(5)व्यक्तिवाचक विशेषण:-जिन विशेषण शब्दों की रचना व्यक्तिवाचक संज्ञा से होती है, उन्हें व्यक्तिवाचक
विशेषण कहते है।
दूसरे शब्दों में- ऐसे शब्द जो असल में संज्ञा के भेद व्यक्तिवाचक संज्ञा से बने होते हैं एवं विशेषण शब्दों की रचना करते हैं,
वे व्यक्तिवाचक विशेषण कहलाते हैं।
जैसे- इलाहाबाद से इलाहाबादी
जयपुर से जयपुरी
बनारस से बनारसी
लखनऊ से लखनवी आदि।
उदाहरण- 'इलाहाबादी' अमरूद मीठे होते है।
व्यक्तिवाचक विशेषण के अन्य उदाहरण
मुझे भारतीय खाना बहुत पसंद है।
ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं भारतीय शब्द असल में तो व्यक्तिवाचक संज्ञा से बना भारत शब्द
लेकिन अब भारतीय शब्द
विशेषण की रचना कर रहा है। इस वाक्य में यह शब्द खाने की विशेषता बता रहा है। अतः यह उदाहरण व्यक्तिवाचक
विशेषण के अंतर्गत आयेंगे।
सभी साड़ियों में से मुझे बनारसी साडी सबसे ज्यादा पसंद है।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं कि बनारसी शब्द का प्रयोग किया गया है। यह शब्द बनारस शब्द
से बना है जो एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है लेकिन अब यह बनारसी बनने के बाद यह विशेषण कि तरह प्रयोग हो रहा है।
अतः यह उदाहरण व्यक्तिवाचक विशेषण के अंतर्गत आएगा।
हमारी दूकान पर जयपुरी मिठाइयां मिलती हैं।
ऊपर दिए गए उदाहरणों में जैसा कि आप देख सकते हैं जयपुरी शब्द का इस्तेमाल किया गया है। यह शब्द जयपुर
शब्द से बना है
जो कि एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है।
यह शब्द जयपुरी बनने के बाद विशेषण बन जाता हैं एवं अब इस वाक्य में मिठाइयों कि विशेषता बता रहा है। अतः यह उदाहरण व्यक्तिवाचक विशेषण के अंतर्गत आएगा।
(6)संबंधवाचक विशेषण :- जो विशेषण किसी वस्तु की विशेषताएँ दूसरी वस्तु के संबंध में बताता है, उन्हें संबंधवाचक विशेषण कहते हैं।
इस तरह के विशेषण संज्ञा, क्रियाविशेषण तथा क्रिया से बनते हैं। जैसे- 'आनन्द' से आनन्दमय ('आनन्द' संज्ञा से), बाहरी ('बाहर' क्रियाविशेषण से), खुला ('खुलना' क्रिया से)।
संबंधवाचक विशेषणों से सूचित होता है-
(क) वस्तु का लक्ष्य- जंगी जहाज। व्यापारी बेड़ा।
(ख) देश या जाति से संबंध- भारतीय, रूसी, बंगाली।
(ग) स्थान या वस्तु से संबंध- पहाड़ी, रेगिस्तानी, फौलादी, रेशमी, ऊनी, सूती आदि।
(घ) विज्ञान, राजनीति, सामाजिक जीवन आदि से संबंध- वैज्ञानिक, भौतिक, गाणितिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि।
विशेषण के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं-
(1) विशेषता बताना- विशेषण के द्वारा किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता बताई जाती है। जैसे- मोहन सुन्दर है। यहाँ 'सुन्दर' मोहन की विशेषता बताता है।
(2) हीनता बताना- विशेषण किसी की हीनता भी बताता है। जैसे- वह लड़का शैतान है। यहाँ 'शैतान' लड़के की हीनता बताता है।
(3) अर्थ सीमित करना- विशेषण द्वारा अर्थ को सीमित किया जाता है। जैसे- काली गाय। यहाँ 'काली' शब्द गाय के एक विशेष प्रकार का अर्थबोध कराता है।
(4) संख्या निर्धारित करना- विशेषण संख्या निर्धारित करने का काम करता है। जैसे- एक आम दो। यहाँ 'एक' शब्द से आम की संख्या निर्धारित होती है।
(5) परिमाण या मात्रा बताना- विशेषण के द्वारा मात्रा बताने का काम किया जाता है। जैसे- पाँच सेर दूध। यहाँ 'पाँच सेर' से दूध की निश्र्चित मात्रा का अर्थबोध होता है।
विशेषण संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है और जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतायी जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं।
वाक्य में विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है- कभी विशेषण विशेष्य के पहले आता है और कभी विशेष्य के बाद।
प्रयोग की दृष्टि से विशेषण के दो भेद है-
(1) विशेष्य-विशेषण (2) विधेय-विशेषण
(1) विशेष्य-विशेष- जो विशेषण विशेष्य के पहले आये, वह विशेष्य-विशेष होता हैं।
जैसे- रमेश 'चंचल' बालक है। सुनीता 'सुशील' लड़की है।
इन वाक्यों में 'चंचल' और 'सुशील' क्रमशः बालक और लड़की के विशेषण हैं, जो संज्ञाओं (विशेष्य) के पहले आये हैं।
(2) विधेय-विशेषण- जो विशेषण विशेष्य और क्रिया के बीच आये, वहाँ विधेय-विशेषण होता हैं।
जैसे-
मेरा कुत्ता 'काला' हैं। मेरा लड़का 'आलसी' है। इन वाक्यों में 'काला' और 'आलसी' ऐसे विशेषण हैं,
जो क्रमशः 'कुत्ता'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) तथा 'लड़का'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) के बीच आये हैं।
यहाँ दो बातों का ध्यान रखना चाहिए- (क) विशेषण के लिंग, वचन आदि विशेष्य के लिंग, वचन आदि के अनुसार होते हैं। जैसे- अच्छे लड़के पढ़ते हैं। आशा भली लड़की है। राजू गंदा लड़का है।
(ख) यदि एक ही विशेषण के अनेक विशेष्य हों तो विशेषण के लिंग और वचन समीपवाले विशेष्य के लिंग, वचन के अनुसार होंगे; जैसे- नये पुरुष और नारियाँ, नयी धोती और कुरता।
हिंदी भाषा में विशेषण शब्दों की रचना संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्दों के साथ उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगाकर की जाती है।
संज्ञा से विशेषण शब्दों की रचना
संज्ञा | विशेषण | संज्ञा | विशेषण |
---|---|---|---|
कथन | कथित | राधा | राधेय |
तुंद | तुंदिल | गंगा | गांगेय |
धन | धनवान | दीक्षा | दीक्षित |
नियम | नियमित | निषेध | निषिद्ध |
प्रसंग | प्रासंगिक | पर्वत | पर्वतीय |
प्रदेश | प्रादेशिक | प्रकृति | प्राकृतिक |
बुद्ध | बौद्ध | भूमि | भौमिक |
मृत्यु | मर्त्य | मुख | मौखिक |
रसायन | रासायनिक | राजनीति | राजनीतिक |
लघु | लाघव | लोभ | लुब्ध/लोभी |
वन | वन्य | श्रद्धा | श्रद्धेय/श्रद्धालु |
संसार | सांसारिक | सभा | सभ्य |
उपयोग | उपयोगी/उपयुक्त | अग्नि | आग्नेय |
आदर | आदरणीय | अणु | आणविक |
अर्थ | आर्थिक | आशा | आशित/आशान्वित/आशावानी |
ईश्वर | ईश्वरीय | इच्छा | ऐच्छिक |
इच्छा | ऐच्छिक | उदय | उदित |
उन्नति | उन्नत | कर्म | कर्मठ/कर्मी/कर्मण्य |
क्रोध | क्रोधालु, क्रोधी | गृहस्थ | गार्हस्थ्य |
गुण | गुणवान/गुणी | घर | घरेलू |
चिंता | चिंत्य/चिंतनीय/चिंतित | जल | जलीय |
जागरण | जागरित/जाग्रत | तिरस्कार | तिरस्कृत |
दया | दयालु | दर्शन | दार्शनिक |
धर्म | धार्मिक | कुंती | कौंतेय |
समर | सामरिक | पुरस्कार | पुरस्कृत |
नगर | नागरिक | चयन | चयनित |
निंदा | निंद्य/निंदनीय | निश्र्चय | निश्चित |
परलोक | पारलौकिक | पुरुष | पौरुषेय |
पृथ्वी | पार्थिव | प्रमाण | प्रामाणिक |
बुद्धि | बौद्धिक | भूगोल | भौगोलिक |
मास | मासिक | माता | मातृक |
राष्ट्र | राष्ट्रीय | लोहा | लौह |
लाभ | लब्ध/लभ्य | वायु | वायव्य/वायवीय |
विवाह | वैवाहिक | शरीर | शारीरिक |
सूर्य | सौर/सौर्य | हृदय | हार्दिक |
क्षेत्र | क्षेत्रीय | आदि | आदिम |
आकर्षण | आकृष्ट | आयु | आयुष्मान |
अंत | अंतिम | इतिहास | ऐतिहासिक |
उत्कर्ष | उत्कृष्ट | उपकार | उपकृत/उपकारक |
उपेक्षा | उपेक्षित/उपेक्षणीय | काँटा | कँटीला |
ग्राम | ग्राम्य/ग्रामीण | ग्रहण | गृहीत/ग्राह्य |
गर्व | गर्वीला | घाव | घायल |
जटा | जटिल | जहर | जहरीला |
तत्त्व | तात्त्विक | देव | दैविक/दैवी |
दिन | दैनिक | दर्द | दर्दनाक |
विनता | वैनतेय | रक्त | रक्तिम |
सर्वनाम से विशेषण शब्दों की रचना
सर्वनाम | विशेषण | सर्वनाम | विशेषण |
---|---|---|---|
कोई | कोई-सा | जो | जैसा |
कौन | कैसा | वह | वैसा |
मैं | मेरा/मुझ-सा | हम | हमारा |
तुम | तुम्हारा | यह | ऐसा |
क्रिया से विशेषण शब्दों की रचना
क्रिया | विशेषण | क्रिया | विशेषण |
---|---|---|---|
भूलना | भुलक्क़ड़ | खेलना | खिलाड़ी |
पीना | पियक्कड़ | लड़ना | लड़ाकू |
अड़ना | अड़ियल | सड़ना | सड़ियल |
घटना | घटित | लूटना | लुटेरा |
पठ | पठित | रक्षा | रक्षक |
बेचना | बिकाऊ | कमाना | कमाऊ |
उड़ना | उड़ाकू | खाना | खाऊ |
पत् | पतित | मिलन | मिलनसार |
अव्यय से विशेषण शब्दों की रचना
अव्यय | विशेषण | अव्यय | विशेषण |
---|---|---|---|
ऊपर | ऊपरी | पीछे | पिछला |
नीचे | निचला | आगे | अगला |
भीतर | भीतरी | बाहर | बाहरी |
जिन विशेषणों के द्वारा दो या अधिक विशेष्यों के गुण-अवगुण की तुलना की जाती है, उन्हें 'तुलनाबोधक विशेषण' कहते हैं।
तुलनात्मक दृष्टि से एक ही प्रकार की विशेषता बतानेवाले पदार्थों या व्यक्तियों में मात्रा का अन्तर होता है।
तुलना के विचार से विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं-
(i)मूलावस्था (Positive Degree)
(ii)उत्तरावस्था (Comparative Degree)
(iii)उत्तमावस्था (Superlative Degree)
(i)मूलावस्था :-किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के गुण-दोष बताने के लिए जब विशेषणों का प्रयोग किया जाता है,
तब वह विशेषण की मूलावस्था कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिस विशेषण से केवल एक व्यक्ति या वस्तु की विशेषता ज्ञात हो, किसी दूसरे से तुलना आदि न की गई हो,
उसे विशेषण की मूलावस्था कहते हैं।
इसमे विशेषण अन्य किसी विशेषण से तुलित न होकर सीधे व्यक्त होता है।
जैसे-
कमल 'सुंदर' फूल होता है।
आसमान में 'लाल' पतंग उड़ रही है।
ऐश्वर्या राय 'खूबसूरत' हैं।
वह अच्छी 'विद्याथी' है।
इसमें कोई तुलना नहीं होती, बल्कि सामान्य विशेषता बताई जाती है।
(ii)उत्तरावस्था :- जब दो व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच अधिकता या न्यूनता की तुलना होती है, तब उसे विशेषण
की उत्तरावस्था कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- जिस विशेषण से किसी वस्तु की विशेषता को दूसरी वस्तु की विशेषता से अधिक बताया जाय,
वह विशेषण की उत्तरावस्था है।
इसमें दो व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणियों के गुण-दोष बताते हुए उनकी आपस में तुलना की जाती है।
जैसे-
यह पुस्तक उस पुस्तक से मोटी है।
सीता गीता से अधिक सुन्दर लड़की है।
उत्तरावस्था में केवल तत्सम शब्दों में 'तर' प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे-
सुन्दर + तर >सुन्दरतर
महत् + तर >महत्तर
लघु + तर >लघुतर
अधिक + तर >अधिकतर
दीर्घ + तर > दीर्घतर
हिन्दी में उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए 'से' और 'में' चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
बच्ची फूल से भी कोमल है।
इन दोनों लड़कियों में वह सुन्दर है।
विशेषण की उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए 'के अलावा', की तुलना में', 'के मुकाबले' आदि पदों का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे-
पटना के मुकाबले जमशेदपुर अधिक स्वच्छ है।
संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी कम कठिन है।
आपके अलावा वहाँ कोई उपस्थित नहीं था।
(iii)उत्तमावस्था :- यह विशेषण की सर्वोत्तम अवस्था है। जब दो से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच
तुलना की जाती है और उनमें से एक को श्रेष्ठता या निम्नता दी जाती है,
तब विशेषण की उत्तमावस्था कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिस विशेषण से किसी वस्तु की विशेषता को अन्य सभी सम्बद्ध वस्तुओं की विशेषता से
अधिक बताया जाए, वह विशेषण की उत्तमावस्था है।
इसमें विशेषण द्वारा किसी वस्तु अथवा प्राणी को सबसे अधिक गुणशाली या दोषी बताया जाता है।
जैसे-
कपिल सबसे या सबों में अच्छा है।
दीपू सबसे घटिया विचारवाला लड़का है।
तुम 'सबसे सुन्दर' हो।
हमारे कॉंलेज में नरेन्द्र 'सबसे अच्छा' खिलाड़ी है।
तत्सम शब्दों की उत्तमावस्था के लिए 'तम' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे-
सुन्दर + तम > सुन्दरतम
महत् + तम > महत्तम
लघु + तम > लघुतम
अधिक + तम > अधिकतम
श्रेष्ठ + तम > श्रेष्ठतम
'श्रेष्ठ', के पूर्व, 'सर्व' जोड़कर भी इसकी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे- नीरज सर्वश्रेष्ठ लड़का है।
फारसी के 'ईन' प्रत्यय जोड़कर भी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है।
जैसे- बगदाद बेहतरीन शहर है।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि विशेषण की उत्तरावस्था तथा उत्तमावस्था बताने के लिए एक या अधिक से तुलना की जाती है। इसे हम निम्नलिखित दो ढंगों से बता सकते हैं।
(1) विशेषण से पूर्व 'अधिक', 'सबसे अधिक' लगाकर, जैसे-
मूलावस्था | उत्तरावस्था | उत्तमावस्था |
---|---|---|
मोटा | अधिक मोटा | सबसे अधिक मोटा |
अच्छा अधिक | अच्छा सबसे | अधिक अच्छा |
(2) विशेषण के साथ 'तर' तथा 'तम' लगाकर। जैसे-
मूलावस्था | उत्तरावस्था | उत्तमावस्था |
---|---|---|
लघु | लघुतर | लघुतम |
अधिक | अधिकतर | अधिकतम |
कोमल | कोमलतर | कोमलतम |
सुन्दर | सुन्दरतर | सुन्दरतम |
उच्च | उच्चतर | उच्त्तम |
प्रिय | प्रियतर | प्रियतम |
निम्र | निम्रतर | निम्रतम |
निकृष्ट | निकृष्टतर | निकृष्टतम |
महत् | महत्तर | महत्तम |
विशेषणों की रूप-रचना निम्नलिखित अवस्थाओं में मुख्यतः संज्ञा, सर्वनाम और क्रिया में प्रत्यय लगाकर होती है-
विशेषण की रचना पाँच प्रकार के शब्दों से होती है-
(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा से- गाजीपुर से गाजीपुरी, मुरादाबाद से मुरादाबादी, गाँधीवाद से गाँधीवादी।
(2) जातिवाचक संज्ञा से- घर से घरेलू, पहाड़ से पहाड़ी, कागज से कागजी, ग्राम से ग्रामीण, शिक्षक से शिक्षकीय, परिवार से पारिवारिक।
(3) सर्वनाम से- यह से ऐसा (सार्वनामिक विशेषण), यह से इतने (संख्यावाचक विशेषण), यह से इतना (परिमाणवाचक विशेषण), जो से जैसे (प्रकारवाचक विशेषण), जितने (संख्यावाचक विशेषण), जितना (परिमाणवाचक विशेषण), वह से वैसा (सार्वनामिक विशेषण), उतने (संख्यावाचक विशेषण), उतना (परिमाणवाचक विशेषण)।
(4) भाववाचक संज्ञा से- भावना से भावुक, बनावट से बनावटी, एकता से एक, अनुराग से अनुरागी, गरमी से गरम, कृपा से कृपालु इत्यादि।
(5) क्रिया से- चलना से चालू, हँसना से हँसोड़, लड़ना से लड़ाकू, उड़ना से उड़छू, खेलना से खिलाड़ी, भागना से भगोड़ा, समझना से समझदार, पठ से पठित, कमाना से कमाऊ इत्यादि।
कुछ शब्द स्वंय विशेषण होते है और कुछ प्रत्यय लगाकर बनते है। जैसे -
(1)'ई' प्रत्यय से = जापान-जापानी, गुण-गुणी, स्वदेशी, धनी, पापी।
(2) 'ईय' प्रत्यय से = जाति-जातीय, भारत-भारतीय, स्वर्गीय, राष्ट्रीय ।
(3)'इक' प्रत्यय से = सप्ताह-साप्ताहिक, वर्ष-वार्षिक, नागरिक, सामाजिक।
(4)'इन' प्रत्यय से = कुल-कुलीन, नमक-नमकीन, प्राचीन।
(5)'मान' प्रत्यय से = गति-गतिमान, श्री-श्रीमान।
(6)'आलु'प्रत्यय से = कृपा -कृपालु, दया-दयालु ।
(7)'वान' प्रत्यय से = बल-बलवान, धन-धनवान।
(8)'इत' प्रत्यय से = नियम-नियमित, अपमान-अपमानित, आश्रित, चिन्तित ।
(9)'ईला' प्रत्यय से = चमक-चमकीला, हठ-हठीला, फुर्ती-फुर्तीला।
विशेषण के पद-परिचय में संज्ञा और सर्वनाम की तरह लिंग, वचन, कारक और विशेष्य बताना चाहिए।
उदाहरण- यह तुम्हें बापू के अमूल्य गुणों की थोड़ी-बहुत जानकारी अवश्य करायेगा।
इस वाक्य में अमूल्य और थोड़ी-बहुत विशेषण हैं। इसका पद-परिचय इस प्रकार होगा-
अमूल्य- विशेषण, गुणवाचक, पुंलिंग, बहुवचन, अन्यपुरुष, सम्बन्धवाचक, 'गुणों' इसका विशेष्य।
थोड़ी-बहुत- विशेषण, अनिश्र्चित संख्यावाचक, स्त्रीलिंग, कर्मवाचक, 'जानकारी' इसका विशेष्य।
विशेषण का अपना लिंग-वचन नहीं होता। वह प्रायः अपने विशेष्य के अनुसार अपने रूपों को परिवर्तित करता है। हिन्दी के सभी विशेषण दोनों लिंगों में समान रूप से बने रहते हैं; केवल आकारान्त विशेषण स्त्री० में ईकारान्त हो जाया करता है।
(1) बिहारी लड़के भी कम प्रतिभावान् नहीं होते।
(2) वह अपने परिवार की भीतरी कलह से परेशान है।
(3) उसका पति बड़ा उड़ाऊ है।
(1) अच्छा लड़का सर्वत्र आदर का पात्र होता है।
(2) अच्छी लड़की सर्वत्र आदर की पात्रा होती है।
(3) हमारे वेद में ज्ञान की बातें भरी-पड़ी हैं।
(4) विद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं।
(5) राक्षस मायावी होता था।
(6) राक्षसी मायाविनी होती थी।
जिन विशेषण शब्दों के अन्त में 'इया' रहता है, उनमें लिंग के कारण रूप-परिवर्तन नहीं होता। जैसे-
मुखिया, दुखिया, बढ़िया, घटिया, छलिया।
दुखिया मर्दो की कमी नहीं है इस देश में।
दुखिया औरतों की भी कमी कहाँ है इस देश में।
उर्दू के उम्दा, ताजा, जरा, जिंदा आदि विशेषणों का रूप भी अपरिवर्तित रहता है। जैसे-
आज की ताजा खबर सुनो।
पिताजी ताजा सब्जी लाये हैं।
सार्वनामिक विशेषणों के रूप भी विशेष्यों के अनुसार ही होते हैं। जैसे-
जैसी करनी वैसी भरनी
यह लड़का-वह लड़की
ये लड़के-वे लड़कियाँ
जो तद्भव विशेषण 'आ' नहीं रखते उन्हें ईकारान्त नहीं किया जाता है। स्त्री० एवं पुं० बहुवचन में भी उनका प्रयोग वैसा ही
होता है। जैसे-
ढीठ लड़का कहीं भी कुछ बोल जाता है।
वहां के लड़के बहुत ही ढीठ हैं।
जब किसी विशेषण का जातिवाचक संज्ञा की तरह प्रयोग होता है तब स्त्री०- पुं० भेद बराबर स्पष्ट रहता है। जैसे-
उस सुन्दरी ने पृथ्वीराज चौहान को ही वरण किया।
उन सुन्दरियों ने मंगलगीत प्रारंभ कर दिए।
परन्तु, जब विशेषण के रूप में इनका प्रयोग होता है तब स्त्रीत्व-सूचक 'ई' का लोप हो जाता है। जैसे-
उन सुन्दर बालिकाओं ने गीत गाए।
चंचल लहरें अठखेलियाँ कर रही है।
जिन विशेषणों के अंत में 'वान्' या 'मान्' होता है, उनके पुंल्लिंग दोनों वचनों में 'वान्' या 'मान्'और स्त्रीलिंग दोनों वचनों में
'वती' या 'मती' होता है। जैसे-
गुणवान लड़का : गुणवान् लड़के
गुणवती लड़की : गुणवती लड़कियाँ
बुद्धिमान् लड़का : बुद्धिमान् लड़के
बुद्धिमती लड़की : बुद्धिमती लड़कियाँ
सर्वनाम संज्ञा के स्थान पर आता है, अतः सर्वनाम के बाद संज्ञा का प्रयोग नहीं होता। संज्ञा से पूर्व आने वाला सर्वनाम विशेषण बन जाता है, तब उसे सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे- 'वह कल आया है' में 'वह' किसी संज्ञा के स्थान पर आने के कारण सर्वनाम है। 'वह बालक कल आया है' में वह संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण है क्योंकि 'वह' बालक की ओर संकेत कर रहा है।