हर्षिता- मैंने कल अख़बार में एक ऐसी खबर पढ़ी कि हैरान रह गई।
विशाखा- तुम किस समाचार की बात कर रही हो?
हर्षिता- मैंने अख़बार में पढ़ा कि केवल दीपावली की रात को ही इतना प्रदूषण हो जाता है, जितना पूरे वर्ष के दौरान होता है।
विशाखा- क्या तुम सच कह रही हो?
हर्षिता- हाँ! हर दीपावली को ऐसा होता है और इसका कारण है- पटाखे।
विशाखा- पटाखे? मैं भी खूब पटाखे जलाती हूँ और मेरी योजना इस बार भी पटाखे जलाने की है।
हर्षिता- लेकिन, मैंने तय कर लिया है कि इस बार मैं पटाखे नहीं जलाऊँगी।
विशाखा- तुम्हारी बात सुनकर, मैंने भी निश्चय कर लिया है कि मैं भी पटाखे नहीं जलाऊँगी। आखिर अपने पर्यावरण की रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
हर्षिता- हाँ, तुमने बिलकुल ठीक कहा।
विशाखा- हमें यह बात सबको बतानी चाहिए, जिससे प्रदूषण को कम किया जा सके।
हर्षिता- शुभ काम में देर कैसी? चलो।
विशाखा- हाँ, हाँ, चलो।
नीरज- दोस्त, इंटरनेट भी कमाल की तकनीक है।
अनुज- हाँ। आज अगर इंटरनेट न हो, तो हमारे कितने सारे काम रुक जाते है।
नीरज- एक बार इंटरनेट न होने पर मुझे महसूस हुआ कि मैं इंटरनेट के बिना एक दिन भी अपना काम नहीं कर सकता।
अनुज- तुम अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हो, आजकल 70-80% लोग इंटरनेट की सुविधा का भरपूर इस्तेमाल करते है।
नीरज- मैं तुम्हारी बात का समर्थन करता हूँ, आखिर आजकल सारा काम इससे ही होता है, चाहे किसी से बात करनी हो या रेल का टिकट आरक्षित करना हो।
अनुज- (हँसते हुए) तुम इस सूची को तैयार करते-करते थक जाओगे, पर यह पूरी नहीं होगी।
नीरज- सुना है, 4-जी इंटरनेट की गति बहुत तेज होती है। हमारे देश में यह सुविधा आ जाने पर हमें बहुत फायदा होगा।
अनुज- काश ...... यह तकनीक भी जल्द ही आ जाए।
वंदना- प्रेरणा बहन! तुम किधर जा रही हो?
प्रेरणा- क्या बताऊँ? बहन! बिजली कटौती की समस्या ने तो नाक में दम कर रखा है। पिछले कई दिनों से घर से सभी लोगों की नींद पूरी नहीं हो पा रही है।
वंदना- अरे! बिजली की तो पूछो ही मत। यह हाल तो घर-घर का है कि नींद पूरी नहीं होने से आजकल लोग हर समय खीझे-खीझे से रहने लगे हैं। गर्मी भी तो भयंकर पड़ रही है।
प्रेरणा- इसलिए हम लोगों ने सोचा है कि इन्वर्टर खरीद ही लिया जाए, कम-से-कम रात में सभी की नींद तो पूरी होगी।
वंदना- हाँ, बहन! यह तुमने अच्छी सलाह दी है। मैं भी आज अपने घर में इन्वर्टरखरीदने का प्रस्ताव रखूँगी।
प्रेरणा- अभी मैं इन्वर्टरही खरीदने जा रही हूँ। तुम भी चलो, खरीदने से पहले एक बार देख लेना।
वंदना- हाँ! यह ठीक रहेगा। चलो, मैं भी चलती हूँ।
माँ- बेटी! क्या सोच रही हो?
बेटी- माँ! मैं ग्यारहवीं कक्षा में विषय चयन के संबंध में सोच रही हूँ।
माँ- अच्छा, तो फिर बताओ तुमने क्या सोचा है?
बेटी- मैंने सोचा है कि मैं आर्ट्स विषय से ग्यारहवीं करूँ।
माँ- यह तो तुमने बहुत अच्छा सोचा है।
बेटी- हाँ, परंतु मैं इतिहास और अर्थशास्त्र विषय को लेकर दुविधा में हूँ।
माँ- बेटी, जिस विषय में तुम्हारी रुचि हो, तुम उस विषय का चयन करो।
बेटी- माँ! मेरी रुचि तो इतिहास में है, परंतु मेरी सहेली अर्थशास्त्र ले रही है, तो मैं भी अर्थशास्त्र लूँगी।
माँ- नहीं बेटी, ऐसा करना उचित नहीं है, तुम्हें अपनी रुचि को ध्यान में रखते हुए ही विषय चयन करना चाहिए, क्योंकि इस पर तुम्हारा भविष्य निर्भर है।
बेटी- माँ! आपने तो मेरी आँखें खोल दी हैं, अब मैं अपनी रुचि के अनुसार ही विषय का चयन करूँगी।
पहला छात्र- मित्र! आज मैं मुझफ्फरनगर की ओर गया था। वहाँ मैंने जगह-जगह फैली हुए गंदगी देखी।
दूसरा छात्र- हाँ, मित्र! कुछ समय पूर्व मैं भी उस क्षेत्र में गया था। वहाँ जगह-जगह कूड़े-कचरे के ढेर लगे हुए थे, जिन पर मक्खी-मच्छरों का साम्राज्य छाया हुआ था।
पहला छात्र- मित्र, इस तरह की गंदगी और कूड़े के ढेर के कारण लोगों का साँस लेना भी दूभर हो गया है।
दूसरा छात्र- हाँ! इस तरह की गंदगी के कारण संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा भी बना रहता है। यह अत्यंत चिंता का विषय है।
पहला छात्र- हाँ मित्र! तुम सही कह रहे हो। हमें इस गंदगी की समस्या से निपटने के लिए जागरूक होना होगा तथा जगह-जगह कूड़ा फेंकने से बचना होगा।
दूसरा छात्र- हाँ, तुमने बिलकुल सही कहा। इसके साथ-साथ सरकार को भी इस दिशा में कार्य करने होंगे ताकि गंदगी मुक्त स्वच्छ वातावरण लोगों को उपलब्ध हो सके।
अध्यापक- विद्यालय में मोबाइल फोन का प्रयोग क्या सही है? इस विषय पर आपकी क्या राय है?
अभिभावक- इसमें बुराई क्या हैं?
अध्यापक- इसकी सबसे बड़ी बुराई यह है कि यदि विद्यालय में विद्यार्थी मोबाइल फोन लाएँगे, तो वे इसी पर व्यस्त रहेंगे और पढ़ाई पर ध्यान नहीं देंगे।
अभिभावक- अच्छा! फिर क्या मोबाइल फोन विद्यालय में नहीं लाना चाहिए।
अध्यापक- हाँ, विद्यालय में मोबाइल फोन का प्रयोग बिल्कुल नहीं होना चाहिए। मोबाइल बच्चों का ध्यान आकर्षित करके उन्हें पढ़ाई से दूर करता है।
अभिभावक- कह तो आप सही रहे हैं, परंतु आजकल बच्चे मानते कहाँ हैं? उन्हें तो हर समय फोन चाहिए होता है।
अध्यापक- बच्चों को प्रेमपूर्वक समझाया जा सकता है कि उन्हें विद्यालय पढ़ने के लिए भेजा जाता है। अतः पढ़ाई के समय मोबाइल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
अभिभावक- आपकी बात सही है। मैं आज बच्चों को यह बात समझाऊँगा कि वे विद्यालय में मोबाइल फोन न लेकर जाएँ ताकि उनकी पढ़ाई में कोई बाधा उत्पन्न न हो।
रमेश- मित्र! तुम्हें पता है प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान कितना सफल रहा है?
कमल- हाँ मित्र, आज पूरे भारत में स्वच्छ्ता को प्रमुखता दी जा रही है।
रमेश- बिलकुल! इस अभियान में बच्चे-बूढ़े सभी ने मिलकर अपने-अपने स्तर पर सराहनीय कार्य किया है।
कमल- हाँ मित्र तभी तो यह एक सफल अभियान बन पाया है।
रमेश- तुम्हें पता है स्वयं प्रधानमंत्री जी ने यह बात कही कि मैं इस अभियान की सफलता के लिए 'टीम इंडिया' (पूरे भारतवर्ष) का धन्यवाद देता हूँ।
कमल- सच में मित्र स्वच्छ भारत का सपना इस अभियान द्वारा ही संभव होता दिखाई दे रहा है।
रमेश- हाँ, हम सभी को भारत को स्वच्छ बनाने में अपना योगदान देना चाहिए ताकि भारत पूरे विश्व में एक अनोखी पहचान बनाने में सफल हो सके।
कमल- बिल्कुल सही कहा मित्र, इस सब भारतवासी मिलकर इस लक्ष्य को शीघ्र ही प्राप्त कर लेंगे।
पिता- पुत्र! तुम मोटरसाइकिल बहुत तेज चलाते हो। कॉलेज जाते समय तुम्हें मोटरसाईकिल चलाता हुआ देखकर मुझे डर लगता है।
पुत्र- अरे पापा ! इसमें डरने की क्या बात है?
पिता- लगता है आजकल तुम समाचार नहीं देखते या सुनते हो। तुम्हें पता है सुबह के समय ही अधिक दुर्घटनाएँ होती हैं।
पुत्र- हाँ मैंने सुना था।
पापा- तेज गति से वाहन चलाने और यातायात के नियमों का पालन न करने के कारण अधिक दुर्घटनाएँ होती है।
पुत्र- हाँ पापा आप ठीक कहते हो। मुझे भी इस बारे में सतर्क रहना चाहिए।
पिता- आगे से इस बात का जरूर ध्यान रखना कि सड़क पर कभी भी तेज मोटरसाईकिल मत चलाना।
पुत्र- ठीक है पापा!