''व्याकरण-सिंद्ध पदों को मेल के अनुसार यथाक्रम रखने को ही 'वाक्य-रचना' कहते है।''
वाक्य का एक पद दूसरे से लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का जो संबंध रखता है, उसे ही 'मेल' कहते हैं। जब वाक्य में दो पद एक ही लिंग-वचन-पुरुष-काल और नियम के हों तब वे आपस में मेल, समानता या सादृश्य रखनेवाले कहे जाते हैं।
निर्दोष वाक्य लिखने के कुछ नियम हैं। इनकी सहायता से शुद्ध वाक्य लिखने का प्रयास किया जा सकता है।
सुन्दर वाक्यों की रचना के लिए
(क) क्रम (Order) (ख) अन्वय (Co-ordination) और (ग) प्रयोग (Use) से
सम्बद्ध कुछ सामान्य नियमों का ज्ञान आवश्यक है।
किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को 'क्रम' अथवा 'पदक्रम' कहते हैं। इसके कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं-
(i) हिंदी वाक्य के आरम्भ में कर्ता, मध्य में कर्म और अन्त में क्रिया होनी चाहिए।
जैसे- मोहन ने भोजन किया।
यहाँ कर्ता 'मोहन', कर्म 'भोजन' और अन्त में क्रिया 'क्रिया' है।
(ii) उद्देश्य या कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को विधेय के पहले रखना चाहिए। जैसे- अच्छे लड़के धीरे-धीरे पढ़ते हैं।
(iii) कर्ता और कर्म के बीच अधिकरण, अपादान, सम्प्रदान और करण कारक क्रमशः आते हैं।
जैसे-
मुरारि ने घर में (अधिकरण) आलमारी से (अपादान) श्याम के लिए (सम्प्रदान) हाथ से (करण) पुस्तक निकाली।
(iv) सम्बोधन आरम्भ में आता है।
जैसे-
हे प्रभु, मुझपर दया करें।
(v) विशेषण विशेष्य या संज्ञा के पहले आता है।
जैसे-
मेरी उजली कमीज कहीं खो गयी।
(vii) प्रश्रवाचक पद या शब्द उसी संज्ञा के पहले रखा जाता है, जिसके बारे में कुछ पूछा जाय।
जैसे-
क्या मोहन सो रहा है ?
टिप्पणी- यदि संस्कृत की तरह हिंदी में वाक्यरचना के साधारण क्रम का पालन न किया जाय, तो इससे कोई क्षति अथवा अशुद्धि नहीं होती। फिर भी, उसमें विचारों का एक तार्किक क्रम ऐसा होता है, जो एक विशेष रीति के अनुसार एक-दूसरे के पीछे आता है।
क्रम-संबंधी कुछ अन्य बातें
(1) प्रश्नवाचक शब्द को उसी के पहले रखना चाहिए, जिसके विषय में मुख्यतः प्रश्न किया जाता है।
जैसे-
वह कौन व्यक्ति है ?
वह क्या बनाता है ?
(2) यदि पूरा वाक्य ही प्रश्नवाचक हो तो ऐसे शब्द (प्रश्नसूचक) वाक्यारंभ में रखना चाहिए।
जैसे-
क्या आपको यही बनना था ?
(3) यदि 'न' का प्रयोग आदर के लिए आए तो प्रश्नवाचक का चिह्न नहीं आएगा और 'न' का प्रयोग अंत में होगा।
जैसे-
आप बैठिए न।
आप मेरे यहाँ पधारिए न।
(4) यदि 'न' क्या का अर्थ व्यक्त करे तो अंत में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए और 'न' वाक्यान्त में होगा।
जैसे-
वह आज-कल स्वस्थ है न ?
आप वहाँ जाते हैं न ?
(5) पूर्वकालिक क्रिया मुख्य क्रिया के पहले आती है।
जैसे-
वह खाकर विद्यालय जाता है।
शिक्षक पढ़ाकर घर जाते हैं।
(6) विस्मयादिबोधक शब्द प्रायः वाक्यारंभ में आता है।
जैसे-
वाह ! आपने भी खूब कहा है।
ओह ! यह दर्द सहा नहीं जा रहा है।
'अन्वय' में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभित्र पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता हैं।
कर्ता और क्रिया का मेल
(i) यदि कर्तृवाचक वाक्य में कर्ता विभक्तिरहित है, तो उसकी क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के
अनुसार होंगे।
जैसे-
करीम किताब पढ़ता है।
सोहन मिठाई खाता है।
रीता घर जाती है।
(ii) यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष के अनेक विभक्तिरहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले 'और' संयोजक आया हो,
तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी।
जैसे-
मोहन और सोहन सोते हैं।
आशा, उषा और पूर्णिमा स्कूल जाती हैं।
(iii) यदि वाक्य में दो भित्र लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्वसमास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुंलिंग
बहुवचन में होगी।
जैसे-
नर-नारी गये।
राजा-रानी आये।
स्त्री-पुरुष मिले।
माता-पिता बैठे हैं।
(iv) यदि वाक्य में दो भित्र-भित्र विभक्तिरहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच 'और' संयोजक आये, तो उनकी क्रिया पुंलिंग
और बहुवचन में होगी।
जैसे-
राधा और कृष्ण रास रचते हैं।
बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।
(v) यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता हों, तो क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता
के अनुसार होगा।
जैसे-
एक लड़का, दो बूढ़े और अनेक लड़कियाँ आती हैं।
एक बकरी, दो गायें और बहुत-से बैल मैदान में चरते हैं।
(vi) यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय 'या' अथवा 'वा' रहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग
और वचन के अनुसार होगी।
जैसे-
घनश्याम की पाँच दरियाँ वा एक कम्बल बिकेगा।
हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी।
मोहन का बैल या सोहन की गायें बिकेंगी।
(vii) यदि उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तमपुरुष के अनुसार होगी।
जैसे-
वह और हम जायेंगे।
हरि, तुम और हम सिनेमा देखने चलेंगे।
वह, आप और मैं चलूँगा।
गुरूजी का मत है कि वाक्य में पहले मध्यमपुरुष प्रयुक्त होता है, उसके बाद अन्यपुरुष और अन्त में उत्तमपुरुष।
जैसे- तुम, वह और मैं जाऊँगा।
कर्म और क्रिया का मेल
(i) यदि वाक्य में कर्ता 'ने' विभक्ति से युक्त हो और कर्म की 'को' विभक्ति न हो, तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग,
वचन और पुरुष के अनुसार होगी।
जैसे-
आशा ने पुस्तक पढ़ी।
हमने लड़ाई जीती।
उसने गाली दी। मैंने रूपये दिये।
तुमने क्षमा माँगी।
(ii) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्तिचिह्नों से युक्त हों, तो क्रिया सदा एकवचन पुंलिंग
और अन्यपुरुष में होगी।
जैसे-
मैंने कृष्ण को बुलाया।
तुमने उसे देखा।
स्त्रियों ने पुरुषों को ध्यान से देखा।
(iii) यदि कर्ता 'को' प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदा पुंलिंग,
एकवचन और अन्यपुरुष में होगी।
जैसे-
तुम्हें (तुमको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
अलका को रसोई बनाना नहीं आता।
उसे (उसको) समझकर बात करना नहीं आता।
(iv) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्तिरहित कर्म एक साथ आएँ, तो क्रिया उसी लिंग में
बहुवचन में होगी।
जैसे-
श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए।
तुमने गाय और भैंस मोल ली।
(v) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें,
तो क्रिया भी एकवचन में होगी।
जैसे-
मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी।
सोहन ने एक पुस्तक और एक कलम खरीदी।
मोहन ने एक घोड़ा और एक हाथी बेचा।
(vi) यदि वाक्य में भित्र-भित्र लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें और वे 'और' से जुड़े हों, तो क्रिया अन्तिम
कर्म के लिंग और वचन में होगी।
जैसे-
मैंने मिठाई और पापड़ खाये।
उसने दूध और रोटी खिलाई।
संज्ञा और सर्वनाम का मेल
(i) सर्वनाम में उसी संज्ञा के लिंग और वचन होते हैं, जिसके बदले वह आता है; परन्तु
कारकों में भेद रहता है।
जैसे-
प्रखर ने कहा कि मैं जाऊँगा।
शीला ने कहा कि मैं यहीं रूकूँगी।
(ii) संपादक, ग्रंथकार, किसी सभा का प्रतिनिधि और बड़े-बड़े अधिकारी अपने लिए 'मैं' की जगह 'हम'
का प्रयोग करते हैं।
जैसे-
हमने पहले अंक में ऐसा कहा था।
हम अपने राज्य की सड़कों को स्वच्छ रखेंगे।
(iii) एक प्रसंग में किसी एक संज्ञा के बदले पहली बार जिस वचन में सर्वनाम का प्रयोग करे, आगे के लिए भी वही
वचन रखना उचित है।
जैसे-
अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा।
तुमने हमारी पुस्तक लौटा दी हैं।
मैं तुमसे बहुत नाराज नहीं हूँ। (अशुद्ध वाक्य है।)
पहली बार अंकित के लिए 'मैं' का और संजय के लिए 'तू' का प्रयोग हुआ है तो अगली बार भी 'तुमने' की जगह
'तूने', 'हमारी' की जगह 'मेरी' और 'तुमसे' की जगह 'तुझसे' का प्रयोग होना चाहिए :
अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा। तूने मेरी पुस्तक लौटा दी है। मैं तुझसे बहुत
नाराज नहीं हूँ। (शुद्ध वाक्य)
(iv) संज्ञाओं के बदले का एक सर्वनाम वही लिंग और वचन लेगा जो उनके समूह से समझे जाएँगे।
जैसे-
शरद् और संदीप खेलने गए हैं; परन्तु वे शीघ्र ही आएँगे।
श्रोताओं ने जो उत्साह और आनंद प्रकट किया उसका वर्णन नहीं हो सकता।
(v) 'तू' का प्रयोग अनादर और प्यार के लिए होता है।
जैसे-
रे नृप बालक, कालबस बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु विदित सकल संसार।। (गोस्वामी तुलसीदास)
तोहि- तुझसे
अरे मूर्ख ! तू यह क्या कर रहा है ?(अनादर के लिए)
अरे बेटा, तू मुझसे क्यों रूठा है ? (प्यार के लिए)
तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूँ।
(vi) मध्यम पुरुष में सार्वनामिक शब्द की अपेक्षा अधिक आदर सूचित करने लिए किसी संज्ञा के बदले ये प्रयुक्त होते हैं-
(a) पुरुषों के लिए : महाशय, महोदय, श्रीमान्, महानुभाव, हुजूर, हुजुरवाला, साहब, जनाब इत्यादि।
(b) स्त्रियों के लिए : श्रीमती, महाशया, महोदया, देवी, बीबीजी आदि।
संबंध और संबंधी में मेल
(1) संबंध के चिह्न में वही लिंग-वचन होते हैं, जो संबंधी के।
जैसे-
रामू का घर
श्यामू की बकरी
(2) यदि संबंधी में कई संज्ञाएँ बिना समास के आए तो संबंध का चिह्न उस संज्ञा के अनुसार होगा,
जिसके पहले वह रहेगा।
जैसे-
मेरी माता और पिता जीवित हैं। (बिना समास के)
मेरे माता-पिता जीवित है। (समास होने पर)
वाक्य का सारा सौन्दर्य पदों अथवा शब्दों के समुचित प्रयोग पर आश्रित है। पदों के स्वरूप और औचित्य पर ध्यान रखे बिना शिष्ट और सुन्दर वाक्यों की रचना नहीं होती। प्रयोग-सम्बन्धी कुछ आवश्यक निर्देश निम्रलिखित हैं-
कुछ आवश्यक निर्देश
(i) एक वाक्य से एक ही भाव प्रकट हो।
(ii) शब्दों का प्रयोग करते समय व्याकरण-सम्बन्धी नियमों का पालन हो।
(iii) वाक्यरचना में अधूरे वाक्यों को नहीं रखा जाये।
(iv) वाक्य-योजना में स्पष्टता और प्रयुक्त शब्दों में शैली-सम्बन्धी शिष्टता हो।
(v) वाक्य में शब्दों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हो। तात्पर्य यह कि वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक ही काल में, एक ही स्थान में और एक ही साथ होना चाहिए।
(vi) वाक्य में ध्वनि और अर्थ की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(vii) वाक्य में व्यर्थ शब्द न आने पायें।
(viii) वाक्य-योजना में आवश्यकतानुसार जहाँ-तहाँ मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हो।
(ix) वाक्य में एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कहीं 'यह' और कहीं 'वह', कहीं 'आप' और कहीं 'तुम', कहीं 'इसे' और कहीं 'इन्हें', कहीं 'उसे'
और कहीं 'उन्हें', कहीं 'उसका' और कहीं 'उनका', कहीं 'इनका' और कहीं 'इसका' प्रयोग नहीं होना चाहिए।
(x) वाक्य में पुनरुक्तिदोष नहीं होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में औचित्य पर ध्यान देना चाहिए।
(xi) वाक्य में अप्रचलित शब्दों का व्यवहार नहीं होना चाहिए।
(xii) परोक्ष कथन (Indirect narration) हिन्दी भाषा की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। यह वाक्य अशुद्ध है- उसने कहा कि उसे
कोई आपत्ति नहीं है। इसमें 'उसे' के स्थान पर 'मुझे' होना चाहिए।
अन्य ध्यातव्य बातें
(1) 'प्रत्येक', 'किसी', 'कोई' का प्रयोग- ये सदा एकवचन में प्रयुक्त होते है, बहुवचन में प्रयोग अशुद्ध है। जैसे-
प्रत्येक- प्रत्येक व्यक्ति जीना चाहता है।
प्रत्येक पुरुष से मेरा निवेदन है।
कोई- मैंने अब तक कोई काम नहीं किया।
कोई ऐसा भी कह सकता है।
किसी- किसी व्यक्ति का वश नहीं चलता।
किसी का ऐसा कहना है।
किसी ने कहा था।
टिप्पणी- 'कोई' और 'किसी' के साथ 'भी' का प्रयोग अशुद्ध है। जैसे- कोई भी होगा, तब काम चल जायेगा। यहाँ 'भी' अनावश्यक है। कोई 'कोऽपि' का तद्भव है। 'कोई' और 'किसी' में 'भी' का भाव वर्त्तमान है।
(2) 'द्वारा' का प्रयोग- किसी व्यक्ति के माध्यम (through) से जब कोई काम होता है, तब संज्ञा के बाद
'द्वारा' का प्रयोग होता है; वस्तु (संज्ञा) के बाद
'से' लगता है।
जैसे-
सुरेश द्वारा यह कार्य सम्पत्र हुआ।
युद्ध से देश पर संकट छाता है।
(3) 'सब' और 'लोग' का प्रयोग- सामान्यतः दोनों बहुवचन हैं। पर कभी-कभी 'सब' का समुच्चय-रूप
में एकवचन में भी प्रयोग होता है।
जैसे-
तुम्हारा सब काम गलत होता है।
यदि काम की अधिकता का बोध हो तो 'सब' का प्रयोग बहुवचन में होगा।
जैसे-
सब यही कहते हैं।
हिंदी में 'सब' समुच्चय और संख्या- दोनों का बोध कराता है।
'लोग' सदा बहुवचन में प्रयुक्त होता है।
जैसे- लोग अन्धे नहीं हैं। लोग ठीक ही कहते हैं।
कभी-कभी 'सब लोग' का प्रयोग बहुवचन में होता है। 'लोग' कहने से कुछ व्यक्तियों का और 'सब लोग' कहने से अनगिनत और अधिक
व्यक्तियों का बोध होता है। जैसे-
सब लोगों का ऐसा विचार है। सब लोग कहते है कि गाँधीजी महापुरुष थे।
(4) व्यक्तिवाचक संज्ञा और क्रिया का मेल- यदि व्यक्तिवाचक संज्ञा कर्ता है, तो उसके लिंग और वचन के
अनुसार क्रिया के लिंग और वचन होंगे।
जैसे- कशी सदा भारतीय संस्कृति का केन्द्र रही है।
यहाँ कर्ता स्त्रीलिंग है।
पहले कलकत्ता भारत की राजधानी था।
यहाँ कर्ता पुंलिंग है।
उसका ज्ञान ही उसकी पूँजी था।
यहाँ कर्ता पुंलिंग है।
(5) समयसूचक समुच्चय का प्रयोग- ''तीन बजे हैं। आठ बजे हैं।'' इन वाक्यों में तीन और आठ बजने का बोध समुच्चय में हुआ है।
(6) 'पर' और 'ऊपर' का प्रयोग- 'ऊपर' और 'पर' व्यक्ति और वस्तु दोनों के साथ प्रयुक्त होते हैं। किन्तु
'पर' सामान्य ऊँचाई का और 'ऊपर'
विशेष ऊँचाई का बोधक है।
जैसे-
पहाड़ के ऊपर एक मन्दिर है। इस विभाग में मैं सबसे ऊपर हूँ।
हिंदी में 'ऊपर' की अपेक्षा 'पर' का व्यवहार अधिक होता है। जैसे-
मुझपर कृपा करो। छत पर लोग बैठे हैं। गोप पर अभियोग है। मुझपर तुम्हारे एहसान हैं।
(7) 'बाद' और 'पीछे' का प्रयोग- यदि काल का अन्तर बताना हो, तो 'बाद' का और
यदि स्थान का अन्तर सूचित करना हो,
तो 'पीछे' का प्रयोग होता है।
जैसे-
उसके बाद वह आया- काल का अन्तर।
मेरे बाद इसका नम्बर आया- काल का अन्तर।
गाड़ी पीछे रह गयी- स्थान का अन्तर।
मैं उससे बहुत पीछे हूँ- स्थान का अन्तर।
(8) (क) नए, नये, नई, नयी का शुद्ध प्रयोग- जिस शब्द का अन्तिम वर्ण 'या' है उसका बहुवचन 'ये' होगा। 'नया' मूल शब्द है, इसका बहुवचन 'नये' और स्त्रीलिंग 'नयी' होगा।
(ख) गए, गई, गये, गयी का शुद्ध प्रयोग- मूल शब्द 'गया' है। उपरिलिखित नियम के अनुसार 'गया' का बहुवचन 'गये' और स्त्रीलिंग 'गयी' होगा।
(ग) हुये, हुए, हुयी, हुई का शुद्ध प्रयोग- मूल शब्द 'हुआ' है, एकवचन में। इसका बहुवचन होगा 'हुए'; 'हुये' नहीं 'हुए' का स्त्रीलिंग 'हुई' होगा; 'हुयी' नहीं।
(घ) किए, किये, का शुद्ध प्रयोग- 'किया' मूल शब्द है; इसका बहुवचन 'किये' होगा।
(ड़) लिए, लिये, का शुद्ध प्रयोग- दोनों शुद्ध रूप हैं। किन्तु जहाँ अव्यय व्यवहृत होगा वहाँ 'लिए'
आयेगा।
जैसे- मेरे लिए उसने जान दी।
क्रिया के अर्थ में 'लिये' का प्रयोग होगा; क्योंकि इसका मूल शब्द 'लिया' है।
(च) चाहिये, चाहिए का शुद्ध प्रयोग- 'चाहिए' अव्यय है। अव्यय विकृत नहीं होता। इसलिए 'चाहिए' का प्रयोग शुद्ध है; 'चाहिये' का नहीं। 'इसलिए' के साथ भी ऐसी ही बात है।