Varsa Ritu( वर्षाऋतु)

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वर्षाऋत

परिचय

भारतवर्ष में वर्षाऋतु जुलाई के आरंभ से शुरू होती है और सितंबर तक रहती है। सूर्य की झुलसानेवाली किरणों एवं अत्यधिक गर्मी से पीड़ित दुनिया के लिए यह मुक्ति के रूप में आती है। वर्षा ऋतुओं की रानी है। भारत की सभी ऋतुओं में यह एक अनुपम ऋतु हैं संसार के बड़े-बड़े कवियों ने इस ऋतु की काफी प्रशंसा की है और इसपर अच्छी-अच्छी कविताएँ लिखी हैं। यह ऋतु संसार को जीवन देती है, प्यासों को पानी देती है और माँ की तरह मनुष्य का पालन-पोषण करती हैं। पशु, पक्षी, पौधे एवं मनुष्य सभी वर्षाऋतु का स्वागत करते है;क्योंकि यह उन्हें आराम देती है।

वर्षाऋतु का दृश्य

गर्मी के बाद वर्षा आती है। जब वर्षाऋतु शुरू होती है तब आकाश मेघाच्छादित रहता है और बड़ा सुंदर दृश्य मालूम होता है। वर्षा के प्रभाव से प्रकृति लहलहा उठती है; सूखे पौधों और सूखी पत्तियों में नयी जान आ जाती है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। भिन्न-भिन्न प्रकार के पक्षी अपनी मधुर ध्वनि से वन और उपवनों की शोभा बढ़ाते है। तालाब के किनारे मेढ़क टर्र-टर्र करने लगते है, दुबली-पतली लताएँ बढ़कर फैलने लगती है और वृक्षों से लिपटने लगती हैं। घने जंगलों में मोर मस्त होकर नाचने लगते हैं। सारी प्रकृति नया रूप धारण कर नये जीवन का स्वागत करती है।

सूखी नदियाँ किनारों को तोड़ती-मरोड़ती आगे बढ़ती हैं। और कभी-कभी किनारों के पेड़-पौधों को उखाड़- पछाड़क़र गिराने लगती हैं। इस ऋतु में ऐसा लगता है, किसी ने सारी धरती पर हरी चादर बिछा दी हो। खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, ताल-तलैया, आहर-पोखर- सभी भरे-पूरे हो उठते हैं। वर्षा के स्वागत में स्त्रियाँ इंद्र भगवान की पूजा करती हैं, कदंब की डालों पर झूला झूलती हैं और कजली, लावनी, हिडोला गाती हैं। आकाश काले मेघों से भर जाता हैं। कभी-कभी बादलों को चीरकर बिजली चमकती है और कभी बादल गरजते है। जब वर्षा की नन्हीं बूँदें छोटे-बड़े पत्तों पर गिरती है तब ऐसा लगता है मानो मोती झर रहे हों। हवा में शीतलता और मस्ती रहती है। गाँव के किसान झूम उठते हैं और उनके रूखे अोठों पर मुस्कुराहट दौड़ जाती है। आशा और उत्साह का नया वातावरण छा जाता है। इस प्रकार, वर्षाऋतु मनुष्य और प्रकृति को नये साँचे में ढाल देती है।

लाभ

वर्षाऋतु संसार के लिए नये जीवन का वरदान अथवा कीमती उपहार लेकर आती है। सभी नया जीवन पाकर असीम आनंद का अनुभव करते हैं। यदि वर्षा न हो तो चारों ओर हाहाकार मच जाय, अन्न की उपज न हो और सारे लोग तड़प-तड़पकर मर जायँ, देश में अकाल पड़ने लगे। इतना ही नहीं, मनुष्य की तरह पशु-पक्षी भी मुसीबत में फँसेंगे। वर्षा के अभाव में जब पशुओं को चारा नहीं मिलता है, तब उनकी भी हालत खराब होने लगती है।

हानि

वर्षाऋतु कभी जीवन देती है, तो कभी जीवन लेती भी है। जहाँ एक ओर यह हरियाली लाती है, वहीं अधिक वर्षा के कारण गाँवों और नगरों को डूबा भी देती है। शहर की सड़कें तो साफ-सुथरी हो जाती हैं, किंतु गाँवों की राहों में कीचड़ हो जाने के कारण गाड़ियों और लोगों के आने-जाने में बड़ी कठिनाई होती है। इस ऋतु में जहरीले कीड़े, मच्छर और मक्खियाँ बड़ी संख्या में निकल आती है, जिनसे मलेरिया, हैजा आदि रोग भयानक रूप धारण कर लेते हैं। लगातार वर्षा होने के कारण गरीबों के कच्चे मकान गिर पड़ते हैं और वे बेघर हो जाते हैं। यदि बाढ़ आयी,तो खेत-के-खेत और गाँव-के-गाँव नष्ट हो जाते है। ऐसी हालत में धन और जन की बड़ी हानि होती है।

कृषकों के लिए वरदान

किसानों के लिए वर्षा वरदान है। वर्षा के बिना अनाज नहीं उपज सकता और किसानों को अधिक नुकसान हो जाता है। भारतवर्ष में किसानों को खेती के लिए तथा खेतों में अनाज पैदा करने के लिए मुख्यतः वर्षा पर ही निर्भर करना पड़ता हैं।

उपसंहार

वर्षा आनंद, आशा और उत्साह की ऋतु है। यह जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। यही कारण है कि सभी ऋतुओं में इसका सबसे ऊँचा स्थान है और यह सभी ऋतुओं की रानी कहलाती है। यदि यह न होती,तो जीवन और जगत की सत्ता ही सदा के लिए मिट गयी होती।