Avyay(Indeclinable)(अव्यय)


कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अन्तर

(i) अब-अभी 'अब' में वर्तमान समय का अनिश्र्चय है और 'अभी' का अर्थ तुरन्त से है; जैसे-

अब- अब आप जा सकते हैं।
अब आप क्या करेंगे ?

अभी- अभी-अभी आया हूँ।
अभी पाँच बजे हैं।

(ii) तब-फिर- अन्तर यह है कि 'तब' बीते हुए हमय का बोधक है और 'फिर' भविष्य की ओर संकेत करता है। जैसे-

तब- तब उसने कहा।
तब की बात कुछ और थी।

फिर- फिर आप भी क्या कहेंगे।
फिर ऐसा होगा।
'तब' का अर्थ 'उस समय' है और 'फिर' का अर्थ 'दुबारा' है।
'केवल' सदा उस शब्द के पहले आता है, जिसपर जोर देना होता है; लेकिन 'मात्र' 'ही', उस शब्द के बाद आता है।

(iii) कहाँ-कहीं- 'कहाँ' किसी निश्र्चित स्थान का बोधक है और 'कही' किसी अनिश्र्चित स्थान का परिचायक। कभी-कभी 'कही' निषेध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है; जैसे-

कहाँ- वह कहाँ गया ?
मैं कहाँ आ गया ?
कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली!

कहीं- वह कहीं भी जा सकता है।
अन्य अर्थों में भी 'कही' का प्रयोग होता है-
(क) बहुत अधिक- यह पुस्तक उससे कहीं अच्छी है। (ख) कदाचित्- कहीं बाघ न आ जाय। (ग) विरोध- राम की माया, कहीं धूप कहीं छाया।

(iv) न-नहीं-मत- इनका प्रयोग निषेध के अर्थ में होता है। 'न' से साधारण-निषेध और 'नहीं' से निषेध का निश्र्चय सूचित होता है। 'न' की अपेक्षा 'नहीं' अधिक जोरदार है। 'मत' का प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे-

'न'- इनके विभित्र प्रयोग इस प्रकार हैं-
(क) क्या तुम न आओगे ?
(ख) तुम न करोगे, तो वह कर देगा।
(ग) 'न' तुम सोओगे, न वह।
(घ) जाओ न, रुक क्यों गये ?

नहीं- (क) तुम नहीं जा सकते।
(ख) मैं नहीं जाऊँगा।
(ग) मैं काम नहीं करता।
(घ) मैंने पत्र नहीं लिखा।

मत- (क) भीतर मत जाओ।
(ख) तुम यह काम मत करो।
(ग) तुम मत गाओ।

(v) ही-भी- बात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है। अन्तर यह है कि 'ही' का अर्थ एकमात्र और 'भी' का अर्थ 'अतिरिक्त' सूचित करता है। जैसे-

भी- इस काम को तुम भी कर सकते हो।

ही- यह काम तुम ही कर सकते हो।

(vi) केवल-मात्र- 'केवल' अकेला का अर्थ और 'मात्र' सम्पूर्णता का अर्थ सूचित करता है; जैसे-

केवल- आज हम केवल दूध पीकर रहेंगे। यह काम केवल वह कर सकता है।

मात्र- मुझे पाँच रूपये मात्र मिले।

(vii) भला-अच्छा- 'भला' अधिकतर विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, पर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता है; जैसे- भला का भला फल मिलता है।

'अच्छा' स्वीकृतिमूलक अव्यय है। यह कभी अवधारण के लिए और कभी विस्मयबोधक के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे-

अच्छा, कल चला जाऊँगा।
अच्छा, आप आ गये !

(viii) प्रायः-बहुधा- दोनों का अर्थ 'अधिकतर' है, किन्तु 'प्रायः' से 'बहुधा की मात्रा अधिक होती है।

प्रायः- बच्चे प्रायः खिलाड़ी होते हैं।
बहुधा- बच्चे बहुधा हठी होते हैं।

(ix) बाद-पीछे- 'बाद' काल का और 'पीछे' समय का सूचक है। जैसे-

बाद- वह एक सप्ताह बाद आया।
पीछे- वह पढ़ने में मुझसे पीछे है।

(2)सम्बन्धबोधक अव्यय :- जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहलाते ।
दूसरे शब्दों में- जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते है, उसे 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहते हैं।
यदि यह संज्ञा न हो, तो वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलायेगा।

जैसे- दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि।
उदाहरण- वृक्ष के 'ऊपर' पक्षी बैठे है।
धन के 'बिना' कोई काम नही होता।
मकान के 'पीछे' गली है।

उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द 'वृक्ष और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है।
दूसरे वाक्य में 'बिना' शब्द 'धन' और 'काम' में सम्बन्ध दर्शता है।
तीसरे वाक्य में 'पीछे' शब्द 'मकान' और 'गली' में सम्बन्ध दर्शाता है।
अतः 'ऊपर' 'बिना' 'पीछे' शब्द सम्बन्धबोधक है।

विशेष- यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध न जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-

सम्बन्धबोधक क्रिया-विशेषण
दुकान 'पर' ग्राहक खड़ा है। दुकान 'पर' खड़ा है।
मेज के 'ऊपर' किताबें है। मेज के 'ऊपर' है।

सम्बन्धबोधक के भेद

प्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है ।
(1) प्रयोग के अनुसार- (i) सम्बद्ध (ii) अनुबद्ध

(2) अर्थ के अनुसार- (i) कालवाचक (ii) स्थानवाचक (iii) दिशावाचक (iv) साधनवाचक (v) हेतुवाचक (vi) विषयवाचक (vii) व्यतिरेकवाचक (viii) विनिमयवाचक (ix) सादृश्यवाचक (x) विरोधवाचक (xi) सहचरवाचक (xii) संग्रहवाचक (xiii) तुलनावाचक

(3) व्युत्पत्ति के अनुसार- (i) मूल सम्बन्धबोधक (ii) यौगिक सम्बन्धबोधक

(1) प्रयोग के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
(i) सम्बद्ध सम्बन्धबोधक - ऐसे सम्बन्धबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं। जैसे- धन के बिना, नर की नाई।
(ii) अनुबद्ध सम्बन्धबोधक- ऐसे सम्बन्धबोधकअव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं। जैसे- किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर , पुत्रों समेत।

(2) अर्थ के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
(i) कालवाचक- आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अनन्तर, पश्र्चात्, उपरान्त, लगभग।
(ii) स्थानवाचक- आगे, पीछे, नीचे, तले, सामने, पास, निकट, भीतर, समीप, नजदीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर।
(iii) दिशावाचक- ओर, तरफ, पार, आरपार, आसपास, प्रति।
(iv) साधनवाचक- द्वारा, जरिए, हाथ, मारफत, बल, कर, जबानी, सहारे।
(v) हेतुवाचक- लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, मारे, चलते।
(vi)विषयवाचक- बाबत, निस्बत, विषय, नाम, लेखे, जान, भरोसे।
(vii) व्यतिरेकवाचक- सिवा, अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित।
(viii) विनिमयवाचक- पलटे, बदले, जगह, एवज।
(ix) सादृश्यवाचक- समान, तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखादेखी, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक।
(x) विरोधवाचक- विरुद्ध, खिलाप, उलटे, विपरीत।
(xi) सहचरवाचक- संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश।
(xii) संग्रहवाचक- तक, लौं, पर्यन्त, भर, मात्र।
(xiii) तुलनावाचक- अपेक्षा, बनिस्बत, आगे, सामने।

(3) व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
(i) मूल सम्बन्धबोधक- बिना, पर्यन्त, नाई, पूर्वक इत्यादि।
(ii) यौगिक सम्बन्धबोधक- संज्ञा से- पलटे, लेखे, अपेक्षा, मारफत।
विशेषण से- तुल्य, समान, उलटा, ऐसा, योग्य।
क्रियाविशेषण से- ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, परे, पीछे।
क्रिया से- लिए, मारे, चलते, कर, जाने।

क्रिया-विशेषण और सम्बन्धबोधक में अंतर

अनेक शब्द क्रिया-विशेषण भी हैं तथा सम्बन्धबोधक भी। प्रयोग में जब ये क्रिया की विशेषता प्रकट करें, तब क्रिया-विशेषण कहलाते हैं तथा जब संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ आकर उनका वाक्य के शेष शब्दों के साथ संबंध बताएँ तब सम्बन्धबोधक।

जैसे-
आप पीछे चलिए। (क्रिया-विशेषण)
आप उसके पीछे चलिए। (सम्बन्धबोधक)

(3)समुच्चयबोधक अव्यय :-- जो अविकारी शब्द दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते है, उन्हें समुच्चयबोधक कहते है।
दूसरे शब्दों में- ऐसा पद (अव्यय) जो क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर एक वाक्य या पद का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या पद से जोड़ता है, 'समुच्चयबोधक' कहलाता है।
सरल शब्दो में- दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते है।
जैसे- यद्यपि, चूँकि, परन्तु, और किन्तु आदि।

उदाहरण- आँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ 'और' अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- 'आँधी आयी', 'पानी बरसा'- को जोड़ता है।
समुच्चयबोधक अव्यय पूर्ववाक्य का सम्बन्ध उत्तरवाक्य से जोड़ता है।
इसी तरह समुच्चयबोधक अव्यय दो पदों को भी जोड़ता है। जैसे- दो और दो चार होते हैं।

राम 'और' लक्ष्मण दोनों भाई थे।
मोहन ने बहुत परिश्रम किया परन्तु 'सफल' न सका।
उपयुक्त पहले वाक्य में 'और' शब्दों को जोड़ रहा है तथा दूसरे वाक्य में 'परन्तु' दो वाक्यांशों को जोड़ रहा है। अतः ये दोनों शब्द समुच्चयबोधक है।