गैरव- हाँ माँ मैं यहाँ हूँ।
माताजी- क्या कर रहे हो।
गौरव- टीवी देख रहा हूँ।
माताजी- गौरव यह पढ़ाई का समय है टीवी बंद कर दो।
गौरव- बस माँ अभी मैच खत्म होने वाला है।
माताजी- गौरव परीक्षा नजदीक आ रही हैं कोर्स भी पूरा करना है।
गौरव- हो जाएगा माँ।
माताजी- टीवी देखने से कोर्स पूरा होता है क्या? चलो इसे बंद करो।
गौरव- माँ बस हो जाएगा खत्म।
माताजी- बेटा यह समय की बर्बादी है और कुछ नहीं जितना समय तुम इसमें लगाते हो उतना समय पढ़ाई में लगाओ तो और अच्छे नम्बर आ सकते हैं।
गौरव- माँ आप तो हमेशा ही डाँटती रहती हो।
माताजी- मेरा डाँटना तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए है न कि तुम्हें नाराज करने के लिए।
गौरव- ठीक है माँ तुम्हारी बात समझ आ गई। मैं टीवी बंद करके मेहनत से अपनी परीक्षा की तैयारी करूँगा।
राम- श्याम देखो कितनी बुरी दुर्घटना है।
श्याम- स्कूटर सवार बचा कि नहीं।
राम- लगता तो नहीं।
श्याम- क्यों ऐसा बोल रहे हो।
राम- उसने हैलमेट नहीं पहन रखा था।
श्याम- टैम्पू वाले का क्या हाल है ये भी तो उलट गया।
राम- टैम्पू तेजी पर था स्कूटर वाला गलत साइड (तरफ) से था।
श्याम- क्यों आजकल के स्कूटर सवार अपना जोश दिखाते हैं। हैलमेट होने पर भी नहीं पहनते है।
राम- उसने हैलमेट नहीं पहन रखा था लेकिन कान में मोबाइल की लीड थी। इसलिए टैम्पू की आवाज व हॉर्न उसे सुनाई नहीं दिया।
श्याम- दे दी उसने अपनी जान। सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन नहीं करते है। तेजी से वाहन चलाते हैं।
राम- तेजी का नतीजा देख लिया अब उसके परिवार वालों का क्या होगा अकेला ही बेटा था जैसे पता चला है।
श्याम- हमें सड़क सुरक्षा के सभी नियमों का पालन करना चाहिए तभी सब सुरक्षित है। बच्चों को परिवार वालों व पुलिस को सख्ती से निपटना होगा।
राम- भगवान सभी को सद्बुद्धि दे।
पहला मित्र- मित्र, बहुत दुखी दिखाई दे रहे हो।
दूसरा मित्र- हाँ मित्र, दिल्ली के प्रदूषण ने जीना मुश्किल कर दिया है।
पहला मित्र- सही कह रहे हो। मनुष्य ने तो पर्यावरण के महत्त्व को ही भुला दिया है।
दूसरा मित्र- पर्यावरण के लिए वृक्ष से बड़ा मित्र तो हो ही नहीं सकता। पर मनुष्य का दुर्भाग्य कि वह विकास के नाम पर इसकी कटाई करता जा रहा है।
पहला मित्र- हाँ, पर बढ़ती गाड़ियों की संख्या और कल-कारखानों से निकलने वाले धुएँ भी इसे रात-दिन बढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं।
दूसरा मित्र- मित्र, अगर ऐसा ही चलता रहा, तो धीरे-धीरे मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। (चिंतित होते हुए) क्या यह मनुष्य इतना क्रूर और स्वार्थी हो गया है कि इसके बारे में जरा-सा भी नहीं सोचता।
पहला मित्र- मित्र, ऐसा नहीं है, कुछ लोग प्रदूषण से सुरक्षा के लिए भी प्रयास कर रहे हैं।
दूसरा मित्र- यह तो अच्छी बात है। चलो, साथ मिलकर हम भी प्रयास करते हैं तथा दिल्ली सरकार से आग्रह करेंगे कि वह भी कुछ सहयोग करें।
पहला मित्र- धन्यवाद!
पहली मित्र- सखी, दिल्ली अब महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रही।
दूसरी महिला- सखी, आज तुम बहुत परेशान दिख रही हो!
पहली महिला- हाँ! परेशानी की तो बात है ही। शायद तुमने समाचार पत्र को पढ़ा ही नहीं?
दूसरी महिला- नहीं! पर बात क्या है? बताओं तो सही।
पहली महिला- एक दिन की बात हो तो सही, अब प्रतिदिन समाचार पत्र में मुख्य खबर के रूप अपहरण छीना-झपटी, राह चलती महिलाओं के साथ छेड़-छाड़ की घटना भरी हुई होती है। गंदी नजरों से देखना तो आम बात हो गई है।
दूसरी महिला- सही है, इसके लिए निराश होने की आवश्यकता नहीं है। सरकार भी इस संदर्भ में प्रयासरत है। हमें मिलजुलकर इसकी रोकथाम के प्रयास करने की आवश्यकता है।
पहली महिला- केवल प्रयास करने से नहीं होगा अपितु लोगों को जागरूक करना होगा कि वे महिला को सम्मान की नजरों से देखें तथा महिलाओं को सशक्त करना होगा।
पहली महिला- सही कहती हो। चलो! निराशा छोड़ों! सकारात्मक रहो, धन्यवाद!
पिता- बेटा! आज तुम्हारा परीक्षाफल देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ और कामना करता हूँ कि भविष्य में भी तुम ऐसे ही सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ते रहोगे।
बेटा- धन्यवाद पिताजी! यह सब आपके आशीर्वाद और मेहनत का परिणाम है। पिताजी इस बार बहुत से होशियार बच्चे भी, उतना अच्छा परिणाम नहीं दे पाए, जितना कि वे दे सकते थे।
पिता- बेटा ऐसा तो हर साल ही होता है।
बेटा- आजकल परीक्षा को योग्यता जाँचने का माध्यम बना दिया गया है। अंकों को व्यक्ति की बुद्धिमता का मापदण्ड माना जाता है। इसलिए जो विद्यार्थी पढ़कर उत्तीर्ण हो जाते हैं, उन्हें कक्षा में श्रेष्ठ माना जाता है।
पिता- इसी कारण परीक्षा विद्यार्थियों में भय का कारण बन गई है, जिसके कारण बहुत से होनहार छात्र भी परीक्षा में अच्छे अंक नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं।
बेटा- हाँ जी! मुझे लगता है यह नहीं सोचना चाहिए कि जिन विद्यार्थियों को कम अंक मिले हैं, वे योग्य नहीं है। शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं है। शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं हैं। प्रतिदिन के जीवन के लिए सामान्य ज्ञान भी अत्यन्त आवश्यक है।
पिता- शाबाश बेटा! तुम्हारे विचार जानकर मुझे तुम पर गर्व है।
पिता-राहुल बेटा! आज तुम्हारी गणित की परीक्षा कैसी हुई?
राहुल- पिताजी परीक्षा तो अच्छी हुई, परन्तु कुछ प्रश्नों को हल करने में कठिनाई हुई।
पिता- कठिनाई क्यों हुई क्या तुमने उनका अभ्यास भली प्रकार नहीं किया था?
राहुल- पिताजी में उन प्रश्नों को गृहकार्य में करना भूल गया था, अतः परीक्षा की तैयारी करते समय अभ्यास नहीं कर सका।
पिता- राहुल यह बहुत गलत बात है, कल तुम अपना अंग्रेजी का गृहकार्य भी नहीं करके गए थे। तुम्हारे अध्यापक का फोन आया था। वे तुम्हारे इस भुलक्क़ड़ स्वभाव से बहुत परेशान हैं।
राहुल- पिताजी आजकल बैडमिंटन कोचिंग और ट्यूशन क्लास के कारण, विद्यालय का कार्य अधूरा रह जाता है, मुझे माफ कर दीजिए, अब ऐसा नहीं होगा।
पिता- बेटा! जीवन में सफलता उन्हीं की मिलती है, जो हर परिस्थिति में खरे उतरते हैं। तुम्हें ये आखिरी मौका दिया जा रहा है, अब मुझे तुम्हारी और कोई शिकायत नहीं चाहिए।
राहुल- ठीक है पिताजी।
अनुराग- अरे समीर! तुम यहाँ?
समीर- मैं यहाँ इस स्टोर में कुछ सामान वापस करने आया हूँ।
अनुराग- मतलब ! कोई खास चीज?
समीर- अरे यार! क्या बताऊं? मैं यहाँ से दाल ले गया था, इसमें छोटे-छोटे कंकड़ और बिल्कुल सफेद रंग के पत्थरों को इतनी मिलावट है, क्या बताऊं। माँ और बहन कंकड़ पत्थर चुनते-चुनते परेशान हो गई। आखिर में तंग आकर उन्होंने कहा कि दाल के पैकेट को वापस करके आओ।
अनुराग- तुम कहते तो सही हो समीर।
समीर- अभी कुछ दिन पहले गोयल अंकल सरसों का तेल ले गए थे, और उससे बने खाने से घर के सभी सदस्य बीमार पड़ गये। उन्होंने तो तेल की शिकायत पुलिस व खाद्य विभाग दोनों में कर दी।
अनुराग- कल ही मैंने देखा कि बड़ी-बड़ी कंपनियों के सामान में भी मिलावट पाई गई है और त्योहार पर मिठाइयों में बहुत ज्यादा मिलावट कर दी जाती। इससे लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है।
समीर- सरकार को इस विषय में सख्त कानून बनाकर मिलावट करने वाले व्यापारियों पर कार्यवाही करनी चाहिए।
अनुराग- बिल्कुल सही कहा।
नौकर- साहब ! मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।
मालिक- हाँ बोलो ! क्या बात है?
नौकर- साहब ! मेरा वेतन बहुत कम है। जिस कारण मैं अपने परिवार के सदस्यों का पालन-पोषण ठीक प्रकार से नहीं कर पा रहा हूँ।
मालिक- मैं इस विषय पर विचार करूँगा।
नौकर- मैं पूरी ईमानदारी से अपना कार्य करता हूँ, परन्तु मुझे वेतन बहुत कम मिल रहा है। आपसे अनुरोध है कि मेरे वेतन में वृद्धि कीजिए।
मालिक- तुम्हें तुम्हारे कार्य के अनुरूप उचित वेतन मिल रहा है।
नौकर- यदि मेरे वेतन में वृद्धि नहीं होगी, तो मैं विवश होकर यह नौकरी छोड़ दूँगा।
मालिक- ठीक है। मैं अगले महीने से तुम्हारे वेतन में 2000 रुपये बढ़ा दूँगा। तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो और मेहनती भी।
नौकर- धन्यवाद साहब ! आपका बहुत-बहुत आभार।