Avyay(Indeclinable)(अव्यय)


अव्यय (Indeclinable)की परिभाषा

जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है उन्हें अव्यय (अ + व्यय) या अविकारी शब्द कहते है ।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'अव्यय' ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नही होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होता, अतः ये अव्यय हैं।
जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात इत्यादि।

अव्यय और क्रियाविशेषण

पण्डित किशोरीदास बाजपेयी के मतानुसार, अँगरेजी के आधार पर सभी अव्ययों को क्रियाविशेषण मान लेना उचित नही; क्योंकि कुछ अव्यय ऐसे हैं, जिनसे क्रिया की विशेषता लक्षित नहीं होती। जैसे- जब मैं भोजन करता हूँ, तब वह पढ़ने जाता हैं। इस वाक्य में 'जब' और 'तब' अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते। अतः, इन्हें क्रियाविशेषण नहीं माना जा सकता।
निम्नलिखित अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते-

(i) कालवाचक अव्यय- इनमें समय का बोध होता है। जैसे- आज, कल, तुरन्त, पीछे, पहले, अब, जब, तब, कभी-कभी, कब, अब से, नित्य, जब से, सदा से, अभी, तभी, आजकल और कभी। उदाहरणार्थ-
अब से ऐसी बात नहीं होगी।
ऐसी बात सदा से होती रही है।
वह कब आया, मुझे पता नहीं।

(ii) स्थानवाचक अव्यय- इससे स्थान का बोध होता है। जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, यहाँ से, वहाँ से, इधर-उधर। उदाहरणार्थ-
वह यहाँ नहीं है।
वह कहाँ जायेगा ?
वहाँ कोई नहीं है।
जहाँ तुम हो, वहाँ मैं हूँ।

(iii) दिशावाचक अव्यय- इससे दिशा का बोध होता है। जैसे- इधर, उधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आरपार।

(iv) स्थितिवाचक अव्यय- नीचे, ऊपर तले, सामने, बाहर, भीतर इत्यादि।

अव्यय के भेद

अव्यय निम्नलिखित चार प्रकार के होते है -
(1) क्रियाविशेषण (Adverb)
(2) संबंधबोधक (Preposition)
(3) समुच्चयबोधक (Conjunction)
(4) विस्मयादिबोधक (Interjection)

(1) क्रियाविशेषण :- जिन शब्दों से क्रिया, विशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट हो, उन्हें 'क्रियाविशेषण' कहते है।
दूसरे शब्दो में- जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते है, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है।

जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है।
इन वाक्यों में 'धीरे-धीरे', 'वहाँ' और 'अभी' राम के 'टहलने' (क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्रियाविशेषण दूसरे क्रियाविशेषण की भी विशेषता बताता हैं।
वह बहुत धीरे चलता है। इस वाक्य में 'बहुत' क्रियाविशेषण है; क्योंकि यह दूसरे क्रियाविशेषण 'धीरे' की विशेषता बतलाता है।

क्रिया विशेषण के प्रकार

(1) प्रयोग के अनुसार- (i) साधारण (ii) संयोजक (iii) अनुबद्ध
(2) रूप के अनुसार- (i) मूल क्रियाविशेषण (ii) यौगिक क्रियाविशेषण (iii) स्थानीय क्रियाविशेषण
(3) अर्थ के अनुसार- (i) परिमाणवाचक (ii) रीतिवाचक

(1) 'प्रयोग' के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद

प्रयोग के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद हैं-
(i) साधारण क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतन्त्र होता हैं, उन्हें 'साधारण क्रियाविशेषण' कहा जाता हैं।
जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ? बेटा, जल्दी आओ। अरे ! साँप कहाँ गया ?

(ii) संयोजक क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों का सम्बन्ध किसी उपवाक्य से रहता है, उन्हें ' संयोजक क्रियाविशेषण' कहा जाता हैं।
जैसे- जब रोहिताश्र्व ही नहीं, तो मैं ही जीकर क्या करूँगी ! जहाँ अभी समुद्र हैं, वहाँ किसी समय जंगल था।

(iii) अनुबद्ध क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण (निश्र्चय) के लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता हो, उन्हें 'अनुबद्ध क्रियाविशेषण' कहा जाता है।
जैसे- यह तो किसी ने धोखा ही दिया है। मैंने उसे देखा तक नहीं।

(2) रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद

रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद हैं-
(i) मूल क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण, जो किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, 'मूल क्रियाविशेषण' कहलाते हैं।
जैसे- ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं।

(ii) यौगिक क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण, जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं, 'यौगिक क्रियाविशेषण' कहलाते हैं।
जैसे- मन से, जिससे, चुपके से, भूल से, देखते हुए, यहाँ तक, झट से, वहाँ पर। यौगिक क्रियाविशेषण संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, धातु और अव्यय के मेल से बनते हैं।

यौगिक क्रियाविशेषण नीचे लिखे शब्दों के मेल से बनते हैं-
(i) संज्ञाओं की द्विरुक्ति से- घर-घर, घड़ी-घड़ी, बीच-बीच, हाथों-हाथ।
(ii) दो भित्र संज्ञाओं के मेल से- दिन-रात, साँझ-सबेरे, घर-बाहर, देश-विदेश।
(iii) विशेषणों की द्विरुक्ति से- एक-एक, ठीक-ठीक, साफ-साफ।
(iv) क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति से- धीरे-धीरे, जहाँ-तहाँ, कब-कब, कहाँ-कहाँ।
(v) दो क्रियाविशेषणों के मेल से- जहाँ-तहाँ, जहाँ-कहीं, जब-तब, जब-कभी, कल-परसों, आस-पास।
(vi) दो भित्र या समान क्रियाविशेषणों के बीच 'न' लगाने से- कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ।
(vii) अनुकरण वाचक शब्दों की द्विरुक्ति से- पटपट, तड़तड़, सटासट, धड़ाधड़।
(viii) संज्ञा और विशेषण के योग से- एक साथ, एक बार, दो बार।
(ix) अव्य य और दूसरे शब्दों के मेल से- प्रतिदिन, यथाक्रम, अनजाने, आजन्म।
(x) पूर्वकालिक कृदन्त और विशेषण के मेल से- विशेषकर, बहुतकर, मुख़्यकर, एक-एककर।

(iii) स्थानीय क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण, जो बिना रूपान्तर के किसी विशेष स्थान में आते हैं, 'स्थानीय क्रियाविशेषण' कहलाते हैं।
जैसे- वह अपना सिर पढ़ेगा।
वह दौड़कर चलते हैं।

(3) 'अर्थ' के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद

अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के नौ भेद हैं-
(1) कालवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Time)
(2) स्थानवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Place)
(3) दिशावाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Direction)
(4) परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Quantity)
(5) रीतिवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Manner)
(6) निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Definiteness)
(7) अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Indefiniteness)
(8) निषेधवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Negation)
(9) कारणवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Cause)

(1) कालवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के समय से सम्बद्ध विशेषता बताएँ, उन्हें कालवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

जैसे- वह तुरन्त चला गया।
मैं वहाँ कभी-कभी जाता हूँ।
उक्त वाक्यों में 'तुरन्त' और 'कभी-कभी' शब्द कालवाचक क्रिया-विशेषण हैं, क्योंकि ये क्रमशः 'चला गया' तथा 'जाता हूँ' क्रियाओं की समय-संबंधी विशेषता बताते हैं।

कुछ अन्य कालवाचक क्रिया-विशेषण शब्द- अभी-अभी, आज, कल, परसों, प्रतिदिन, अब, जब, कब, तब, लगातार, बार-बार, पहले, बाद में, निरन्तर, नित्य, दोपहर, सायं आदि।

(2) स्थानवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के स्थान से सम्बद्ध विशेषता बताते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

जैसे- कृपया ऊपर चले जाइए।
रोहित यहाँ नहीं रहता।
उपर्युक्त वाक्यों में 'ऊपर' और 'यहाँ' शब्द स्थानवाचक क्रिया-विशेषण हैं, क्योंकि वे 'चले जाइए' और 'रहता' क्रियाओं की स्थान-संबंधी विशेषता बताते हैं।

कुछ अन्य स्थानवाचक क्रिया-विशेषण शब्द- वहाँ, कहाँ, पास, दूर, अन्यत्र, आसपास आदि।

(3) दिशावाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया की दिशा से सम्बद्ध विशेषता बताएँ, उन्हें दिशावाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

जैसे- मेरी ओर देखो।
वह उधर मुड़ गया।
इन वाक्यों में 'ओर' तथा 'उधर' दिशावाचक क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'देखो' और 'मुड़ गया' क्रियाओं की दिशा-संबंधी विशेषता बताते हैं।

कुछ अन्य दिशावाचक क्रिया-विशेषण- इधर, जिधर, किधर, सामने आदि।

(4) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण- जो शब्द क्रिया के परिमाण (मात्रा) से सम्बद्ध विशेषता प्रकट करें, उन्हें 'परिमाणवाचक क्रियाविशेषण' कहते है।

जैसे- वह कम बोलता है।
बहुत अधिक खाओगे, तो बीमार पड़ जाओगे।
यहाँ 'कम' और 'अधिक' शब्द परिमाणबोधक क्रिया-विशेषण हैं जो 'बोलता' और 'खाओगे' क्रियाओं की परिमाण या मात्रा संबंधी विशेषता बताते हैं।

कुछ अन्य परिमाणबोधक क्रिया-विशेषण शब्द- थोड़ा, पर्याप्त, जरा, खूब, अत्यन्त, तनिक, बिलकुल, स्वल्प, केवल, सर्वथा, अल्प आदि।

यह भी कई प्रकार का हैं-
(क) अधिकताबोधक- बहुत, अति, बड़ा, बिलकुल, सर्वथा, खूब, निपट, अत्यन्त, अतिशय।
(ख) न्यूनताबोधक- कुछ, लगभग, थोड़ा, टुक, प्रायः, जरा, किंचित्।
(ग) पर्याप्तिवाचक- केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु।
(घ) तुलनावाचक- अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर।
(ड़) श्रेणिवाचक- थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एककर, यथाक्रम।

(5) रीतिवाचक क्रियाविशेषण- जो शब्द क्रिया की रीति या ढंग बताते है उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते है।

जैसे- सुनील मधुर बोलता है।
हरिण तेज दौड़ता है।
उपर्युक्त वाक्यों में 'मधुर' तथा 'तेज' शब्द रीतिवाचक क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि ये क्रमशः 'बोलता' तथा 'दौड़ता' क्रियाओं की रीति या ढंग संबंधी विशेषता बतलाते हैं।

कुछ अन्य रीतिवाचक क्रिया-विशेषण शब्द- धीरे, जल्दी, ऐसे, वैसे, कैसे, ध्यानपूर्वक, सुखपूर्वक, शांतिपूर्वक आदि।

इस क्रियाविशेषण की संख्या गुणवाचक विशेषण की तरह बहुत अधिक है। ऐसे क्रियाविशेषण प्रायः निम्नलिखित अर्थों में आते हैं-
(क) प्रकार- ऐसे, वैसे, कैसे, मानो, धीरे, अचानक, स्वयं, स्वतः, परस्पर, यथाशक्ति, प्रत्युत, फटाफट।
(ख) निश्र्चय- अवश्य, सही, सचमुच, निःसन्देह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल।
(ग) अनिश्र्चय- कदाचित्, शायद, बहुतकर, यथासम्भव।
(घ) स्वीकार- हाँ, जी, ठीक, सच।
(ड़) कारण- इसलिए, क्यों, काहे को।
(च) निषेध- न, नहीं, मत।
(छ) अवधारण- तो, ही, भी, मात्र, भर, तक, सा।

(6) निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया में निश्चय संबंधी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

जैसे- मैं वहाँ अवश्य जाऊँगा।
वह निःसंदेह सफल होगा।
इन वाक्यों में 'अवश्य' और 'निःसंदेह' निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'जाऊँगा' और 'सफल होगा' क्रियाओं के संबंध में निश्चय का बोध कराते हैं।

कुछ अन्य निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण- अलबत्ता, जरूर, बेशक आदि।

(7) अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण- जो क्रिया विशेषण शब्द क्रिया में अनिश्चय संबंधी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

जैसे- वह शायद चला जाए।
राम संभवतः न पहुँच पाए।
इन वाक्यों में 'शायद' और 'संभवतः' अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'चला जाए' और 'पहुँच पाए' क्रियाओं में अनिश्चय का बोध कराते हैं।

कुछ अन्य अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण- कदाचित्, संभव है, मुमकिन है आदि।

(8) निषेधवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के करने या होने का निषेध प्रकट करें, उन्हें निषेधवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

जैसे- यहाँ मत बैठो।
मैं कुछ नहीं कहूँगा।
इन वाक्यों में 'मत' और 'नहीं' निषेधवाचक क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'बैठो' और 'कहूँगा' क्रियाओं के निषेध का बोध कराते हैं।

कुछ अन्य निषेधवाचक क्रिया-विशेषण न, ना।

(9) कारणवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के होने या करने का कारण बताएँ, उन्हें कारणवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

जैसे- दुर्बलता के कारण वह चल नहीं सकता।
ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी, इसलिए वह सो गया।
इन वाक्यों में 'कारण' और 'इसलिए' क्रमशः 'न चल सकने' और 'सोने' का कारण बताते हैं।

कुछ अन्य कारणवाचक क्रिया-विशेषण- के मारे, अतः, अतएव, उद्देश्य से, किसलिए आदि।