(Poetry)-काव्य


छायावाद युग में विविध काव्य रूपों का प्रयोग हुआ

मुक्तिक काव्य सर्वाधिक लोकप्रिय
गीति काव्य 'करुणालय' (प्रसाद),
'पंचवटी प्रसंग' (निराला),
'शिल्पी' व 'सौवर्ण रजत शिखर' (पंत)
प्रबंध काव्य 'कामायनी' व 'प्रेम पथिक' (प्रसाद),
'ग्रंथि', 'लोकायतन' व 'सत्यकाम' (पंत),
'तुलसीदास' (निराला)
लंबी कविता 'प्रलय की छाया' व 'शेर सिंह का शस्त्र समर्पण' (प्रसाद)
'सरोज स्मृति' व 'राम की शक्ति पूजा' (निराला), 'परिवर्तन' (पंत)

प्रसिद्ध पंक्तियाँ

  • मैंने मैं शैली अपनाई
    देखा एक दुःखी निज भाई। -निराला
  • व्यर्थ हो गया जीवन
    मैं रण में गया हार। ('वनवेला') -निरालाा
  • धन्ये, मैं पिता निरर्थक था
    कुछ भी तेरे हित न कर सका।
    जाना तो अर्थागमोपाय
    पर रहा सदा संकुचित काय
    लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर
    हारता रहा मैं स्वार्थ समर। ('सरोज स्मृति') -निराला
  • छोटे से घर की लघु सीमा में
    बंधे है क्षुद्र भाव,
    यह सच है प्रिय
    प्रेम का पयोनिधि तो उमड़ता है
    सदा ही निःसीम भू पर। ('पंचवटी प्रसंग') -निराला
  • ताल-ताल से रे सदियों के जकड़े हृदय कपाट
    खोल दे कर-कर कठिन प्रहार
    आए अभ्यन्तर संयत चरणों से नव्य विराट
    करे दर्शन पाये आभार। -निराला
  • हाँ सखि ! आओ बाँह खोलकर हम
    लगकर गले जुड़ा ले प्राण
    फिर तुम तम में, मैं प्रियतम में
    हो जावें द्रुत अंतर्धान। -पंत
  • बीती विभावरी जाग री !
    अम्बर-पनघट में डूबो रही
    तारा-घट-ऊषा-नागरी। -प्रसाद
  • दिवसावसान का समय
    मेघमय आसमान से उतर रही है
    वह संध्या सुंदरी परी-सी
    धीरे-धीरे-धीरे। ('संध्या सुंदरी') -निराला
  • छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
    तोड़ प्रकृति से भी माया
    बाले तेरे बाल-जाल में
    कैसे उलझा दूँ लोचन ? -पंत
  • नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।
    ('कामायनी') -प्रसाद
  • मैं नीर भरी दुःख की बदली -महादेवी
  • तुमको पीड़ा में ढूँढा
    तुमको ढूँढेगी पीड़ा -महादेवी
  • नील परिधान बीच सुकुमार
    खुल रहा मृदुल अधखुला अंग
    खिला हो ज्यों बिजली का फूल
    मेघ बीच गुलाबी रंग। ('कामायनी') -प्रसाद
  • तोड़ दो यह झितिज, मैं भी देख लूं उस ओर क्या है ?
    जा रहे जिस पंथ से युग कल्प, उसका छोर क्या है ? -महादेवी
  • स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार
    चकित रहता शिशु सा नादान,
    विश्व के पलकों पर सुकुमार
    विचरते है स्वप्न अजान !
    न जाने, नक्षत्रों से कौन ?
    निमंत्रण देता मुझको मौन !! ('मौन निमंत्रण') -पंत
  • ले चल वहाँ भुलावा देकर
    मेरे नाविक ! धीरे-धीरे।
    जिस निर्जन में सागर लहरी
    अम्बर के कानों में गहरी
    निश्छल प्रेम कथा कहती हो
    तज कोलाहल की अवनी रे। ('लहर') -प्रसाद
  • हिमालय के आंगन में जिसे प्रथम किरणों का दे उपहार -प्रसाद
  • राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज
    जगत के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित -पंत
  • छोड़ो मत ये सुख का कण है। -प्रसाद
  • आह ! वेदना मिली विदाई। ('स्कंदगुप्त') -प्रसाद
  • जिए तो सदा उसी के लिए यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दे हम सर्वस्व हमारा प्यारा भारतवर्ष। ('स्कंदगुप्त') -प्रसाद
  • अरुण यह मधुमय देश हमारा।
    जहाँ पहुँच अनजान झितिज को मिलता एक सहारा।
    ('चन्द्रगुप्त') -प्रसाद
  • हिमाद्रि तुंग श्रृंग से
    प्रबुद्ध शुद्ध भारती
    स्वयंप्रभा समुज्जवला
    स्वतंत्रता पुकारती
    अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो,
    प्रशस्त पुण्य पंथ है-बढ़े चलो, बढ़े चलो। ('चन्द्रगुप्त') -प्रसाद
  • भारत माता ग्रामवासिनी। -पंत
  • भारति जय विजय करे। -निराला
  • शेरो की माँद में
    आया है आज स्यार
    जागो फिर एक बार। -निराला
  • वह आता
    दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। -निराला
  • वह तोड़ती पत्थर।
    देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर। -निराला
  • वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान।
    उमड़ कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान।। -पंत
  • विजय-वन-वल्लरी पर
    सोती थी सुहाग भरी
    स्नेह-स्वप्न-मग्न-अमल-कोमल तन तरुणी
    जूही की कली
    दृग बंद किए, शिथिल पत्रांक में। ('जूही की कली') -निराला
  • खुल गये छंद के बंध
    प्रास के रजत पाश। -पंत
  • मुक्त छंद
    सहज प्रकाशन वह मन का
    निज भावों का प्रकट अकृत्रिम चित्र। -निराला
  • तुमुल कोलाहल में
    मैं हृदय की बात रे मन। ('कामायनी') -प्रसाद
  • प्रथम रश्मि का आना रंगिणि ! तूने कैसे पहचाना ? -पंत
  • जो घनीभूत पीड़ा थी
    मस्तक में स्मृति-सी छाई,
    दुर्दिन में आँसू बनकर
    वह आज बरसने आई। ('आँसू') -प्रसाद
  • बाँधों न नाव इस ठाँव, बंधु !
    पूछेगा सारा गाँव, बंधु ! -निराला
  • हाय ! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन।
    जब विषण्ण निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन।
    (ताज -'युगांत') -पंत
  • 'प्रसाद पढ़ाने योग्य हैं, निराला पढ़े जाने योग्य है और पंतजी से काव्यभाषा सीखने योग्य है' । -अज्ञेय
  • छायावादी कविता का गौरव अक्षय है उसकी समृद्धि की समता केवल भक्ति काव्य ही कर सकता है। -डॉ० नगेन्द्र
  • 'निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिन्दी में नहीं है'। -हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • 'मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं'। -प्रेमचंद्र
  • 'यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक चुना हुआ गुलदस्ता'। -रामचन्द्र शुक्ल
  • अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है (स्कंदगुप्त') -प्रसाद
  • स्नेह निर्झर बह गया है -निराला
  • औ वरुणा की शांत कछार -प्रसाद
  • सजनि मधुर निजत्व दे कैसे मिलू अभिमानिनी मैं -महादेवी वर्मा
  • प्रिय के हाथ लगाए जागी, ऐसी मैं सो गई अभागी -निराला
  • अधरों में राग अमंद पिये, अलकों में मलयज बंद किये तू अब तक सोई है आली, आँखों में भरे विहाग री -प्रसाद
  • कहो तुम रूपसि कौन, व्योम से उत्तर रही चुपचाप -पंत
  • शैया सैकत पर दुग्ध धवल तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विकल -पंत
  • 'साहित्य, राजनीति के पीछे चलनेवाली सच्चाई नहीं, बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलनेवाली सच्चाई है'।
    -प्रेमचंद (प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष पद से बोलते हुए, 1936)
  • छायावादयुगीन रचना एवं रचनाकार

    (A) छायावादी काल धारा रचनाकार
    उर्वशी, वनमिलन, प्रेमराज्य, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छवास, बभ्रूवाहन,
    कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, महाराणा का महत्व; झरना, आँसू, लहर,
    कामायनी (केवल झरना से लेकर कामायनी तक छायावादी कविता है)
    जयशंकर प्रसाद
    अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, सरोज सूर्यकान्त त्रिपाठी
    स्मृति (कविता), राम की शक्ति पूजा (कविता) 'निराला'
    उच्छवास, ग्रन्थि, वीणा, पल्लव, गुंजन (छायावादयुगीन); युगान्त, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, रजतशिखर, उत्तरा, वाणी, पतझर, स्वर्ण काव्य, लोकायतन सुमित्रानंदन पंत
    नीहार, रश्मि, नीरजा व सांध्य गीत (सभी का संकलन 'यामा' नाम से) महादेवी वर्मा
    रूपराशि, निशीथ, चित्ररेखा, आकाशगंगा राम कुमार वर्मा
    राका, मानसी, विसर्जन, युगदीप, अमृत और विष उदय शंकर भट्ट
    निर्माल्य, एकतारा, कल्पना 'वियोगी'
    अन्तर्जगत लक्ष्मी नारायण मिश्र
    अनुभूति, अन्तर्ध्वनि जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'