मुँह में राम बगल में छुरी= (बाहर से मित्रता पर भीतर से बैर)
प्रयोग- सुरभि और प्रतिभा दोनों आपस में अच्छी सहेलियाँ बनती हैं, परंतु मौका पाते ही एक-दूसरे की बुराई करना शुरू कर देती हैं।
यह तो वही बात हुई- मुँह में राम बगल में छुरी।
मान न मान मैं तेरा मेहामन= (जबरदस्ती किसी के गले पड़ना)
प्रयोग- जब एक अजनबी जबरदस्ती रामू से आत्मीयता
दिखाने लगा तो रामू बोला- 'मान न मान मैं तेरा मेहामन'।
मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी= (जब दो व्यक्ति आपस में मिल जाएँ जो किसी अन्य के दखल देने
की जरूरत नहीं होती)
प्रयोग-
यदि राजू रामू से संतुष्ट रहेगा तो कोई कुछ नहीं कहेगा। कहावत है न- 'मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी'?
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत= (भारी से भारी विपत्ति पड़ने पर भी साहस नहीं छोड़ना चाहिए)
प्रयोग-
रमा बहन! 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत'। तुम अपने मन को दृढ़ करो।
मन चंगा तो कठौती में गंगा= (यदि मन शुद्ध हो तो तीर्थाटन का फल घर में ही मिल सकता है।)
प्रयोग-
रामू काका कभी गंगा नहाने नहीं जाते, वह हमेशा सबकी मदद करते रहते हैं। ठीक ही कहते है- 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'।
मरता क्या न करता= (विपत्ति में फंसा हुआ मनुष्य अनुचित काम करने को भी तैयार हो जाता है।)
प्रयोग-
जब मैनेजर ने रामू की छुट्टी स्वीकार नहीं की तो उसने उसे मारने की धमकी दे दी। भाई, 'मरता क्या न करता'।
माया गंठ और विद्या कंठ= (गाँठ का रुपया और कंठस्थ विद्या ही काम आती है।)
प्रयोग-
रामू की गाँठ का रुपया गया तो क्या हुआ, वह अपने ज्ञान से बहुत कमा लेगा। कहावत भी है- 'माया गंठ और विद्या कंठ'।
मारे और रोने न दे= (बलवान आदमी के आगे निर्बल का वश नहीं चलता)
प्रयोग-
शेरसिंह सबको डाँटता रहता है और किसी को बोलने भी नहीं देता। ये तो वही बात हुई- 'मारे और रोने न दे'।
मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त= (जिसका काम हो, वह सुस्त हो और दूसरे उसका ख्याल रखें)
प्रयोग-
रामू तो अपने काम की परवाह ही नहीं करता, उसके काम का तो दूसरे ही ख्याल रखते हैं- यहाँ तो 'मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त' वाली बात है।
मुफ़लिसी में आटा गीला= (दुःख पर और दुःख आना)
प्रयोग-
एक तो रोजगार छूटा, दूसरे बच्चे भी बीमार पड़ गए- 'मुफ़लिसी में आटा गीला' हो गया।
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक= (जहाँ तक किसी मनुष्य की पहुँच होती है, वह वहीं तक जाता है।)
प्रयोग- घर में अगर कोई लड़ाई-झगड़ा हो जाता है तो रामू सीधा दादाजी के पास जाता है। सब यही कहते हैं कि रामू
की 'मुल्ला की दौड़
मस्जिद तक' है।
मुर्दे पर जैसे सौ मन मिट्टी वैसे सवा सौ मन मिट्टी= (बड़ी हानि हो तो उसी के साथ थोड़ी और हानि भी सह ली जाती है।)
प्रयोग-
अपना तो अब वही हाल था- 'मुर्दे पर जैसे सौ मन मिट्टी वैसे सवा सौ मन मिट्टी'।
मेरी ही बिल्ली और मुझी से म्याऊँ= (जिसके आश्रय में रहे, उसी को आँख दिखाना)
प्रयोग-
मेरा नौकर रामू मुझको ही आँख दिखाने लगा- 'मेरी ही बिल्ली और मुझी से म्याऊँ'।
मेरे मन कछु और है, दाता के कछु और= (किसी की आकांक्षाएँ सदैव पूरी नहीं होती)
प्रयोग-
मैंने सोचा था कि बी.एड. करके अध्यापक बनूँगा, लेकिन बन गया संपादक; यह कहावत सही है- 'मेरे मन कछु और है,
दाता के कछु और'।
मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते= (माँगी हुई वस्तु में कमी नहीं देखना चाहिए)
प्रयोग- सुशील अपने दोस्त की मोटरसाइकिल माँग कर लाया तो लगा मोटरसाइकिल में नुस्ख निकालने। मैंने कहा
कि भैया मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते। अगर मोटरसाइकिल बेकार है तो जाकर वापस कर दो और ले आओ खरीदकर नई।
महँगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार= (महँगी वस्तु केवल खरीदते समय कष्ट देती है पर सस्ती चीज हमेशा कष्ट देती है)
प्रयोग- शर्मा जी न जाने कहाँ से कोई लोकल कूलर खरीद लाए हैं। जिस दिन से खरीदा है रोज उसमें कुछ-न-कुछ हो जाता है।
मैंने उन्हें समझाया था कि अच्छी कंपनी का खरीदना पर नहीं माने। अब दुखी होते फिर रहे हैं। सच ही कहा गया है कि महँगा रोए
एक बार, सस्ता रोए बार-बार।
माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता= (काम, सीखने से ही आता है)
प्रयोग- तुम इस बच्चे को इतना डाँटते क्यों हो? यदि उसे काम नहीं आता तो सिखाओ। तुम्हें भी तो किसी
ने सिखाया ही होगा। माँ के पेट से कोई सीख कर नहीं आता।
माया को माया मिले, कर-कर लंबे हाथ= (धन ही धन को खींचता है)
प्रयोग- सेठ हंसराज करोड़पति आसामी हैं अपने पैसे के बल पर वे एक ओर जमीनें खरीदते हैं तो दूसरी
ओर फ्लैट बना बनाकर बेचते हैं। सच ही कहा गया है कि 'माया को माया मिले, कर-कर लंबे हाथ'।
माने तो देवता, नहीं तो पत्थर= (विश्वास में सब कुछ होता है)
प्रयोग- मेरा तो विश्वास है कि प्राणायाम समस्त रोगों का निदान है अतः मैं रोज प्राणायाम करता हूँ पर मेरा भाई
मेरी धारणा के विपरीत है। ठीक है माने तो देवता नहीं तो पत्थर वाली उक्ति यहाँ साबित होती है।
मार के डर से भूत भागते हैं= (मार से सब डरते हैं)
प्रयोग- पुलिस ने जब उस भिखारी पर डंडे बरसाए तो तुरंत कबूल गया कि चोरी उसी ने की थी। भैया मार
से तो भूत भागते हैं, अगर न कबूलता तो पुलिस उसे छोड़नेवाली नहीं थी।
मियाँ की जूती मियाँ का सिर= (जब अपनी ही चीज अपना नुकसान करे)
प्रयोग- सुरेश ने एक घड़ी खरीदी तो उसे लगा कि दुकानदार ने उसे ठग लिया है। सुरेश ने जब यह घटना मुझे बताई तो मैंने उस घड़ी का डायल बदल दिया और सुंदर-सी पैकिंग में ले जाकर उसी दुकानदार को दुगुनी कीमत में बेच दिया। इसे कहते हैं- मियाँ की जूती मियाँ का सिर।
मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है= (मनुष्य को अपने नाती-पोते अपने बेटे-बेटियों से अधिक प्रिय होते हैं)
प्रयोग- सेठ अमरनाथ ने अपने बेटे के पालन-पोषण पर उतना खर्च नहीं किया जितना अपने पोते पर करता है।
सच ही कहा गया है कि मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है।
मोको और न तोको ठौर= (हम दोनों की एक-दूसरे के बिना गति नहीं)
प्रयोग-
अरे बंधु, हमलोगों में चाहे जितना झगड़ा हो जाए पर हम लोग कभी एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। इसलिए
अब कभी झगड़ा नहीं करेंगे क्योंकि मोको और न तोको ठौर।
मेढक को भी जुकाम= (ओछे का इतराना)
मार-मार कर हकीम बनाना= (जबरदस्ती आगे बढ़ाना)
माले मुफ्त दिले बेरहम= (मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना)
मोहरों की लूट, कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना)
यह मुँह और मसूर की दाल= (जब कोई अपनी हैसियत से अधिक पाने की इच्छा करता है तब ऐसा कहते हैं।)
प्रयोग-
सोहन कहने लगा कि मैं तो सिल्क का सूट बनवाऊँगा। मैंने कहा- जरा आईना देख आओ- 'यह मुँह और मसूर की दाल'।
यहाँ परिन्दा भी पर नहीं मार सकता= (जहाँ कोई आ-जा न सके)
प्रयोग-
मेरे ऑफिस में इतना सख्त पहरा है कि यहाँ कोई परिन्दा भी पर नहीं मार सकता।
यथा राजा, तथा प्रजाा= (जैसा स्वामी वैसा ही सेवक)
प्रयोग- जिस गाँव का मुखिया ही भ्रष्ट और पाखंडी हो उस गाँव के लोग भले कैसे हो सकते हैं। वे भी वही सब
करते हैं जो उनका मुखिया करता है। किसी ने ठीक ही तो कहा है कि यथा राजा, तथा प्रजा।
रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी= (बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना)
प्रयोग- लड़की घर से भाग गई, बेटा स्कूल से निकाल दिया गया, लेकिन मिसेज बक्शी के तेवर अभी भी
नहीं बदले। यह तो वही बात हुई- रस्सी जल
गयी पर ऐंठन न गयी।
रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी= (कारण का नाश कर देना)
प्रयोग-
गाँव को डाकुओं के चंगुल से मुक्त कराने के लिए गाँव वालों ने मिल कर उन डाकुओं को मारने की योजना
बनाई- 'रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी'।
रात छोटी कहानी लम्बी= (समय थोड़ा है और काम बहुत है।)
प्रयोग-
जीवन छोटा है और काम बहुत हैं। किसी ने ठीक ही कहा है- 'रात छोटी कहानी लम्बी' है।
राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढी= (दो मनुष्यों के एक ही तरह का होना)
प्रयोग-
राम और श्याम की अच्छी जोड़ी मिली है। दोनों महामूर्ख हैं। 'राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढी'।
राम राम जपना, पराया माल अपना= (ढोंगी मनुष्य; दूसरों का माल हड़पने वाले)
प्रयोग-
वह साधु नहीं कपटी और छली है। इसका तो एक ही काम है- 'राम राम जपना, पराया माल अपना'।
रात गई, बात गई= (अवसर निकल जाना)
प्रयोग- नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भेजने की तिथि तो निकल गई अब तुम फॉर्म क्यों खरीदना चाहते हो? अब तो रात गई, बात गई।
रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना= (नित्य कमाना और नित्य खाना)
प्रयोग- हमलोग तो रोज कुआँ खोदते है, रोज पानी पीते हैं इसलिए ज्यादा हायतोबा नहीं करते। जो मिल जाता है उसी में संतुष्ट रहते हैं।
रोजा बख्शवाने गए थे, नमाज गले पड़ गई= (छोटे काम से जान छुड़ाने के बदले बड़ा काम गले पड़ जाना)
प्रयोग- मल्लिका प्रिंसिपल के पास आधे दिन की छुट्टी की अनुमति माँगने गई थी पर इससे पहले वह अपनी
बात कहती प्रिंसिपल ने उसे शाम के फंक्शन तक ठहरने के आदेश दे दिए। मल्लिका प्रिंसिपल से कुछ न कह पाई।
इसे कहते हैं गए तो थे रोजा बख्शवाने पर नमाज गले पड़ गई।
रोटी खाइए शक़्कर से, दुनिया ठगिए मक्कर से= (आजकल फ़रेबी लोग ही मौज उड़ाते हैं)
प्रयोग- सुरेंद्र दिन रात परिश्रम करता है तो भी उसका गुजारा नहीं चल पाता और दूसरी ओर
उसके छोटे भाई को देखो, गलत-सलत धंधे करता है करता है। आजकल ऐसे ही लोगों का जमाना है
और ऐसे ही लोगों के लिए यह कहावत प्रचलित है कि 'रोटी खाइए शक़्कर से और दुनिया ठगिए मक्कर से'।
रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी= (अधिक मजाक बुरा)
लकड़ी के बल बंदरी नाचे= (शरारती से शरारती या दुष्ट लोग भी डंडे के भय से वश में आ जाते हैं।)
प्रयोग-
संजू बहुत शरारती है, पर जब अध्यापक के हाथ में बेंत होता है तो वह जैसा कहते हैं संजू वैसे करने लगता है। ठीक
ही कहते हैं- लकड़ी के बल बंदरी नाचे।
लकीर के फकीर= (पुरानी परम्पराओं और रीति-रिवाजों का पालन करने वाला)
प्रयोग-
कबीरदास 'लकीर के फकीर' नहीं थे तभी तो उन्होंने आध्यात्मिक उन्नति के नए मार्ग का अन्वेषण किया था।
लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का= (काम बन जाए तो अच्छा है, नहीं बने तो कोई बात नहीं)
प्रयोग-
देखा-देखी रहीम ने भी आज लॉटरी खरीद ही ली। 'लगा तो तीर, नहीं तो तुक्का'।
लाख जाए, पर साख न जाए= (धन व्यय हो जाए तो कोई बात नहीं, पर सम्मान बना रहना चाहिए)
प्रयोग-
विवेक बात का पक्का है, उसका एक ही सिद्धांत है- 'लाख जाए, पर साख न जाए'।
लाठी टूटे न साँप मरे= (किसी की हानि हुए बिना स्वार्थ सिद्ध हो जाना)
प्रयोग-
रामू काका किसी को हानि पहुँचाए बगैर काम करना चाहते हैं- 'लाठी टूटे न साँप मरे'।
लातों के भूत बातों से नहीं मानते= (दुष्ट प्रकृति के लोग समझाने से नहीं मानते)
प्रयोग-
मैंने रामू के साथ भलमनसी का बर्ताव किया, पर वह नहीं माना। ठीक ही है- 'लातों के भूत बातों से नहीं मानते'।
लाल गुदड़ी में नहीं छिपता= (मेधावी लोग दीन-हीन अवस्था में भी प्रकट हो जाते हैं।)
प्रयोग-
रामू बड़ा ही दीन बालक था। किन्तु उसके अध्यापक ने उसे शीघ्र पहचान लिया कि यह बड़ा होनहार बालक है।
ठीक ही है- 'लाल गुदड़ी में नहीं छिपता'।
लालच बुरी बला= (लालच से बहुत हानि होती है इसलिए हमें कभी लालच नहीं करना चाहिए)
प्रयोग-
सब जानते हैं कि लालच बुरी बला है, फिर भी लालच में पड़ जाते हैं।
लेना एक न देना दो= (किसी से कुछ मतलब न रखना)
प्रयोग-
तरुण तो अपने काम से काम रखता है- 'लेना एक न देना दो'।
लोभी गुरु और लालची चेला, दोऊ नरक में ठेलम ठेला= (लालच बहुत बुरी चीज है)
प्रयोग-
केशव और मनोज दोनों लालची हैं, इसी से दोनों में लड़ाई-झगड़ा बना रहता है। कहावत प्रसिद्ध है- 'लोभी गुरु और लालची चेला,
दोऊ नरक में ठेलम ठेला'।
लोहे को लोहा ही काटता है= (दुष्ट का नाश दुष्ट ही करता है।)
प्रयोग-
मैंने सोचा कि 'लोहे को लोहा ही काटता है' इसलिए कालू बदमाश को ठीक करने के लिए मैंने चुन्नू बदमाश की सेवाएँ प्राप्त कीं।
लश्कर में ऊँट बदनाम= (दोष किसी का, बदनामी किसी की)
लूट में चरखा नफा= (मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा)
लेना-देना साढ़े बाईस= (सिर्फ मोल-तोल करना)
वक्त पड़े बांका, तो गधे को कहै काका= (विपत्ति पड़ने पर हमें कभी-कभी छोटे लोगों की भी खुशामद
करनी पड़ती है।)
प्रयोग- मैं उस जैसे स्वार्थी मनुष्य की कभी खुशामद न करता परन्तु मैं विवश था। कहावत है- 'वक्त पड़े बांका,
तो गधे को कहै काका'।
वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे= (आनन्द अथवा उत्कर्ष का समय समाप्त होना)
प्रयोग-
जब मालिक नहीं थे तो रमेश ने खूब मौज उड़ाई। अब जब मालिक आ गए हैं तो उनकी सारी मौज खत्म हो गई।
तब रामू बोला कि वह दिन गए जब खलील खां फाख्ता उड़ाते थे।
वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है= (बुद्धिमान से बुद्धिमान मनुष्य भी शक्की आदमी को ठीक
नहीं कर सकता)
प्रयोग-
रामू को प्रेत तंग करता है। मैंने हर प्रकार का प्रयास किया कि उसके इस संदेह का निराकरण कर दूं। पर मुझे
सफलता न मिली। सच ही है- 'वहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है'।
वही ढाक के तीन पात= (जब किसी की अवस्था ज्यों की त्यों बनी रहे, उसमें कोई सुधार न हो)
प्रयोग-
मुझे जीवन में बड़ी-बड़ी आशायें थीं। परन्तु तीस वर्ष नौकरी करने के बाद आज भी मैं गरीब ही हूँ जैसा पहले था-
'वही ढाक के तीन पात'।
विनाशकाले विपरीत बुद्धि= (विपत्ति पड़ने पर बुद्धि का काम न करना)
प्रयोग-
विनाश के समय रावण की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। ठीक ही कहा है- 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि'।
विपत्ति कभी अकेली नहीं आती= (मनुष्य के ऊपर विपत्तियाँ एक साथ आती हैं।)
प्रयोग-
पिता की मृत्यु, छोटी बहन की बीमारी और स्वयं अपने दुर्भाग्य ने रामू को बुरी तरह झकझोर दिया था। कहते
भी हैं- 'विपत्ति कभी अकेली नहीं आती'।
विष की कीड़ा विष ही में सुख मानता है= (बुरे को बुराई और पापी को पाप ही अच्छा लगता है।)
प्रयोग-
कालू से शराब छोड़ने के लिए सबने कहा, पर वह नहीं मानता। सही बात है- ' विष की कीड़ा विष ही में सुख मानता है'।
शठे शाठ्यमाचरेत्= (दुष्टों के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए)
प्रयोग-
राजू ने एक गुंडे के साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह उसे कमजोर समझकर झगड़ने लगा। किसी ने ठीक ही कहा है- 'शठे शाठ्यमाचरेत्'।
शर्म की बहू नित भूखी मरे= (जो खाने-पीने में शर्माता है, वह भूखा मरता है।)
प्रयोग-
गौरव ने कहा कि खाने-पीने में काहे की शर्म। भूखे थोड़े ही मरना है। आपने सुना नहीं- 'शर्म की बहू नित भूखी मरे'।
शक़्कर खोरे को शक़्कर और मूँजी को टक्कर= (जो जिस योग्य होता है, उसे वैसा ही मिल जाता है)
प्रयोग-
शर्मा जी का बेटा यहाँ रहकर गलत सोहबत में पड़कर शराब पीने लगा था। शर्मा जी ने उसे मुंबई होस्टल में भेज दिया
जिससे कि उसकी बुरी संगत छूट जाए पर हुआ यह कि वहाँ जाकर भी उसे वैसे ही दोस्त मिल गए। इसे कहते हैं शक़्कर खोरे
को शक़्कर और मूँजी को टक्करहर जगह मिल जाती है।
शुभस्य शीघ्रम्= (शुभ काम को जल्द कर लेना चाहिए)
प्रयोग-
शर्माजी ने कहा कि नए मकान में जाने में अब देरी नहीं करनी चाहिए। कहते भी हैं- 'शुभस्य शीघ्रम्'।
शेर का बच्चा शेर ही होता है= (वीर व्यक्ति का पुत्र वीर ही होता है।)
प्रयोग-
पं. मोतीलाल नेहरू जैसे बुद्धिमान और देशभक्त के पुत्र पं. जवाहरलाल नेहरू हुए। सच ही कहते हैं-'शेर का बच्चा शेर ही होता है'।
शेर भूखा रहता है पर घास नहीं खाता= (सज्जन लोग कष्ट पड़ने पर भी नीच कर्म नहीं करते)
प्रयोग-
श्रीरामचंद्र जी पर कितने कष्ट पड़े, पर उन्होंने अपनी मर्यादा नहीं छोड़ी थी। ये कहावत ठीक ही है- 'शेर भूखा रहता है पर घास नहीं खाता'।
साँच को आँच नहीं= (जो मनुष्य सच्चा होता है, उसे डर नहीं होता)
प्रयोग- मुकेश, जब तुमने गलती की ही नहीं है, तो फिर डर क्यों रहे हो ? चलो सब कुछ सच-सच बता दो,
क्योंकि साँच को आँच नहीं होती।
साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे= (आसानी से काम हो जाना)
प्रयोग- ठेकेदार और जमींदार के झगड़े में पंच को ऐसा फैसला सुनाना चाहिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता= (सीधेपन से काम नहीं चलता)
प्रयोग-
हमने राजी-वाजी से काम निकालना चाहा, पर ठीक ही कहते हैं- 'सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता'।
सौ सुनार की, एक लुहार की= (कमजोर आदमी की सौ चोट और बलवान व्यक्ति की एक चोट बराबर होती है।)
प्रयोग-
सौरभ बड़ी देर से कौशल की पीठ पर थप्पड़ मार रहा था। अंत में किशन ने उसको जोर से एक घूँसा मार दिया तो सौरभ कराहने लगा।
ठीक ही है- 'सौ सुनार की, एक लुहार की'।
सौ-सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली= (जीवनभर कुकर्म करके अंत में धर्म-कर्म करना)
प्रयोग-
मनोज ने सारा जीवन तो दुष्कर्म में व्यतीत किया। अब वह बूढ़ा हुआ तो तीर्थ-यात्रा करने निकला। यह देखकर उसके पड़ोसी
ने कहा- 'सौ-सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली'।
संतोषी सदा सुखी= (संतोष रखने वाला व्यक्ति सदा सुखी रहता है।)
प्रयोग-
रमेश ज्यादा हाय-तौबा नहीं करता इसलिए हमेशा सुखी रहता है। ठीक ही कहते हैं- 'संतोषी सदा सुखी'।
सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुँह काला= (सच्चे आदमी को सदा यश और झूठे को अपयश मिलता है।)
प्रयोग-
आदमी को कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुँह काला होता है।
सत्तर (या नौ सौ) चूहे खाकर बिल्ली हज को चली= (जब कोई पूरे जीवन पाप करके पीछे पुण्य करने लगता है।)
प्रयोग-
पूरी जिंदगी वह चोरी करता रहा और अब धर्मात्मा बन रहा है- 'सत्तर (या नौ सौ) चूहे खाकर बिल्ली हज को चली'।
सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं= (एक पिता के पुत्र या मित्र आदि की राय एक-सी होना)
प्रयोग-
मजदूरों को मालिकों के मैनेजरों से यह आशा नहीं करनी चाहिए कि वे मजदूरों का कुछ भला करेंगे, क्योंकि मालिक और
उनके मैनेजर सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।
सबसे भली चुप= (चुप रहना अच्छा होता है।)
प्रयोग-
एक आदमी रामू को बेबात गालियाँ बक रहा था, तो रामू ने सोचा कि इस पागल आदमी से उलझना बेकार है- 'सबसे भली चुप'।
सबसे भले मूसलचंद, करें न खेती भरें न दंड= (मुफ्तखोर लोग सबसे मजे में रहते हैं, क्योंकि उन्हें किसी बात की चिन्ता
नहीं रहती)
प्रयोग-
कर्मचंद तो पूरे मुफ्तखोर हैं- 'सबसे भले मूसलचंद, करें न खेती भरें न दंड'।
सब्र का फल मीठा होता है= (सब्र करने से बहुत लाभ होता है।)
प्रयोग-
अध्यापक ने छात्र को समझाया कि सब्र का फल मीठा होता है। वह बस मन लगाकर पढ़ाई करे।
सभी जो चमकता है, सोना नहीं होता= (जो ऊपर से आकर्षक और अच्छा मालूम होता है, वह हमेशा अच्छा नहीं होता)
प्रयोग-
सच ही कहते हैं- 'सभी जो चमकता है, सोना नहीं होता'। मैं जिस व्यक्ति को विनम्रता की मूर्ति समझा था, वह इतना दुष्ट
होगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
सयाना कौआ गलीज खाता है= (चालाक लोग बुरी तरह से धोखा खाते हैं।)
प्रयोग-
राजू बहुत चालाक था इसलिए ऐसे लोगों के चक्कर में फंस गया कि अब उसे पैसे भी ज्यादा देने पड़े और गाड़ी भी अच्छी नहीं मिली,
इसलिए कहते हैं- 'सयाना कौआ गलीज खाता है'।
सस्ता रोवे बार-बार, महँगा रोवे एक बार= (बार-बार सस्ती चीज की मरम्मत करानी पड़ती है, परन्तु महंगी चीज खरीदने पर ऐसा नहीं
करना पड़ता)
प्रयोग-
सोहन सस्ता टेबल-फैन खरीद लाया तो वह दो दिन में ही खराब हो गया। अब वह पछता रहा है, महंगा लेता तो ऐसा नहीं होता।
ठीक ही है- 'सस्ता रोवे बार-बार, महँगा रोवे एक बार'।
साँप का बच्चा सपोलिया= (शत्रु का पुत्र शत्रु ही होता है।)
प्रयोग-
मोहन की कालू से शत्रुता थी। उसके मरने के बाद कालू का बेटा भी शत्रुता करने लगा। ठीक ही है- 'साँप का बच्चा सपोलिया'।
साँप निकल गया, लकीर पीटने से क्या लाभ= (यदि आदमी अवसर पर चूक जाए तो बाद में उसे पछताना पड़ता है।)
प्रयोग-
जब डाकू बैंक लूटकर ले गए तब पुलिस पहुँचकर, वहाँ पूछताछ करने लगी तो एक आदमी ने कहा- 'साँप निकल गया है,
अब लकीर पीटने से क्या लाभ है'।
सात पाँच की लाकड़ी, एक जने का बोझ= (एकता में बहुत शक्ति होती है।)
प्रयोग-
केशव के पाँच भाई थे, जब वे साथ रहते तो एक-दूसरे का दुःख बाँट लेते थे, लेकिन वे जब से अलग हुए हैं उनका
जीना दूभर हो गया है। ठीक ही कहते हैं- 'सात पाँच की लाकड़ी, एक जने का बोझ'।
सावन के अंधे को हरा-ही-हरा सूझता है= (अमीर या सुखी व्यक्ति समझता है कि सब लोग आनन्द में हैं।)
प्रयोग-
लॉटरी खुलने से संजू अमीर हो गया तो वह अपने गरीब दोस्त से अच्छे कपड़े पहनने की बात करने लगा। सच ही कहा है- 'सावन के
अंधे को हरा-ही-हरा सूझता है'।
सावन सूखा न भादों हरा= (सदा एक ही दशा में रहने वाला)
प्रयोग-
सक्सेना जी इतने अमीर हैं, फिर भी मोटे नहीं होते, सदा एक से रहते हैं- 'सावन सूखा न भादों हरे'।
सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े= (किसी कार्य का श्रीगणेश करते ही उसमें विघ्न पड़ना)
प्रयोग-
रामू ने जैसे ही लकड़ी का बूथ बनाकर पान की दुकान खोली वैसे ही नगर निगम वालों ने सड़क के किनारे बूथों को हटाने का आदेश दे दिया।
ये तो वही बात हुई- 'सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ गए'।
सुनिए सबकी, कीजिए मन की= (बातें तो सबकी सुन लेनी चाहिए, पर जो अच्छा लगे, उसी के अनुसार काम करना चाहिए।)
प्रयोग-
रामू सुनता तो सबकी है, पर करता अपने मन की है। ठीक बात है- 'सुनिए सबकी, कीजिए मन की'।
सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते= (यदि कोई व्यक्ति शुरू में गलती करे और बाद में सुधर जाए
तो उसकी गलती क्षमा योग्य होती है।)
प्रयोग-
राजू ने शिक्षक के समझाने पर सिगरेट पीनी छोड़ दी तो सब यही कहने लगे- 'सुबह का भूला शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहते'।
सूरा सो पूरा= (बहादुर या साहसी लोग सब कुछ कर सकते हैं।)
प्रयोग-
रामू के पिता ने कहा कि यदि वह साहस न छोड़ेगा तो कठिन से कठिन काम कर डालेगा। कहावत भी है- 'सूरा सो पूरा'।
सेर को सवा सेर= (बहुत बुद्धिमान या बलवान को उससे भी बुद्धिमान या बलवान आदमी मिल जाता है।)
प्रयोग-
रामू काका जोर से हँस पड़े और मुझसे बोले- कहो बेटा, मिल गया न 'सेर को सवा सेर'।
सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का= (जब किसी का कोई मित्र या संबंधी उच्च पद पर हो तो उससे लाभ मिलने
की संभावना होती है।)
प्रयोग-
जब से कालू के पिता विधायक का चुनाव जीते हैं तब से वह सब पर अकड़ने लगा है। ठीक बात है- 'सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का'।
सोने पे सुहागा= (किसी वस्तु या व्यक्ति का और बेहतर होना)
प्रयोग-
इधर राजेश ने इंटर पास की और उधर वह मेडीकल प्रवेश परीक्षा में पास हो गया। ये तो सोने पे सुहागा है।
सोवेगा तो खोवेगा, जागेगा सो पावेगा= (जो मनुष्य आलसी होता है, उसको कुछ नहीं मिलता, और जो परिश्रमी होता है,
उसे सब कुछ मिलता है।)
प्रयोग-
यदि पंकज परिश्रम से अध्ययन करता, तो परीक्षा में अवश्य उत्तीर्ण होता, किन्तु वह तो हमेशा खेलता या सोता रहता था। कहते
भी हैं- 'सोवेगा तो खोवेगा, जागेगा सो पावेगा'।
सौ कपूतों से एक सपूत भला= (अनेक कुपुत्रों से एक सुपुत्र अच्छा होता है।)
प्रयोग-
रमेश के चार पुत्र हैं। वे सब मूर्ख और दुष्ट हैं। इससे तो अच्छा होता एक ही पुत्र होता, परन्तु वह सपूत होता। कहते भी
हैं- 'सौ कपूतों से एक सपूत भला'।
स्वर्ग से गिरा तो खजूर में अटका= (एक विपत्ति से छूटकर दूसरी विपत्ति में फंसना)
प्रयोग-
जेबकतरा भीड़ के चंगुल से छूटा तो पुलिस के हाथों पड़ गया, ये तो वही बात हुई कि स्वर्ग से गिरा तो खजूर में अटका।
समय पाय तरवर फले, केतो सींचो नीर= (समय आने पर ही सब काम पूरे होते हैं, उससे पहले नहीं)
प्रयोग- तुम अपनी बहन के विवाह के लिए इतना परेशान क्यों हो। देखो तुम्हारे चाहने से तो कुछ होगा नहीं। समय आएगा तो
सब ठीक हो जाएगा और अच्छा रिश्ता मिलेगा। तुम मेरी यह बात ध्यान रखो कि समय पाय तरवर फले, केतो सींचो नीर।
सब दिन रहत न एक समाना= (हमेशा एक-सी स्थिति नहीं रहती)
प्रयोग- एक समय था जब मंगतराम के यहाँ रौनक रहती थी। पचास-पचास लोगों का रोज खाना बनता था। लेकिन जबसे
व्यापार में घाटा हुआ कोई पूछने तक नहीं आता। किसी ने ठीक ही कहा है कि सब दिन रहत न एक समाना।
सहज पके सो मीठा होय= (जो काम धीरे-धीरे होता है वह संतोषप्रद और पक्का होता है)
प्रयोग- तुम हर काम में जल्दीबाजी क्यों करती हो? जल्दी का काम तो शैतान का होता है और काम बिगड़ जाता है। यह
बात ध्यान रखो 'सहज पके सो मीठा होय'।
सब धन बाईस पसेरी= (अच्छे-बुरे सबको एक समझना)
सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोय (जोरू)= (सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना)
होनहार बिरवान के होत चीकने पात= (होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।)
प्रयोग- वह लड़का जैसा सुन्दर है, वैसा ही सुशील, और जैसा बुद्धिमान है, वैसा ही चंचल। अभी बारह वर्ष भी पूरे नहीं हुए,
पर भाषा और गणित में उसकी अच्छी पैठ है। अभी देखने पर स्पष्ट मालूम होता है कि समय पर वह सुप्रसिद्ध विद्वान होगा। कहावत भी है,
'होनहार बिरवान के होत चीकने पात'।
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और= (कहना कुछ और करना कुछ और)
प्रयोग- आजकल के नेताओं का विश्वास नहीं। इनके दाँत तो दिखाने के और होते हैं और खाने के और होते हैं।
हँसी में खंसी= (हँसी-दिल्लगी की बात करते-करते लड़ाई-झगड़े की नौबत आना)
प्रयोग-
रामू ने श्याम को खेल-खेल में पत्थर मारकर उसका सिर फोड़ दिया तो हँसी में खंसी हो गई।
हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है= (अपने स्वार्थ के लिए सबको सिर झुकाना पड़ता है।)
प्रयोग-
शेरसिंह इतने बड़े काश्तकार हैं। परंतु काम अटकने पर छोटे से क्लर्क के आगे गिड़गिड़ा रहे हैं। सच ही कहा
है- 'हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है'।
हड़ लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही आवे= (बिना खर्च किए काम बन जाना)
प्रयोग-
रितेश ने कंप्यूटर खरीदा और कंप्यूटर सिखाने वाला उसको दोस्त मिल गया। बस फिर क्या था उसने मुफ़्त में
कंप्यूटर सीख लिया। ये तो वही बात हो गई- 'हड़ लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही आवे'।
हनते को हनिए, दोष-पाप नहिं गनिए= (यदि कोई व्यक्ति ख़ाहमखाँ आपको या दूसरे को मारता है, तो
उसको मारना पाप नहीं है।)
प्रयोग-
श्रीराम ने दुष्ट बालि को पेड़ के पीछे छिपकर मारा था तो कोई पाप नहीं किया था। कहते भी हैं- 'हनते को हनिए,
दोष-पाप नहिं गनिए'।
हमने क्या घास खोदी है?= (जो मनुष्य स्वयं को बड़ा बुद्धिमान समझता है, वह दूसरों से ऐसा कहता है।)
प्रयोग-
प्रधानाचार्य ने अध्यापक से कहा कि तुम बड़े काबिल बनते हो और मेरी एक भी बात नहीं सुनते। 'मैंने क्या
जीवनभर घास खोदी हैं?'
हर कैसे, जैसे को तैसे= (जो जैसा कर्म करता है, उसको वैसा ही फल मिलता है।)
प्रयोग-
अध्यापक पढ़ाने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं और शैतान बच्चों को प्रताड़ित करते हैं- 'हर कैसे, जैसे को तैसे'।
हराम की कमाई, हराम में गँवाई= (चोरी, डाका आदि की कमाई का फजूल खर्च हो जाना)
प्रयोग-
करण की बेईमानी की सारी कमाई उसके पिता की बीमारी में लग गई। कहावत भी है- 'हराम की कमाई, हराम में गँवाई'।
हलक से निकली, खलक में पड़ी= (मुँह से निकली बात सारे संसार में फैल जाती है।)
प्रयोग-
रामू ने राजू से कहा- कृपया यह बात किसी से मत कहना, नहीं तो सब लोग इसे जान जाएंगे। याद
रखो- 'हलक से निकली, खलक में पड़ी'।
हांडी का एक ही चावल देखते हैं= (किसी परिवार या देश के एक या दो व्यक्ति देखने से ही पता चल जाता है
कि शेष लोग कैसे होंगे।)
प्रयोग-
शिक्षा निदेशक ने प्रिंसीपल से कहा- आपके विद्यालय में कुछ छात्रों से बातचीत करके मैं जान गया हूँ कि आपके
विद्यालय में कैसे विद्यार्थी पढ़ते हैं- 'हांडी का एक ही चावल देखते हैं'।
हाथ कंगन को आरसी क्या= (जो वस्तु सामने हो उसे सिद्ध करने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती)
प्रयोग-
इंटरव्यू देने गए रामू ने मैनेजर से कहा कि हाथ कंगन को आरसी क्या, टाईपिंग करवा के देख लीजिए कि मेरी स्पीड कितनी है।
हाथ से मारे, भात से न मारे= (किसी को चाहे हाथ से मार लो, परन्तु किसी की रोजी-रोटी नहीं मारनी चाहिए)
प्रयोग-
मित्र, आपने बहुत बुरा किया जो अपने चपरासी को बर्खास्त कर दिया, कुछ दंड दे देते, नौकरी न छुड़ाते तो अच्छा
रहता। कहा भी है- 'हाथ से मारे, भात से न मारे'।
हाथी फिर बाजार, कुत्ते भूकें हजार= (बड़े या महान लोग छोटों की शिकायत की परवाह नहीं करते)
प्रयोग-
राजा राम मोहन राय ने जब सती प्रथा का विरोध किया तो बहुत लोगों ने उनकी आलोचना की, पर वे अपनी
बात पर अटल रहे। ठीक है है- 'हाथी फिर बाजार, कुत्ते भूकें हजार'।
हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी= (हठी मनुष्य कभी अपना हठ नहीं छोड़ता)
प्रयोग-
केशव प्रधानमंत्री से मिलना चाहता था। जब गार्डो ने उसे नहीं मिलने दिया तो वह वहीं धरना देकर बैठ
गया- 'हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी'; फिर गार्डो को उसे प्रधानमंत्री से मिलवाना ही पड़ा।
हिम्मत-ए-मरदां, मदद-ए-खुदा= (जो मनुष्य साहसी और परिश्रमी होते हैं, उनकी सहायता ईश्वर करते हैं।)
प्रयोग-
अध्यापक ने सोनू से कहा कि भाग्य के भरोसे रहना मूर्खता है। तुम यत्न करो, भाग्य तुम्हारी सहायता करेगा-
'हिम्मत-ए-मरदां, मदद-ए-खुदा'।
हथेली पर सरसों नहीं जमती= (हर काम में समय लगता है, कहते ही काम नहीं हो जाता)
प्रयोग- अफसर ने शर्मा जी को डाँटते हुए कहा, 'मैं कह चुका हूँ कि आपका काम दो सप्ताह में हो
पाएगा और आप चाहते हैं कि आज ही हो जाए। हथेली पर सरसों नहीं जमती, यह बात आपकी समझ में नहीं आती?
हम प्याला, हम निवाला= (घनिष्ठ मित्र)
प्रयोग- वे दोनों तो हम प्याला, हम निवाला हैं। कोई भी कितनी ही कोशिश कर ले उन दोनों के बीच
दरार नहीं डाल सकता।
हल्दी/हर्र लगे ना फिटकरी, रंग चोखा ही आवे= (बिना कुछ खर्च किए अधिक धन कमा लेना)
प्रयोग- लाला रामस्वरूप कोई काम धंधा नहीं करते। केवल ब्याज पर रुपया उठाते हैं। ब्याज के धंधे में ही
वे करोड़पति हो गए हैं। यह तो ऐसा धंधा है जिसमें हल्दी/हर्र लगे ना फिटकरी और रंग चोखा आता है।
हाथी के पाँव में सबका पाँव= (बड़ों के साथ बहुतों का गुजारा हो जाता है)
प्रयोग- सभी लड़के इस बात से परेशान थे कि संगोष्ठी में क्या बोलेंगे? तभी मैंने उन्हें समझाया कि चिंता
क्यों करते हो। सुरेश भाई भी तो हमारे साथ चल रहे हैं कोई भी प्रश्न होगा सुरेश भाई सँभाल लेंगे क्योंकि हाथी के पाँव में
सबका पाँव होता है।
हीरे की परख जौहरी जाने= (गुणी व्यक्ति का मूल्य, गुणवान व्यक्ति ही समझता है)
प्रयोग- मेरे बेटे ने पटना मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई पास की। दो साल तक वह अच्छे
अस्पताल में नौकरी की कोशिश करता रहा, पर उसे अच्छी नौकरी नहीं मिली। हारकर उसने आस्ट्रेलिया में एप्लाई किया।
उन लोगों ने उसे तुरंत बुला लिया। सच ही कहा गया है कि हीरे की परख जौहरी ही जानता है।
हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत= (बेमौका)
हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान= (नीच का सम्मान)