Anuvad(Translation)(अनुवाद)


एक भाषा में प्रकट किये गये विचारों को दूसरी भाषा में रूपान्तरित करने को अनुवाद कहते हैं।

अनुवाद करने वाले को अनुवादक और अनुवाद की हुई रचना को अनूदित कहते हैं। अनुवाद की श्रेष्ठता अनुवादक की योग्यता पर निर्भर है। अनूदित रचना तभी निर्दोष समझी जाएगी जब मूल लेखों के भावों की पूर्ण रक्षा की जाय और अनूदित रचना में वही शक्ति हो जो मूल रचना में वर्त्तमान है। यह काम आसान नहीं है। वास्तव में अनुवादक का कार्य स्वतंत्र लेखक से कहीं अधिक कठिन है।

मूल लेखक तो स्वतंत्र हो कर सोचता-विचारता हुआ अपने विचारों को उन्मुक्त भाव से प्रकट करता चलता है लेकिन अनुवादक को इतनी स्वतंत्रता नहीं रहती। उसकी शक्ति और दृष्टि बँधी रहती है। मूल लेखक के विचारों से असहमत होते हुए भी अनुवादक को उसी के विचारों को प्रकट करना पड़ता हैं। अतः अनुवादक को तभी सफलता मिलती है वह दोनों भाषाओं के शब्दों, मुहावरों, कहावतों और शक्तियों का ठीक-ठीक ज्ञान रखता है।

किसी भी भाषा में अनुवाद के अनेक प्रयोजन होते हैं। इसके बिना कोई भी भाषा विकसित नहीं होती। जिस तीव्रता के साथ अँग्रेजी में अनूदित ग्रन्थों का प्रकाशन हर वर्ष होता है, उतना हमारी भाषा में नहीं होता। यद्यपि पिछले सौं वर्षों में दूसरी-दूसरी भाषाओं से, जिनमें अँग्रेजी, बँगला, मराठी, गुजराती, उर्दू, फारसी इत्यादि मुख्य हैं, हिन्दी में अनेक ग्रंथों के अनुवाद हुए तथापि अभी बहुत-सारे काम पड़े हैं।

अनुवाद की आवश्यकता के निम्नलिखित कारण हैं :-

(1) हिन्दी भाषा में अपने पैरों पर खड़ा होने की क्षमता उत्पत्र करने के लिए यह आवश्यक है कि संसार की समृद्ध भाषाओं में लिखित महान् ग्रन्थों का अनुवाद किया जाय। अब तक हमारी दृष्टि अँग्रेजी तक ही सीमित रही, लेकिन अब हम चीनी, जापानी, रूसी, जर्मन, फ्रेंच इत्यादि भाषाओं से भी अनुवाद की सामग्रियाँ लेने लगे हैं। यह शुभ लक्षण है। कोई भी भाषा अनुवादों से परिपुष्ट और समृद्ध होती है। शब्दों का भांडार बढ़ता है, \ नये प्रयोग सामने आते हैं और नयी-नयी शैलियों का जन्म होता है।

(2) अनुवाद पाठकों के ज्ञान को भी समृद्ध करता है। इनसे एक ओर हमारा ज्ञान बढ़ता है और दूसरी ओर हमारी विचारधारा में नये मोड़ जन्म लेते हैं। इन्हीं अनुवादों के द्वारा हम दूसरे देशों की सभ्यता, संस्कृति, विचार-दृष्टि और साहित्य से परिचित होते हैं और फिर हम भी उनके धरातल पर पहुँचने की चेष्टा करते हैं।

अनुवादों से देशों में नव-जागरण आया है, इसके कई प्रमाण हैं। वेदों और उपनिषदों के अनुवादों से जर्मनी जगी; रूसी, बाल्टेयर आदि फ्रांसीसी साहित्यकारों के ग्रंथानुवाद से रूस, इंगलैंड इत्यादि देशों में नवचेतना की लहर आयी और फिर हमारा देश पश्चिमी साहित्य के सम्पर्क में आ कर जागृत हुआ। अनुवादों से एक ओर देश में राष्ट्रीयता की उमंग आयी और दूसरी ओर राष्ट्रीय एकता का जन्म हुआ। अतः अनुवाद के प्रयोजन या महत्त्व को हम किसी भी अवस्था में गौण नहीं मान सकते। इससे हमारा प्रत्यक्ष कल्याण हुआ है।

इन्हीं प्रयोजनों या उद्देश्यों को ध्यान में रख कर भारतीय विश्वविद्यालयों में अनुवाद सम्बन्धी प्रश्न आज भी पहले की तरह दिये जाते हैं। लेकिन देश के हरेक प्रान्त में अँग्रेजी का स्तर एक तरह का नहीं है। फलतः कहीं अनुवाद की आवश्यकता समझी गयी हैं और कहीं नहीं। अँग्रेजी के लिए हमें विशेष आग्रह न हो तो भी अनुवाद-कला का अभ्यास हमारे लिए बहुत आवश्यक है।

अनुवाद की विशेषता

प्रत्येक भाषा की एक स्वतन्त्र प्रकृति होती है और उसमें भाव-व्यंजन की कुछ विशिष्ट प्रणालियाँ होती हैं। इसके अतिरिक्त भित्र-भित्र विषयों के ग्रन्थों में कुछ विशिष्ट प्रकार के भाव तथा शब्द भी होते हैं। जब हम दूसरी भाषाओं के अवतरण या ग्रन्थों के अनुवाद करते हैं, तब प्रायः हमें बहुत से नये शब्द गढ़ने पड़ते हैं और बहुत-से पद-प्रकार भी लेने पड़ते हैं। इस प्रकार के अनुवादों में वे ही अनुवाद श्रेष्ठ समझे जाते हैं जो भाव तथा विचार को ज्यों-का-त्यों प्रकट करने के अतिरिक्त अपनी भाषा की विशिष्ट प्रकृति का भी ध्यान रख कर किये जाते हैं। अन्यथा वे सदोष और अग्राह्य होते हैं।

निर्दोष अनुवाद के लिए यह आवश्यक है कि अनुवादक में दो भाषाओं का सम्यक् ज्ञान हो। उसी का अनुवाद अच्छा कहा जायेगा जिसका दोनों भाषाओं पर समान अधिकार होगा और जो उनकी अभिव्यंजना-प्रणाली से भलीभाँति परिचित होगा। यदि ऐसा नहीं होगा तो अनुवाद में त्रुटियाँ रह जायँगी। अँग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करते समय अँग्रेजी और हिन्दी व्याकरण की भित्र-भित्र विशेषताओं को ध्यान में रखना चाहिए।

अनुवाद के प्रकार

अनुवाद के तीन प्रकार हैं।

(1) शब्दानुवाद या अविकल अनुवाद (Literal translation)
(2) भावानुवाद (Faithful translation)
(3) स्वतंत्रानुवाद (Free translation)

(1) शब्दानुवाद (Literal translation)- यह मूल भाषा का शाब्दिक अनुवाद हैं।

उदाहरणार्थ- He first went to school in his own village, but while he was yet very young he went to Calcutta इसका शब्दानुवाद इस प्रकार होगा- 'पहले वह अपने ही गाँव की पाठशाला में पढ़ने गया। बाद में, जब वह बहुत छोटा ही था, तभी उसे कलकत्ता पढ़ने जाना पड़ा।' यहाँ 'He went to Calcutta का सीधा-सादा अनुवाद 'वह कलकत्ता गया' कर देना ठीक नहीं जँचता क्योंकि यहाँ चर्चा शिक्षा की हो रही हैं। यहाँ इसका अनुवाद 'पढ़ने जाना पड़ा' लिखना ठीक होगा।

इसी प्रकार अँग्रेजी का एक पद है 'To be patient with' जिसका अर्थ होता है- किसी उद्धत या अनुचित व्यवहार पर भी शान्त रहना, गम खाना या तरह दे जाना आदि। अँग्रेजी के एक वाक्य में इसका प्रयोग 'being patient with' के रूप में हुआ था। हिन्दी के एक पत्रकार ने बिना समझे-बूझे उस वाक्य का इस प्रकार शब्दानुवाद करके रख दिया था- 'राष्ट्रपति रूजबेल्ट श्री विन्स्टेन चर्चिल के मरीज हैं।' 'Patient' शब्द दिखाई पड़ा और उसका सीधा-साधा अर्थ 'मरीज' करके रख दिया। ...... एक बार जब बंगाल के एक प्रधान मंत्री ढाका का दंगा शान्त कराने के लिए वहाँ गये थे, तब उनकी उस 'flying visit' के सम्बन्ध में एक पत्र में लिखा दिया था- 'वे हवाई जहाज से ढाका गये थे।''

इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि शब्दों पर ध्यान रख कर अनुवाद करना अनुचित है। इससे अर्थ का अनर्थ हो सकता है और मूल अर्थ ही विकृत हो जायेगा। अतः शब्दानुवाद एक खतरा है, जिससे छात्रों को भरसक बचना चाहिए। यह स्मरण रखना चाहिए कि अनुवाद शब्दों का नहीं अर्थों का होता है।

(2) भावानुवाद (Faithful translation)- लेखक के मूल भावों या अर्थों को अपनी भाषा में प्रकट कर देना 'भावानुवाद' है। अँग्रेजी में इसे 'Faithful translation' कहते हैं। इसमें यह देखना पड़ता है कि मूल भाषा का एक भी भाव छूटने न पाये। इसकी सफलता इस बात में है कि मूल भाषा के सभी भाव दूसरी भाषा में रूपान्तरित हो जायँ। यहाँ अनुवादक का ध्यान शब्दों पर न जा कर विशेष रूप से मूल भाव पर रहता हैं।

''भावानुवाद में हम मूल भाषा के शब्दों को तोड़-मरोड़ सकते हैं, वाक्यों को आगे-पीछे कर सकते हैं, मुहावरों को अपने साँचे में ढाल सकते हैं, लेकिन वाक्यों को अपने इच्छानुसार घटा-बढ़ा नहीं सकते। भावानुवाद तात्पर्य में, आकार-प्रकार में, मूल भाषा से बिल्कुल मिलता-जुलता हैं। इसमें न अपनी ओर से निमक-मिर्च लगा सकते हैं, न लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँध सकते हैं। जो बात जिस उद्देश्य को ले कर जिस ढंग से कही गयी हैं, उस बात को, उसी उद्देश्य से और जहाँ तक हो उसी ढंग से कहना पड़ता हैं।''

उदाहरणार्थ- 'Man must earn his bread by the sweat of his brow' का शाब्दिक अनुवाद होगा- आदमी को अपनी भौं के पसीने से रोटी कमानी चाहिए।' लेकिन यह अनुवाद अच्छा नहीं समझा जायेगा क्योंकि मूल भाषा के भावों का हिन्दी-रूपान्तर ठीक नहीं हुआ और न हिन्दी भाषा की प्रकृति की ही रक्षा की गयी है। इसका भावानुवाद इस प्रकार होगा- 'मनुष्य को अपने पसीने की कमाई खानी चाहिए।' छात्रों को इसी प्रकार अनुवाद करना चाहिए। लेकिन ऐसा अनुवाद निरन्तर अभ्यास के बाद ही सम्भव हैं। भावानुवाद में अपनी शब्दयोजना, वाक्य-योजना, मुहावरा इत्यादि के प्रयोग में काफी सावधान रहने की आवश्यकता होती हैं।

यहाँ कुछ अशुद्ध अनुवादों के उदाहरण दिये जाते हैं :-

अँग्रेजी के शब्द अशुद्ध शब्दानुवाद शुद्ध भावानुवाद
Still child शान्त बच्चा मरा हुआ बच्चा
Hunger strike भूख-हड़ताल अनशन
White ants सफेद चींटी दीमक
Trade union व्यापार-संघ श्रमिक-संघ
House-breaker मकान तोड़ने वाला सेंघ मारने वाला
Coloured race रंगीन जाति काली जाति
Scorched earth policy घर-फूँक नीति सर्वक्षार-निति
A deed of gift दान का कार्य दान-पत्र
A jewel of poet कवि का हीरा कविरत्न
The dawn of intellect बुद्धि का सबेरा ज्ञानोदय
The fountain of happiness सुख की निर्झरणी सुख-स्रोत
An apple of discord झगड़ा का सेव कलह का मूल कारण
A man of spirit गर्म आदमी तेजस्वी पुरुष
A poet of first water पहले पानी का कवि उत्कृष्ट कवि
Man and money आदमी और रुपया धन-जन
Heaven and Earth स्वर्ग और पृथ्वी आकाश-पाताल
Mind and matter मस्तिष्क और पदार्थ जड़-चेतन
Land and task हरक्यूलियन कार्य भगीरथ-प्रयत्न
Aboriginal tribes पहले की जातियाँ आदिम जातियाँ
A rising poet उगता हुआ कवि उदीयमान कवि
Overwhelmed with grief दुःख से आच्छादित शोकग्रस्त
Hostile to country देश का दुश्मन देशद्रोही
A cock-and-bull story कौआ और साँढ़ की कहानी नानी की कहानी

(3) स्वतंत्रता (Free translation)- इसे 'छायानुवाद' भी कहते हैं। मूल भाषा के अर्थ या भाव को समझ कर स्वतंत्र रूप से किये गये अनुवाद को 'स्वतंत्रतानुवाद' कहते हैं।

साहित्यिक कृतियों के अनुवाद में प्रायः इसका उपयोग होता हैं। लेकिन विद्यार्थियों के लिए इसमें खतरा है, क्योंकि अभ्यास न रहने के कारण ये मूल अर्थ से बहुत दूर बहक जा सकते हैं। छायानुवाद में अनुवादक मूल लेखक की भाषा-शैली के सम्बन्ध में बिल्कुल स्वतंत्र रहता हैं। यहाँ केवल लेखक के विचारों को रूपान्तरित कर दिया जाता हैं। सारा अनूदित अवतरण पढ़ कर मूल लेखक का आशय समझ में आ जाता हैं।

यहाँ अनुवादक यह नहीं देखता कि एक वाक्य का अनुवाद एक से अधिक वाक्यों में हो रहा हैं या एक से अधिक वाक्यों का केवल एक वाक्य में, उसका उद्देश्य मूल लेखक के विचारों या भावों को अपनी भाषा में सुस्पष्ट कर देना होता हैं। अनुवादक चाहे तो मूल लेखक के भावों का विस्तार या संकोच दोनों कर सकता हैं। अनुवाद का यह ढंग विशेषतः पत्रकार अपनाते हैं। इसके लिए इतना ही बन्धन रहता है कि मूल भाषा का कोई भी विचार छूटने न पाये। लेकिन छात्रों को अँग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करने की इतनी स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती।

उत्कृष्ट अनुवाद के लिए छात्रों को मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। शाब्दिक अनुवाद और भावानुवाद को मिला कर चलने से सफल और सुन्दर अनुवाद किया जा सकता हैं। मूल लेखक के भावों और वाक्य-विन्यास की पूर्ण रक्षा करना एक कठिन काम हैं। इसके लिए अभ्यास और योग्यता की आवश्यकता हैं। अनभ्यासी यदि इस प्रकार के अनुवाद में प्रवृत्त होता हैं तो उसकी भाषा शिथिल हो जा सकती हैं।

ऐसी अनूदित रचना पढ़ने में न तो किसी को आनन्द आयेगा और न अनुवाद प्रवाहपूर्ण और प्रभावपूर्ण ही होगा। इसलिए छात्रों को शब्दानुवाद पर दृष्टि रखते हुए भावानुवाद का ही अभ्यास करना चाहिए। उन्हें यह देखना चाहिए कि मूल लेखक का कोई भाव छूटने न पाये। भावों की सुरक्षा शब्दों के संरक्षण में ही संभव हैं। अतः छात्रों को मूल अवतरण में आये प्रत्येक शब्द के अर्थ को समझते हुए, अपनी भाषा की प्रकृति और प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, भावानुवाद करना चाहिए। इस प्रकार का अनुवाद उत्कृष्ट, श्रेष्ठ और सुन्दर होगा। इस सामान्य निर्देश के अतिरिक्त कुछ और नियम भी दिये जा सकते हैं।