मूल अवतरण के भावों अथवा विचारों को संक्षेप में लिखने की क्रिया को 'सारांश' कहते हैं।
मूल में जो बात विस्तार से कही गयी है, 'सारांश' में उतनी ही बात संक्षेप में, सार-रूप में कहनी या लिखनी पड़ती है।
विस्तार और विश्लेषण करने की यहाँ आवश्यकता नहीं। भाषा सरल और सुबोध होनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि सारांश मूल अवतरण से छोटा होना चाहिए।
उदाहरण
उद्योग-धंधों में काम करनेवाला मनुष्य जनसाधारण के जीवन और उसके सभी कार्यो पर प्रभाव डालता है और इस प्रकार सबसे अच्छी व्यावहारिक शिक्षा देता है। स्कूल और कॉलेज तो केवल प्रारंभिक शिक्षा देते है, पर कल-कारखानों में काम करनेवाले लोगों से जो शिक्षा मिलती है, वह स्कूल कॉलेज की शिक्षा से कहीं अधिक प्रभावशाली है।
सारांश- स्कूलों-कॉलेजों में लड़के सैद्धांतिक शिक्षा पाते हैं, पर उद्योगशील मनुष्य अपने कार्यो द्वारा व्यावहारिक शिक्षा देते हैं, व्यावहारिक शिक्षा सैद्धांतिक शिक्षा से अधिक प्रभावशाली होती है।