संस्कृत में काव्य लक्षण आचार्यों ने मुख्यतः तीन, आधारों पर किया है जो निम्न है- (1) शब्द और अर्थ के आधार पर (2) शब्द के आधार पर और (3) रस और ध्वनि के आधार पर।
आचार्य | काव्य लक्षण |
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भामह | शब्दार्थौ सहितौ काव्यम् |
रुद्रट | ननु शब्दार्थौ काव्यम्। |
वामन | काव्य शब्दोऽयंगुणालंकार संस्कृतयो: शब्दार्थयो: वर्तते। |
कुन्तक | शब्दार्थौ सहितौ वक्र कवि व्यापार शालिनी। बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्राद कारिणी।। |
मम्मट | तददौषौ शब्दार्थौ सगुणावलंकृति पुनः क्वापि। |
वाग्भट्ट | साधु शब्दार्थ सन्दर्भ गुणालंकार भूषितम्। स्फुटरीतिरसोपेतं काव्यं कुर्वीत कीर्तये।। |
आनन्दवर्धन | सह्रदयह्रदयाह्लादिशब्दार्थमयत्वमेव काव्य लक्षणम्। |
राजशेखर | गुणवदलंकृतञ्च वाक्यमेव काव्यम्। |
विद्याधर | शब्दार्थौ वपुरस्य शब्दार्थवपुस्तावत् काव्यम। |
क्षेमेन्द्र | काव्यंविशिष्टशब्दार्थ साहित्यसदलंकृति। |
आचार्य | काव्य लक्षण |
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दण्डी | शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिना पदावली। |
जयदेव | निर्दोषा लक्षणवती सरीतिर्गुण भूषणा। सालंकार रसानेक वृत्तिर्वाक्काव्य नामवाक्।। |
जगन्नाथ | रमणीयार्थ प्रतिपादक: शब्दः काव्यम्। |
आचार्य | काव्य लक्षण |
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विश्वनाथ | वाक्यं रसात्मकं काव्यम्। |
भोजराज | निर्दोषं गुणवत्काव्यमलंकारैरलंकृतम्। रसान्वितं कवि: कुर्वन् कीर्ति प्रीतिंच विन्दति।। |
आचार्य | काव्य लक्षण |
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केशवदास | जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत्त। भूषण बिनु न बिराजई, कविता बनिता मित्त।। |
श्रीपति | यदपि दोष बिनु गुन सहित, अलंकार सो लीन। कविता बनिता छवि नहीं, रस बिन तदपि प्रवीण।। |
चिन्तामणि | सगुण अलंकारन सहित, दोष रहित जो होइ। शब्द अर्थ वारौ कवित, बिबुध कहत सब कोई।। |
कुलपति मिश्र | दोष रहित अरु गुन सहित, कछुक अल्प अलंकार। सबद अरथ सो कवित है, ताको करो विचार।। |
सूरति मिश्र | बरनन मनरंजन जहाँ, रीति अलौकिक होइ। निपुन कर्म कवि जो जु तिहिं, काव्य कहत सब कोई।। |
कवि देव | सब्द जीव तिहि अरथ मन, रसमय सुजस सरीर। चलत वहै जुग छन्द गति, अलंकार गम्भीर।। |
सोमनाथ | सगुन पदारथ दोष बिनु, पिंगल मत अविरुद्ध। भूषण जुत कवि कर्म जो, सो कवित्त कहि सुद्ध।। |
भिखारीदास | रस कविता को अंग, भूषण हैं भूषण सकल। गुन सरूप औ रंग, दूशन करै करुपता।। |
(1) ''अन्तःकरण की वृत्तियों के चित्र का नाम कविता है।''-महावीर प्रसाद द्विवेदी
(2) ''जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। ह्रदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते है। इस साधना को हम भावयोग कहते हैं और कर्मयोग और ज्ञानयोग के समकक्ष मानते है।''-रामचन्द्र शुक्ल
(3) ''कविता ही मनुष्य के हृदय को स्वार्थ-सम्बन्धों के के संकुचित मण्डल से ऊपर उठाकर लोक-सामान्य भाव-भूमि पर ले जाती है, जहाँ जगत् की नाना गतियों के मार्मिक स्वरूप का साक्षात्कार और शुद्ध अनुभूतियों का संचार होता है।''-रामचन्द्र शुक्ल
(4) ''काव्य तो प्रकृत मानव अनुभूतियों का नैसर्गिक कल्पना के सहारे, ऐसा सौन्दर्यमय चित्रण है जो मनुष्य-मात्र में स्वभावतः अनुरूप भावोच्छवास और सौन्दर्य-संवेदन उत्पन्न करता है। इसी सौन्दर्य-संवेदन को भारतीय पारिभाषिक शब्दावली में 'रस' कहते हैं। -नन्द दुलारे वाजपेयी
(5) ''काव्य आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति है जिसका सम्बन्ध विश्लेषण विकल्प या विज्ञान से नहीं है। वह एक श्रेयमयी प्रेय रचनात्मक ज्ञानधारा है। आत्मा की मननशक्ति की वह असाधारण अवस्था जो श्रेय सत्य के उसके मूलचारुत्व में सहसा ग्रहण कर लेती है, काव्य में संकल्पनात्मक मूल अनुभूति कही जा सकती है।” -जयशंकर प्रसाद
(6) कविता कवि-विशेष की भावनाओं का चित्रण है और वह चित्रण इतना ठीक है कि उससे वैसी ही भावनाओं किसी दूसरे के ह्रदय में आविर्भूत होती है। -महादेवी वर्मा
(7) ''कविता हमारे परिपूर्ण क्षणो की वाणी है।' -सुमित्रानन्दन पन्त
(8) ''रसात्मक शब्दार्थ ही काव्य है और उसकी छन्दोमयी विशिष्ट विद्या आधुनिक अर्थ में कविता है।' -डॉ० नगेन्द्र