जन्म-मृत्यु | जन्म स्थान | मूलनाम | गुरुप्रदत्त नाम | अरबी फारसी नाम | अंग्रेजी नाम |
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427-347 | एथेन्स | अरिस्तोक्लीस | प्लातोन | अफ़लातून | प्लेटो |
प्लेटो ने काव्य के तीन प्रमुख भेद स्वीकार किये हैं-
(1) अनुकरणात्मक प्रहसन और दुःखान्तक (नाटक)
(2) वर्णानात्मक डिथिरैंब (प्रगति)
(3) मिश्र महाकाव्य
जन्म-मृत्यु | जन्म स्थान | पत्नी | शिष्य था | गुरु था |
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384-322 ई० पू० | मकदूनिया | वीथियास | प्लेटो का | सिकन्दर का |
यूनानी नाम (मूल) | अध्याय व पृष्ठ | प्रथम अंग्रेजी अनुवादक व अनुवाद |
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पेरिपोइएतिकेस | छब्बीस व पचास | टी० विन्स्टैन्ली- आन-पोएटिक्स (1780) |
अध्याय | विषय |
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1.5 | अनुकरणात्मक काव्य के रूप में त्रासदी (टैजेडी), महाकाव्य (एपिक) तथा प्रहसन (कॉंमेडी) का विवेचन तथा माध्यम, विषय एवं पद्धति के आधार पर इनका पारस्परिक भेद। |
6-19 | यह ग्रन्थ का केन्द्रीय भाग है। इसमें त्रासदी का सविस्तार विवेचन तथा इसकी परिभाषा, संरचना, प्रभाव आदि का वर्णन है। |
20 | पद-विभाग आदि का व्याकरणिक विवेचन। |
21-22 | पदावली और लक्षणा का निरूपण। |
23-24 | महाकाव्य के स्वरूप का विवेचन |
25 | प्लेटो या अन्य लोगों द्वारा काव्य पर किये गए आक्षेपों का निराकरण |
26 | महाकाव्य और त्रासदी की तुलनात्मक मूल्यांकन |
यूनानी शब्द | हिन्दी अनु० | अंग्रेजी अनु० |
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पेरिपेतेइआ (Peripeteia) | स्थिति-विपर्यय | Reversal of the situation |
अनग्नोरिसिस (Anagnorisis) | अभिज्ञान | Recognition |
मिमेसिस (Mimesis) | अनुकरण | Imitation |
कथार्सिस (Katharsis) | विरेचन | |
माइथास (Maithos) | कथावस्तु | Plat |
एथोस (Ethos) | चरित्र | Character |
पाथोस (Pathos) | भाव | Emotion |
प्राक्सिस (Praxis) | कार्यव्यापार | Action |
शब्द | पारिभाषिक अर्थ |
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दुखान्तक | यह ऐसे कार्य-व्यापार का अनुकरण है जो गम्भीर स्वतः पूर्ण तथा कुछ विस्तृत हो, जिसे भाषा में विभिन्न कलात्मक अलंकरणों से विभूषित किया जाता है तथा जो कार्य-व्यापार के रूप में हो न कि आख्यान के किया जाता है तथा जो कार्य-व्यापार के रूप में हो न कि आख्यान के रूप में; जो करुणा एवं भय को उद्धुद्ध कर इन भावों का विरेचन करे। |
स्थिति-विपर्यय | स्थिति-विपर्यय दुखान्तक के अन्तर्गत कथानक में ऐसे परिवर्तन का नाम है जिससे कार्य-व्यापार सर्वथा विपरीत दिशा में मुड़ जाता है। यह मोड़ संभाव्यता या आवश्यकता के अनुसार होता है। |
अभिज्ञान | अभिज्ञान का अर्थ है अज्ञान की ज्ञान में परिणति। यह दुखान्तक के अन्तर्गत कथानक में पात्रों के मन में प्रेम या घृणा उत्पन्न करती है जो पात्रों के सौभाग्य या दुर्भाग्य का कारण बनती है। |
प्रकृति | अरस्तू ने इसके छह अर्थ माने है- (1) यह गति का कारण या साधन है। (2) इसका अर्थ विषय या वस्तु भी होता है। (3) यह तत्व का भी पर्याय है। (4) आकृति या रूप का नाम प्रकृति है। (5) 'विकास प्रक्रिया' को प्रकृति कहते हैं। (6) 'घटक' को भी प्रकृति कहते हैं। (बुचर के अनुसार प्रकृति वस्तु का वह आन्तरिक धर्म है जो विश्व की सर्जनात्मक शक्ति है।) |
कला | कला प्रकृति का अनुकरण है। |
अनुकरण | वस्तु का उन्नत रूपान्तरण ही अनुकरण है। अतः अनुकरण के तीन अर्थ है- (1) जो वस्तुएँ थी या हैं, (2) उन्हें जैसा कहा या माना जाता है, (3) उन्हें जैसा होना चाहिए। |
चरित्र | जिसके अन्तर्गत सभी विशिष्ट नैतिक गुण या स्थायी चित्तवृत्तियाँ आती हो, वह चरित्र है। |
भाव | भाव अनुभूति या संवेदना की मनोदशा का नाम है। |
कार्य-व्यापार | जो आन्तरिक कार्यों को बोधित करता हो, वह कार्य-व्यापार है। |
विरेचन | यह भारतीय चिकित्साशास्त्र का पारिभाषिक शब्द है। विरेचन मल निष्कासन द्वारा शरीर शोधन की अन्यतम क्रिया का नाम है। कला के क्षेत्र में विरेचन करुणा एवं भय को निष्काषित कर भावात्मक विश्रांति और भावात्मक परिष्कार करती है। |
अरस्तू ने लिखा है, ''कार्य व्यापार में निरत मनुष्य अनुकरण का विषय है।''