झट मंगनी पट ब्याह= (किसी काम का जल्दी से हो जाना)
प्रयोग-
अभी तो मोहन ने मकान की नींव डाली थी और अभी उसे बनवा कर उसमें रहने भी लगा। ये तो उसने 'झट मंगनी
पट ब्याह' वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया।
झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला= (अंत में सच्चे आदमी की ही जीत होती है।)
प्रयोग-
किसी आदमी को झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि- 'झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला' होता है।
झोपड़ी में रह के महलों के सपने देखे= (अपनी सीमा से अधिक पाने की इच्छा करना)
प्रयोग-
मोहनलाल के बेटे ने थर्ड डिवीजन में बी० ए० पास किया है और चाहता है कि किसी कंपनी में सीधा मैनेजर बन जाए। भाई!
झोपड़ी में रह के, महलों के सपने देखना अक्लमंदी नहीं है।
झूठ के पाँव नहीं होते= (झूठ बोलने वाला एक बात पर नहीं टिकता)
प्रयोग- न्यायालय में पैरवी के दौरान एक ही गवाह के तरह-तरह के बयान से न्यायाधीश बौखला गया। वह समझ गया था,
''झूठ के पाँव नहीं होते।''
टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई= (थोड़े ही खर्च में किसी के चरित्र को जान लेना)
प्रयोग-
जब रमेश ने पैसे वापस नहीं किए तो सोहन ने सोच लिया कि अब वह उसे दोबारा उधार नहीं देगा- 'टके की हांडी गई, कुत्ते की जात
पहचानी गई'।
टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला= (कृतघ्न व्यक्ति)
प्रयोग-
जिसने रामू को पाला आज नौकरी लगने पर वह उन्हें ही आँख दिखा रहा है। ठीक ही कहा है- 'टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे
तब मारन चाला'।
टके की मुर्गी नौ टके महसूल= (कम कीमती वस्तु अधिक मूल्य पर देना)
प्रयोग- जब किसी वस्तु के मूल्य से अधिक उस पर खर्च हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
टके का सब खेल= (''धन-दौलत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं।'')
प्रयोग- आज के युग में जो चाहो, पैसा देकर हथिया लिया जा सकता है, क्योंकि भ्रष्टाचार के जमाने में
'टके का सब खेल' है।
ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है= (शांत प्रकृति वाला मनुष्य क्रोधी मनुष्य को हरा देता है।)
प्रयोग-
जब भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को लात मारी, लेकिन उनके यह कहने पर कि आपके पैर में चोट तो नहीं लगी, भृगु स्वयं लज्जित
हो गए। ठीक ही कहा है- 'ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है'।
ठेस लगे, बुद्धि बढ़े= (हानि मनुष्य को बुद्धिमान बनाती है।)
प्रयोग-
राजेश ने व्यापार में बहुत क्षति उठाई है, तब वह सफल हुआ है। ठीक ही कहते हैं- 'ठेस लगे, बुद्धि बढ़े'।
ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम= (अच्छी वस्तु का अच्छा मूल्य) प्रयोग- यह तो बाजार है- यहाँ कुछ सस्ती है तो कुछ महँगी भी, यानि जैसे चीज वैसा दाम। ऐसे में तो 'ठीक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम' वाली कहावत चरितार्थ होती है।
ठठेरे-ठठेरे बदलौअल= (चालाक को चालक से काम पड़ना)
डरा सो मरा= (डरने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता)
प्रयोग-
रामू उस जेबकतरे के चाकू से डर गया, वर्ना वह जेबकतरा पकड़ा जाता। कहते भी हैं- 'जो डरा सो मरा'।
डूबते को तिनके का सहारा= (विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।)
प्रयोग-
संकट के समय रमेश को इस बात से आशा की किरण दिखाई दी कि 'डूबते को तिनके का सहारा'।
डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई= (थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना)
प्रयोग-
मुन्ना के पास केवल पचास आदमियों के खिलाने की सामर्थ्य थी तब उसने यह सब व्यर्थ का आडम्बर क्यों रचा? यह तो वही
हाल हुआ- 'डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई'।
डण्डा सबका पीर= (सख्ती करने से लोग नियंत्रित होते हैं)
प्रयोग- कक्षा में राहुल नाम का छात्र बहुत शरारती था, लेकिन जब से अध्यापकों ने थोड़ी सी सख्ती क्या की,
वह अनुशासन में रहता है, क्योंकि 'डण्डा सबका पीर' होता है।
डायन को दामाद प्यारा= (अपना सबको प्यारा होता है)
प्रयोग- यदि तुम उस नेता के लड़के की शिकायत करोगे तो क्या वह तुम्हारी सुनेगा, क्योंकि 'डायन को दामाद प्यारा' होता है।
ढाक के वही तीन पात= (परिणाम कुछ नहीं निकलना, बात वहीं की वहीं रहना)
प्रयोग-
अध्यापक ने रामू को इतना समझाया कि वह सिगरेट पीना छोड़ दे, पर परिणाम 'ढाक के वही तीन पात', और एक दिन रामू के मुँह
में कैंसर हो गया।
ढोल के भीतर पोल/ढोल में पोल= (केवल ऊपरी दिखावा)
प्रयोग- कविता अंग्रेजी में कुछ-भी बोलती रहती है, अभी उससे पूछो कि 'सेन्टेंस' कितने प्रकार के होते हैं
'तब ढोल के भीतर पोल' दिखना शुरू हो जाएगा।
तुम डाल-डाल तो मैं पात-पात= (किसी की चालों को खूब समझना)
प्रयोग-
रंजीत ने कहा कि चलो, किधर चलते हो; 'तुम डाल-डाल तो मैं पात-पात'।
तेल तिलों से ही निकलता है= (यदि कोई आदमी किसी मामले में कुछ खर्च करता है तो वह फायदा उस मामले से ही निकाल लेता है।)
प्रयोग-
जब नौकर ने कमीशन माँगा तो दुकानदार ने कीमत सवाई कर दी। आखिर, भाई, 'तेल तिलों से ही निकलता है'।
तेल देखो, तेल की धार देखो= (किसी कार्य का परिणाम देखने की बात करना)
प्रयोग-
रामू बोला- 'तेल देखो, तेल की धार देखो', घबराते क्यों हो?
तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले= (जब एक व्यक्ति कुछ खर्च कर रहा हो और दूसरा उसे देख कर ईर्ष्या करे)
प्रयोग-
मालिक कर्मचारियों को जब कुछ देना चाहता है तो मैनेजर को बहुत ईर्ष्या होती है। ये तो वही बात हुई- 'तेली का तेल जले,
मशालची का दिल जले'।
ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती= (प्रेम या लड़ाई एकतरफा नहीं होती)
प्रयोग-
अध्यापक तो पढ़ाना चाहते हैं, पर छात्र ही न पढ़े तो वे क्या करें, कहते भी हैं- ' ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती'।
तीन में न तेरह में= (जिसकी पूछ न हो)
प्रयोग-
रामू वहाँ किस हैसियत से जाएगा। वहाँ उसकी कोई नहीं सुनेगा, क्योंकि वह 'तीन में न तेरह में'।
तबेले की बला बंदर के सिर = (दोष किसी का, सजा किसी और को)
प्रयोग- चोरी तो की थी सुरेंद्र ने और झूठी शिकायत के आधार पर अध्यापक ने सजा दी महेश को। क्या कहें,
यह तो वही बात हुई कि तबेले की बला बंदर के सिर पड़ गई।
तुरत दान महाकल्यान= (समय रहते किया गया कार्य उपयोगी साबित होता है)
प्रयोग- अच्छा लड़का मिल गया है तो जल्दी से तिथि निकलवाकर बहन की शादी कर डालो। इंतजार करने में
पता नहीं कौन-सी अड़चन कहाँ से आ जाए। शुभ कार्य में 'तुरत दान महाकल्यान' ही जरूरी है।
तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर= (आय के अनुसार ही व्यय करना चाहिए)
प्रयोग- बेटी के विवाह में झूठी शान की खातिर माहेश्वर ने कर्जा ले लिया और अब कर्जा न चुका पाने के कारण
मकान गिरवी रखना पड़ा। बुजुर्गो ने इसलिए कहा है कि 'तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर'।
तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता= (मर्मभेदी बात आजीवन नहीं भूलती)
प्रयोग- किसी को ह्रदय विदारक शब्द मत कहो, क्योंकि वे आजीवन याद रहते है, इसलिए कहा गया है कि तलवार का घाव भरता है, पर बात का घाव नहीं भरता।
तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटोही होवे जैसा= (बिना स्त्री के पुरुष का कोई ठिकाना नहीं)
प्रयोग- जब से विकास की पत्नी उसे छोड़कर गई है तब से उसकी दशा तो तिरिया बिन तो नर है ऐसा,
राह बताऊ होवे जैसा वाली हो गई है।
तख्त या तख्ता= (शान से रहना या भूखो मरना)
प्रयोग- उसकी आदत तो, तख्त या तख्ता वाली है।
तुम्हारे मुँह में घी-शक़्कर= (तुम्हारी बात सच हो)
प्रयोग- उसने मुझे लड़का होने की दुआ दी, मैंने उससे कहा तुम्हारे मुँह में घी-शक़्कर।
तलवार का खेत हरा नहीं होता= (अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता)
प्रयोग- तुम जो कर रहे हो वो ठीक नहीं है, तलवार का खेत हरा नहीं होता।
ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका= (एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना)
तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा= (जितने आदमी उतने विचार)
तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता= (शेखी बघारना)
तीन लोक से मथुरा न्यारी= (निराला ढंग)
थोथा चना, बाजे घना= (वह व्यक्ति जो गुण और विद्या कम होने पर भी आडम्बर करे)
प्रयोग-
हाईस्कूल में दो बार फेल हो चुका रामू बात कर रहा था कि उसे सब कुछ याद है और वह इंटर के छात्रों को भी
पढ़ा सकता है। ये तो वही बात हुई- 'थोथा चना, बाजे घना'।
थका ऊँट सराय तके= (दिनभर काम करने के बाद मजदूर को घर जाने की सूझती है।)
प्रयोग-
दिनभर काम करने के बादराजू घर जाने के लिए चलने लगा। ठीक ही है- 'थका ऊँट सराय तके'।
थूक से सत्तू सानना= (कम सामग्री से काम पूरा करना)
प्रयोग- इतने बड़े यज्ञ के लिए दस किलो घी तो थूक से सत्तू सानने के समान है।
थोड़ी पूँजी घणी को खाय= (अपर्याप्त पूँजी से व्यापार में घाटा होता है)
प्रयोग- सुबोध ने गेंद बनाने की फैक्ट्री लगायी, कच्चा माल उधार लेने लगा जो महँगा मिला, इस कारण
उसे घाटा उठाना पड़ा। सच है थोड़ी पूँजी धणी को खाय।
थूक कर चाटना ठीक नहीं= (देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित।)
दाल-भात में मूसलचन्द= (दो व्यक्तियों के काम की बातों में तीसरे आदमी का हस्तक्षेप करना)
प्रयोग-
मित्र, मैं तुम से पूछता हूँ, तुम्हें उन लोगों की बातचीत में, 'दाल-भात में मूसलचन्द' की तरह कूदने की क्या जरूरत थी?
दोनों बात कर रहे थे, करने देते।
दीवारों के भी कान होते हैं= (गुप्त परामर्श एकांत में धीरे बोलकर करना चाहिए)
प्रयोग-
अरे राम! जरा धीरे बोलो, क्या जाने कोई सुन रहा हो, क्योंकि ' दीवारों के भी कान होते हैं'।
दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है= (जिस व्यक्ति से लाभ होता है, उसकी कड़वी बातें भी सुननी पड़ती हैं।)
प्रयोग-
कमाऊ बेटा है, लेकिन कभी-कभी झगड़ा कर बैठता है। अरे भाई, 'दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है'।
दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है= (एक बार धोखा खाने के बाद बहुत सोच-विचार कर काम करना)
प्रयोग-
पिछली बार एक दिन की गैरहाजिरी में राजू को दफ्तर से जवाब मिला था; इसलिए अब वह देरी से जाने से भी डरता है,
क्योंकि 'दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है'।
दूध का दूध और पानी का पानी= (सच्चा न्याय)
प्रयोग-
कल पंचों ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।
दूधो नहाओ, पूतो फलो= (आशीर्वाद देना)
प्रयोग-
दादी बहू से आशीष के भाव से बोली, 'दूधो नहाओ, पूतो फलो'।
दूर के ढोल सुहावने लगते हैं= (दूर के व्यक्ति अथवा वस्तुएँ अच्छी मालूम पड़ती हैं।)
प्रयोग-
इतना पैसा उसके पास कहाँ है? गाँव का सबसे बड़ा आदमी है तो क्या हुआ- 'दूर के ढोल सुहावने लगते हैं'।
देर आयद, दुरुस्त आयद= (कोई काम देर से हो, परन्तु ठीक हो)
प्रयोग-
रामू ने घर देरी से खरीदा, पर घर अच्छा है- 'देर आयद, दुरुस्त आयद'।
दोनों हाथों में लड्डू होना= (दोनों तरफ लाभ होना)
प्रयोग-
अब तो रोहन ने दुकान भी खोल ली, नौकरी तो वह करता ही था अतः अब उसके दोनों हाथों में लड्डू हैं।
दो मुल्लों में मुर्गी हराम= (एक चीज को दो या अधिक आदमी प्रयोग करें तो उसकी खींचातानी होती है।)
प्रयोग-
महेश की कार कभी ठीक नहीं रहती, क्योंकि उसे कई ड्राईवर चलाते हैं। ठीक ही है- 'दो मुल्लों में मुर्गी हराम'।
दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया= (रुपैया-पैसा ही सब कुछ है)
प्रयोग- आज के जमाने में कोई किसी को नहीं पूछता। आजकल तो 'दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया'।
दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम= (अनिश्चय की स्थिति में काम करने पर एक में भी सफलता नहीं मिलती)
प्रयोग- सुमित्रा ने नौकरी भी कर ली और उधर पत्राचार से बीए की परीक्षा का फॉर्म भी भर दिया। परीक्षा की तैयारी के चक्कर में नौकरी भी छूट गई और पूरी तरह से तैयारी न हो पाने के कारण पास भी न हो सकी। इसलिए कहा जाता है कि जो भी काम करो मन लगाकर उसे पूरा करो। जो लोग एक से अधिक कामों में टाँग फँसाते हैं वे न तो इसे पूरा कर पाते हैं और न उसे। क्योंकि 'दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम'।
देखे ऊँट किस करवट बैठता है?= (देखें क्या फैसला होता है?)
प्रयोग- किस पार्टी की सरकार बनेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। वोटों की गिनती के बाद ही तय होगा कि ऊँट किस करवट बैठता है।
दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पीता है= (ठोकर खाने के बाद आदमी सावधान हो जाता है।)
प्रयोग- किसी काम में हानि हो जाने पर दूसरा काम करने में भी डर लगता है। भले ही उसमें डर की सम्भावना न हो,
ठीक ही कहा गया है- दूध का जला छाछ (मट्ठा) भी फूँक-फूँककर पीता है।
दाने-दाने पर मुहर= (हर व्यक्ति का अपना भाग्य)
प्रयोग- मैं और सचिन नाश्ता कर रहे थे, इतने में अनिल आ गया तो मैंने कहा दाने-दाने पर मुहर होती है।
दाम संवारे काम= (पैसा सब काम करता है)
प्रयोग- जब राजीव इंग्लैण्ड से भारत आया तो सब कुछ बदला-सा नजर आया इस पर साथियों ने कहा दाम
संवारे सबई काम।
दूसरे की पत्तल लम्बा-लम्बा भात= (दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है)
प्रयोग- तुम्हें मेरी सरकारी नौकरी अच्छी लग रही है। मुझे तुम्हारा व्यापार, जिससे खूब आय है। सच कहावत है
दूसरे की पत्तल लम्बा-लम्बा भात।
दूध पिलाकर साँप पोसना= (शत्रु का उपकार करना)
प्रयोग- तुम राजेन्द्र को अपने यहाँ लाकर दूध पिलाकर साँप पोसना कहावत को चरितार्थ न करना।
दोनों दीन से गए पाण्डे हलुआ मिला न माँडे= (किसी तरफ के न होना)
प्रयोग- उसने सरकारी नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ा। वह चुनाव हार गया। इस प्रकार दोनों दीन से गए
पाण्डे हलुआ मिला न माँडे।
दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी= (मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।)
दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली= (काम साधारण, खर्च अधिक)
देशी मुर्गी, विलायती बोल= (बेमेल काम करना)
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का= (जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो)
प्रयोग-
गाँव से आया रामू दिल्ली में आकर धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का जैसा हो गया है।
धोबी से पार न पावे, गधे के कान उमेठे= (बलवान पर वश न चले तो निर्धन पर गुस्सा निकालना)
प्रयोग-
रमेश अपने साहब के सामने तो गिड़गिड़ाता रहता है और चपरासी पर रौब डांटता है- 'धोबी से पार न पावे, गधे के कान उमेठे'।
धन्ना सेठ के नातीबने हैं= (अपने कोअमीर समझते है।)
प्रयोग- जेब में सौ रुपये नहीं रहते वैसे अपने को धन्ना सेठ के नाती बनते हैं।
धूप में बाल सफेद नहीं किए है= (सांसरिक अनुभव बहुत है)
प्रयोग- तुम हमें बहकाने की कोशिश मत करो, ये बल धूप में सफेद नहीं किए हैं।
नाच न जाने आँगन टेढ़= (काम न जानना और बहाना बनाना)
प्रयोग- सुधा से गाने के लिए कहा, तो उसने कहा- साज ही ठीक नहीं, गाऊँ क्या ?कहा है: 'नाच न जाने आँगन टेढ़।'
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी= (झगड़े की जड़ को नष्ट कर देना)
प्रयोग- इस खिलौने पर ही बच्चों में रोजाना झगड़ा होता है। इसे उठाकर क्यों नहीं फ़ेंक देते- 'न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी'।
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी= (असंभव शर्ते रखना)
प्रयोग-
राजू ने कहा- यदि आप मुझे 8000 रुपये मासिक व्यय दें तो मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने जाऊँगा। पिताजी ने कहा- 'न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी'।
नौ नगद, न तेरह उधार= (उधार की अपेक्षा नगद चीजें बेचना अच्छा होता है।)
प्रयोग-
प्रेम किसी को भी उधार नहीं देता उसका तो एक ही सिद्धांत है- 'नौ नगद, न तेरह उधार'।
न आगे नाथ न पीछे पगहा= (जिसका कोई सगा-सम्बन्धी न हो)
प्रयोग-
जज साहब अकेले ही थे- 'न आगे नाथ न पीछे पगहा'।
न आव देखा न ताव= (बिना सोचे-समझे काम करना)
प्रयोग-
उसने 'न आव देखा न ताव' झट रामू को थप्पड़ मार दिया।
न ईंट डालो, न छींटे पड़ें= (यदि तुम किसी को छेड़ोगे, तो तुम्हें दुर्वचन अवश्य सुनने पड़ेंगे)
प्रयोग-
केशव न ईंट डालता, न छींटे पड़ते, उसने पागल को छेड़ा तो उसे पत्थर खाना पड़ा।
न ऊधो का लेना, न माधो का देना= (किसी से कोई सम्बन्ध न रखना)
प्रयोग-
शास्त्रीजी तो सिर्फ पढ़ाने से मतलब रखते हैं- 'न ऊधो का लेना, न माधो का देना'।
न घर का रहना न घाट का= (बिल्कुल असहाय होना)
प्रयोग-
मैं रामू की सहायता न करता तो वह 'न घर का रहता न घाट का'।
न तीन में न तेरह में= (जिसकी कोई गिनती न हो)
प्रयोग-
हमारा देश तो हिन्दुओं का है, मुसलमानों का है, अंग्रेज कौन होते हैं, 'न तीन में न तेरह में'।
न नामलेवा न पानी देवा= (जिसका संसार में कोई न हो)
प्रयोग-
एक बार पंकज के गाँव में प्लेग फैल गया। उसके घर के सब लोग मर गए। अब 'न कोई नामलेवा है और न पानी देवा'।
नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा= (एक दरिद्र किसी को क्या दे सकता है।)
प्रयोग-
रामू ने कहा- हम तो खुद गरीब हैं, हम चंदा कहाँ से देंगे- 'नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा'।
नया नौ दिन पुराना सौ दिन= (नई चीजों की अपेक्षा पुरानी चीजों का अधिक महत्व होता है।)
प्रयोग-
बड़े-बड़े डॉक्टर आ गए हैं, लेकिन मैं तो उन्हीं वैद्य जी के पास जाऊँगा, क्योंकि ' नया नौ दिन पुराना सौ दिन'।
नादान की दोस्ती जी का जंजाल= (मूर्ख की मित्रता बड़ी नुकसानदायक होती है।)
प्रयोग-
कालू जैसे मूर्ख से दोस्ती करना तो नादान की दोस्ती जी का जंजाल है।
नाम बड़ा और दर्शन छोटे= (नाम बहुत हो परन्तु गुण कम या बिल्कुल नहीं हों)
प्रयोग-
लखपति बुआ ने विदा के समय भतीजों को बस एक-एक रुपया दिया। ये तो वही बात हुई- 'नाम बड़ा और दर्शन छोटे'।
नेकी और पूछ-पूछ= (भलाई करने में संकोच कैसा)
प्रयोग-
डॉक्टर साहब सब मरीजों को दवा मुफ़्त देने की जब पूछने लगे तो मरीज बोले- 'नेकी और पूछ-पूछ'।
नेकी कर, दरिया में डाल= (उपकार करते समय बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए)
प्रयोग-
श्यामजी ने उत्तेजित होकर कहा- मियां साहब, उपकार अहसान के लिए नहीं किया जाता, नेकी करके दरिया में डाल देना चाहिए।
नौ दिन चले अढ़ाई कोस= (बहुत सुस्ती से काम करना)
प्रयोग-
राजू ने दस महीने में मात्र एक पाठ याद किया है। यह तो वही बात हुई- 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस'।
नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली= (पूरी जिंदगी पाप करके अंत में धर्मात्मा बनना)
प्रयोग-
कालू कितना बदमाश था, अब वृद्ध हो जाने पर वह धर्मात्मा बन रहा है- ये तो नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को
चली वाली बात है।
नंग बड़े परमेश्वर से = (ईश्वर की बजाए, निर्लज्ज से डर कर रहना चाहिए)
प्रयोग-मतिराम एकदम घटिया व्यक्ति है। मैं उसे मुँह नहीं लगाता और न उससे बात करता हूँ। ऐसे लोगों का
भरोसा नहीं कब किसके सामने आपके बारे में क्या बोल दें क्योंकि नंग बड़े परमेश्वर से, इनका क्या भरोसा?
न लेना एक न देना दो= (कोई संबंध न रखना)
प्रयोग-
भाई साहब का बड़ा बेटा गलत सोहबत में पड़ गया है और भाई साहब उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे। हमें क्या?
भुगतेंगे खुद ही। हमें तो उस लड़के से न लेना एक न देना दो।
नानी के आगे ननिहाल की बातें= (अपने से अधिक जानकारी रखने वाले के सामने जानकारी की शेखी बघारना)
प्रयोग- कंप्यूटर के बारे में जो कुछ तुम बता रहे हो मेरा छोटा बेटा तुमसे अधिक जानकारी रखता है।
तुम्हारी इज्जत करता है इसलिए चुप है। ध्यान रखो नानी के आगे ननिहाल की बातें करना शोभा नहीं देता।
नित्य कुआँ खोदना, नित्य पानी पीना= (प्रतिदिन काम करके पेट भरना)
प्रयोग- हम मजदूर कहाँ से इतना पैसा लाएँ जिससे कि एक घर खड़ा हो जाए। हम लोग तो नित्य कुआँ खोदते हैं
और नित्य पानी पीते हैं।
निन्यानवे के फेर में पड़ना= (धनसंग्रह की धुन समाना)
प्रयोग-
सारे व्यापारी सुबह से शाम तक अपने व्यापार में लगे रहते हैं। न घर की चिंता, न परिवार की। ऐसे लोगों के बच्चे
भी बिगड़ जाते हैं। वास्तव में निन्यानवे के फेर में पड़कर ये लोग अपना वर्तमान खराब कर लेते हैं।
नक्कारखाने में तूती की आवाज= (बड़ों के बीच में छोटे आदमी की कौन सुनता है)
प्रयोग- व्यवस्था परिवर्तन चाहने वालों की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गई है।
नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह= (झूठी बड़ाई)
प्रयोग- निर्भय हर जगह अपनी धन-दौलत का गुणगान करता रहता है। एक दिन अजय ने उससे कह दिया नानी क्वांरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह।
नदी नाव संयोग= (कभी-कभी मिलना)
प्रयोग- अरे आज तुम इतने दिन बाद मिल गए, ये तो नदी नाव संयोग वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
नकटा बूचा सबसे ऊँचा= निर्लल्ज आदमी सबसे बड़ा है)
प्रयोग- निर्भय से जीतना असम्भव है। उस पर तो नकटा बूचा सबसे ऊँचा वाली कहावत लागू होती है।
न देने के नौ बहाने= (न देने के बहुत-से बहाने)
नदी में रहकर मगर से वैर=(जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना)
नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च= काम साधारण, खर्च अधिक)
नीम हकीम खतरे जान= (अयोग्य से हानि)
नाच कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान= आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है।)
पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो किस्मत (या कुदरत) का खेल= (पढ़े-लिखे लोग भी दुर्भाग्य के कारण दुःख उठाते हैं।)
प्रयोग-
रमेश को एम.ए. करने के बाद भी कोई काम नहीं मिल रहा है। इसी को कहते हैं- 'पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल'।
पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं= (सब मनुष्य एक जैसे नहीं होते)
प्रयोग-
इस दुनिया में तरह-तरह के लोग हैं। कहा भी है- 'पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं'।
पल में तोला, पल में माशा= (अत्यन्त परिवर्तनशील स्वभाव होना)
प्रयोग-
दादी का स्वभाव कुछ समझ नहीं आता। कल कुछ और थी, आज कुछ और हैं- 'पल में तोला, पल में माशा'।
पाँचों उंगलियाँ घी में होना= (हर तरफ से लाभ होना)
प्रयोग-
सतीश काफी खुश था। वह बोला- अरे, इस बार ऐसा काम कर रहा हूँ कि 'पाँचों उंगलियाँ घी में होंगी'।
पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं= (बच्चे की प्रतिभा बचपन में ज्ञात हो जाती है।)
प्रयोग-
शिवाजी की प्रतिभा का उनके बचपन में ही पता चल गया था। तभी कहते हैं- 'पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं'।
प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं आता= (जिसे गर्ज होती है, वही दूसरों के पास जाता है।)
प्रयोग-
राजू ने रमेश से कहा कि वह उसके घर आकर उसका होमवर्क पूरा करवा दे तो रमेश ने कहा कि वह उसके घर क्यों
नहीं आ जाता- 'प्यासा कुएँ के पास जाता है, कुआँ प्यासे के पास नहीं आता'।
पेट में आँत, न मुँह में दाँत= (बहुत वृद्ध व्यक्ति)
प्रयोग-
रामू काका के पेट में न आँत है न मुँह में दाँत, फिर भी वे मेहनत-मजदूरी करते हैं।
परहित सरिस धरम नहिं भाई= (परोपकार से बढ़कर और कोई धर्म नहीं)
प्रयोग- हमें सदैव दूसरों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं= (परतंत्रता में कभी सुख नहीं)
प्रयोग- अँग्रेजों के जाने के बाद भारतवासियों को यह अहसास हुआ कि पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।'
पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा= (भोजन किए बिना काम में मन न लगना)
प्रयोग- जब बैठक दो बजे भी समाप्त न हुई तो सारे सदस्य चिल्लाने लगे- 'पहले पेट पूजा, बाद में काम दूजा',
अब हमलोग बिना कुछ खाए काम नहीं कर सकते।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे= (दूसरों को उपदेश देने में सब चतुर होते हैं)
प्रयोग-मंदिर का पुजारी सभी दर्शनार्थियों को यह उपदेश देता है कि परिश्रम करके खाओ', 'मिल-जुल कर बाँट
कर खाओ' और खुद मंदिर में चढ़ा-चढ़ावा अकेले हजम कर जाता है। सच है, 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे'।
पारस को छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है =(सत्संगति से बुरे भी अच्छे हो जाते हैं)
प्रयोग- अच्छे लोगों के साथ उठने-बैठने के कारण अब रामेश्वर का बेटा कैसे बदल गया है। किसी ने सही कहा है कि पारस को छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है।
पिष्टपेषण करना= (एक ही बात को बार-बार दोहराना)
प्रयोग- शर्मा जी ने पंडित रामदीन से कह दिया कि उनके लड़के से वे अपनी बेटी का रिश्ता नहीं कर सकते।
पर रामदीन जब उनके पीछे ही पड़ गए तो, शर्मा जी बोले, पंडित जी, एक ही बात का पिष्टपेषण करने से कोई लाभ नहीं,
मैं अपनी बात कह चुका हूँ।
पीर, बाबरची, भिश्ती खर= (जब किसी व्यक्ति को छोटे-बड़े सब काम करने पड़ें)
प्रयोग- बेचारे सुंदर को अब तक तो ऑफिस में ही सारे काम करने पड़ते थे, अब शादी के बाद पत्नी के डर से घर के
भी सारे काम करने पड़ते हैं। बेचारे की हालत तो पीर, बाबरची, भिश्ती खर जैसी हो गई है।
पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं =(अच्छे गुणों के लक्षण बचपन में ही पता चल जाते हैं)
प्रयोग- पंडित नेहरू जब बच्चे थे तभी पंडितों ने कह दिया था कि बड़े होकर यह बालक बहुत नाम कमाएगा। किसी
ने ठीक ही कहा है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं।
पैसा गाँठ का, विद्या कंठ की= (धन और विद्या अपनी पहुँच के भीतर हों तभी लाभकारी होते हैं)
प्रयोग- जिसके पास धन भी है और ज्ञान भी वे लोग संसार में किसी से मात नहीं खाते क्योंकि ऐसे लोगों के
लिए यह कहावत सच है कि पैसा गाँठ का, विद्या कंठ की।
पराये धन पर लक्ष्मी नारायण= (दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना)
प्रयोग- तुम तो पराये धन पर लक्ष्मी नारायण बन रहे हो।
पानी पीकर जात पूछना= (काम करने के बाद उसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करना)
प्रयोग-
पहले लड़की की शादी अनजान घर में कर दी अब पूछ रहे हो लोग कैसे हैं ? आप तो पानी पीकर जात पूछने वाली कहावत
चरितार्थ कर रहे हो।
पत्नी टटोले गठली और माँ टटोले अंतड़ी= (पत्नी देखते है कि मेरे पति के पास कितना धन है और माँ देखती है
कि मेरे बेटे का पेट अच्छी तरह भरा है या नहीं)
प्रयोग- अभय जब ऑफिस से घर आता है तो पत्नी कोई-न-कोई फरमाइश कर पैसे माँगती है, जबकि माँ पूछती
बेटा तूने दिन में क्या खाया, आ खाना खा ले। कहावत सच है, पत्नी टटोले गठरी और माँ टटोले अंतड़ी।
पाँचों सवारों में मिलना= (अपने को बड़े व्यक्तियों में गिनना)
प्रयोग- वह भले ही पैसे वाला न हो लेकिन पाँचों सवारों में मिलना चाहता है।
पहले भीतर तब देवता-पितर= (पेट-पूजा सबसे प्रधान)
पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची= (जबरदस्ती किसी के सर पड़ना)
पंच परमेश्वर= (पाँच पंचो की राय)
फटक चन्द गिरधारी, जिनके लोटा न थारी= (अत्यन्त निर्धन व्यक्ति)
प्रयोग- केशव के पास देने को कुछ नहीं है। वह तो फटक चन्द गिरधारी है।
फूंक दो तो उड़ जाय= (बहुत दुबला-पतला आदमी)
प्रयोग- रमा तो ऐसी दुबली-पतली थी कि 'फूंक दो तो उड़ जाय'।
फकीर की सूरत ही सवाल है= (फकीर कुछ माँगे या न माँगे, यदि सामने आ जाए
तो समझ लेना चाहिए कि कुछ माँगने ही आया)
प्रयोग- शर्मा जी जब घर आते हैं कुछ न कुछ माँगकर ले जाते हैं। जब वे परसों घर
आए तो मैंने दो सौ रुपये दे
दिए। बीबी ने पूछा बिना माँगे क्यों दिए तो कहा फकीर की सूरत ही सवाल है।
फलेगा सो झड़ेगा= (उन्नति के पश्चात अवनति अवश्यम्भावी है)
प्रयोग- एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचने के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अवनति होती है,
क्योंकि फलेगा सो झड़ेगा।
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद= (वह व्यक्ति जो किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति की कद्र न जानता हो)
प्रयोग- उपदेश झाड़ने आए हो, कह रहे हो- चाय मत पीयो। भला तुम क्या जानो इसके गुण- 'बन्दर क्या
जाने अदरक का स्वाद'।
बहती गंगा में हाथ धोना= (अवसर का लाभ उठाना)
प्रयोग-सत्संग के लिए काफी लोग एकत्रित हुए थे। ऐसे में क्षेत्रीय नेता भी वहाँ आ गए और
उन्होंने अपना लंबा-चौड़ा भाषण दे डाला। इसे कहते हैं- बहती गंगा में हाथ धोना।
बिल्ली के भागों छींका टूटा= (अकस्मात् कोई काम बन जाना)
प्रयोग-
अगर ट्रेन लेट न होती तो हमें कैसे मिलती। ये तो बिल्ली के भागों छींका टूट गया।
बंदर के हाथ नारियल= (किसी के हाथ ऐसी मूल्यवान चीज पड़ जाए, जिसका मूल्य वह जानता न हो)
प्रयोग-
छोटू को स्कूटर देना तो बंदर के हाथ नारियल देना है।
बगल में छुरी, मुँह में राम= (मुँह से मीठी-मीठी बातें करना और हृदय में शत्रुता रखना)
प्रयोग-
वैसे तो वे भाइयों को बहुत प्यार करते थे, लेकिन मौका पाते ही उनकी सब सम्पत्ति हड़प ली। इसे कहते हैं-'बगल में छुरी, मुँह में राम'।
बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह= (एक से बढ़ कर एक)
प्रयोग-
सेठ जी तो अपने मजदूरों का कभी वेतन नहीं बढ़ाते थे। उनके बेटे ने तो मजदूरों का बोनस भी काट लिया। इसे कहते
हैं- 'बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह'।
बत्तीस दाँतों में जीभ= (शत्रुओं से घिरा रहना)
प्रयोग-
लंका में विभीषण ऐसे रहते थे जैसे बत्तीस दाँतों में जीभ रहती है।
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया= (रुपए-पैसे का सर्वाधिक महत्व होना)
प्रयोग-
दयाराम ने अपने सगे भाई से भी ब्याज ले ली। सच ही है= 'बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया'।
बासी बचे न कुत्ता खाय= (आवश्यकता से अधिक चीज न बनाना जिससे कि खराब न हो।)
प्रयोग-
रामू के यहाँ तो रोज जितनी चीजों की जरूरत होती है उतनी ही आती है- 'बासी बचे न कुत्ता खाय'।
बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख= (यदि भाग्य प्रतिकूल हो तो माँगने पर भीख भी नहीं मिलती)
प्रयोग-
पहले तो माँगने से भी नहीं दीं और आज हरीश ने अपने आप ही सारी किताबें मुझको दे दीं। ठीक ही है- 'बिन माँगे मोती मिले,
माँगे मिले न भीख'।
बुरे काम का बुरा अंजाम= (बुरे काम का बुरा फल)
प्रयोग-
हमें बुरे कर्म नहीं करने चाहिए क्योंकि बुरे काम का बुरा अंजाम होता है।
बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम= (बेमेल बात)
प्रयोग-
गाँव के रामू ने जब अंग्रेजी मेम से शादी कर ली तो सब यही कहने लगे कि ये तो बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम है।
बैठे से बेगार भली= (खाली बैठे रहने से कुछ न कुछ काम करना भला होता है।)
प्रयोग-
मेरे पास कोई काम नहीं था। मन में आया कुछ लिखा ही जाए- 'बैठे से बेगार भली'।
बंदर के गले में मोतियों की माला= (किसी मूर्ख को मूलयवान वस्तु मिल जाना)
प्रयोग- भृगु जैसे निपट गँवार को न जाने कैसे इतनी सुशील, गुणी और सुंदर पत्नी मिल गई। इसे कहते हैं बंदर
के गले में मोतियों की माला। सब किस्मत का खेल है।
बंदर की दोस्ती जी का जंजाल= (मूर्ख से मित्रता करना मुसीबत मोल लेना है)
प्रयोग-
मैंने सुमन को इतना समझाया था कि राकेश जैसे मूर्ख का साथ छोड़ दे पर उसने मेरी एक न सुनी। एक दिन राकेश की बातों में आकर
तालाब में तैरने चला गया। दोनों को तैरना तो आता नहीं था अतः लगे डूबने। वह तो अच्छा हुआ कि वहाँ कुछ तैराक उसी समय पहुँच
गए और उन्होंने दोनों को बचा लिया। इस घटना के बाद सुमन ने राकेश का साथ यह कहकर छोड़ दिया कि 'बंदर की दोस्ती जी का
जंजाल' होती है।
बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी= (अपराधी किसी-न-किसी दिन पकड़ा ही जाएगा)
प्रयोग-
आतंकवादी तीन दिन तक तो मंदिर में छुपकर फायरिंग करते रहे। अंत में पुलिस की गोलियों से सभी मारे गए। ठीक ही कहा गया है कि
बकरे की माँ कब तक खैर मनाती।
बद अच्छा, बदनाम बुरा= (बदनाम व्यक्ति बुराई न भी करें तो भी लोगों का ध्यान उसी पर जाता है)
प्रयोग- शराबी व्यक्ति यदि दूध का गिलास लेकर भी जाएगा तो लोग यही समझेंगे कि दारू का गिलास है क्योंकि बद अच्छा,
बदनाम बुरा होता है।
बारह वर्षों में तो घूरे के दिन भी बदलते हैं= (एक न एक दिन अच्छा समय आता ही है)
प्रयोग- अरे भाई हमलोग मेहनत कर रहे हैं कभी-न-कभी तो हमें भी सफलता मिलेगी। बारह वर्षों में तो घूरे के दिन भी
बदल जाते हैं।
बाप न मारी मेढ़की, बेटा तीरंदाज= (छोटे का बड़े से आगे निकल जाना)
प्रयोग- रमाकांत भी हॉकी खेलता था पर कभी किसी अच्छी टीम में उसका चयन न हो पाया पर उसके बेटे को देखो
कमाल कर दिया। वह तो अपने अच्छे खेल के कारण भारतीय टीम का कैप्टन बन गया है। इसे कहते हैं बाप न मारी मेढ़की, बेटा
तीरंदाज।
बाबा ले, पोता बरते= (किसी वस्तु का अधिक टिकाऊ होना)
प्रयोग- सस्ते के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। जो भी सामान खरीदो ऐसा हो कि बाबा ले, पोता बरते', भले
वह चीज महँगी क्यों न हो।
विपत्ति परे पै जानिए, को बैरी, को मीत= (संकट के समय ही मित्र और शत्रु की पहचान होती है)
प्रयोग- जब मैं मुसीबत में था तब सुरेश को छोड़कर किसी भी दोस्त ने मेरा साथ नहीं दिया। सच में मुझे तब पता
चला कि सुरेश के अलावा मेरा कोई दोस्त नहीं है। ठीक ही कहा गया है कि विपत्ति परे पै जानिए, को बैरी को मीत।
बिल्ली को ख्वाब में भी छींछड़े नजर आते हैं= (जरूरतमंद को स्वप्न में भी जरूरत की चीज दिखाई देती है)
प्रयोग- मेरे भाई साहब पैसे के पीछे पागल हो गए हैं। दिन-रात उन्हें यही चिंता लगी रहती है कि पैसा कैसे कमाया जाए।
क्या करें उनके लिए तो यही कहावत उपयुक्त है कि बिल्ली को तो ख्वाब में भी छींछड़े नजर आते हैं।
बिल्ली खाएगी, नहीं तो लुढ़का देगी= (दुष्ट लोग स्वयं लाभ न उठा पाएँ तो दूसरों की हानि तो कर ही देंगे)
प्रयोग- मंत्री जी ने संस्था के अधिकारी को धमकी देते हुए कहा, 'अगर मैनेजर के पद पर मेरे आदमी को नहीं लगाया तो
मैं यह पद ही कैंसिल करवा दूँगा। यह तो वही बात हुई कि बिल्ली खाएगी, नहीं तो लुढ़का देगी।
बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले= (पिछली बातों को भुलाकर आगे की चिन्ता करनी चाहिए)
प्रयोग- इधर-उधर आवारागर्दी करने के कारण मनोज बी० ए० की परीक्षा में फेल हो गया और जब उसने रोना-धोना शुरू
कर दिया तो शर्माजी ने समझाया कि 'बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले।'
बूर के लड्डू जो खाए सो पछताए, जो न खाय वह भी पछताय= (ऐसा कार्य जिसको करने वाले तथा न करने वाले,
दोनों ही पछताते हैं)
प्रयोग- भैया शादी को बूर का लड्डू समझो। इसे तो जो खाए सो पछताए और जो न खाए सो पछताए।
बेकार से बेगार भली= (न करने से कुछ करना ही अच्छा है)
प्रयोग- मैंने अपनी पत्नी को समझाया कि दिनभर खाली बैठे रहकर बोर होती हो इससे अच्छा है कि आसपास
के गरीब बच्चों को एक-दो घंटे पढ़ा दिया करो क्योंकि बेकार से बेगार भली होती है।
बोया गेहूँ, उपजे जौ= (कार्य कुछ परिणाम कुछ और)
प्रयोग- रमेश ने पैसा खर्च करके बेटे को मैडीकल में ऐडमिशन दिलाया। बेटा डॉक्टर भी बन गया पर प्रैक्टिस न चली।
यह देखकर महेश ने उसके लिए एक केमिस्ट की दुकान खुलवा दी। बेचारा लड़का, डॉक्टर से कैमिस्ट बन गया। यह तो वही बात
हुई कि बोया गेहूँ, उपजे जौ।
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ ते होय= (बुरे कर्मो से अच्छा फल नहीं मिलता)
प्रयोग- शमीम सारी जिंदगी बेईमानी करता रहा। बेईमानी के पैसे से सुख सुविधाएँ तो मिल गयीं पर बच्चे बिगड़ गए
और बाप की ही तरह गलत रास्तों पर चलने लगे। बच्चों को गलत रास्ते पर चलता देख शमीम को अच्छा नहीं लगता पर कोई
क्या कर सकता है जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से हो जाएँगे।
बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल= (श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना)
बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा= (जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता)
बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया= (बहुत बड़ा घाटा)
भागते चोर की लंगोटी ही सही= (सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना)
प्रयोग- सेठ करोड़ीमल पर मेरे दस हजार रुपये थे। दिवाला निकलने के कारण वह केवल दो हजार रु० ही दे रहा है। मैंने सोचा, चलो भागते चोर की लंगोटी ही सही।
भैंस के आगे बीन बजाना= (मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।)
प्रयोग-अरे ! रवि को पढ़ाई की बातें क्यों समझा रहे हो ? उसके लिए पढ़ाई-लिखाई सब बेकार की बातें हैं। तुम व्यर्थ ही
भैंस के आगे बीन बजा रहे हो।
भागते भूत की लँगोटी ही भली= (जहाँ कुछ न मिलने की आशंका हो, वहाँ थोड़े में ही संतोष कर लेना
अच्छा होता है।)
प्रयोग-
चोर तो पुलिस के हाथ नहीं आए, पर पुलिस को वह आदमी मिल गया जिसने उन चोरों को देखा था- कहते हैं कि भागते
भूत की लँगोटी ही भली।
भरी मुट्ठी सवा लाख की= (भेद न खुलने पर इज्जत बनी रहती है।)
प्रयोग-
रामपाल को वेतन बहुत कम मिलता है, लेकिन वह किसी को कुछ नहीं बताता। सही बात है- 'भरी मुट्ठी सवा लाख की' होती है।
भूखा सो रूखा= (निर्धन मनुष्य में मृदुता नहीं होती)
प्रयोग-
रामू गरीब है इसलिए उसका रूखा स्वभाव है। कहते भी हैं-'भूखा सो रूखा'।
भेड़ की खाल में भेड़िया= (जो देखने में भोला-भाला हो, परन्तु वास्तव में खतरनाक हो।)
प्रयोग-
आजकल कुछ लालची नेता लोग 'भेड़ की खाल में भेड़िये' बने शिकार खेल रहे हैं, उन्हें बेनकाब करना चाहिए।
भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है= (ईश्वर की जब किसी पर कृपा होती है तो उसे चारों ओर से लाभ ही लाभ होता है)
प्रयोग- वर्मा जी के लिए यह साल बड़ा ही लकी साबित हुआ। उनकी बेटी का विवाह हो गया, एक करोड़ की
लॉटरी लग गई जिससे उन्होंने एक नया फ्लैट तथा गाड़ी खरीद ली। सच में भगवान जब किसी को देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है।
भीख माँगे और आँख दिखावे= (दयनीय होकर भी अकड़ दिखाना)
प्रयोग- रमाकांत की हालत बहुत ही खस्ता है पर दूसरों के सामने अकड़ दिखाने से बाज नहीं आता। ऐसे ही
लोगों के लिए यह कहा गया है कि 'भीख माँगे और आँख दिखावे।
भूखे भजन न होय गोपाला= (भूखा व्यक्ति धर्म-कर्म भी नहीं करता)
प्रयोग- जिस आदमी ने कल से कुछ न खाया हो उससे तुम कह रहे हो कि पहले मंदिर जाकर दर्शन कर आए।
भैया पहले उसे कुछ खिलाओ-पिलाओ क्योंकि भूखे भजन न होय गोपाला।
भूख में किवाड़ पापड़= (भूख के समय सब कुछ अच्छा लगता है)
प्रयोग- वह भिखारी बहुत भूखा था। मेरे पड़ोसी ने उसे तीन दिन की बासी रोटी और सब्जी दी तो उसने
बड़े स्वाद से खाई। सच है भूख में किवाड़ भी पापड़ हो जाते हैं।
भीगी बिल्ली बताना= (बहाना बनाना)
प्रयोग- यह कहावत ऐसे आलसी नौकर की कथा पर आधारित है, जो अपने मालिक की बात को किसी न किसी
बहाने टाल दिया करता था। एक बार रात के समय मालिक ने कहा, ''देखो बाहर पानी तो नहीं बरस रहा है ?
नौकर ने कहा, ''हाँ बरस रहा है।'' मालिक ने पूछा ''तुम्हें कैसे मालूम हुआ?'' नौकर ने कहा, ''अभी एक
बिल्ली मेरे पास से निकली थी, उसका शरीर मैंने टटोला, तो वह भीगी थी।''
भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड़ी= (जब कोई स्वतन्त्र प्रकृति का व्यक्ति बुरी
तरह से गृहस्थी के चक्कर में पड़ जाता है।)
प्रयोग- राजू शादी के पश्चात नेतागिरी भूल गया। सच है भूल गए राग रंग, भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं
नून तेल लकड़ी।
भइ गति साँप-छछूँदर केरी= (दुविधा में पड़ना)