Avyay(Indeclinable)(अव्यय)


समुच्चयबोधक के भेद

समुच्चयबोधक के दो मुख्य भेद हैं-
(1) समानाधिकरण समुच्चयबोधक (Co-ordinative Conjunction)
(2) व्यधिकरण समुच्चयबोधक (Subordinative Conjunction)

(1) समानाधिकरण समुच्चयबोधक- जिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें 'समानाधिकरण समुच्चयबोधक' कहते है।
दूसरे शब्दों में- समान स्थिति वाले दो या दो से अधिक शब्दों, पदबंधों या उपवाक्यों को जोड़ने वाले शब्दों को समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

इसके चार उपभेद हैं-
(i) संयोजक- जो शब्द, शब्दों या वाक्यों को जोड़ने का काम करते है, उन्हें संयोजक कहते है।
दूसरे शब्दों में- दो शब्दों, पदबंधों या उपवाक्यों को आपस में जोड़ने वाले अव्यय को संयोजक कहते हैं।

जैसे- जोकि, कि, तथा, व, एवं, और आदि।
उदाहरण- मैंने उसका तथा उसके भाई का संदेश दे दिया था।
सीता और गीता चली गई।

(ii) विभाजक- जो शब्द, विभिन्नता प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते है, उन्हें विभाजक कहते है।
दूसरे शब्दों में- दो या दो से अधिक बातों में से एक की स्वीकृति अथवा दोनों की अस्वीकृति बताने वाले अव्यय को विभाजक कहते हैं।

जैसे- या, वा, अथवा, किंवा, कि, चाहे, न.... न, न कि, नहीं तो, ताकि, मगर, तथापि, किन्तु, लेकिन आदि।
उदाहरण- कॉपी मिल गयी किन्तु किताब नही मिली।

(iii) विकल्पसूचक- जो शब्द विकल्प का ज्ञान करायें, उन्हें 'विकल्पसूचक' शब्द कहते है।

जैसे- तो, न, अथवा, या आदि।
उदाहरण - मेरी किताब रमेश ने चुराई या राकेश ने। इस वाक्य में 'रमेश' और 'राकेश' के चुराने की क्रिया करने में विकल्प है।

(iv) विरोधदर्शक- दो वाक्यों में परस्पर विरोध प्रकट करके उन्हें जोड़ने वाले अथवा प्रथम वाक्य में कही गयी बात का निषेध दूसरे वाक्य में करने वाले अव्यय को विरोधदर्शक कहते हैं।

जैसे- किन्तु, परन्तु, पर, लेकिन, मगर, वरन, बल्कि।
उदाहरण- मोहन की बुद्धि तीव्र है किन्तु वह आलसी है।
मेरा मित्र इस गाड़ी से आने वाला था, परन्तु वह नहीं आया।

(v) परिणामदर्शक- प्रथम वाक्य का परिणाम या फल दूसरे वाक्य में बताने वाले अव्यय को परिणामदर्शक कहते हैं।

जैसे- इसलिए, अतः, सो, अतएव।
उदाहरण- वह बीमार था इसलिए पाठशाला नहीं गया।
वर्षा हो रही थी अतः मैं घर से नहीं निकला।
इन वाक्यों में 'इसलिए' और 'अतः' अव्यय प्रथम वाक्य का परिणाम दूसरे वाक्य में बताते हैं, अतः ये परिणामदर्शक समुच्ययबोधक हैं।

(2) व्यधिकरण समुच्चयबोधक- जिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें 'व्यधिकरण समुच्चयबोधक' कहते हैं।
सरल शब्दों में- एक या एक से अधिक उपवाक्यों को मुख्य उपवाक्य से जोड़ने वाले अव्यय को व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

इसके चार उपभेद है।-
(i) कारणवाचक (ii) उद्देश्यवाचक (iii) संकेतवाचक (iv) स्वरूपवाचक

(i) कारणवाचक-जिस अव्यय से पहले वाक्य के कार्य का कारण दूसरे वाक्य में लक्षित हो, उसे कारणवाचक कहते हैं।

जैसे- क्योंकि, जोकि, इसलिए कि।
उदाहरण- मैं वहाँ नहीं आ सका क्योंकि वर्षा हो रही थी।

(ii) उद्देश्यवाचक-जिस अव्यय से एक वाक्य का उद्देश्य या फल दूसरे वाक्य द्वारा प्रकट हो, उसे उद्देश्यवाचक कहते हैं।

जैसे- ताकि, कि, जो, इसलिए कि।
उदाहरण- मैं वहाँ इसलिए गया था ताकि पुस्तक ले आऊँ।
राम इसलिए नहीं आया कि कहीं उसका अपमान न हो।

(iii) संकेतवाचक-जो अव्यय संकेत या शर्त एक वाक्य में बताकर दूसरे वाक्य में उसका फल संकेतित करें, उन्हें संकेतवाचक कहते हैं।

जैसे- यदि.....तो, यद्यपि.....तथापि, जो.....तो, चाहे.....परन्तु, कि।
उदाहरण- यदि समय मिला तो मैं अवश्य जाऊँगा।
यद्यपि मैंने उनसे निवेदन किया तथापि वे नहीं माने।

(iv) स्वरूपवाचक- जो अव्यय दो उपवाक्यों को इस प्रकार जोड़े कि पहले वाक्य का स्वरूप दूसरे वाक्य से ही स्पष्ट हो, उसे स्वरूपवाचक कहते हैं।

जैसे- कि, जो, अर्थात, मानो।
उदाहरण- कृष्ण ने कहा कि मैं आज खाना नहीं खाऊँगा।
उसने ठीक किया जो यहाँ चला आया।

(4)विस्मयादिबोधक अव्यय :- जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।

इन अविकारी शब्दों का प्रयोग वाक्य के प्रारम्भ में होता है तथा इनका वाक्य की रचना से सीधा संबंध नहीं होता। इन शब्दों के बाद विशेष चिह्न (!) लगता है।

जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ ?
हैं! तुम क्या कर रहे हो ? यहाँ 'हाय!' और 'है !'
अरे! पीछे हो जाओ, गिर जाओगे।
इस वाक्य में अरे! शब्द से भय प्रकट हो रहा है।

विस्मयादिबोधक अव्यय है, जिनका अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं।
व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। 'अब मैं क्या करूँ ? इस वाक्य के पहले 'हाय!' जोड़ा जा सकता है।

विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं-
(i) हर्षबोधक- अहा!, वाह-वाह!,धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि।
(ii) शोकबोधक- अहा!, उफ, हा-हा!, आह, हाय, त्राहि-त्राहि आदि।
(iii) आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!, ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि
(iv) क्रोधबोधक- हट, दूर हो, चुप आदि।
(v) स्वीकारबोधक- हाँ!, जी हाँ, जी, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि।
(vi) सम्बोधनबोधक- अरे!, अजी!, लो, रे, हे आदि।
(vii) भयबोधक- अरे, बचाओ-बचाओ आदि।

निपात और उसके कार्य

यास्क के अनुसार 'निपात' शब्द के अनेक अर्थ है, इसलिए ये निपात कहे जाते हैं- उच्चावच्चेषु अर्थेषु निपतन्तीति निपाताः। यह पाद का पूरण करनेवाला होता है- 'निपाताः पादपूरणाः । कभी-कभी अर्थ के अनुसार प्रयुक्त होने से अनर्थक निपातों से अन्य सार्थक निपात भी होते हैं। निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता। मूलतः इसका प्रयोग अव्ययों के लिए होता है। जैसे अव्ययों में आकारगत अपरिवर्त्तनीयता होती है, वैसे ही निपातों में भी।
निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समूह या पूरे वाक्य को अन्य (अतिरिक्त) भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नही होते। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ प्रभावित होता है।

निपात के भेद

यास्क ने निपात के तीन भेद माने है-
(1) उपमार्थक निपात : यथा- इव, न, चित्, नुः
(2) कर्मोपसंग्रहार्थक निपात : यथा- न, आ, वा, ह;
(3) पदपूरणार्थक निपात : यथा- नूनम्, खलु, हि, अथ।

यद्यपि निपातों में सार्थकता नहीं होती, तथापि उन्हें सर्वथा निरर्थक भी नहीं कहा जा सकता। निपात शुद्ध अव्यय नहीं है; क्योंकि संज्ञाओं, विशेषणों, सर्वनामों आदि में जब अव्ययों का प्रयोग होता है, तब उनका अपना अर्थ होता है, पर निपातों में ऐसा नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्र्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। इसके अतिरिक्त, निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का सम्रग अर्थ व्यक्त होता है। साधारणतः निपात अव्यय ही है। हिन्दी में अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं।

निपात के कार्य

निपात के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
(1) पश्र- जैसे : क्या वह जा रहा है ?
(2) अस्वीकृति- जैसे : मेरा छोटा भाई आज वहाँ नहीं जायेगा।
(3) विस्मयादिबोधक- जैसे : क्या अच्छी पुस्तक है !
(4) वाक्य में किसी शब्द पर बल देना- बच्चा भी जानता है।

निपात के प्रकार

निपात के नौ प्रकार या वर्ग हैं-
(1) स्वीकार्य निपात- जैसे : हाँ, जी, जी हाँ।
(2) नकरार्थक निपात- जैसे : नहीं, जी नहीं।
(3) निषेधात्मक निपात- जैसे : मत।
(4) पश्रबोधक- जैसे : क्या ? न।
(5) विस्मयादिबोधक निपात- जैसे : क्या, काश, काश कि।
(6) बलदायक या सीमाबोधक निपात- जैसे : तो, ही, तक, पर सिर्फ, केवल।
(7) तुलनबोधक निपात- जैसे : सा।
(8) अवधारणबोधक निपात- जैसे : ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।
(9) आदरबोधक निपात- जैसे : जी।

अव्यय का पद परिचय

इसमें अव्यय, अव्यय का भेद और उससे सम्बन्ध रखनेवाला पद- इतनी बातें लिखनी चाहिए।
उदाहरण- वह अभी आया है।
इसमें 'अभी' अव्यय है। इसका पदान्वय होगा-
अभी- कालवाचक अव्यय, 'आना' क्रिया का काल सूचित करता है, अतः 'आना' क्रिया का विशेषण।
उदाहरण- अहा ! आप आ गये।
अहा- हर्षबोधक अव्यय।

पद-परिचय के कुछ अन्य उदाहरण

उदाहरण (1) अच्छा लड़का कक्षा में शान्तिपूर्वक बैठता है।
अच्छा- गुणवाचक विशेषण, पुंलिंग, एकवचन, इसका विशेष्य 'लड़का' है।
लड़का- जातिवाचक संज्ञा, पुंलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष, कर्ताकारक, 'बैठता है' क्रिया का कर्ता।
कक्षा में- जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, अधिकरणकारक।
शान्तिपूर्वक- रीतिवाचक क्रियाविशेषण, 'बैठता है' क्रिया का विशेषण।
बैठता है- अकर्मक क्रिया, कर्तृवाच्य, सामान्य वर्तमानकाल, पुंलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष, इसका कर्ता लड़का है।

उदाहरण (2) मोहन अपने भाई सोहन को छड़ी से मारता है।
मोहन- व्यक्तिवाचक संज्ञा, अन्यपुरुष, पुंलिंग, एकवचन, कर्ताकारक, इसकी क्रिया है 'मारता है' ।
अपने- निजवाचक सर्वनाम, पुंलिंग, एकवचन, सम्बन्धकारक, 'भाई' से सम्बन्ध रखता है, सार्वनामिक विशेषण, इसका विशेष्य 'भाई' है।
भाई- जातिवाचक संज्ञा, पुंलिंग, एकवचन, कर्मकारक, 'सोहन' (कर्म) का विशेषण, 'मारता है' क्रिया का कर्म।
सोहन को- व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुंलिंग, एकवचन, कर्मकारक, 'भाई' के अर्थ को प्रकट करता है अतः 'समानाधिकरण संज्ञा' ।
छड़ी से- जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, करणकारक।
मारता है- सकर्मक क्रिया, इसका कर्म 'भाई सोहन', सामान्य वर्तमानकाल, पुंलिंग, कर्तृवाच्य, अन्यपुरुष, इसका कर्ता 'मोहन' है।