पाश्चात्य काव्यशास्त्र


पाश्चात्य काव्यशास्त्र

  • लोंजाइनस (मूल यूनानी नाम लोंगिनुस ('Longinus') का समय ईसा की प्रथम या तृतीय शताब्दी माना जाता है।
  • लोंजाइनस के ग्रन्थ का नाम 'पेरिहुप्सुस' है। इस ग्रन्थ का प्रथम बार प्रकाशन सन् 1554 ई० में इतालवी विद्वान रोबेरतेल्लो ने करवाया था।
  • 'पेरिहुप्सुस' मूलतः भाषणशास्त्र (रेटोरिक) का ग्रन्थ है।
  • 'पेरिहुप्सुस' का सर्वप्रथम अंग्रेजी रूपान्तर जॉन हॉल ने सन् 1652 ई० में 'ऑफ दि ऑफ एलोक्वेन्स' (of the Height of Eleoquence.) शीर्षक से प्रकाशित करवाया।
  • सैंट्सबरी ने 'ऑफ दि हाइट ऑफ एलोक्वेन्स' (वाग्मिता का प्रकर्ष) के लिए 'Sublime' (उदात्त) शब्द का प्रयोग किया।
  • लोंजाइनस ने 'पेरिहुप्सुस' की रचना पत्र के रूप में पोस्तुमिउस तेरेन्तियानुस नामक व्यक्ति को सम्बोधित करके की।
  • 'उदात्त' का निरूपण सर्वप्रथम 'केकिलिउस' नामक व्यक्ति ने किया था।
  • लोंजाइनस से पूर्व होरेस ने 'आर्स पोएतिका' (काव्य-कला) नामक ग्रन्थ को पत्र के रूप में लिखा था।
  • लोंजाइनस के 'पेरिहुप्सुस' में अध्यायानुसार निरूपित विषयों की तालिका इस प्रकार है-
  • अध्याय विषय
    1-7 ग्रन्थ का प्रयोजन, उदात्त की परिभाषा, कतिपय दोषों का विवेचन
    8-15 उदात्त के पाँच स्रोतों का निर्देश, उसमें विचार गरिमा व भाव की प्रबलता का निरूपण।
    16-29 अलंकारों का निरूपण।
    30-38 शब्द, रूप, बिम्ब आदि का निरूपण।
    39-40 रचना की भव्यता का निरूपण।
    41-43 दृष्टिभेद से उदात्त-विरोधी अन्य दोषों की चर्चा।
    44 यूनान के नैतिक-साहित्यिक ह्रास के कारणों का संधान।

  • लोंजाइनस के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों का अभिमत निम्न है-
  • विद्वान अभिमत
    सेन्ट्ससबरी उनकी आलोचना का प्रकार शुद्ध सौन्दर्यवादी है और उसमें भी सर्वोत्कृष्ट है।
    डेविड डेचेज उदात्त प्रथम भावात्मक साहित्य-सिद्धान्त है।
    स्काट जेम्स लोंजाइनस प्रथम स्वच्छन्दतावादी आलोचक है।
    एलेन टेट लोंजाइनस अपूर्ण होते हुए भी प्रथम साहित्यिक आलोचक हैं।
    विमसैट एवं क्लींथ बुक्स 'पेरिहुप्सुस' एक असाधारण लेख (Extra Ordinary Essay) है।
    एब्रम्स साहित्य के उत्तरवर्ती अध्येताओं की दृष्टि में यदि अरस्तू व्यवस्थाप्रेमी, होरेस सांसरिक और भाषणशास्त्री क्षुद्र हैं तो लोंजाइनस जीवन्त और आधुनिक हैं।

  • 'पेरिहुप्सुस' में सर्वत्र उत्तम पुरुष का प्रयोग किया गया है।
  • लोंजाइनस ने कहा है, ''उदात्त महान आत्मा की प्रतिध्वनि है।'' (Sublimity is the Echo of a great soul)
  • लोंजाइनस ने 'उदात्त' को परिभाषित करते हुए लिखा है, ''उदात्त अभिव्यंजन का अनिर्वचनीय प्रकर्ष और वैशिष्ट्य है।''
  • लोंजाइनस के अनुसार उदात्त का कार्य अनुनयन (Persuation) नहीं बल्कि सम्मोहन (Enchantment) या लोकोत्तर आह्राद (Transport) हैं।
  • लोंजाइनस उदात्त के पाँच स्रोत मानते हैं-
    (1) महान विचारों की उद्भावना की क्षमता।
    (2) प्रबल एवं अन्तःप्रेरित भाव।
    (3) अलंकारों (विचारालंकार और शब्दालंकार) का समुचित प्रयोग।
    (4) भव्य पद योजना। इसमें शब्द-चयन, बिंबविधान और शैलीगत परिष्कार अन्तर्भूत हैं।
    (5) रचना की गरिमा और उत्कर्ष का समुचित प्रभाव
  • लोंजाइनस उदात्त के तीन अवरोधक मानते हैं-
    (1) शब्दाडंबर (Tumidity or Bombost)
    (2) बालिशता (Puerility)
    (3) भावाडंबर (Empty or false Passion)- अस्थानस्थ, अनपेक्षित और अनुचित भावातिरेक भावाडंबर है।
  • जॉन ड्राइडन कवि एवं नाटककार थे। इनकी प्रमुख कृति 'ऑफ ड्रमेटी पोइजी' (नाट्य-काव्य, 1668 ई०) है।
  • जॉन ड्राइडन को आधुनिक अंग्रेजी गद्य और आलोचना दोनों का जनक माना जाता है।
  • ड्राइडन ने 'ऑफ ड्रेमेटिक पोइजी' की रचना निबन्ध शैली में की जिसमें एक पात्र 'नियेन्डर' (नया आदमी) की भूमिका में ड्राइडन स्वयं उपस्थिति है।
  • ड्राइडन ने नाटक को मानव प्रकृति का यथातथ्य और जीवन्त प्रतिबिम्ब माना है।
  • ड्राइडन ने साहित्य के दो प्रयोजन आनन्द और शिक्षा पर देते हुए लिखा, ''कविता का मुख्य उद्देश्य आनन्द है। .... आनन्द के माध्यम से शिक्षा को कविता का साध्य बनाया जा सकता है।''
  • ड्राइडन ने काव्य-सृजन में प्रतिभा को सर्वाधिक महत्व देते हुए लिखा है, ''उचित प्रतिभा प्रकृति का वरदान है।''
  • विलियम वर्डसवर्थ का संक्षिप्त जीवन वृत्त निम्नलिखित है-
  • जन्म-मृत्यु जन्म-स्थान उपाधि मित्र अन्तिम संग्रह
    1770-1850 इंग्लैण्ड पोयटलारिएट कोलरिज द प्रिल्यूड

  • वर्डसवर्थ का प्रथम काव्य संग्रह 'एन इवनिंग वॉक एण्ड डिस्क्रिप्टव स्केचैज' सन् 1793 ई० में प्रकाशित हुआ।
  • वर्डसवर्थ 1795 ई० में कोलरिज के मित्र बने तथा उनके ही सहलेखन में 'लिरिकल बैलेड्स' नामक कविताओं का प्रथम संस्करण सन् 1798 ई० में प्रकाशित करवाया।
  • 'लिरिकल बैलेड्स' को स्वच्छन्दतावादी काव्यांदोलन का घोषणा-पत्र माना जाता है।
  • 'लिरिकल बैलेड्स' के चार संस्करण प्रकाशित हुए और उसकी भूमिका को वर्डसवर्थ की आलोचना का मूल माना जाता है, जो निम्न है-
  • संस्करण भूमिका के शीर्षक
    प्रथम, 1798 एडवरटिजमेंट
    द्वितीय, 1800 प्रिफेस
    तृतीय, 1802 प्रिफेस
    चतुर्थ, 1815 प्रिफेस

  • वर्डसवर्थ ने कविता को परिभाषित करते हुए लिखा है- ''कविता प्रबल भावों का सहज उच्छलन हैं।
  • वर्डसवर्थ ने काव्य-भाषा के सम्बन्ध तीन मान्यताएँ प्रस्तुत कीं-
    (1) काव्य में ग्रामीणों की दैनिक बोलचाल की भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
    (2) काव्य और और गद्य की भाषा में कोई तात्विक भेद नहीं है।
    (3) प्राचीन कवियों का भावोद्वोध जितना सहज था, उनकी भाषा उतनी ही सरल थी। भाषा में कृत्रिमता और आडम्बर बाद के कवियों की देन है।
    वर्डसवर्थ की यह भी मानना है कि काव्य और गद्य में अन्तर केवल छन्द के कारण होता है।