(Poetry)-काव्य


प्रसिद्ध पंक्तियाँ

  • फूल को प्यार करो
    पर झरे तो झर जाने दो
    जीवन का रस लो
    देह, मन, आत्मा की रसना से
    पर मरे तो मर जाने दो। -अज्ञेय
  • नहीं,
    सांझ
    एक असभ्य आदमी की जम्हाई है .....< br> नहीं,
    सांझ
    एक शरीर लड़की है.....
    नहीं,
    सांझ
    एक रद्दी स्याहसोख है -केसरी कुसार
  • कन्हाई ने प्यार किया
    कितनी गोपियों को कितनी बार
    पर उड़ेलते रहे अपना सदा एक रूप पर
    जिसे कभी पाया नहीं
    जो किसी रूप में समाया नहीं
    यदि किसी प्रेयसी में उसे पा लिया होता
    तो फिर दूसरे को प्यार क्यों करता। -अज्ञेय
  • किन्तु हम है द्वीप
    हम धारा नहीं हैं
    स्थिर समर्पण है हमारा
    द्वीप हैं हम। -अज्ञेय
  • उड़ चल हारिल, लिये हाथ में
    यही अकेला ओछा तिनका
    उषा जाग उठी प्राची में
    कैसी बाट, भरोसा किनका ! -अज्ञेय
  • ये उपमान मैले हो गये हैं
    देवता इन प्रतीकों से कर गये हैं कूच
    कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है -अज्ञेय
  • 'प्रयोगवाद' हिन्दी में बैठे-ठाले का धंधा बनकर आया था।
    प्रयोक्ताओं के पास न तो काव्य संबंधी कोई कौशल था
    और न किसी प्रकार की कथनीय वस्तु थी।
    ('नयी साहित्य : नये प्रश्न') -नंददुलारे वाजपेयी
  • नयी कविता (1951 ई० से ....)

  • यों तो 'नयी कविता' के प्रारंभ को लेकर विद्वानों में विवाद है, लेकिन 'दूसरे सप्तक' के प्रकाशन वर्ष 1951ई० से 'नयी कविता' का प्रारंभ मानना समीचीन है। इस सप्तक के प्रायः कवियों ने अपने वक्तव्यों में अपनी कविता को नयी कविता की संज्ञा दी है।
  • जिस तरह प्रयोगवादी काव्यांदोलन को शुरू करने का श्रेय अज्ञेय की पत्रिका 'प्रतीक' को प्राप्त है उसी तरह नयी कविता आंदोलन को शुरू करने का श्रेय जगदीश प्रसाद गुप्त के संपादकत्व में निकलनेवाली पत्रिका 'नयी कविता' को जाता है।
  • 'नयी कविता' भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गयी उन कविताओं को कहा जाता है, जिनमें परम्परागत कविता से आगे नये भाव बोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और शिल्प विधान का अन्वेषण किया गया।
  • अज्ञेय को 'नयी कविता का भारतेन्दु' कहा सकते हैं क्योंकि जिस प्रकार भारतेन्दु ने जो लिखा ही, साथ ही उन्होंने समकालीनों को इस दिशा में प्रेरित किया उसी प्रकार अज्ञेय ने भी स्वयं पृथुल साहित्य सृजन किया तथा औरों को प्रेरित-प्रोत्साहित किया।
  • आम तौर पर 'दूसरा सप्तक' और 'तीसरा सप्तक' के कवियों को नयी कविता के कवियों में शामिल किया जाता है। 'दूसरा सप्तक' के कविगण : रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, शकुंतला माथुर व हरि नारायण व्यास। 'तीसरा सप्तक' के कविगण : कीर्ति चौधरी, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदार नाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना व मदन वात्स्यायन। अन्य कवि : श्रीकांत वर्मा, दुष्यंत कुमार, मलयज, सुरेंद्र तिवारी, धूमिल, लक्ष्मीकांत वर्मा, अशोक बाजपेयी, चंद्रकांत देवताले आदि।
  • नयी कविता आंदोलन में एक साथ भिन्न-भिन्न वाद/दर्शन से जुड़े रचनाकार शामिल हुए। यदि अज्ञेय आधुनिक भावबोध वादी-अस्तित्ववादी या व्यक्तिवादी हैं तो मुक्तिबोध, केदार नाथ सिंह आदि मार्क्सवादी/समाजवादी; भवानी प्रसाद मिश्र यदि गाँधीवादी हैं तो रघुवर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि लोहियावादी-समाजवादी और धर्मवीर भारती की रुचि सिर्फ देहवाद में हैं।
  • नयी कविता के रचनाकारों पर दो वाद या विचारधाराओं अस्तित्ववाद व आधुनिकतावाद का प्रभाव विशेष रूप से पड़ा। 'अस्तित्ववाद' एक आधुनिक दर्शन है जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि मनुष्य के अनुभव महत्वपूर्ण होते हैं और प्रत्येक कार्य के लिए वह खुद उत्तरदायी होता है। वैयक्तिकता, आत्मसम्बद्धता, स्वतंत्रता, अजनबियत, संवेदना, मृत्यु, त्रास, ऊब आदि इसके मुख्य तत्व हैं। 'आधुनिकतावाद' का संबंध पूँजीवाद विकास से है। पूँजीवाद विकास के साथ उभरे नये जीवन-मूल्यों एवं नयी जीवन पद्धति को आधुनिकतावाद की संज्ञा दी जाती है। इतिहास और परम्परा से विच्छेद, गहन स्वात्म चेतना, तटस्थता और अप्रतिबद्धता, व्यक्ति स्वातंत्र्य, अपने-आप में बंद दुनिया आदि इसके मुख्य तत्व हैं।
  • नयी कविता की विशेषताएँ :
    (1) कथ्य की व्यापकता
    (2) अनुभूति की प्रमाणिकता
    (3) लघुमानववाद, क्षणवाद तथा तनाव व द्वन्द्व
    (4) मूल्यों की परीक्षा (वैयक्तिकता का एक मूल्य के रूप में स्थापना, निरर्थकता बोध, विसंगति बोध, पीड़ावाद सामाजिकता)
    (5) लोक-सम्पृक्ति
    (6) काव्य संरचना (दो तरह की कविताएं : छोटी कविताएं-प्रगीतात्मक, लंबी कविताएं-नाटकीय, क्रिस्टलीय संरचना, छंदमुक्त कविता, फैंटेसी/स्वप्न कथा का भरपूर प्रयोग)
    (7) काव्य-भाषा-बातचीत की भाषा, शब्दों पर जोर
    (8) नये उपमान, नये प्रतीक, नये बिम्बों का प्रयोग।
  • यदि छायावादी कविता का नायक 'महामानव' था, प्रगतिवादी कविता का नायक 'शोषित मानव' तो नयी कविता का नायक है 'लघुमानव' ।
  • 1950 ई० का साल ऐतिहासिक दृस्टि से नयी कविता के विकास का प्रायः चरम बिन्दु था। इस बिन्दु से एक रास्ता नयी कविता की रूढ़ियों की ओर जाता था जिसमें बिम्ब आदि विज्ञापित नुस्खों का अंधानुकरण किया जाता या फिर दूसरा रास्ता सच्चे सृजन का था जो बिम्बवादी प्रवृत्ति को तोड़ता। नये कवियों ने दूसरा रास्ता अपनाया। फलतः धीरे-धीरे काव्य सृजन बिम्ब के दायरे से निकलकर सीधे सपाट कथन की ओर अभिमुख हुआ, जिसे अशोक वाजपेयी 'सपाट बयानी' की संज्ञा देते हैं।
  • प्रसिद्ध पंक्तियाँ

  • हम तो 'सारा-का सारा' लेंगे जीवन
    'कम-से-कम' वाली बात न हमसे कहिए। -रघुवीर सहाय
  • मौन भी अभिव्यंजना है
    जितना तुम्हारा सच है, उतना ही कहो
    तुम व्याप नहीं सकते
    तुममें जो व्यापा है उसे ही निबाहो। -अज्ञेय
  • जी हाँ, हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।
    मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ
    मैं किसिम -किसिम के
    गीत बेचता हूँ। ('गीतफरोश') -भवानी प्रसाद मिश्र
  • हम सब बौने है, मन से, मस्तिष्क से
    भावना से, चेतना से भी बुद्धि से, विवेक से भी क्योंकि हम जन हैं
    साधारण हैं
    हम नहीं विशिष्ट। -गिरिजा कुमार माथुर
  • मैं प्रस्तुत हूँ
    यह क्षण भी कहीं न खो जाय
    अभिमान नाम का, पद का भी तो होता है। -कीर्ति चौधरी
  • कुछ होगा, कुछ होगा अगर मैं बोलूंगा
    न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का मेरे अंदर एक कायर टूटेगा, टूट ! -रघुवीर सहाय
  • जो कुछ है, उससे बेहतर चाहिए
    पूरी दुनिया साफ करने के लिए एक मेहतर चाहिए
    जो मैं हो नहीं सकता। -मुक्तिबोध
  • भागता मैं दम छोड़
    घूम गया कई मोड़। ('अंधेरे में') -मुक्तिबोध
  • दुखों के दागों को तमगों सा पहना
    ('अंधेरे में') -मुक्तिबोध
  • कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।
    ('अंधेरे में') -मुक्तिबोध
  • मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
    लेकिन मुझे फ़ेंक मत
    इतिहासों की सामूहिक गति
    सहसा झूठी पड़ जाने पर क्या जाने
    सच्चाई टूटे हुए पहिये का आश्रय ले।
    ('टूटा पहिया') -धर्मवीर भारती
  • जिंदगी, दो उंगलियों में दबी
    सस्ती सिगरेट के जलते हुए टुकड़े की तरह है
    जिसे कुछ लम्हों में पीकर
    गली में फ़ेंक दूँगा। -नरेश मेहता
  • मैं यह तुम्हारा अश्वत्थामा हूँ
    शेष हूँ अभी तक
    जैसे रोगी मुर्दे के मुख में शेष रहता है
    गंदा कफ बासी पीप के रूप में
    शेष अभी तक मैं ('अंधा युग') -धर्मवीर भारती
  • दुःख सबको मांजता है और
    चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किन्तु जिनको माँजता है
    उन्हें यह सीख देता है सबको मुक्त रखे। -अज्ञेय
  • अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे
    उठाने ही होंगे
    तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब। ('अंधेरे में') -मुक्तिबोध
  • साँप !
    तुम सभ्य हुए तो नहीं
    नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।
    एक बात पूछूँ (उत्तर दोगे ?)
    तब कैसे सीखा डँसना
    विषकहाँ पाया ? -अज्ञेय
  • पर सच तो यह है
    कि यहाँ या कहीं भी फर्क नहीं पड़ता।
    तुमने जहाँ लिखा है 'प्यार'
    वहाँ लिख दो 'सड़क'
    फर्क नहीं पड़ता।
    मेरे युग का मुहावरा है :
    'फर्क नहीं पड़ता' । -केदार नाथ सिंह
  • मैं मरूँगा सुखी
    मैंने जीवन की धज्जियाँ उड़ाई है। -अज्ञेय
  • छायावादोत्तर युगीन
    प्रसिद्ध पंक्तियाँ (विविध) :

  • श्वानो को मिलता दूध वस्त्र
    भूखे बालक अकुलाते हैं -दिनकर
  • लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
    जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
    दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
    सिंहसान खाली करो कि जनता आती है। -दिनकर
  • कवि कुछ ऐसी तान सुनाओं, जिससे उथल-पुथल मच जाए
    एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आए। -बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'