Viram chinh(Punctuation Mark)-(विराम चिह)


(6)प्रश्नवाचक चिह्न (Question mark)( ? ) - बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- तुम कहाँ जा रहे हो ?
वहाँ क्या रखा है ?
इतनी सुबह-सुबह तुम कहाँ चल दिए ?

इसका प्रयोग निम्रलिखित अवस्थाओं में होता है-

(i) जहाँ प्रश्र करने या पूछे जाने का बोध हो।
जैसे- क्या आप गया से आ रहे है ?

(ii) जहाँ स्थिति निश्रित न हो।
जैसे- आप शायद पटना के रहनेवाले है ?

(iii) जहाँ व्यंग्य किया जाय।
जैसे- भ्रष्टाचार इस युग का सबसे बड़ा शिष्टाचार है, है न ?
जहाँ घूसखोरी का बाजार गर्म है, वहाँ ईमानदारी कैसे टिक सकती है ?

(iv) इस चिह्न का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी उपयोग किया जाता है; जैसे- क्या कहा, वह निष्ठावान (?) है।

(7) कोष्ठक (Bracket)( () ) - वाक्य के बीच में आए शब्दों अथवा पदों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- उच्चारण (बोलना) जीभ एवं कण्ठ से होता है।
लता मंगेशकर भारत की कोकिला (मीठा गाने वाली) हैं।
सब कुछ जानते हुए भी तुम मूक (मौन/चुप) क्यों हो?

(8) योजक चिह्न (Hyphen) ( - ) - हिंदी में अल्पविराम के बाद योजक चिह्न का प्रयोग अधिक होता है। दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इसे 'विभाजक-चिह्न' भी कहते है।

जैसे- जीवन में सुख-दुःख तो चलता ही रहता है।
रात-दिन परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है।

भाषाविज्ञान की दृष्टि से हिन्दी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक है, संस्कृत की तरह संश्लेषणात्मक नहीं। संस्कृत में योजक चिह्न का प्रयोग नहीं होता।
एक उदाहरण इस प्रकार है- गायन्ति रमनामानि सततं ये जना भुवि।
नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्योपुनः पुनः।।

हिन्दी में इसका अनुवाद इस प्रकार होगा- पृथ्वी पर जो सदा राम-नाम गाते है, मै उन्हें बार-बार प्रणाम करता हूँ।
यहाँ संस्कृत में 'रमनामानि' लिखा गया और हिन्दी में 'राम-नाम', संस्कृत में 'पुनः पुनः' लिखा गया और हिन्दी में 'बार-बार' । अतः, संस्कृत और हिन्दी का अन्तर स्पष्ट है।

योजक चिह्न की आवश्यकता

अब प्रश्र आता है कि योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता क्यों होता है-
योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता इसलिए होता है क्योंकि वाक्य में प्रयुक्त शब्द और उनके अर्थ को योजक चिह्न चमका देता है। यह किसी शब्द के उच्चारण अथवा वर्तनी को भी स्पष्ट करता है।

श्रीयुत रामचन्द्र वर्मा का ठीक ही कहना है कि यदि योजक चिह्न का ठीक-ठीक ध्यान न रखा जाय, तो अर्थ और उच्चारण से सम्बद्ध अनेक प्रकार के भ्रम हो सकते हैं।
इस सम्बन्ध में वर्माजी ने 'भ्रम' के कुछ उदाहरण इस प्रकार दिये हैं-

(क) 'उपमाता' का अर्थ 'उपमा देनेवाला' भी है और 'सौतेली माँ' भी। यदि लेखक को दूसरा अर्थ अभीष्ट है, तो 'उप' और 'माता' के बीच योजक चिह्न लगाना आवश्यक है, नहीं तो अर्थ स्पष्ट नहीं होगा और पाठक को व्यर्थ ही मुसीबत मोल लेनी होगी।

(ख) 'भू-तत्व' का अर्थ होगा- भूमि या पृथ्वी से सम्बद्ध तत्व ; पर यदि 'भूतत्तव' लिखा जाय, तो 'भूत' शब्द का भाववाचक संज्ञारूप ही माना और समझा जायेगा।

(ग) इसी तरह, 'कुशासन' का अर्थ 'बुरा शासन' भी होगा और 'कुश से बना हुआ आसन' भी। यदि पहला अर्थ अभीष्ट है, तो 'कु' के बाद योजक चिह्न लगाना आवश्यक है।

उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि योजक चिह्न की अपनी उपयोगिता है और शब्दों के निर्माण में इसका बड़ा महत्त्व है। किन्तु, हिन्दी में इसके प्रयोग के नियम निर्धारित नहीं है, इसलिए हिन्दी के लेखक इस ओर पूरे स्वच्छन्द हैं।

योजक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्था में होता है-

(i) योजक चिह्न प्रायः दो शब्दों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता है, किंतु दोनों का स्वतंत्र रूप बना रहता है। इस संबंध में नियम यह है कि जिन शब्दों या पदों के दोनों खंड प्रधान हों और जिनमें और अनुक़्त या लुप्त हो, वहाँ योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- दाल-रोटी, दही-बड़ा, सीता-राम, फल-फूल ।

(ii) दो विपरीत अर्थवाले शब्दों के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- ऊपर-नीचे, राजा-रानी, रात-दिन, पाप-पुण्य, आकाश-पाताल, स्त्री-पुरुष, माता-पिता, स्वर्ग-नरक।

(iii) एक अर्थवाले सहचर शब्दों के बीच भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- दीन-दुःखी, हाट-बाजार, रुपया-पैसा, मान-मर्यादा, कपड़ा-लत्ता, हिसाब-किताब, भूत-प्रेत।

(iv) जब दो विशेषणों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में हो, वहाँ भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- अंधा-बहरा, भूखा-प्यासा, लूला-लँगड़ा।

(v) जब दो शब्दों में एक सार्थक और दूसरा निरर्थक हो तो वहाँ भी योजक चिह्न लगता है।
जैसे- परमात्मा-वरमात्मा, उलटा -पुलटा, अनाप-शनाप, खाना-वाना, पानी-वानी ।

(vi) जब एक ही संज्ञा दो बार लिखी जाय तो दोनों संज्ञाओं के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- नगर-नगर, गली-गली, घर-घर, चम्पा-चम्पा, वन-वन, बच्चा-बच्चा, रोम-रोम ।

(vii) निश्रित संख्यावाचक विशेषण के दो पद जब एक साथ प्रयोग में आयें तो दोनों के बीच योजक चिह्न लगेगा।
जैसे- एक-दो, दस-बारह, नहला-दहला, छह-पाँच, नौ-दो, दो-दो, चार-चार।

(viii) जब दो शुद्ध संयुक्त क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त हों,तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगता है।
जैसे- पढ़ना-लिखना, उठना-बैठना, मिलना-जुलना, मारना-पीटना, खाना-पीना, आना-जाना, करना-धरना, दौड़ना-धूपना, मरना-जीना, कहना-सुनना, समझना-बुझना, उठना-गिरना, रहना-सहना, सोना-जगना।

(ix) क्रिया की मूलधातु के साथ आयी प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- उड़ना-उड़ाना, चलना-चलाना, गिरना-गिराना, फैलना-फैलाना, पीना-पिलाना, ओढ़ना-उढ़ाना, सोना-सुलाना, सीखना-सिखाना, लेटना-लिटाना।

(x) दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- डराना-डरवाना, भिंगाना-भिंगवाना, जिताना-जितवाना, चलाना-चलवाना, कटाना-कटवाना, कराना-करवाना।

(xi) परिमाणवाचक और रीतिवाचक क्रियाविशेषण में प्रयुक्त दो अव्ययों तथा 'ही', 'से', 'का', 'न', आदि के बीच योजक चिह्न का व्यवहार होता है।
जैसे- बहुत-बहुत, थोड़ा-थोड़ा, थोड़ा-बहुत, कम-कम, कम-बेश, धीरे-धीरे, जैसे-तैसे, आप-ही आप, बाहर-भीतर, आगे-पीछे, यहाँ-वहाँ, अभी-अभी, जहाँ-तहाँ, आप-से-आप, ज्यों-का-त्यों, कुछ-न-कुछ, ऐंसा-वैसा, जब-तब, तब-तब, किसी-न-किसी, साथ-साथ।

(xii ) गुणवाचक विशेषण में भी 'सा' जोड़कर योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- बड़ा-सा पेड़, बड़े-से-बड़े लोग, ठिंगना-सा आदमी।

(xiii ) जब किसी पद का विशेषण नहीं बनता, तब उस पद के साथ 'सम्बन्धी' पद जोड़कर दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- भाषा-सम्बन्धी चर्चा, पृथ्वी-सम्बन्धी तत्व, विद्यालय-सम्बन्धी बातें, सीता-सम्बन्धी वार्त्ता।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि जिन शब्दों के विशेषणपद बन चुके हैं या बन सकते है, वैसे शब्दों के साथ 'सम्बन्धी' जोड़ना उचित नहीं। यहाँ 'भाषा-सम्बन्धी' के स्थान पर 'भाषागत' या 'भाषिक' या 'भाषाई' विशेषण लिखा जाना चाहिए।
इसी तरह, 'पृथ्वी-सम्बन्धी' के लिए 'पार्थिव' विशेषण लिखा जाना चाहिए। हाँ, 'विद्यालय' और 'सीता' के साथ 'सम्बन्धी' का प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि इन दो शब्दों के विशेषणरूप प्रचलित नहीं हैं। आशय यह कि सभी प्रकार के शब्दों के साथ 'सम्बन्धी' जोड़ना ठीक नहीं।

(xiv ) जब दो शब्दों के बीच सम्बन्धकारक के चिह्न- का, के और की- लुप्त या अनुक्त हों, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसे शब्दों को हम सन्धि या समास के नियमों से अनुशासित नहीं कर सकते। इनके दोनों पद स्वतंत्र होते हैं।
जैसे-शब्द-सागर, लेखन-कला, शब्द-भेद, सन्त-मत, मानव-जीवन, मानव-शरीर, लीला-भूमि, कृष्ण-लीला, विचार-श्रृंखला, रावण-वध, राम-नाम, प्रकाश-स्तम्भ।

(xv ) लिखते समय यदि कोई शब्द पंक्ति के अन्त में पूरा न लिखा जा सके, तो उसके पहले आधे खण्ड को पंक्ति के अन्त में रखकर उसके बाद योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसी हालत में शब्द को 'शब्दखण्ड' या 'सिलेबुल' या पूरे 'पद' पर तोड़ना चाहिए। जिन शब्दों के योग में योजक चिह्न आवश्यक है, उन शब्दों को पंक्ति में तोड़ना हो तो शब्द के प्रथम अंश के बाद योजक चिह्न देकर दूसरी पंक्ति दूसरे अंश के पहले योजक देकर जारी करनी चाहिए।

(xvi)अनिश्रित संख्यावाचकविशेषण में जब 'सा', 'से' आदि जोड़े जायें, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- बहुत-सी बातें, कम-से-कम, बहुत-से लोग, बहुत-सा रुपया, अधिक-से-अधिक, थोड़ा-सा काम।

(9) अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न (Inverted Comma)(''... '') - किसी की कही हुई बात को उसी तरह प्रकट करने के लिए अवतरण चिह्न ( ''... '' ) का प्रयोग होता है।

जैसे- राम ने कहा, ''सत्य बोलना सबसे बड़ा धर्म है।''
उद्धरणचिह्न के दो रूप है- इकहरा ( ' ' ) और दुहरा ( '' '' )।

(i) जहाँ किसी पुस्तक से कोई वाक्य या अवतरण ज्यों-का-त्यों उद्धृत किया जाए, वहाँ दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है और जहाँ कोई विशेष शब्द, पद, वाक्य-खण्ड इत्यादि उद्धृत किये जायें वहाँ इकहरे उद्धरण लगते हैं। जैसे-

''जीवन विश्र्व की सम्पत्ति है। ''- जयशंकर प्रसाद
''कामायनी' की कथा संक्षेप में लिखिए।

(ii) पुस्तक, समाचारपत्र, लेखक का उपनाम, लेख का शीर्षक इत्यादि उद्धृतकरते समय इकहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- 'निराला' पागल नहीं थे।
'किशोर-भारती' का प्रकाशन हर महीने होता है।
'जुही की कली' का सारांश अपनी भाषा में लिखो।
सिद्धराज 'पागल' एक अच्छे कवि हैं।
'प्रदीप' एक हिन्दी दैनिक पत्र है।

(iii) महत्त्वपूर्ण कथन, कहावत, सन्धि आदि को उद्धत करने में दुहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है।
जैसे- भारतेन्दु ने कहा था- ''देश को राष्ट्रीय साहित्य चाहिए।''

(10) लाघव चिह्न (Abbreviation sign)( o ) - किसी बड़े तथा प्रसिद्ध शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए उस शब्द का पहला अक्षर लिखकर उसके आगे शून्य (०) लगा देते हैं। यह शून्य ही लाघव-चिह्न कहलाता है।

जैसे- पंडित का लाघव-चिह्न पंo,
डॉंक़्टर का लाघव-चिह् डॉंo
प्रोफेसर का लाघव-चिह्न प्रो०

(11) आदेश चिह्न (Sign of following)(:-) - किसी विषय को क्रम से लिखना हो तो विषय-क्रम व्यक्त करने से पूर्व आदेश चिह्न ( :- ) का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- वचन के दो भेद है :- 1. एकवचन, 2. बहुवचन।

(12) रेखांकन चिह्न (Underline) (_) - वाक्य में महत्त्वपूर्ण शब्द, पद, वाक्य रेखांकित कर दिया जाता है।

जैसे- गोदान उपन्यास, प्रेमचंद द्वारा लिखित सर्वश्रेष्ठ कृति है।

(13) लोप चिह्न (Mark of Omission)(...) - जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- गाँधीजी ने कहा, ''परीक्षा की घड़ी आ गई है .... हम करेंगे या मरेंगे'' ।