| स्वयंभू |
पउम चरिउ, रिट्ठणेमि चरिउ (अरिष्टनेमि चरित) |
| रामधारी सिंह 'दिनकर' |
हुंकार, रेणुका, द्वंद्वगीत, कुरुक्षेत्र, इतिहास के आँसू, रश्मिरथी, धूप और धुआँ, दिल्ली, रसवंती, उर्वशी |
| बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' |
कुंकुम, उर्मिला, अपलक, रश्मिरेखा, क्वासि, हम विषपायी जनम के |
| हरिवंशराय 'बच्चन' |
मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, सूत की माला, निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, सतरंगिनी, मिलन-यामिनी, आरती और अंगारे, आकुल अंतर |
| सुमित्रा नंदन पंत |
शिल्पी, अतिमा, कला और बूढा चाँद, लोकायतन, सत्यकाम |
| जानकी वल्लभ शास्त्री |
मेघगीत, अवंतिका |
| नरेंद्र शर्मा |
प्रभातफेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, मिट्टी और फूल, कदलीवन |
| रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' |
मधूलिका, अपराजिता, किरणबेला, लाल चूनर |
| आरसी प्रसाद सिंह |
कलापी, पांचजन्य |
| केदारनाथ सिंह |
नींद के बादल, फूल नहीं रंग बोलते हैं, अपूर्व, युग की गंगा |
| नागार्जुन |
प्यासी पथराई आँखें, युगधारा, भस्मांकुर, सतरंगे पंखों वाली; ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या; खिचड़ी विप्लव देखा हमने,
हजार-हजार बाँहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, हरिजन गाथा (क०)
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| रांगेय राघव |
राह का दीपक, अजेय खँडहर, पिघलते पत्थर, मेधावी, पांचाली |
| गिरिजाकुमार माथुर |
मंजीर, कल्पांतर, शिलापंख चमकीले, नाश और निर्माण, मशीन का पुर्जा, धूप के धान, मैं वक्त के हूँ सामने, छाया मत छूना मन |
| गजानन माधव 'मुक्तिबोध' |
भूरी-भूरी खाक धूल, चाँद का मुँह टेढ़ा है |
| भवानीप्रसाद मिश्र |
सतपुड़ा के जंगल, गीतफरोश, खुशबू के शिलालेख, बुनी हुई रस्सी, कालजयी, गाँधी पंचशती, कमल के फूल,
इदं न मम, चकित है दुःख, वाणी की दीनता
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| सचिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' |
भग्नदूत, चिंता, इत्यलम, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनुष रौंदे हुए ये, अरी ओ करुणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार,
कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जनता हूँ, सागर-मुद्रा,
पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, प्रिजन डेज एंड अदर पोएम्स (अंग्रेजी में), असाध्य वीणा, रूपाम्बरा |
| धर्मवीर भारती |
अंधायुग, कनुप्रिया, ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष |
| शमशेर बहादुर सिंह |
अमन का राग, चुका भी नहीं हूँ मैं, इतने पास अपने |
| कुँवर नारायण |
परिवेश, हम तुम, चक्रव्यूह, आत्मजयी, आमने-सामने |
| नरेश मेहता |
संशय की एक रात, वनपाखी सुनो, मेरा समर्पित एकांत, बोलने दो चीड़ को |
| त्रिलोचन |
मिट्टी की बारात, धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताये हुए दिन, सात शब्द, उस जनपद का कवि हूँ |
| भारत भूषण अग्रवाल |
कागज के फूल, जागते रहो, मुक्तिमार्ग, ओ अप्रस्तुत मन, उतना वह सूरज है |
| दुष्यंत कुमार |
साये में धूप, सूर्य का स्वागत, एक कंठ विषपायी, आवाज के घंटे |
| प्रभाकर माचवे |
जहाँ शब्द हैं, तेल की पकौड़ियाँ, स्वप्नभंग, अनुक्षण, मेपल |
| रघुवीर सहाय |
सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, लोग भूल गए हैं, मेरा प्रतिनिधि, हँसो-हँसो जल्दी हँसो |
| शंभूनाथ सिंह |
मन्वंतर, खण्डित सेतु |
| शिवमंगल सिंह 'सुमन' |
हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय-सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया |
| शकुंतला माथुर |
अभी और कुछ इनका, चाँदनी और चूनर, दोपहरी, सुनसान गाड़ी |
| सर्वेश्वर दयाल सक्सेना |
खूँटियों पर टँगे लोग, कुआनो नदी, बाँस के पुल, काठ की घंटियाँ, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द |
| विजयदेव नारायण साही |
मछलीघर, संवाद तुम से साखी |
| जगदीश गुप्त |
नाव के पाँव, शब्दशः, हिमबिद्ध, युग्म |
| हरिनारायण व्यास |
मृग और तृष्णा, एक नशीला चाँद, उठे बादल झुके बादल, त्रिकोण पर सूर्योदय |
| श्रीकांत वर्मा |
मायदर्पण, मगध, शब्दों की शताब्दी, दीनारंभ |
| राजकमल चौधरी |
कंकावती, मुक्तिप्रसंग |
| अशोक वाजपेयी |
एक पतंग अनंत में, शहर अब भी संभावना है |
| बालस्वरूप राही |
जो नितांत मेरी है |
| 'धूमिल' |
संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे, सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र |
| अजित कुमार |
अंकित होने दो, अकेले कंठ की पुकार |
| रामदरश मिश्र |
पक गई है धूप, बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ |
| डॉ० विनय |
एक पुरुष और, कई अंतराल, दूसरा राग |
| जगदीश चतुर्वेदी |
इतिहास हंता |
| प्रमोद कौंसवाल |
अपनी तरह का आदमी |
| संजीव मिश्र |
कुछ शब्द जैसे मेज |
| 'निराला' |
कुकुरमुत्ता, गर्म पकौड़ी, प्रेम-संगीत, रानी और कानी खजोहरा, मास्को डायलाग्स, स्फटिक शिला,
नये पत्ते, गीत गुंज, सांध्य काकली (प्रकाशन मरणोपरांत- 1969 ई०) |
उदयप्रकाश |
सुनो कारीगर, क से कबूतर |