प्रयोजनवती लक्षणा के भेद
भेद | लक्षण/पहचान-चिह्न | परिभाषा एवं उदाहरण |
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(1) गौणी लक्षणा | सादृश्य संबंध | जहाँ सादृश्य संबंध अर्थात समान गुण या धर्म के कारण लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो। उदाहरण : 'मुख कमल'। सादृश्य संबंध के द्वारा लक्ष्यार्थ का बोध हो रहा है कि मुख कमल के समान कोमल है। |
(i) सारोपा (स +_आरोपा) |
विषय/उपमेय/आरोप का विषय + विषयी/उपमान/आरोप्यमाण (दोनों) | जहाँ विषय और विषयी दोनों का शब्द निर्देश करते हुए अभेद बताया जाए। उदाहरण : 'सीता गाय है।' का लक्ष्यार्थ है- सीता सीधी-सादी है। यहाँ गाय (विषयी) का सीधापन-सादापन सीता (विषय) पर आरोपित है। |
(ii) साध्यावसाना (स + अध्यवसाना) अध्यवसान =आत्मसात, निगरण | विषयी (केवल) | जहाँ केवल विषयी का कथन कर अभेद बताया जाए। उदाहरण : यदि कोई मालिक खीझ कर नौकर को कहे कि 'बैल कहीं का।' तो इस वाक्य में विषय (नौकर) का निर्देश नहीं है, केवल विषयी (बैल) का कथन है। |
(2) शुद्धा लक्षणा | सादृश्येतर संबंध सादृश्येतर = सादृश्य + इतर |
जहाँ सादृश्येतर संबंध (सादृश्य संबंध के अतिरिक्त किसी अन्य संबंध) से लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो। सादृश्येतर संबंध हैं- आधार-आधेय भाव, सामीप्य, वैपरीत्य, कार्य-कारण, तात्कर्म्य आदि। उदाहरण : (i) आधार-आधेय संबंध का उदाहरण : 'महात्मा गाँधी को देखने के लिए सारा शहर उमड़ पड़ा।' यहाँ 'शहर' का मुख्यार्थ (नगर) बाधित है, 'शहर' का लक्ष्यार्थ है- 'शहर के निवासी' । शहर है- आधार और शहर का निवासी है- आधेय। (ii) सामीप्य संबंध का उदाहरण : आँचल में है दूध और आँखों में पानी। (यशोधरा) यहाँ आँचल का मुख्यार्थ (साड़ी का छोर) बाधित है, आँचल मैथलीशरण गुप्त का लक्ष्यार्थ है- स्तन। चूँकि आँचल सदा स्तन के समीप रहता है, इसलिए आँचल और स्तन में सामीप्य संबंध है। (iii) वैपरीत्य संबंध का उदाहरण : 'तुम सूख-सूख कर हाथी हुए जा रहे हो।' कोई व्यक्ति सूख-सूखकर हाथी नहीं हो सकता है, लक्ष्यार्थ है- तुम बहुत दुर्बल हो गये हो। (iv) वैपरीत्य संबंध का एक और उदाहरण : 'उधो तुम अति चतुर सुजान' यहाँ जब गोपियाँ उद्धव को चतुर और सुजान बता रही है तो सूरदास वे वस्तुतः उद्धव को सीधा और अजान कह रही है। यहाँ चतुर और सुजान के मुख्यार्थ बाधित है और उनमें चतुरता का अभाव और अज्ञता का बोध कराना लक्ष्यार्थ है। |
(i) उपादान लक्षणा (उपादान = ग्रहण करना) | मुख्यार्थ + लक्ष्यार्थ (दोनों) | जहाँ मुख्यार्थ के साथ लक्ष्यार्थ का भी ग्रहण हो। उदाहरण : 'पगड़ी की लाज रखिए।' यहाँ 'पगड़ी' का मुख्यार्थ है- पगड़ी, पाग और लक्ष्यार्थ है- 'पगड़ी वाला' । यहाँ लक्ष्यार्थ के साथ-साथ मुख्यार्थ का भी ग्रहण किया गया है। |
(ii) लक्षण-लक्षणा | लक्ष्यार्थ (केवल) | जहाँ मुख्यार्थ को छोड़कर (त्याग कर) केवल लक्ष्यार्थ का ग्रहण हो। उदाहरण : (i) 'वह पढ़ाने में बहुत कुशल है।'- इस वाक्य में 'कुशल' का मुख्यार्थ (कुशलाने वाला) बाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (दक्ष) का ग्रहण किया गया है। (ii) 'माधुरी नृत्य में प्रवीण है।'- इस वाक्य में 'प्रवीण' का मुख्यार्थ (वीणा बजाने में निपुण) बाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (कुशल) को ग्रहीत किया गया है। (iii) 'देवदत्त चौकन्ना हो गया।'- इस वाक्य में 'चौकन्ना' का मुख्यार्थ (चार कानों वाला) बाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (सावधान) का ग्रहण किया गया है। |
लक्षणा का महत्त्व : काव्य में लक्षणा के प्रयोग से जीवन के अनुभव को समृद्ध किया जाता है। कल्पना के सहारे सादृश्य और साधर्म्य के अनेकानेक विधानों द्वारा अनुभवों की सूक्ष्मता और विस्तार को प्रकट किया जाता है। इसलिए काव्य में लक्षणा शब्द-शक्ति की प्रबलता है।
(3) व्यंजना (Suggestive Sense Of a Word)- अभिधा व लक्षणा के असमर्थ हो जाने पर जिस शक्ति के माध्यम से
शब्द का अर्थ बोध हो, उसे 'व्यंजना' कहते हैं।
दूसरे शब्दों में-शब्द के जिस व्यापार से मुख्य और लक्ष्य अर्थ से भिन्न अर्थ की प्रतीति हो उसे 'व्यंजना' कहते हैं।
'अंजन' शब्द में 'वि' उपसर्ग लगाने से 'व्यंजन' शब्द बना हैं; अतः व्यंजन का अर्थ हुआ 'विशेष प्रकार का व्यंजन'। आँख में लगा हुआ अंजन जिसप्रकार दृष्टि-दोष दूर कर उसे निर्मल बनाता हैं, उसी प्रकार व्यंजना-शक्ति शब्द के मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ को पीछे छोड़ती हुई उसके मूल में छिपे हुए अकथित अर्थ को प्रकाशित करती हैं।
अभिधा और लक्षणा अपने अर्थ का बोध करा कर जब अलग हो जाती हैं तब जिस शब्द-शक्ति द्वारा व्यंग्यार्थ का बोध होता हैं उसे व्यंजना-शक्ति कहते हैं। व्यंग्यार्थ के लिए 'ध्वन्यार्थ', 'सूच्यार्थ', 'आक्षेपार्थ', 'प्रतीयमानार्थ' जैसे शब्दों का प्रयोग होता हैं।
उदाहरण :
(i) प्रसिद्ध उदाहरण : 'सूर्य अस्त हो गया।' इस वाक्य के सुनने के उपरांत प्रत्येक व्यक्ति इससे भिन्न-भिन्न अर्थ ग्रहण करता है। प्रसंग विशेष के अनुसार इस वाक्य के अनंत व्यंजनार्थ हो सकते हैं।
वाक्य | प्रसंग विशेष (वक्ता-श्रोता) | अर्थ |
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सूर्य अस्त हो गया | पिता के पुत्र से कहने पर | पढ़ाई-लिखाई शुरू करो। |
सास के बहू से कहने पर | चूल्हा-चौका आरंभ करो। | |
किसान के हलवाहे से कहने पर | हल चलाना बंद करो | |
पशुपालक के चरवाहे से कहने पर | पशुओं को घर ले चलो। | |
पुजारी के चेले से कहने पर | संध्या-पूजन का प्रबंध करो। | |
राहगीर के अपने साथी से कहने पर | ठहरने का इंतजाम करो। | |
कारवाँ-प्रमुख के उपप्रमुख से कहने पर | पड़ाव की व्यवस्था करो। |
इस तरह इस एक वाक्य से वक्ता-श्रोता के अनुसार न जाने कितने अर्थ निकल सकते हैं। यहाँ जिसने भी अर्थ दिये गये है वे साक्षात् संकेतित नहीं है, इसलिए इनमें अभिधा शक्ति नहीं है। इनमें लक्षणा शक्ति भी नहीं है, कारण है कि उक्त वाक्य लक्षणा की शर्त मुख्यार्थ में बाधा को पूरा नहीं करता क्योंकि यहाँ सूर्य का जो मुख्यार्थ है वह मौजूद है। साफ है कि इनमें पायी जानेवाली शब्द-शक्ति व्यंजना है।
(ii) एक पद्यबद्ध उदाहरण :
प्रभुहिं चितइ पुनि चितइ महि राजत लोचन लोल।
खेलत मनसिजु-मीन-जुग, जनु विधुमंडल डोल।। - तुलसी
यहाँ धनुष-यज्ञ के प्रसंग में सीता की मनोदशा का चित्रण किया गया है। इस पद्य की पहली पंक्ति का वाच्यार्थ/अभिधेयार्थ यह है
कि सीता पहले राम की ओर देखती है और फिर धरती की ओर। इससे उनके चपल नेत्र शोभित हो रहे हैं। किन्तु व्यंजनार्थ यह है
कि सीता के मन में इस समय उत्सुकता, हर्ष, लज्जा आदि के भाव क्षण-क्षण में प्रकट हो रहे हैं। राम को देखकर उत्सुकता और
हर्ष का भाव उत्पन्न होता है, साथ ही दूसरों की उपस्थिति का ध्यान कर उनके मन में तुरंत लज्जा भी आ जाती है,
और वे धरती की ओर देखने लगती है। पर हर्ष और उत्सुकता के वशीभूत होने से वे अपने को रोक नहीं पाती और
फिर राम की और देखती है, किन्तु लज्जावश फिर धरती की ओर देखने लगती है। इस प्रकार यह चक्र कुछ समय तक चलता रहता है।
स्पष्ट है कि उक्त पद्य की पहली पंक्ति से हमें हर्ष, उत्सुकता, लज्जा आदि भावों की जो प्रतीति होती है वह न तो अभिधा शक्ति से होती है
और न लक्षणा शक्ति से, बल्कि होती है व्यंजना शक्ति से।
(iii) एक और पद्यबद्ध उदाहरण :
चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।। -कबीर
यहाँ चलती चक्की को देखकर कबीरदास के दुःखी होने की बात कही गई है। उसके द्वारा यह अर्थ व्यंजित होता है कि संसार चक्की के समान है जिसके जन्म और मृत्यु रूपी दो पार्टों के बीच आदमी पिसता रहता है।