संस्कृत की तत्सम संज्ञाओं के अन्त में तद्धित-प्रत्यय लगाने से भाववाचक, अपत्यावाचक (नामवाचक) और गुणवाचक विशेषण बनते हैं।
अब इन प्रत्ययों द्वारा विभित्र वाचक संज्ञाओं और विशेषणों से विभित्र वाचक संज्ञाओं और विशेषणों के निर्माण इस प्रकार हैं-
जातिवाचक से भाववाचक संज्ञाएँ- संस्कृत की तत्सम जातिवाचक संज्ञाओं के अन्त में तद्धित प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। इसके उदाहरण इस प्रकार है-
तद्धित प्रत्यय | संज्ञा | भाववाचक संज्ञा |
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ता | शत्रु | शत्रुता |
ता | वीर | वीरता |
त्व | गुरु | गुरुत्व |
त्व | मनुष्य | मनुष्यत्व |
अ | मुनि | मौन |
य | पण्डित | पाण्डित्य |
इमा | रक्त | रक्तिमा |
व्यक्तिवाचक से अपत्यवाचक संज्ञाएँ- अपत्यवाचक संज्ञाएँ किसी नाम के अन्त में तद्धित-प्रत्यय जोड़ने से बनती हैं। अपत्यवाचक संज्ञाओं के कुछ उदाहरण ये हैं-
तद्धित-प्रत्यय | व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ | अपत्यवाचक संज्ञाएँ |
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अ | वसुदेव | वासुदेव |
अ | मनु | मानव |
अ | कुरु | कौरव |
अ | पृथा | पार्थ |
अ | पाण्डु | पाण्डव |
य | दिति | दैत्य |
आयन | बदर | बादरायण |
एय | राधा | राधेय |
एय | कुन्ती | कौन्तेय |
विशेषण से भाववाचक संज्ञाएँ- विशेषण के अन्त में संस्कृत के निम्नलिखित तद्धित-प्रत्ययों के मेल से निम्नलिखित भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं-
तद्धित-प्रत्यय | विशेषण | भाववाचक संज्ञाएँ |
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ता | बुद्धिमान् | बुद्धिमत्ता |
ता | मूर्ख | मूर्खता |
ता | शिष्ट | शिष्टता |
इमा | रक्त | रक्तिमा |
इमा | शुक्ल | शुक्लिमा |
त्व | वीर | वीरत्व |
त्व | लघु | लघुत्व |
अ | गुरु | गौरव |
अ | लघु | लाघव |
संज्ञा से विशेषण- संज्ञाओं के अन्त में संस्कृत के गुण, भाव या सम्बन्ध के वाचक तद्धित-प्रत्ययों को जोड़कर विशेषण भी बनते हैं। उदाहरणार्थ-
प्रत्यय | संज्ञा | विशेषण |
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अ | निशा | नैश |
य | तालु | तालव्य |
य | ग्राम | ग्राम्य |
इक | मुख | मौखिक |
इक | लोक | लौकिक |
मय | आनन्द | आनन्दमय |
मय | दया | दयामय |
इत | आनन्द | आनन्दित |
इत | फल | फलित |
इष्ठ | बल | बलिष्ठ |
निष्ठ | कर्म | कर्मनिष्ठ |
र | मुख | मुखर |
र | मधु | मधुर |
इम | रक्त | रक्तिम |
ईन | कुल | कुलीन |
ल | मांस | मांसल |
वी | मेधा | मेधावी |
इल | तन्द्रा | तन्द्रिल |
लु | तन्द्रा | तन्द्रालु |
बहुतेरे उर्दू शब्द हिंदी में प्रयुक्त होते है। ये शब्द ये फारसी, अरबी, और तुर्की के है।
फारसी तद्धित-प्रत्यय के तीन प्रकार होते है-
(i)संज्ञात्मक (ii) विशेषणात्मक (iii) अरबी तद्धित-प्रत्यय
प्रत्यय | मूलशब्द | सपरतीय शब्द | वाचक |
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आ | सफेद | सफेदा | भाववाचक |
आ | खराब | खराबा | भाववाचक |
कार | काश्त | काश्तकार | कतृवाचक |
गार | मदद | मददगार | कतृवाचक |
ईचा | बाग | बगीचा | स्थितिवाचक |
दान | कलम | कलमदान | स्थितिवाचक |
प्रत्यय | मूलशब्द | सपरतीय शब्द | प्रत्ययार्थ |
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आना | मर्द | मर्दाना | स्वभाव |
इन्दा | शर्म | शर्मिन्दा | संज्ञा |
नाक | दर्द | दर्दनाक | गुण |
ई | आसमान | आसमानी | विशेषण |
ईना | कम | कमीन | उनार्थ |
ईना | माह | महीना | संज्ञा |
जादा | हराम | हरामजादा | अपत्य |
प्रत्यय | मूलशब्द | सपरतीय शब्द | वाचक |
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आनी | जिस्म | जिस्मानी | विशेषण |
इयत | इंसान | इंसानियत | भाव |
म | बेग | बेगम | स्त्री |
कृत् और तद्धित प्रत्ययों में अंतर यह है कि कृत् प्रत्यय धातुओं में लगते हैं, जबकि तद्धित प्रत्यय धातुभित्र शब्दों के साथ लगाये जाते हैं।