(Poetry)-काव्य


भारतेन्दुयुगीन रचना एवं रचनाकार

रचनाकार भारतेन्दुयुगीन रचना
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रेम मालिका, प्रेम सरोवर, गीत गोविन्दानन्द, वर्षा-विनोद, विनय-प्रेम, पचासा, प्रेम-फुलवारी, वेणु-गीति,
दशरथ विलाप, फूलों का गुच्छा (खड़ी बोली में)
बदरी नारायण चौधरी 'प्रेमघन' जीर्ण जनपद, आनन्द अरुणोदय, हार्दिक हर्षादर्श, मयंक महिमा, अलौकिक लीला, वर्षा-बिन्दु, लालित्य लहरी, बृजचन्द पंचक
प्रताप नारायण मिश्र प्रेमपुष्पावली, मन की लहर, लोकोक्ति शतक, तृप्यन्ताम, श्रृंगार विलास, दंगल खंड, ब्रेडला स्वागत
जनमोहन सिंह प्रेमसंपत्ति लता, श्यामलता, श्यामा-सरोजिनी, देवयानी, ऋतु संहार (अ०), मेघदूत (अ०)
अम्बिका दत्त व्यास पावस पचासा, सुकवि सतसई, हो हो होरी
राधा कृष्ण दास कंस वध (अपूर्ण), भारत बारहमासा, देश दशा

द्विवेदी युग (1900ई०-1920ई०)

  • द्विवेदी युग 20 वी० सदी के पहले दो दशकों का युग है। इन दो दशकों के कालखण्ड ने हिन्दी कविता को श्रृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जड़ता से प्रगति तथा रूढ़ि से स्वच्छंदता के द्वार पर ला खड़ा किया।
  • इस कालखंड के पथ प्रदर्शक, विचारक और सर्वस्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम द्विवेदी युग रखा गया है।
  • यह सर्वथा उचित है क्योंकि हिन्दी के कवियों और लेखकों की एक पीढ़ी का निर्माण करने, हिन्दी के कोश निर्माण की पहल करने, हिन्दी व्याकरण को स्थिर करने और खड़ी बोली का परिष्कार करने और उसे पद्य की भाषा बनाने आदि का श्रेय बहुत हद तक महावीर प्रसाद द्विवेदी को ही है।
  • द्विवेदी युग को 'जागरण-सुधार काल' भी कहा जाता है।
  • द्विवेदी युग में अधिकांश कवियों ने द्विवेदी जी के दिशा निर्देश के अनुशासन में काव्य रचना की। किन्तु कुछ कवि ऐसे भी थे जो उनके अनुशासन में नही थे और काव्य सृ जन कर रहे थे।
  • इस तरह, इस युग के कवियों के दो वर्ग थे-द्विवेदी मंडल के कवि और द्विवेदी मंडल के बाहर के कवि। द्विवेदी मंडल के कवियों की काव्यधारा को 'अनुशासन की धारा' तथा द्विवेदी मंडल के बाहर के कवियों की काव्यधारा को 'स्वच्छंदता की धारा' कहा जाता है।
  • द्विवेदी मंडल के कवियों में मैथलीशरण गुप्त, हरिऔध, सियारामशरण गुप्त, नाथूराम शर्मा 'शंकर', महावीर प्रसाद द्विवेदी आते हैं।
  • द्विवेदी मंडल के बाहर (स्वच्छंदता की धारा) के कवियों में श्रीधर पाठक, मुकुटधर पाण्डेय, लोचन प्रसाद पांडेय, राम नरेश त्रिपाठी आदि प्रमुख हैं। इन कवियों की विशेषताएँ है प्रकृति का पर्यवेक्षण, उसकी स्वच्छंद भंगिमाओं का चित्रण, देशभक्ति, कथा गीत का प्रयोग, काव्य भाषा के रूप में खड़ी बोली की स्वीकृति आदि। स्वच्छंदता वादी काव्य की यही धारा आगे चलकर छायावाद में गहरी हो जाती है।
  • द्विवेदी युग की विशेषताएँ :
    (1) जागरण-सुधार (राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक सुधार/सामाजिक चेतना, मानवतावाद आदि)
    (2) सोद्देश्यता, आदर्शपरकता व नीतिमत्ता
    (3) आधुनिकता
    (4) समस्या पूर्ति
    (5) प्रकृति चित्रण
    (6) विषय-विस्तार, इतिवृत्तात्मकता/विवरणात्मकता व उपदेशात्मकता
    (7) काव्य-रूप-प्रबंध काव्य, खंड काव्य व मुक्तक कविता तीनों पर जोर
    (8) गद्य और पद्य दोनों की भाषा के रूप में खड़ी बोली की मान्यता, बोधगम्य भाषा।
  • राम नरेश त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता की एक संकल्पना विकसित की। उनकी राय में राष्ट्रीयता के तीन खतरे हैं-विदेशी शासन (पराधीनता), एक तंत्रीय शासन (तानाशाही शासन) और विदेशी आक्रमण। इन्हीं तीन विषयों को लेकर त्रिपाठीजी ने काव्य त्रयी (Trio) की रचना की 'मिलन', 'पथिक' व 'स्वप्न' ।
  • मैथली शरण गुप्त ने दो नारी प्रधान काव्य- 'साकेत' व 'यशोधरा' की रचना की।
  • भारतेन्दु युग में जिस तरह अम्बिका चरण व्यास समस्यापूर्ति की राह से कविता के क्षेत्र में आये उसी तरह द्विवेदी युग में नाथूराम शर्मा 'शंकर'।
  • पहली बार द्विवेदी युग में प्रकृति को काव्य-विषय के रूप में मान्यता मिली। इसके पूर्व प्रकृति या तो उद्दीपन के रूप में आती थी या फिर अप्रस्तुत विधान का अंग बनकर। द्विवेदी युग में प्रकृति को आलंबन तथा प्रस्तुत विधान के रूप में मान्यता मिली। पर द्विवेदी युग में प्रकृति का स्थिर-चित्रण हुआ है, गतिशील चित्रण नहीं।
  • द्विवेदी युगीन कविता कथात्मक तथा अभिधात्मक होने के कारण इतिवृत्तात्मक/विवरणात्मक हो गई है।
  • प्रबंध काव्य : 'प्रिय प्रवास' व 'वैदेही वनवास' (हरिऔध), 'साकेत' व 'यशोधरा' (मैथली शरण गुप्त), 'उर्मिला' (बालकृष्ण शर्मा नवीन) आदि।

    खण्ड काव्य : 'रंग में भंग', 'पंचवटी', 'जयद्रथ वध' व 'किसान' (मैथलीशरण गुप्त), 'मिलन', 'पथिक' व 'स्वप्न' (राम नरेश त्रिपाठी) आदि।

  • द्विवेदी युग के आरंभ में खड़ी बोली अनगढ़, शुष्क और अस्थिर-स्वरूप थी, किन्तु, शनैः शनैः उसका स्वरूप निश्चित, सुघड़ और मधुर बनता चला गया।
  • खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण और विकास का श्रेय द्विवेदी युग को है। मैथली शरण गुप्त द्विवेदी युग के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि थे। इनकी प्रथम पुस्तक 'रंग में भंग' (1909) है। इनकी ख्याति का मूलाधार 'भारत-भारती' (1912) है। 'भारत भारती' ने हिन्दी भाषियों में जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाएं जगाई और तभी से ये 'राष्ट्रकवि' के रूप में विख्यात हुए। ये प्रसिद्ध राम भक्त कवि थे। 'राम चरित मानस' के पश्चात हिन्दी में राम काव्य का दूसरा प्रसिद्ध उदाहरण मैथली शरण गुप्त कृत 'साकेत' है।
  • प्रसिद्ध पंक्तियाँ

  • हम कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी, आओ, विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी। -मैथली शरण गुप्त
    ('भारत-भारती')
  • हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
    ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और हैं ? -मैथली शरण गुप्त
    ('भारत-भारती')
  • देशभक्त वीरों, मरने से नेक नहीं डरना होगा।
    प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा।। -नाथूराम शर्मा 'शंकर'
  • धरती हिलाकर नींद भगा दे।
    वज्रनाद से व्योम जगा दे।
    दैव, और कुछ लाग लगा दे।
    (स्वदेश-संगीत) -मैथली शरण गुप्त
  • जिसको नहीं गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
    वह नर नहीं नरपशु निरा हैं, और मृतक समान है।। -मैथली शरण गुप्त
  • वन्दनीय वह देश जहाँ के देशी निज अभिमानी हों।
    बांधवता में बँधे परस्पर परता के अज्ञानी हों।। -श्रीधर पाठक
  • पराधीन रहकर अपना सुख शोक न कह सकता है।
    यह अपमान जगत में केवल पशु ही सह सकता है।। -राम नरेश त्रिपाठी
  • सखि, वे मुझसे कहकर जाते
    ('यशोधरा') -मैथली शरण गुप्त
  • अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
    आँचल में है दूध और आँखों में पानी।। -मैथली शरण गुप्त
  • नारी पर नर का कितना अत्याचार है।
    लगता है विद्रोह मात्र ही अब उसका प्रतिकार है।। -मैथली शरण गुप्त
  • राम तुम मानव हो ईश्वर नहीं हो क्या ?
    विश्व में रमे हुए सब कहीं नहीं हो क्या ? -मैथली शरण गुप्त
  • मैं ढूंढ़ता तुझे था जब कुंज और वन में,
    तू मुझे खोजता था जब दीन के वतन में।
    तू आह बन किसी को मुझको पुकारता था,
    मैं था तुझे बुलाता संगीत के भजन में।। -राम नरेश त्रिपाठी
  • साहित्य समाज का दर्पण है। -महावीर प्रसाद द्विवेदी
  • केवल मनोरंजन न कवि का कर्म नहीं होना चाहिए,
    उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।
    ('भारत-भारती') -मैथली शरण गुप्त
  • अधिकार खोकर बैठना यह महा दुष्कर्म है,
    न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है।
    ('जयद्रथ वध') -मैथली शरण गुप्त
  • अन्न नहीं है वस्त्र नहीं है रहने का न ठिकाना
    कोई नहीं किसी का साथी अपना और बिगाना। -रामनरेश त्रिपाठी
  • दिवस का अवसान समीप था,
    गगन था कुछ लोहित हो चला
    तरु शिखा पर थी अब राजति 'कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा
    ('प्रिय प्रवास') -अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
  • अहा, ग्राम्य जीवन भी क्या है,
    क्यों न इसे सबका मन चाहे। -मैथली शरण गुप्त
  • खरीफ के खेतों में जब सुनसान है,
    रब्बी के ऊपर किसान का ध्यान है। -श्रीधर पाठक
  • विजन वन-प्रांत था, प्रकृति मुख शांत था,
    अटन का समय था, रजनि का उदय था। -श्रीधर पाठक
  • लख अपर-प्रसार गिरीन्द में।
    ब्रज धराधिप के प्रिय-पुत्र का।
    सकल लोग लगे कहने, उसे
    रख लिया है ऊँगली पर श्याम ने।
    ('प्रियप्रवास') -हरिऔध
  • संदेश नहीं मैं यहाँ स्वर्ग का लाया,
    इस धरती को ही स्वर्ग बनाने आया।
    ('साकेत') -मैथली शरण गुप्त
  • 'मैथली शरण गुप्त की प्रतिभा की सबसे बड़ी विशेषता है कालानुसरण की क्षमता अर्थात उत्तरोत्तर बदलती हुई भावनाओं और काव्य प्रणालियों को ग्रहण करते चलने की शक्ति। इस दृष्टि से हिन्दी भाषी जनता के प्रतिनिधि कवि ये निस्संदेह कहे जा सकते हैं। -रामचन्द्र शुक्ल
  • मैं आया उनके हेतु कि जो शापित हैं,
    जो विवश, बलहीन दीन शापित है
    ('साकेत' में राम की उक्ति) -मैथलीशरण गुप्त
  • हम राज्य लिये मरते हैं -मैथलीशरण गुप्त
  • द्विवेदीयुगीन रचना एवं रचनाकार

    रचनाकार द्विवेदीयुगीन रचना
    नाथूराम शर्मा 'शंकर' अनुराग रत्न, शंकर सरोज, गर्भरण्डा रहस्य, शंकर सर्वस्व
    श्रीधर पाठक वनाष्टक, काश्मीर सुषमा, देहरादून, भारत गीत, जार्ज वंदना (कविता), बाल विधवा (कविता)
    महावीर प्रसाद द्विवेदी काव्य मंजूषा, सुमन, कान्यकुब्ज अबला-विलाप
    'हरिऔध' प्रियप्रवास, पद्यप्रसून, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे, बोलचाल, रसकलस, वैदही वनवास
    राय देवी प्रसाद 'पूर्ण' स्वदेशी कुण्डल, मृत्युंजय, राम-रावण विरोध, वसन्त-वियोग
    रामचरित उपाध्याय राष्ट्र भारती, देवदूत, देवसभा, विचित्र विवाह, रामचरित-चिन्तामणि (प्रबंध)
    गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' कृषक-क्रन्दन, प्रेम प्रचीसी, राष्ट्रीय वीणा, त्रिशूल तरंग, करुणा कादंबिनी
    मैथली शरण गुप्त रंग में भंग, जयद्रथ वध, भारत भारती, पंचवटी, झंकार, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जय भारत, विष्णु प्रिया
    रामनरेश त्रिपाठी मिलन, पथिक, स्वप्न, मानसी
    बाल मुकुन्द गुप्त स्फुट कविता
    लाला भगवानदीन 'दीन' वीर क्षत्राणी, वीर बालक, वीर पंचरत्न, नवीन बीन
    लोचन प्रसाद पाण्डेय प्रवासी, मेवाड़ गाथा, महानदी, पद्य पुष्पांजलि
    मुकुटधर पाण्डेय पूजा फूल, कानन कुसुम

    छायावाद युग (1918ई० - 1936 ई०)

  • 'छायावाद' के वास्तविक अर्थ को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
  • छायावाद का अर्थ मुकुटधर पाण्डेय ने 'रहस्यवाद', सुशील कुमार ने 'अस्पष्टता', महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'अन्योक्ति पद्धति', रामचन्द्र शुक्ल ने 'शैली वैचित्र्य', नंद दुलारे बाजपेयी ने 'आध्यात्मिक छाया का भान', डॉ० नगेन्द्र ने 'स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह' बताया है।
  • नामवर सिंह के शब्दों में, 'छायावाद शब्द का अर्थ चाहे जो हो परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है जो 1918 ई० से लेकर 1936ई० ('उच्छवास' से 'युगान्त') तक लिखी गई'।
  • सामान्य तौर पर किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो वह 'छायावादी कविता' है। उदाहरण के तौर पर पंत की निम्न पंक्तियाँ देखी जा सकती है जो कहा तो जा रहा है छाँह के बारे में लेकिन अर्थ निकल रहा है नारी स्वातंत्र्य संबंधी :
    कहो कौन तुम दमयंती सी इस तरु के नीचे सोयी, अहा तुम्हें भी त्याग गया क्या अलि नल-सा निष्ठुर कोई।
  • छायावाद युग की विशेषताएँ :
    (1) आत्माभिव्यक्ति अर्थात 'मैं' शैली/उत्तम पुरुष शैली
    (2) आत्म-विस्तार/सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति
    (3) प्रकृति प्रेम
    (4) नारी प्रेम एवं उसकी मुक्ति का स्वर
    (5) अज्ञात व असीम के प्रति जिज्ञासा (रहस्यवाद)
    (6) सांस्कृतिक चेतना व सामाजिक चेतना/मानवतावाद
    (7) स्वच्छंद कल्पना का नवोन्मेष
    (8) विविध काव्य-रूपों का प्रयोग
    (9) काव्य-भाषा-ललित-लवंगी कोमल कांत पदावली वाली भाषा
    (10) मुक्त छंद का प्रयोग
    (11) प्रकृति संबंधी बिम्बों की बहुलता
    (12) भारतीय अलंकारों के साथ-साथ अंग्रेजी साहित्य के मानवीकरण व विशेषण विपर्यय अलंकारों का विपुल प्रयोग
  • छायावाद के कवि चातुष्टय -प्रसाद, निराला, पंत व महादेवी
  • छायावादी काव्य में प्रसाद ने यदि प्रकृति को मिलाया, निराला ने मुक्तक छन्द दिया, पंत ने शब्दों को खराद पर चढ़ाकर सुडौल और सरस बनाया, तो महादेवी ने उसमें प्राण डाले।
  • छायावाद को हिन्दी साहित्य में भक्ति काव्य के बाद स्थान दिया जाता है।
  • प्रसाद की प्रथम काव्य कृति -उर्वशी (1909ई०)
  • प्रसाद की प्रथम छायावादी काव्य कृति -झरना (1918 ई०)
  • प्रसाद की अंतिम काव्य कृति कामायनी (1937 ई०) -सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य कृति
  • कामायनी के पात्र -मनु, श्रद्धा व इड़ा
  • पंत की प्रथम छायावादी काव्य कृति -उच्छवास (1918 ई०)
  • पंत की अंतिम छायावादी काव्य कृति -गुंजन (1932 ई०)