विचार करके यदि कोई कार्य किया जाता है, तो व्यक्ति को उस कार्य में निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है। इसके विपरीत यदि हम किसी कार्य को पूरी तरह न करके अनियोजित ढंग से करते हैं, तो उसमें हमें असफलता मिलती है। असफलता के कारण कार्य करने में मन नहीं लगता और व्यक्ति खिन्नता का शिकार हो जाता है।

    बिना विचारे कार्य करने पर व्यक्ति को मानसिक पीड़ा तो होती ही है, उसे सामाजिक उपेक्षा और तिरस्कार का भी पात्र बनना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उसके मन में यही विचार आता है कि मैंने इस काम को बिना सोचे क्यों कर दिया?

    हिंदी के प्रसिद्ध कवि गिरधर ने कार्य करने में सोच-विचार के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहा है-
    ''बिना विचारे जो करै सो पाछे पछिताया।
    काम बिगारे आपनो जग में होत हसाया।।''
    अतः हमें विचारपूर्वक कार्य करना चाहिए। सोच-समझकर किए गए कार्य से हानि, पछतावा नहीं होता और न ही जग में हँसी होती है।

    (22) मीडिया का सामाजिक उत्तरदायित्व पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

    संकेत बिंदु

  • मीडिया का अर्थ
  • मीडिया के प्रकार
  • सामाजिक दायित्व
  • उपसंहार
  • मीडिया को हिंदी में 'जनसंचार' कहते हैं। यह सार्वजनिक सूचना, विश्व की घटनाओं की जानकारी, जन-सामान्य की आवाज और मनोरंजन का सशक्त माध्यम है। आधुनिक युग में मीडिया के दो प्रकार हैं- प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। पत्र-पत्रिकाएँ आदि प्रिंट मीडिया तथा रेडियो, टीवी चैनल आदि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अंतर्गत आते हैं। मीडिया अपने इन माध्यमों के द्वारा लोकतंत्र के प्रहरी की भाँति कार्य करता है। देश की समस्याओं तथा उनके समाधान के लिए लोगों में जागरूकता उत्पन्न करना मीडिया का महत्त्वपूर्ण दायित्व है, साथ ही घटनाओं को यथार्थ रूप में समाज के सामने रखना और उनका बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन न करना भी मीडिया का अहम दायित्व है।

    प्रायः यह देखा जाता है कि लोकप्रियता हासिल करने के लिए मीडिया छोटी-सी बात को सनसनी बनाकर प्रस्तुत करती है, जिससे समाज में गलत संदेश जाता है, इसलिए मीडिया को चाहिए कि वह सकरात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए समाज-निर्माण में अपना समुचित योगदान करें, ताकि समाज के लोगों को सही जानकारी प्राप्त हो और समाज का कल्याण हो सके। चूँकि समाज का मार्गदर्शन करने वाला और जानकारी प्रदान करने का माध्यम ही यदि अपनी जिम्मेदारियाँ सही ढंग से नहीं निभाएगा, तो समाज के लोगों को सही दिशा कौन प्रदान करेगा? इसलिए मीडिया के अपने दायित्व को समझते हुए समाज का निर्माण करने में अपना योगदान देना होगा, तभी वह लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी कहलाएगा।

    (23) देश की संपत्ति, हमारी संपत्ति है पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

    संकेत बिंदु

  • राष्ट्रीय संपत्ति का अर्थ
  • राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा क्यों?
  • राष्ट्रीय संपत्ति की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य
  • किसी भी देश का विकास एवं उसकी प्रगति उसके संसाधनों या संपत्ति पर निर्भर करती है, क्योंकि संपत्ति से ही संपन्नता आती है। जिस राष्ट्र के पास जितनी अधिक संपत्ति होती है, वह उतना ही अपने नागरिकों का कल्याण करते हुए विकास कर पाता है। देशहित के लिए प्रयुक्त संसाधनों एवं सुविधाओं के विभिन्न उपकरणों को राष्ट्रीय संपत्ति कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर सरकारी भवन, शैक्षिक संस्थान, चिकित्सालय, रेल, बस, कारखाने, सड़कें, खनिज संपदा, बिजली, पानी आदि हमारी राष्ट्रीय संपत्ति हैं। हमें चाहिए कि इनका जरूरत के मुताबिक उचित उपयोग करें और इन्हें सुरक्षित रखने के उपाय भी करें, क्योंकि यदि हमारे कार्यों से किसी भी रूप में इन्हें क्षति पहुँचती है, तो राष्ट्रीय विकास में बाधा उत्पन्न होगी, जिसके परिणामस्वरूप देश की विशाल जनसंख्या का ठीक ढंग से भरण-पोषण करना असंभव हो जाएगा।

    देश की धरती पर मौजूद प्रत्येक वस्तु या संसाधन के लिए जब हमारे मन में यह भाव आ जाएगा कि यह हमारी संपत्ति है और हमें इसका सावधानीपूर्वक उपयोग करना है, तभी राष्ट्रीय संपत्ति की सुरक्षा हो सकेगी; जैसे- हम ऊर्जा, जल, खनिज संपदा, खाद्यान्न आदि का विवेकपूर्ण उपयोग करें, तो भविष्य में इनकी कमी के संकट से बचा जा सकता है। आज हमें देशहित में एक संकल्प लेने की आवश्यकता है कि 'राष्ट्र की संपत्ति हमारी संपत्ति है और इसकी सुरक्षा करना हमारा सर्वोपरि कर्तव्य हैं।

    (24) भारतीय किसान के कष्ट पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।

  • अन्नदाता की कठिनाइयाँ
  • कठोर दिनचर्या
  • सुधार के उपाय
  • भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। इस देश के किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है और मानसून की अनिश्चितता के कारण प्रायः अन्नदाता को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। समय पर सिंचाई नहीं होने के कारण भी उन्हें आशानुरूप फसल की प्राप्ति नहीं हो पाती। आवश्यक व उपयोगी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण कृषकों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है तथा उनके सामने दो वक्त की रोटी की समस्या खड़ी हो गई है। किसान एक कठोर दिनचर्या का पालन करता है। वह प्रातः उठता है और अपने हल व बैल लेकर खेतों की ओर चला जाता है। वह घंटों खेत जोतता है उसके पश्चात भोजन करता है। खाने के बाद पुनः वह अपने काम में व्यस्त हो जाता है। दिन-रात कठिन परिश्रम करने के बाद भी उसे उचित आहार तथा तन ढकने के लिए समुचित वस्त्र नसीब नहीं होता। सर्दी हो या गर्मी, धूप हो या बरसात उसे दिन-रात खेतों में कठोर परिश्रम करना पड़ता है। किसानों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार ने कुछ उपाय किए है।

    'राष्ट्रीय कृषक आयोग' का गठन किसानों की स्थिति सुधारने हेतु किया गया। राष्ट्रीय कृषक आयोग की संस्तुति पर भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषक नीति 2007 की घोषणा की। इसमें कृषकों के कल्याण एवं कृषि के विकास के लिए कई बातों पर जोर दिया है, साथ ही रोजगार गारंटी योजना, किसान क्रेडिट कार्ड आदि भी महत्त्वपूर्ण कदम साबित हुए हैं। अतः कह सकते हैं कि विभिन्न प्रकार के सरकारी प्रयासों एवं योजनाओं के कारण, आने वाले वर्षों में कृषक समृद्ध होकर भारतीय अर्थव्यवस्था को सही अर्थो में प्रगति की राह पर अग्रसर कर सकेंगे।